डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की लगातार कोशिश से अब कोविड-19 के लिए एक प्रभावी वैक्सीन विकसित होने के करीब है, ऐसे में वैक्सीन को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं कि आखिर सबसे अच्छी वैक्सीन को अंततः भारत समेत दुनिया भर के लोगों तक कैसे पहुंचाया जाएगा। सितंबर 2020 तक के आंकड़ों की बात करें तो करीब 300 से अधिक वैक्सीन विकास के विभिन्न चरणों में है। इन वैक्सीन्स पर उनके संबंधित देशों के सार्वजनिक स्वास्थ्य और सरकारी अधिकारियों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय संगठन जैसे- GAVI, द वैक्सीन अलायंस और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की भी नजर है और इसमें जरूरी सतर्कता बरती जा रही है।

इतना ही नहीं इसके लिए कई समय सीमाएं तैयार की गई हैं कि आखिर कब एक प्रभावी वैक्सीन उपलब्ध होगी और दुनिया भर के अरबों लोग इस वैक्सीन का इस्तेमाल कर पाएंगे। हालांकि, जब बात सफल वैक्सीन के वितरण की आती है तो इसमें कई और बातों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

समीक्षा प्राप्त (पियर रिव्यूड) वैज्ञानिक पत्रिका न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन के संपादकीय सदस्यों ने एक बहस का आयोजन किया जिसमें इस बात पर चर्चा हुई कि सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े अधिकारी आम लोगों के लिए वैक्सीन का अनावरण (रोल आउट) किस तरह से करेंगे और कोविड-19 के मामले में किन बातों को उन्हें याद रखना चाहिए। पत्रिका के प्रबंध संपादक स्टीफन मॉरिसे, एडिटर-इन-चीफ एरिक रुबिन और डिप्टी एडिटर लिंडसे बेडेन भी बहुप्रतीक्षित कोविड-19 वैक्सीन के परिनियोजन या फैलाव से जुड़े बहस में शामिल हुए। 

यह आर्टिकल उन लोगों की बातचीत और अन्य रिपोर्टों के बारे में बताता है कि आखिर कैसे वैक्सीन वितरित की जाती है, किसे वैक्सीन लगायी जा सकती है और कौन प्राथमिकता के आधार पर पहले वैक्सीन प्राप्त कर सकता है, इसके लिए महत्वपूर्ण निर्धारण कारक क्या हैं। नए कोरोना वायरस इंफेक्शन से अब तक दुनियाभर के 3 करोड़ 20 लाख से ज्यादा लोग (24 सितंबर 2020 तक के आंकड़े) संक्रमित हो चुके हैं और इस वायरस संक्रमण की जटिलताओं के कारण 9 लाख 80 हजार से ज्यादा लोगों की मौत भी हो चुकी है। यह वायरस 2019 के आखिर में चीन के वुहान शहर में पहली बार सामने आया था।

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  1. वैक्सीन परीक्षण के विभिन्न चरण और उनकी सुरक्षा
  2. विकसित हो रहे कोविड-19 वैक्सीन के प्रकार
  3. वैक्सीन को वितरित कैसे किया जाता है?
  4. सबसे पहले किसे मिलेगी वैक्सीन?
  5. टीकाकरण कार्यक्रम शुरू करने से पहले जरूरी बातें
  6. आखिर में इन बातों का रखें ध्यान
कोविड-19 वैक्सीन वितरण से जुड़ी अहम बातें के डॉक्टर

किसी वैक्सीन को सुरक्षित और प्रभावी माना जाए और फिर पारित किया जाए इसके के लिए वैक्सीन को परीक्षणों की एक लंबी श्रृंखला से होकर गुजरना पड़ता है। ये परीक्षण विभिन्न चरणों में होते हैं और जनसंख्या के विभिन्न वर्गों के साथ किए जाते हैं। जब तक एक टीका परीक्षण के तीसरे चरण में पहुंचता है, तब तक इसमें विभिन्न उम्र, जीवन चरण (उदाहरण, गर्भवती महिलाएं) और जातीय पृष्ठभूमि से जुड़े हजारों लोग शामिल हो जाते हैं। 

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कोविड-19 वैक्सीन कैंडिडेट्स जो हालिया परीक्षण कर रहे हैं उस पर वैज्ञानिकों, सरकारों, मीडिया और आम जनता की भी बारीक नजर है। हालांकि पहले से ही कुछ परीक्षण ऐसे भी हैं जिन्हें या तो रोक दिया गया है, विराम लगा दिया गया है या परीक्षण अवरुद्ध हो गए हैं क्योंकि ट्रायल में शामिल स्वयंसेवकों में सेहत से जुड़ी कुछ समस्याएं विकसित हो गई थीं। हालिया उदाहरण ट्रायल में शामिल एक स्वंयसेवी का है जिसमें ट्रांवर्स मायलिटिस की समस्या विकसित हो थी जिस कारण वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल को अस्थायी रूप से रोक दिया गया। ट्रांसवर्स मायलिटिस में रीढ़ की हड्डी के एक हिस्से के आसपास सूजन से शुरू होने लगती है और आखिरकार, इस हिस्से में नसों को ढंकने वाले कोष क्षतिग्रस्त होने लगते हैं।

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वैक्सीन परीक्षण का अस्थायी ठहराव यह पता लगाने के लिए किया जाता है कि क्या किसी स्वयंसेवक में वैक्सीन के परिणाम के कारण स्वास्थ्य संबंधी कोई जटिलता हुई है या नहीं- स्वास्थ्य से जुड़ी किसी भी विकसित होने वाली स्थिति को खारिज करना महत्वपूर्ण है (इंजेक्शन की साइट पर बुखार और दर्द जैसे कुछ अपेक्षित मुद्दों के अलावा) ताकि करोड़ों लोगों को वैक्सीन दिए जाने से पहले ही इसका पता लगाया जा सके।

पैनलिस्ट्स के मुताबिक, ट्रायल रोकने जैसे कदम बताते हैं कि वैक्सीन के परीक्षण की प्रक्रिया ठीक से संचालित हो रही है। जटिलताएं या साइड इफेक्ट्स- अगर किसी भी तरह से टीके से संबंधित हो- के बारे में जैसे ही पता चलता है उन्हें उसी वक्त संबोधित किया जाना चाहिए। परीक्षण की प्रभावकारिता और वैधता को लेकर वैज्ञानिक समुदाय का ईमानदार और पारदर्शी रहना महत्वपूर्ण है।

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जिस वैक्सीन पर सवाल उठ रहे हैं और जिसके ट्रायल को जटिलता के कारण रोका गया था, वह एडेनोवायरस वेक्टर पर आधारित है, जो डीएनए-आधारित वायरस है और आमतौर पर वैक्सीन के विकास में इनका उपयोग किया जाता है। चूंकि कोविड-19 के लिए विकसित किए जा रहे अधिकांश टीके इसी विशेष रणनीति पर आधारित हैं, इसलिए किसी भी प्रतिकूल घटना का यह मतलब भी हो सकता है कि संभवतः दुनिया भर में एक समान संरचना पर आधारित कई टीकों पर भी इसका समान प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए हो सकता है कि एक साथ कई टीकों का विकास खतरे में हो।

हालांकि, नए टीके विकसित करने के तरीके में ये बाधाएं महत्वपूर्ण हो सकती हैं क्योंकि यह समुदाय को वैक्सीन के विकास के चरण में अधिक ध्यान रखने और सतर्क रहने के लिए प्रेरित करता है और उन्हें वैक्सीन के कोर्स में जल्दी सुधार करने की अनुमति देता है। ये कोर्स के बराबर हैं। वे उस समुदाय में और भी अधिक विश्वास पैदा कर सकते हैं जो वैक्सीन के लिए अभिप्रेत है, क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि वैक्सीन की सुरक्षा और प्रभावकारिता को प्राथमिकता दी जा रही है और जल्द से जल्द वैक्सीन लॉन्च करने के लिए किसी तरह की हड़बड़ी नहीं दिखायी जा रही है। अध्ययनों के मूल्यांकन और निष्कर्ष, वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया को सही जगह पर रखने की अनुमति देते हैं।

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इसके विपरीत, रूस में जो वैक्सीन विकसित की जा रही है और जिसका कोडनेम स्पुतनिक 5 है उसे पहले ही पंजीकृत हो जाने के कारण काफी प्रचार मिल चुका है, हालांकि तब तक वैक्सीन के केवल पहले दो चरणों का ही परीक्षण किया गया था, जिसमें केवल 76 स्वयंसेवक शामिल थे। हालांकि शुरुआती परिणाम आशाजनक थे, फिर भी एक बहुत बड़ा परीक्षण करने की जरूरत है ताकि यह पता लगाया जा सके वैक्सीन पूरी तरह से सुरक्षित और प्रभावी है या नहीं। वैसे तो ट्रायल का प्रारंभिक सैंपल साइज छोटा था, रूसी वैक्सीन कैंडिडेट ने दुनिया भर में विकसित किए जा रहे अन्य एडिनोवायरस वेक्टर आधारित टीकों के समान सकारात्मक परिणाम उत्पन्न किए हैं, लेकिन यह निर्धारित करने के लिए कि वैक्सीन सुरक्षित और प्रभावी है या नहीं बड़े परीक्षण चल रहे हैं।

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आमतौर पर वैक्सीन को दो अलग-अलग तरीकों से वितरित किया जाता है:

  • फ्रोजन या जमा हुआ
  • लायोफिलाइज (फ्रीज ड्राइड सब्स्टेंस के रूप में)

इन दोनों तरीकों को पहले भी दुनिया भर में बड़े पैमाने पर वैक्सीन के वितरण में उपयोग किया गया है, हालांकि इस बारे में निर्णय केवल तभी लिया जा सकता है जब ये वैक्सीन पूरी तरह से विकसित हो जाएं और दुनिया भर के विभिन्न देशों और क्षेत्रों में इसके वितरण के लिए सही आपूर्ति चेन की पहचान कर ली जाए।

पैनलिस्टों के अनुसार, रूसी सरकार स्पुतनिक वैक्सीन के विकास और शुरुआती परिणामों का जश्न मना रही है, बावजूद इसके यह अभी भी एक बड़े ट्रायल फेज III के तहत है, हालांकि भारत समेत दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों इस वैक्सीन को टेस्ट करने के फैसले के बाद ही इस ट्रायल को और अधिक आशाजनक और मजबूत माना जा सकेगा। ट्रायल और टेस्टिंग के लिए दुनियाभर में और अधिक कैंडिडेट्स को शामिल करने से वैक्सीन की विश्वसनीयता और अधिक बढ़ेगी कि वह विभिन्न जनसंख्या समूहों में कितनी फायदेमंद है।

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कोविड-19 पर चर्चा करने वाले अधिकांश अध्ययन, दिशा निर्देश और रूपरेखा, इस बात के ईर्द-गिर्द ही घूमते रहते हैं कि उपचार रणनीतियों की सुरक्षा, एहतियात और विकास क्या होगा। चूंकि ज्यादातर वैक्सीन अब भी विकास के चरण में है, इसलिए इस बात पर बहुत चर्चा नहीं हुई है कि वैक्सीन को कैसे वितरित किया जाएगा या पहले किसे वैक्सीन प्राप्त होगी। अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीड कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने हाल ही में मोटे तौर पर दिशा निर्देशों का एक सेट जारी किया कि वैक्सीन के उपलब्ध होने के बाद उसे किस तरह के परिनियोजित किया जाएगा, भले ही मीडिया ने ज्यादातर इस सवाल पर अपना ध्यान केंद्रित कर रखा था कि आखिर वैक्सीन कब उपलब्ध होगी।

भले ही 2020 की अंतिम तिमाही को अस्थायी रूप से उस समय के रूप में आगे रखा गया है जब वैक्सीन का पहला बैच असरदार तरीके से इस्तेमाल में आए जाएगा, यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि वैक्सीन का केवल एक छोटा सा सेट ही शुरुआत में उपलब्ध कराया जाएगा। और वैक्सीन के उस बैच को आमतौर पर उन लोगों के लिए प्राथमिकता दी जाती है जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता होती है। सीडीसी के अनुसार, टीकों की लगभग 10 से 30 लाख खुराक पहले उपलब्ध कराई जा सकती है, जबकि बाकी के 2 करोड़ से 4 करोड़ खुराक साल के अंत तक उपलब्ध हो सकती है। हालांकि ये वांछनीय तारीखें हैं और इसमें किसी भी चीज की कोई गारंटी नहीं है। वैक्सीन के वितरण रणनीतियों के बारे में सरकार के साथ-साथ राज्य के अधिकारियों को फैसला करना है।

किसे टीका सबसे पहले मिलेगा, इसे आसानी से इस बात से समझा जा सकता है कि जनसंख्या का कौन सा हिस्सा कोविड-19 की गंभीर जटिलताओं के लिए सबसे अधिक असुरक्षित और अतिसंवेदनशील है। लॉकडाउन प्रतिबंध के विभिन्न चरणों और यहां तक ​​कि पिछली बीमारी के प्रकोप के दौरान पहले से ही पारित किए गए विभिन्न दिशा निर्देशों के अनुसार, यह आसानी से समझा जा सकता है कि वरिष्ठ नागरिक, हृदय रोग और फेफड़े की बीमारी से पीड़ित लोग, लंबे समय से केयर-फसिलिटी में रहने वाले लोग, गरीब तबके के लोग और वे लोग जिन्हें कोविड-19 का खतरा अधिक है वे इस कैटिगरी में आते हैं।

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जिन लोगों को बीमारी का जोखिम और जटिलाएं होने का खतरा अधिक है उन्हें वैक्सीन सबसे पहले इस्तेमाल के लिए दी जानी चाहिए, जिसका अर्थ है कि इसमें हेल्थकेयर वर्कर्स और फ्रंटलाइन कार्यकर्ता भी शामिल हैं क्योंकि वैक्सीन लगने के बाद इन लोगों को संक्रमण होने का खतरा कम हो जाता है। लिहाजा सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों के लिए इस पर आम सहमति बनाना बेहद जरूरी है।

इससे पहले हुई बीमारियों के प्रकोप के दौरान भी वैक्सीन को विकसित करने के लिए इसी तरह की तीव्रता और अत्यावश्यकता दिखायी गई थी। पैनलिस्ट्स ने उल्लेख किया कि 2009 के H1N1 स्वाइन फ्लू महामारी के दौरान, पहले से ही बहुत सारी योजना बनाई गई थी क्योंकि यह बीमारी दुनिया भर में फैल रही थी, लिहाजा इसे बारे में बहुत सोचा गया कि आखिर किसे सबसे पहले वैक्सीन प्राप्त करना चाहिए। हालांकि, वैक्सीन डिलीवरी की जो तारीखें तय की गई थीं, वे पूरी नहीं हो पायीं और जब तक टीका उपलब्ध हुआ तब तक बीमारी बीत चुकी थी, और सर्वोच्च प्राथमिकता वाले समूह को वैक्सीन नहीं मिल पायी।

वैसे तो वैक्सीन के वितरण पर दिशा निर्देश जारी किए गए थे, लेकिन अमेरिका के विभिन्न राज्य अपने खुद के कानूनों द्वारा शासित हैं, और इस तरह हर जगह एक ही तरीके से वैक्सीन के वितरण को लागू नहीं किया गया था। हालांकि, अलग-अलग बीमारी के प्रकोप के मामले में वैक्सीन का वितरण और इस्तेमाल का तरीका अलग-अलग हो सकता है। सीडीसी ने 2017 में इन्फ्लूएंजा के प्रकोप के खिलाफ अपनी रणनीति में बदलाव किया था। इबोला वायरस बीमारी के मामले में जो हाल के वर्षों में भी फैली थी उसमें भी बीमारी की रोकथाम के लिए अलग रणनीति बनाई गई थी। इबोला के फैलने की प्रकृति कोविड-19 जैसे श्वसन संक्रमण से अलग है, और इसे प्रभावी कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के माध्यम से नियंत्रित किया गया था, और रिंग टीकाकरण रणनीति के जरिए भी जिसका अर्थ है कि सीमित मात्रा में टीकाकरण के साथ ही बीमारी को नियंत्रित कर लिया गया था।

हालांकि, पश्चिम अफ्रीका और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो जैसे देशों के विभिन्न समुदायों के बीच अविश्वास पैदा हो गया है, जहां इबोला बीमारी फैल गई थी, और हाल के महीनों में एक नए प्रकोप का वे सामना कर रहे हैं, लेकिन इस बीमारी को रोकने के लिए रणनीति कोविड-19 से अलग है।

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पहले भी वैक्सीन की रणनीति के आधार पर बीमारी के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए यह समझा गया है कि कुछ व्यक्तियों को बीमारी का अधिक जोखिम होने के कारण या बीमारी से होने वाली अधिक जटिलताओं के कारण दूसरों के मुकाबले पहले टीकाकरण प्राप्त होना चाहिए। सीडीसी की पूर्व की सिफारिशों के साथ-साथ चर्चाओं के आधार पर, निम्नलिखित रणनीति प्रस्तावित की गई है:

  • उच्च जोखिम वाले लोग और हेल्थकेयर वर्कर्स
  • वैसे लोग जिन्हें पहले से कोई बीमारी है, उच्च जोखिम वाले समुदाय और भीड़भाड़ वाले इलाके
  • युवा वयस्क और बच्चे और अतिआवश्यक कार्यों में जुटे कार्यकर्ता
  • बाकी सारे लोग

हालांकि, जब वैक्सीन वास्तव में उपलब्ध हो जाती है उसके बाद वैक्सीन के प्रभावी वितरण और इस्तेमाल के लिए बेहद जरूरी है कि स्थानीय समुदाय और आबादी के लोग भी उन शोधों पर उतना ही भरोसा करें जो उन्हें उपलब्ध कराए जा रहे वैक्सीन के विकास में किए गए हैं। पर्याप्त बुनियादी ढांचा तैयार करना होगा ताकि उच्च संचरण दर वाले समुदायों को पहले वैक्सीन के जरिए कवर किया जाए ताकि बीमारी की ट्रांसमिशन चेन को तोड़ने में मदद मिल सके।

टीकाकरण कार्यक्रम का मुख्य फोकस हमेशा रोगाणु के संचरण के कारण मृत्यु दर के तत्काल जोखिम के साथ-साथ रुग्णता को कम करना है, जो इस मामले में नया कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 है। हालांकि ऊपर हमने जिस रूपरेखा के बारे में बताया है वह अभी भी चर्चा के चरणों में है, स्थानीय और राष्ट्रीय स्तरों पर अधिक बहस- भारत के मामले में भी- आयोजित किया जाना भी समान रूप से महत्वपूर्ण है।

भारत जैसे अत्यधिक आबादी वाले देशों में, जहां पिछले कुछ महीनों से संक्रमण लगातार तेजी से बढ़ रहा है, वहां समुदायों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर विकसित की जा रही रणनीतियों को जानना महत्वपूर्ण है, ताकि वे यह समझ सकें कि वैक्सीन का वितरण किया जा रहा है और हर किसी को एक साथ एक ही समय में प्राप्त नहीं हो पाएगी। जो लोग वायरस के संपर्क में हैं या जिन लोगों को बीमारी से गंभीर जटिलताएं पैदा होने का खतरा अधिक है या जो लोग अत्यधिक असुरक्षित है अतिसंवेदनशील हैं उन्हें हमेशा ही सबसे पहले टीका लगाया जाता है ताकि उनकी जान बचायी जा सके। 

और जैसा कि वैक्सीन आने वाले महीनों में वास्तविकता बनने के करीब है, ऐसे में देश के नेतृत्व के साथ-साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य समुदाय के लिए भी यह महत्वपूर्ण है कि वे टीकाकरण के वितरण और इस्तेमाल पर चर्चा करें जब वे अंततः आम लोगों के एक वर्क के लिए उपलब्ध हों।

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संदर्भ

  1. World Health Organization [Internet]. Geneva (SUI): World Health Organization; GAP: Guidance on development and implementation of a national deployment and vaccination plan for pandemic influenza vaccines.
  2. Food and Drug Administration [Internet]. Silver Spring, Maryland, USA. Development and Licensure of Vaccines to Prevent COVID-19.
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