गर्भावस्था के समय कोरोना वायरस से संक्रमित होने पर भ्रूण या नवजात शिशु के मरने का थोड़ा खतरा होता है। वहीं, इस वायरस से होने वाली बीमारी कोविड-19 से समय से पूर्व जन्म यानी प्रीमैच्योर बर्थ के मामले बढ़ जाते हैं। कुछ मामलों में संक्रमण के मां और बच्चे पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं, जिनमें मौत भी शामिल है। दक्षिण कोरिया में हुए एक अध्ययन में यह जानकारियां निकल कर सामने आई हैं। यहां योनसेई यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने कोविड-19 से ग्रस्त गर्भवती महिलाओं और उनके नवजात बच्चों से जुड़े आंकड़ों की समीक्षा के बाद यह जानकारी दी है।
इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि कोविड-19 से संक्रमित ज्यादातर गर्भवती महिलाओं के नवजात कोरोना वायरस से संक्रमित नहीं पाए गए। वहीं, स्टडी के दौरान जो कुछेक बच्चे संक्रमित पाए गए थे, उनमें वायरस मां से नहीं पहुंचा था। लेकिन संक्रमण के प्रभाव के चलते प्रीमैच्योर बर्थ और इससे जुड़ी जटिलताएं सामान्य रूप से निकल कर आई। इनमें गर्भावस्था काल का कम होना, बच्चे का कम वजन और बच्चे की सांस में अवरोध जैसी समस्याएं शामिल हैं।
अध्ययन में ज्यादातर नवजातों में कोविड-19 के लक्षण दिखाई नहीं दिए। जिनमें ये लक्षण दिखे, उनमें मुख्य तौर पर सांस में कमी, आंत से जुड़ी समस्याएं, श्वसन संकट सिंड्रोम और बुखार शामिल हैं। एक बच्चे की पेट से ब्लीडिंग होने के चलते मौत भी हो गई। वहीं, मांओं में दिखने वाले आम लक्षणों में सांस में कमी, खांसी, बुखार, मांसपेशी में दर्द और निमोनिया जैसी समस्याएं शामिल थीं। वायरस के प्रभाव के चलते कुछ गर्भवती महिलाओं में प्रेग्नेंसी से जुड़े विपरीत प्रभाव देखने को मिले, उनमें झिल्ली का समय से पहले फटना, तय वक्त से पहले प्रसव, भ्रूण से जुड़ी परेशानियां, प्रसव के बाद होने वाला बुखार और बच्चे का मृत अवस्था में पैदा होना शामिल है। इन तथ्यों के सामने आने के बाद वैज्ञानिकों ने कोविड-19 से ग्रस्त गर्भवती महिलाओं की विशेष सावधानी के साथ निगरानी करने का सुझाव दिया है ताकि वायरस उनके जरिये अजन्मे बच्चों में न फैले।
कोविड-19 संकट के दौरान गर्भवती महिलाओं के कोरोना वायरस की चपेट में आने की घटनाओं ने कई तरह के सवाल और चुनौतियों को जन्म दिया है। यह बहस बीते आठ महीनों से जारी है कि गर्भावस्था के दौरान अगर महिला सार्स-सीओवी-2 से संक्रमित हो जाए तो उसके जरिये वायरस बच्चे तक पहुंच सकता है या नहीं। यह सही है कि ऐसे मामले काफी कम सामने आए हैं। फिर भी, उन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता। वायरस से गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हालांकि इस बारे में वैज्ञानिकों को अभी ज्यादा जानकारी नहीं है और उनके बीच राय भी बंटी हुई है।
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ऐसे में कोरियाई वैज्ञानिकों ने वर्टिकल ट्रांसमिशन से मां और नवजात बच्चों को होने वाले नुकसानों से जुड़े मामलों का आंकलन किया। इसके लिए ऐसे मामलों से जुड़े 15 अप्रैल तक के आंकड़ों की व्यवस्थित तरीके से समीक्षा की गई। शोधकर्ताओं ने 16 केस सीरीज और 12 केस रिपोर्टों समेत कुल 223 कोरोना संक्रमित गर्भवती महिलाओं और बच्चों के जन्म से जुड़े 201 मामलों का विश्लेषण किया।
यूरोपियन रिव्यू फॉर मेडिकल एंड फार्मालॉजिकल साइंसेज पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना वायरस से संक्रमित हुई गर्भवती महिलाओं के ज्यादातर नवजात टेस्ट में पॉजिटिव नहीं पाए गए। केवल चार बच्चे पॉजिटिव निकले। ये सभी मेल थे। इनमें से एक बच्चा भ्रूण होने के समय ही वायरस की वजह से पीड़ित था। उसका जन्म तय समय से पहले हो गया था और उसका वजन भी कम था। सभी चारों संक्रमित नवजातों को निमोनिया की शिकायत थी। उनमें बुखार, उल्टी और सुस्ती के लक्षण भी देखने को मिले थे। चारों बच्चे संक्रमण से उबर गए और तीन आरटी-पीसीआर टेस्ट में नेगेटिव पाए गए। वहीं, मांओं के टेस्ट में ब्रेस्ट मिल्क, कोर्ड ब्लड, ऐम्नियोटिक फ्लूड और प्लेसेंटा (गर्भनाल) भी नेगेटिव पाए गए। इससे यह साफ हुआ कि प्रेग्नेंसी के दौरान सार्स-सीओवी-2 का वर्टिकल ट्रांसमिशन कॉमन नहीं है। हालांकि शोधकर्ताओं ने इस संबंध में आगे और सेरोलॉजिकल स्टडी करने की बात कही है।
शोध से जुड़े कुछ अन्य परिणाम इस प्रकार हैं
- दो मामलों में बच्चों की भ्रूण अवस्था में ही मौत हो गई
- 163 या 88.1 प्रतिशत बच्चों की सी-सेक्शन डिलिवरी करनी पड़ी
- 22 बच्चों या 11.9 प्रतिशत बच्चों की सामान्य डिलिवरी हुई
- 25.9 प्रतिशत बच्चों का जन्म तय समय से पहले हुआ
- 15.6 प्रतिशत बच्चों का वजन सामान्य से कम था
- 1.8 प्रतिशत नवजातों को श्वसन अवरोध की शिकायत हुई
- 6.4 प्रतिशत में श्वसन संकट सिंड्रोम के लक्षण दिखे
- 85 महिलाएं बुखार, 64 खांसी और 56 मांसपेशी के दर्द से पीड़ित पाई गईं
- पांच महिलाओं को वेंटिलेशन और आईसीयू में भर्ती करना पड़ा
उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें गर्भावस्था में कोविड-19 होने से प्रीमैच्योर बर्थ सामान्य बात, लेकिन नवजातों को संक्रमण होने की संभावना काफी कम, मृत्यु का खतरा मामूली: अध्ययन है
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