कोविड-19 महामारी की वजह बने नए कोरोना वायरस को लेकर एक नया और बड़ा दावा किया गया है। चीन में हुए एक अध्ययन में पता चला है कि नया कोरोना वायरस पुरुषों में स्पर्म प्रॉडक्शन की प्रक्रिया (स्पर्मैटोजेनेसिस) को प्रभावित कर सकता है और कम स्पर्म काउंट की वजह बन सकता है। इस नई जानकारी को अध्ययन सहित ईक्लिनिकल मेडिसिन नामक एक ओपन-एक्सेस जर्नल ने प्रकाशित किया है, जिसे प्रतिष्ठित मेडिकल पत्रिका दि लांसेट द्वारा प्रकाशित किया जाता है।
गौरतलब है कि पहले भी इस तरह के दावे किए गए हैं कि कोविड-19 के मरीजों में कोरोना वायरस उनके अंडकोषों तक पहुंच सकता है। हालांकि इन दावों को व्यापक रूप से स्वीकार नहीं किया गया था। इस बीच, ऐसी रिसर्च रिपोर्टें सामने आती रही हैं, जिनमें बताया गया है कि यह वायरस फेफड़ों के अलावा शरीर के कई हिस्सों को नुकसान पहुंचा सकता है। इनमें किडनी, हृदय से लेकर वीर्यकोष तक शामिल हैं। यहां उल्लेखनीय है कि मानव अंगों को संक्रमित करने के लिए कोरोना वायरस जिस एसीई2 प्रोटीन रिसेप्टर का इस्तेमाल करता है, वह रक्त के साथ वीर्यकोष में भी उच्च स्तर पर पाया जाता है। इस तथ्य के चलते नए अध्ययन के परिणाम कई मेडिकल विशेषज्ञों का ध्यान खींच सकते हैं।
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अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दो अलग-अलग समूहों के तहत पता लगाने की कोशिश की कि कोरोना वायरस वीर्य बनने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है या नहीं। एक समूह में कोविड-19 से मारे गए छह पुरुषों के अटॉप्सी सैंपल लिए गए थे। साथ ही, बीमारी से रिकवर हुए 23 लोगों के सीमन सैंपल भी लिए गए थे। वहीं, कंट्रोल ग्रुप के रूप में दूसरे समूह में प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित छह पुरुषों के सर्जिकल सैंपल के साथ 22 स्वस्थ पुरुषों के सीमन सैंपल भी एकत्र किए गए थे। अध्ययन में शामिल इन सभी पुरुषों (मृत और जीवित दोनों) की आयु 18 वर्ष से ज्यादा थी और वे कोविड-19 टेस्ट में पॉजिटिव आए थे। उससे पहले उनमें कभी भी इन्फर्टिलिटी की समस्या नहीं रही थी। कुछ के बच्चे भी थे, जो पूरी तरह नेचुरल प्रेग्नेंसी से पैदा हुए थे। इसके अलावा, कोई भी पुरुष ऐसी किसी बीमारी से पीड़ित नहीं था, जो स्पर्म प्रॉडक्शन प्रोसेस को प्रभावित करती हो।
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तमाम पॉइंट्स को ध्यान में रखते हुए सभी मरीजों और सामान्य स्वास्थ्य वाले प्रतिभागियों के सैंपलों की जांच की गई। इससे मिले परिणाम इस प्रकार हैं-
- कोविड-19 से ग्रस्त रहे सभी पुरुषों के वीर्यकोषों और उपकोषों (एपिडिडिमिस) में इन्टर्सिटिशयल इडीमा (वीर्यकोषों में तरल पदार्थ का भर जाना) पाया गया
- स्पर्मेटोजेनिसिस से जुड़े सभी टेस्ट में यह प्रक्रिया कोरोना वायरस के कारण प्रभावित दिखी
- कोविड मरीजों के टेस्टीक्युलर टिशू में टी सेल्स और और मैक्रोफेज की सघनता ज्यादा पाई गई
- सभी छह अटॉप्सी सैंपल में आईजीजी एंटीबॉडी की पुष्टि हुई
- टेस्टीक्युलर कोशिकाओं में एसीई2 की संख्या ज्यादा होने का पता चला
- कोरोना संक्रमण से रिकवर हुए करीब नौ मरीजों में स्पर्म की संख्या 15 x 106/एमएल से कम पाई गई; इन सभी पुरुषों के पहले से बच्चे थे और वे कभी इन्फर्टिलिटी संबंधी ट्रीटमेंट से नहीं गुजरे थे
- कोई 14 मरीजों में ल्यूकोसाइट नामक ब्लड सेल्स की संख्या 1 x 106/एमएल से ज्यादा पाई गई, जो सीमन में हाई ल्यूकोसाइट काउंट का संकेतक है और स्पर्म डीएनए के डैमेज होने का कारण बन सकता है
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