इस वक्त भारत समेत दुनियाभर के लोगों की सिर्फ यही चिंता है कि आखिर नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 से होने वाली बीमारी कोविड-19 को फैलने से कैसे रोका जाए। इन सबके बीच नवजात शिशु को अपना दूध पिलाने वाली मांओं के लिए दोहरी चिंता है। पहली तो ये कि- अगर नई मां कोविड-19 पॉजिटिव है तो क्या उसे बच्चे को अपना दूध नहीं पिलाना चाहिए, क्या मां के दूध से भी कोरोना वायरस फैल सकता है? दूसरी ये कि- अगर नवजात को मां का दूध नहीं मिला तो उसकी इम्यूनिटी कमजोर रह जाएगी और उसे कई और बीमारियां होने का खतरा रहेगा?
मां के दूध से कोविड-19 फैलने का खतरा नहीं
विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO ने नई मांओं और साथ ही में गर्भवती महिलाओं की भी इस उलझन को दूर करते हुए बताया है कि फिलहाल इस बारे में जितने भी सबूत मौजूद हैं उनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे को अपना दूध पिलाने वाली मांएं, नवजात को नए कोरोना वायरस का हस्तांतरण नहीं करती हैं यानी मां के दूध से नवजात को कोविड-19 फैलने का संभावित खतरा नहीं है। WHO के डायरेक्टर जनरल टेड्रोस एडनॉम गेब्रेयेसस कहते हैं, 'स्तनपान के दौरान मां से बच्चे में कोविड-19 के प्रसार होने का खतरा कितना है इस बारे में विस्तार से जांच की गई है। हमें पता है कि बच्चों को कोविड-19 का खतरा अपेक्षाकृत कम है लेकिन दूसरी कई तरह की बीमारियों का खतरा काफी अधिक है जिन्हें स्तनपान के जरिए रोका जा सकता है।'
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टेड्रोस आगे कहते हैं, 'लिहाजा सूबतों के आधार पर WHO की यही सलाह है कि कोविड-19 के फैलने के संभावित खतरे की तुलना में स्तनपान के फायदे अधिक हैं।' WHO के डिपार्टमेंट ऑफ रिप्रोडक्टिव हेल्थ एंड रिसर्च की सीनियर सलाहकार अंशु बैनर्जी कहती हैं कि ब्रेस्टमिल्क यानी मां के दूध में कोई भी जीवित वायरस नहीं मिला है और वायरस के कुछ अंश का ही सिर्फ पता चला है। लिहाजा मां के दूध से बच्चे को बीमारी फैलने का खतरा अब तक प्रमाणित नहीं हुआ है।
कोविड पॉजिटिव हैं तो पंप का इस्तेमाल कर बच्चे को दें ब्रेस्टमिल्क
हालांकि कोविड-19 एक बिलकुल नई बीमारी है और इसके बारे में अब तक रिसर्च बेहद शुरुआती स्टेज में है। मौजूदा जानकारी तो यही कहती है कि सार्स-सीओवी-2 वायरस मां के दूध से बच्चे में ट्रांसफर नहीं होता और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस बात की पुष्टि कर दी है। बावजूद इसके कोविड पॉजिटिव मां से स्किन-टू-स्किन कॉन्टैक्ट में आने पर नवजात शिशु को संक्रमण का खतरा हो सकता है। इसलिए जो मांएं कोविड-19 पॉजिटिव हों उन्हें ब्रेस्ट पंप की मदद से ब्रेस्टमिल्क निकालकर नवजात शिशु को पिलाना चाहिए। साथ ही साथ सुरक्षा की दृष्टि से ऐहतियाती कदम उठाते हुए नई मां को नवजात शिशु से दूर आइसोलेशन में ही रहना चाहिए।
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दरअसल, नवजात शिशु की भूख और पोषण से जुड़ी सभी जरूरतों का सबसे अहम स्त्रोत है ब्रेस्ट मिल्क यानी मां का दूध और यही वजह है कि WHO समेत दुनियाभर के डॉक्टर और हेल्थ एक्सपर्ट नवजात शिशु के 6 महीने का होने तक उसे सिर्फ मां का दूध पिलाने की सलाह देते हैं। कनेडियन जर्नल ऑफ इन्फेक्शियस डिजीज एंड मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी नाम की पत्रिका में साल 2006 में प्रकाशित एक स्टडी की मानें तो मां का दूध रोगाणुहीन नहीं होता और उसमें पोषक तत्वों के साथ-साथ वह सूक्ष्मजीव भी पाए जाते हैं जो मां के शरीर और त्वचा में मौजूद होते हैं। 6 महीने तक नवजात को सिर्फ मां का दूध पिलाने की सलाह इसलिए भी दी जाती है ताकि मां के शरीर में मौजूद सभी एंटीबॉडीज बच्चे के शरीर में ट्रांसफर हो जाएं जो उसे तब तक सभी तरह की बीमारियों से बचाकर रखते हैं जब तक कि उसे सारे टीके न लग जाएं।
लेकिन अगर बच्चे को स्तनपान कराने के दौरान आप बीमार पड़ जाएं तो आपके मन में पहला सवाल यही आता होगा ना कि क्या मुझे बच्चे को अपना दूध पिलाना तब तक के लिए बंद कर देना चाहिए जब तक मैं पूरी तरह से बीमारी से रिकवर न हो जाऊं? कहीं मेरी बीमारी बच्चे को भी न हो जाए? क्या मुझे बच्चे को अपना दूध पिलाना छुड़ा देना चाहिए? संक्रामक और गैर-संक्रामक बीमारियां होने पर क्या नई मां को बच्चे को दूध पिलाना बंद कर देना चाहिए, इस सवाल का जवाब यहां जानें।
गैर-संक्रामक बीमारियां और स्तनपान
गैर-संक्रामक बीमारियो में मां से बच्चे में बीमारी के ट्रांसफर होने का खतरा बेहद कम होता है, बावजूद इसके डॉक्टर मां और शिशु दोनों का ब्लड टेस्ट करते हैं यह जानने के लिए कि किसी तरह की कोई जटिलता तो नहीं है। उदाहरण के लिए- यूके की नैशनल हेल्थ सर्विस (NHS) के मुताबिक, डायबिटीज पीड़ित मांओं के शिशु पर 24 घंटे तक नजर रखी जाती है और उनके ब्लड शुगर लेवल को हर बार दूध पीने से पहले और बाद में चेक किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि नवजात शिशु को किसी तरह की अनियमितता न हो।
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द मेडिकल क्लीनिक्स ऑफ नॉर्थ अमेरिका में साल 1989 में प्रकाशित एक स्टडी में बताया गया कि लंबे समय से किसी बीमारी से जूझ रही मांओं को भी डॉक्टरों से स्वीकृति लेकर स्तनपान करना चाहिए क्योंकि ब्रेस्टफीडिंग के फायदे ऐसे मामलों में बीमारी के संचरण के जोखिम से अधिक होते हैं। इतना ही नहीं ब्रेस्टफीडिंग मेडिसिन में हाल में ही प्रकाशित एक स्टडी में कहा गया कि जिन महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर है जिनकी ब्रेस्ट सर्जरी हो चुकी है या फिर जो कीमोथेरेपी या इंडोक्राइन थेरेपी ले रही हैं उन्हें भी ब्रेस्टफीडिंग छोड़ने की जरूरत नहीं। उचित स्वास्थ्य सुविधा मिले तो वे भी अपने बच्चे को दूध पिला सकती हैं।
संक्रामक बीमारियां और स्तनपान
आप सोच रही होंगी कि संक्रामक बीमारियों में तो बच्चे को दूध पिलाना बिलकुल संभव नहीं है क्योंकि बीमारी के फैलने का खतरा कितना अधिक होगा- फिर चाहे वायरल इंफेक्शन हो, बैक्टीरियल इंफेक्शन या फंगल इंफेक्शन। लेकिन 2006 की कनेडियन स्टडी की मानें तो स्तनपान कराने वाली मां जो पहले से किसी संक्रामक बीमारी से जूझ रही हो उसके मामले में, इस बात की संभावना अधिक है कि वह लक्षणों के दिखने या बीमारी की पहचान होने से पहले ही बच्चे को रोगाणु सौंप चुकी हो।
ऐसे में इस स्टेज पर ब्रेस्टफीडिंग रोकना व्यर्थ है और खतरनाक भी क्योंकि मां का दूध ही नवजात शिशु की इम्यूनिटी मजबूत बनाने वाले पोषक तत्वों को पहुंचाने का एकमात्र सोर्स है। और अगर इसे भी बंद कर दिया जाए तो बच्चे की संक्रमण से लड़ने की क्षमता कम हो जाएगी या खत्म हो जाएगी। लिहाजा संक्रामक बीमारियों में भी डॉक्टर से सुझाव लेकर बच्चे को दूध पिलाया जा सकता है। हालांकि कोविड-19 की ही तरह कई और संक्रामक बीमारियां हैं जिनमें ब्रेस्टफीडिंग के मापदंड अलग होते हैं।
ट्यूबरकोलिसिस या टीबी
टीबी एक बेहद संक्रामक बीमारी है और विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो अगर मां को टीबी की बीमारी हो तो वह अपने शिशु को स्तनपान सिर्फ तभी करा सकती है जब वह 2 सप्ताह या इससे ज्यादा समय से दवाइयों का सेवन कर रही हो। अगर ऐसा न हो तो मां और बच्चे दोनों को 6 महीने तक ऐहतियात के तौर पर कीमोथेरेपी दी जानी चाहिए।
एचआईवी एड्स
अगर नई मां एचआईवी पॉजिटिव हो तो उनके लिए शिशु को स्तनपान कराना तब तक संभव नहीं है जब तक की बीमारी को पूरी तरह से फैलने से रोकने के लिए वैक्सीन या दवाइयां विकसित न हो जाएं।