दुनियाभर के वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं का कहना है कि कोविड-19 महामारी की वजह बने नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 की विशेषता इसका स्पाइक प्रोटीन है, जो शरीर की कोशिकाओं की सतह पर मौजूद एसीई2 रिसेप्टर को बांधकर उनमें प्रवेश करता है और फिर उनका इस्तेमाल अपनी प्रतियां या कॉपी बनाने में करता है। सार्स-सीओवी-2 के स्पाइक प्रोटीन की यह क्षमता अतीत में सामने आए कोरोना वायरसों (जैसे सार्स-सीओवी या मेर्स-सीओवी) के स्पाइक प्रोटीन से अधिक है। जानकार बताते हैं कि इसी वजह के चलते नए कोरोना वायरस की संक्रमण फैलाने की क्षमता इतनी अधिक है। अब इसी स्पाइक प्रोटीन को लेकर एक दिलचस्त तथ्य सामने आया है। वैज्ञानिकों ने अध्ययन के आधार पर बताया है कि यह स्पाइक प्रोटीन अलग-अलग वेरिएंट के रूप में संभवत साल 2013 से ही विकसित हो रहा था।
कनाडा स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलगरी के शोधकर्ताओं ने इस नए वायरस से इसके स्पाइक प्रोटीन के संयोजन के बारे में जानने के लिए मॉलिक्यूलर आधारित गतिविज्ञान की मदद ली। इसके जरिये उन्होंने स्पाइक प्रोटीन की अलग-अलग बनावटों (सिम्यलेशन) का विश्लेषण कर यह पता लगाने का प्रयास किया कि नए कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन का ऑरिजिन कब हुआ। इस दौरान पहले से चर्चित कुछ तथ्य एक बार फिर सामने आए। इनमें यह जानकारी भी शामिल थी कि नया कोरोना वायरस चमगादड़ों में पाए जाने वाले कोरोना वायरस 'आरएटीजी13' से 96 प्रतिशत और पैंगोलिन-सीओवी जीनोम से 90 प्रतिशत मेल खाता है।
बहरहाल, इसके बाद अगले स्टेप के तहत वायरस के कोई 479 जेनेटिक सीक्वेंस का विस्तृत विश्लेषण करना था। ये सभी सीक्वेंस 30 दिसंबर, 2019 से लेकर 20 मार्च, 2020 के बीच इकट्ठे किए गए थे। इस दौरान वायरस से जुड़े कोई 16 वेरिंएट्स का पता चला। इनमें से 11 मिस्सेंस म्युटेशन पांच प्रतिशत या उससे ज्यादा सीक्वेंस में पाए गए और हरेक म्युटेशन का अपना फाइलोजेनेटिक रूट था।
इसके बाद शोधकर्ताओं ने वायरस के पुराने (पैतृक) सीक्वेंस के बारे में जानने के लिए उन्हें रीक्रिएट करने की कोशिश की। इसके जरिये वे स्पाइक प्रोटीन में हुए महत्वपूर्ण बदलावों की पहचान करना चाहते थे, जिससे यह साफ हो पाए कि हाल में यह इंसानों के अनुकूल कैसे बना। शोधकर्ताओं ने इंसानों में फैले सार्स-सीओवी-2 के कल्पित कॉमन स्पाइक-आरबीडी सीक्वेंस एंसेस्टर (पूर्वज) की रचना की और इसे एन1 नाम दिया। वहीं, इससे मिलते सबसे नजदीकी जानवर में पाए जाने वाले वायरस के पूर्वज विषाणु को एन2 नाम दिया गया।
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विश्लेषण के दौरान एन1 सीक्वेंस सार्स-सीओवी-2 के रेफ्रेंस सीक्वेंस से मेल खाता था। लेकिन एक अन्य सीक्वेंस, जिसे एनजीरो का नाम दिया गया था, का ऑरिजिन थोड़ा अलग दिखाई दिया। इससे यह साफ हुआ कि इस वायरस के स्पाइक प्रोटीन के कई वंशजों का जन्म हुआ था, जिनमें से एक आरएटीजी13 है और यह स्पाइक वंशज कम से कम 2013 से मौजूद है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, दूसरे शब्दों में कहें तो एनजीरो-एन1 सीक्वेंस कम से कम सात सालों से विकसित हो रहा था।
हालांकि, शोधकर्ताओं ने यह साफ किया है कि इससे यह साबित नहीं होता कि सार्स-सीओवी-2 के स्पाइक प्रोटीन के एसीई2 रिसेप्टर को बांधने की क्षमता का कारण केवल यही है। एक और महत्वपूर्ण बात यह कि एनजीरो सीक्वेंस से एन1 सीक्वेंस के बीच होने वाले म्युटेशन के चलते वायरस के स्पाइक प्रोटीन की क्षमता में बदलाव आए थे, लेकिन इसके बावजूद सार्स-सीओवी-2 के स्पाइक प्रोटीन में एसीई2 को बांध कर रखने की पर्याप्त क्षमता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि मौजूदा वायरस के तेजी से बढ़ने और फैलने के पीछे और कई फैक्टर (यानी म्युटेशन) हो सकते हैं।
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