अंडमान-निकोबार स्थित भारत के एक आदिवासी समुदाय 'ग्रेट अंडमानीज' के दस सदस्य कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए हैं। अधिकारियों ने गुरुवार को यह जानकारी दी। भारत के मूल निवासी कहे जाने वाले इस ट्राइबल समूह के सदस्यों की संख्या 50 से थोड़ी ही ज्यादा है। ऐसे में उनके बीच कोरोना वायरस फैलने से उनके और अंडमान-निकोबार में रहने वाले अन्य लोगों की सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। हालांकि बताया गया है कि 10 संक्रमित आदिवासियों में से छह रिकवर हो गए हैं। अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी एएफपी ने अधिकारियों के हवाले से बताया है कि बाकी चार ट्राइबल्स का इलाज किया जा रहा है।

(और पढ़ें - कोविड-19: 24 घंटों में 77,266 नए मामले, मरीजों की संख्या 33.87 लाख हुई, 1,053 नई मौतों से मृतकों का आंकड़ा 61,529 हुआ)

ग्रेट अंडमानीज नाम से चर्चित यह आदिवासी लोग अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के स्ट्रेट आइलैंड पर रहते हैं। वहां सरकार उनके खाने और रहने की व्यवस्था करती है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, स्थानीय अधिकारियों की तरफ से स्वास्थ्य विशेषज्ञों की एक टीम बीते रविवार को स्ट्रेट आइलैंड भेजी गई थी। एनडीटीवी ने बताया कि इन ट्राइबल्स के छह सदस्य कुछ दिन पहले पोर्ट ब्लेयर में हुए परीक्षणों में पॉजिटिव पाए गए थे। उसके बाद बाकी सदस्यों के टेस्ट करने के लिए स्वास्थ्य टीमें आइलैंड भेजी गई थीं। दरअसल, कबीले के कुछ सदस्य पोर्ट ब्लेयर में सरकारी नौकरी करते हैं। इस बारे में अंडमान में रोग प्रबंधन से जुड़े एक प्रमुख स्वास्थ्य अधिकारी अविजित रे ने एएफपी को बताया, 'हमने 37 सैंपल लिए थे, जिनमें से ग्रेट अंडमानीज जनजाति के चार सदस्य पॉजिटिव पाए गए थे। उन्हें अस्पताल में भर्ती करा दिया गया है।' वहीं, अंडमान में जनजाति कल्याण से जुड़े एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी संजीव मित्तल ने बताया कि प्रशासन कबीले के सभी सदस्यों की सुरक्षा और स्वास्थ्य को लेकर तमाम प्रयास कर रहा है।

(और पढ़ें - कोविड-19: हांगकांग के बाद यूरोप में कोरोना वायरस के रीइन्फेक्शन के दो मामलों की पुष्टि)

उधर, कई मानवविज्ञानियों और समाजसेवकों ने अंडमान में रहने वाले आदिवासियों के बीच कोरोना वायरस पहुंचने को लेकर चिंता जाहिर की है। उन्होंने बताया कि 19वीं सदी में जब ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत में अपने पैर रखे, उस समय अंडमान में 5,000 से ज्यादा ग्रेट अंडमानीज रहते थे। उनकी घुसपैठ को रोकने के लिए सैकड़ों आदिवासियों ने अपनी जान गंवा दी थी। वहीं, सर्वाइवर इंटरनेशनल के मुताबिक, खसरा, इन्फ्लूएंजा और गर्मी की वजह से हजारों ट्राइबल्स की मौत हो चुकी है। इस तरह यह प्रजाति लुप्त होने की कगार पर आ गई। इसीलिए सरकार की तरफ से बाकी बचे ट्राइबल्स के लिए संरक्षण के कार्य किए जाते हैं, जिन्हें अब कोरोना वायरस ने झटका दे दिया है। वहीं, चिंता केवल ग्रेट अंडमानीज को लेकर नहीं, बल्कि भारत में रहने वाले अन्य दुर्लभ आदिवासी कबीलों को लेकर भी है। इनमें जरावा और बंगाल की खाड़ी में रहने वाले सेंटीनलीज ट्राइबल्स शामिल हैं।

(और पढ़ें - कोविड-19: कैंब्रिज यूनिवर्सिटी भी वैक्सीन बनाने की दौड़ में शामिल, कृत्रिम वंशाणुओं की मदद से तैयार की 'डीआईओएस-कोवाक्स2')

दरअसल, सरकार द्वारा लगाई गई पाबंदियों के बावजूद इन मूल निवासियों के इलाकों में घुसपैठ होती रहती है, जो वायरस के लिहाज से चिंताजनक है। इसलिए जानकारों का कहना है कि ये आदिवासी, विशेषकर सेंटीनलीज, बीमारियों के प्रति काफी संवेदनशील लोग हैं। कोरोना वायरस जैसे वैश्विक स्वास्थ्य संकट में यह खतरा और बढ़ गया है। ऐसे में विशेषज्ञों का कहना है कि इससे पहले वायरस और ग्रेट अंडमानीज को संक्रमित करे, सरकार को उसे रोकने के लिए जल्दी से जल्दी कदम उठाने चाहिए। उन्होंने कहा है कि इन आदिवासियों के इलाके की कड़ी निगरानी की जानी चाहिए और उनकी अनुमति के बिना किसी भी बाहरी व्यक्ति को उनके इलाके में नहीं घुसने देना चाहिए।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: अंडमान-निकोबार में रह रहे दुर्लभ आदिवासी कबीले के 10 सदस्य कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए है

ऐप पर पढ़ें