भारत में कोविड-19 की रोकथाम के लिए गठिया रोग के इलाज में इस्तेमाल होने वाली एक दवा का क्लिनिकल ट्रायल शुरू हो चुका है। इस दवा का नाम 'टॉसिलिजुमब' है, जिसे गठिया रोग के सामान्य से गंभीर वयस्क मरीजों को ठीक करने में इस्तेमाल किया जाता है। यह दवा शरीर में मौजूद आईएल-6 रिसेप्टर्स को ब्लॉक कर देती है। ऐसी खबरें हैं कि इसका प्रयोग कर कोविड-19 के मरीजों की हालत में सुधार लाया गया है। इनमें शरीर के तापमान का फिर से सामान्य होना और श्वसन संबंधी समस्या में सुधार होना शामिल है। बताया जा रहा है कि कोविड-19 के इलाज के लिए मेडिकल विशेषज्ञों ने अन्य बीमारियों से जुड़ी जिन मौजूदा दवाओं को लेकर उत्सुकता दिखाई है, टॉसिलिजुमब उनमें से एक है।

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, देश में इस दवा के परीक्षणों का नेतृत्व कर रहे डॉ. एएस सोइन ने बताया है, 'सीडीएससीओ (सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन) ने कोविड-19 के इलाज के लिए टॉसिलिजुमब के नियंत्रित ट्रायल को मंजूरी दे दी है। भारत में यह इस दवा का पहला प्रस्तावित बहुकेंद्रीय परीक्षण है।' डॉ. सोइन का कहना है कि कई अन्य देशों में भी इस दवा का ट्रायल किया जा रहा है और वहां कोरोना वायरस के गंभीर मरीजों पर इसे इस्तेमाल भी किया गया है। उनके मुताबिक, ये ऐसे मरीज हैं जो कोविड-19 की ज्यादा एडवांस स्टेज में हैं और शायद इस दवा के इस्तेमाल से उनकी हालत में बदलाव देखने को मिले हैं।

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लेकिन भारत में जिन मरीजों पर यह दवा आजमाई जाएगी, उनमें ऐसे मरीजों की संख्या ज्यादा है जो इस बीमारी के चलते अस्पताल में भर्ती हैं, लेकिन आईसीयू या वेंटिलेटर की स्टेज में नहीं पहुंचे हैं। यानी जो गंभीर रूप से बीमार नहीं हैं। इस बारे में डॉ. सोइन का कहना है कि कोविड-19 की गंभीर स्टेज में जाने से रोकने के लिए ट्रायल के तहत इन मरीजों को चुना गया है। उन्होंने कहा, 'भारत के लिहाज से यह काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि संक्रमण ज्यादा फैलने की सूरत में यहां आईसीयू बेड और वेंटिलेटर की काफी कमी होगी।' खबर के मुताबिक, दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के अलावा हरियाणा, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु में कुल शहरों में दवा के ट्रायल किए जाएंगे।

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क्यों चुनी गई दवा?
कोविड-19 की रोकथाम के लिए टॉलिसिजुमब के चयन की वजह बताते हुए डॉ. सोइन ने कहा, 'मानव शरीर में घुसने के बाद कोरोना वायरस फेफड़ों की कोशिकाओं को संक्रमित करते हुए तेजी से अपनी तादाद बढ़ाता है और अन्य कोशिकाओं को अपनी चपेट में लेता है। इस प्रक्रिया में इस वायरस की विशेष क्षमता यह है कि यह इम्यून सिस्टम को बहुत ज्यादा उत्तेजित कर देता है। इससे शरीर में कुछ विशेष केमिकल पदार्थ रिलीज होते हैं, जिन्हें 'साइटोकिन' कहते हैं। इन पदार्थों में आईएल-6 रिसेप्टर प्रमुख रूप से शामिल होते हैं। ये केमिकल (शरीर के अंगों में) सूजन और जलन को बढ़ा देते है, जिसे 'साइटोकिन स्टॉर्म' या 'साइटोकिन रिलीज सिंड्रोम' (सीआरएस) कहते हैं। इस स्थिति में शरीर के और ज्यादा टिशू क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।'

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जानकारों का कहना है कि शुरुआत में कुछ टिशू को नुकसान कोरोना वायरस ही पहुंचाता है। बाद में और ज्यादा टिशूज के क्षतिग्रस्त होने की वजह अतिरिक्त सूजन और जलन होती है। अब चूंकि टॉसिलिजुमब सूजन और जलन को बढ़ने वाले आईएल-6 रिसेप्टर्स को ब्लॉक कर देती है, इसी कारण इस दवा को मरीजों पर बतौर ट्रायल आजमाने की अनुमति दी गई है।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें भारत में कोविड-19 की रोकथाम के लिए गठिया रोग की दवा का ट्रायल शुरू, जानें इस दवा के चयन की वजह है

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