जर्मनी के शोधकर्ताओं ने नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 के मानव शरीर में आने के बाद सेल सिग्नलिंग (कोशिका संकेतन) से जुड़ी कुछ घटनाओं का पता लगाया है। ये संकेत उस समय मिलते हैं, जब सार्स-सीओवी-2 कोशिकाओं को संक्रमित करना शुरू करता है। जर्मनी स्थित फ्रैंकफर्ट के शोधकर्ताओं ने कोशिका संकेतन की इन घटनाओं से यह पता लगाया है कि कोशिकाओं में जाकर यह वायरस किस तरह अपनी प्रतिकृतियां बनाता है। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी जाना कि कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाले ड्रग्स की मदद से सार्स-सीओवी-2 को ऐसा करने से रोका जा सकता है।

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शोधकर्ताओं के मुताबिक, उन्होंने सार्स-सीओवी-2 के मॉलिक्यूलर मकैनिज्म से जुड़ी कुछ बुनियादी महत्वपूर्ण जानकारी हासिल कर ली है। उनकी मानें तो इस जानकारी से कोविड-19 बीमारी के इलाज के लिए नई रणनीतियां बनाई जा सकती हैं। इस अध्ययन को स्वास्थ्य विज्ञान से जुड़े शोधपत्र मुहैया कराने वाले प्लेटफॉर्म 'मेडरिक्स्व' पर पढ़ा जा सकता है। अभी तक यह किसी विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित नहीं हुआ है। फिलहाल इसकी समीक्षा की जा रही है।

अभी तक हुए अध्ययनों में कमी
हाल के दिनों में कोविड-19 से बचाव और इसके इलाज के लिए पहले से मौजूद कई दवाएं चर्चा में रही हैं। ज्यादातर ट्रायल्स का ध्यान इस बात पर रहा है कि किस दवा से बीमारी का इलाज जल्दी से जल्दी हो सकता है। लेकिन ऐसे ज्यादातर ट्रायल या अध्ययन कंप्यूटेशनल (कंप्यूटर आधारित) हैं अथवा किसी गणितीय गणना के आधार पर किए गए हैं। ये शोध मॉडल्स ऑफ इन्फेक्शन (संक्रमण की विधि) पर आधारित भी नहीं है। यानी इन्हें ये ध्यान में रख कर नहीं किया गया कि संक्रमण फैलता किस तरह है। इतना ही नहीं, इन अध्ययनों में वायरस के मॉलिक्यूलर मकैनिज्म और होस्ट सेल सिग्नलिंग से जुड़ी जानकारी भी नहीं है। वहीं, जर्मनी के शोधकर्ताओं ने इस जानकारी को महत्वपूर्ण मानते हुए शोध किया है।

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गॉथे यूनिवर्सिटी में मेडिसिन के अध्यापक केविन क्लान और उनके सहयोगियों ने सार्स-सीओवी-2 के संक्रमण के बारे में जानने के लिए एक विट्रो सेल कल्चरल मॉडल विकसित किया है, जिसकी मदद से सेल सिग्नलिंग इवेंट्स का पता लगाया है। मॉडल के तहत शोधकर्ताओं ने मलाशय से जुड़ी सीएसीओ-2 नाम की सेल लाइन (कोशिका वंश) का इस्तेमाल किया। इसी कोशिका वंश की मदद से कोरोना वायरसों पर अध्ययन किए जाते रहे हैं। अपने शोध में जर्मन शोधकर्ताओं ने पाया कि जब कोशिकाएं सार्स-सीओवी-2 के संक्रमण के प्रभाव में आती हैं तो उनके फॉस्फोप्रोटीन नेटवर्क में परिवर्तन होने लगता है। इससे संक्रमित हो रही कोशिकाओं के प्रोटीनों में बदलाव देखने को मिलता है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि एक विशेष प्रकार की सेल सिग्नलिंग 'जीएफआर' यानी एपिडर्मल ग्रोथ फैक्टर रिसेप्टर सिग्नलिंग कैंसर रोग के फैलने में अहम भूमिका निभाती है। शोध में पता चला है कि कुछ वायरल इन्फेक्शनों में भी इसकी भूमिका हो सकती है। इस बारे में केविन क्लान का कहना है, 'जीएफआर के सक्रिय होने से कोशिकीय प्रक्रिया बड़े पैमाने पर प्रभावित होकर बदलती है।' केविन और उनके सहयोगियों की मानें तो कई संक्रामक रोगों, जैसे एप्सटेन-बार वायरस, इन्फ्लुएंजा, हेपेटाइटिस सी, में वायरस एपिडर्मल जीएफआर का इस्तेमाल कर कोशिकाओं में घुसते हैं।

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शोधकर्ताओं को संदेह है कि सार्स-सीओवी-2 के संक्रमण के फैलने में भी जीएफआर सिग्नलिंग की भूमिका अहम हो सकती है। इसलिए इसे रोकने के लिए उन्होंने पांच कैंसर-रोधी ड्रग्स का इस्तेमाल किया। दिलचस्प बात यह है कि क्लिनिकल ट्रायल में इन पांचों ड्रगों ने सार्स-सीओवी-2 को अपनी प्रतिकृतियां बनाने से रोक दिया।

नोट: इस रिपोर्ट की शुरुआत में हमने बताया है कि यह शोध अभी तक किसी भी मेडिकल पत्रिका में प्रकाशित नहीं हुआ है। ऐसे में यह स्पष्ट किया जाता है कि हम केवल इस शोध से जुड़ी जानकारी पाठकों तक पहुंचा रहे हैं। इसके परिणामों को लेकर किसी तरह का दावा इस रिपोर्ट में नहीं किया गया है।


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