इस समय कोविड-19 बीमारी को लेकर तमाम तरह के शोध हो रहे हैं। जिन विषयों पर ये शोध हो रहे हैं, उनमें यह भी विशेष रूप से शामिल है कि सार्स-सीओवी-2 का संक्रमण कैसे शरीर को प्रभावित करता है? क्या यह संक्रमण मरीज के ठीक होने के बाद उसे फिर से बीमार बना सकता है या फिर कोरोना वायरस मरीज के ठीक होने पर भी उसके शरीर में जीवित रहता है। कई सवाल हैं जिन पर रिसर्च हो भी चुकी है और कई अध्ययन अब भी जारी हैं। ऐसे में एक महत्वपूर्ण सवाल यह उठाया जा रहा है, कि क्या नया कोरोना वायरस इससे प्रभावित व्यक्ति के स्वाद और सूंघने की क्षमता में कमी या इसे पूरी तरह नष्ट कर सकता है।
कई देशों ने इन लक्षणों की दी जानकारी
मीडिया रिपोटों की मानें तो चीन, ईरान, इटली, जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों ने कोविड-19 के ऐसे मामलों की जानकारी दी है, जिनमें रोगियों ने स्वाद और सूंघने की क्षमता में अस्थायी रूप से कमी महसूस की थी। ब्रिटेन में नाक, कान और गले की बीमारियों पर काम करने वाले संस्थान 'ब्रिटिश एसोसिएशन ऑफ ओटोरहिनो लेरिंजोलॉजी' (ईएनटी यूके) की रिपोर्ट के अनुसार, ये दोनों लक्षण कई मरीजों में पाए गए हैं। ऐसे में यह आशंका जताई जा रही है कि कोरोना वायरस के प्रभाव में मरीज की स्वाद और सूंघने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।
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अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, ब्रिटिश राइनोलॉजिकल सोसाइटी के अध्यक्ष प्रोफेसर क्लेयर हॉपकिंस और ईएनटी यूके के अध्यक्ष प्रोफेसर निर्मल कुमार ने एक बयान में कहा है, ‘हमें लगता है कि मरीजों में कुछ ऐसे छिपे हुए कैरियर्स हो सकते हैं जो कोविड-19 के संक्रमण को और फैला सकते हैं।’ रिपोर्टों की ही मानें तो प्रोफेसर क्लेयर हॉपकिंस और प्रोफेसर निर्मल कुमार के बयान को अमेरिकन एकेडमी ऑफ ऑटोलैरीन्जॉलोजी के कार्यकारी उपाध्यक्ष और सीईओ जेम्स सी डेनेनी ने सही बताया है।
कोरोना वायरस कैसे सूंघने की क्षमता को प्रभावित करता है?
मेडिकल विशेषज्ञ बताते हैं कि कई विषाणु ऊपरी वायु मार्गों (मुंह, नाक, गला और साइनस) में संक्रमण फैला कर व्यक्ति के सूंघने की क्षमता कम कर सकते हैं। वे ज्यादातर नासिका में बलगम बना कर ऐसा करते हैं। इससे नाक में हवा का प्रवाह बाधित होता है, नतीजतन बीमार व्यक्ति को सूंघने में दिक्कत होती है। इस समस्या से अधिकतर लोग वाकिफ होंगे, क्योंकि वे कभी न कभी इससे गुजरते रहते होंगे।
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लेकिन कोविड-19 का वायरस इस मामले में अलग व्यवहार करता है। मेडिकल विशेषज्ञ बता रहे हैं कि वह अधिकतर मरीजों की नाक में बहुत ज्यादा बलगम नहीं बनाता, जबकि संक्रमित व्यक्तियों में इस वायरस की अधिक मात्रा नाक में ही पाई जाती है। जानकारों के मुताबिक, दरअसल सार्स-सीओवी-2 शरीर की उन सेल्स पर हमला कर रहा है, जो किसी व्यक्ति के सूंघने की क्षमता के लिए जिम्मेदार होती हैं। बताया गया है कि अपनी तादाद बढ़ाने के लिए कोरोना वायरस इन सेल्स पर हमला करता है और उन्हें बर्बाद कर देता है। मेडिकल विशेषज्ञ बताते हैं सूंघने की क्षमता के लिए जरूरी इन सेल्स की सतह पर बहुत-बहुत छोटे-छोटे बाल होते हैं। इन्हीं की मदद से ये सेल्स हमें अलग-अलग प्रकार की गंधों को सूंघने में मदद करती हैं। शोधकर्ताओं ने अन्य प्रकार के कोरोना वायरसों पर किए अध्ययनों में पाया कि उनके प्रभाव में भी ये सेल्स अपने ये 'विशेष' बाल खो देती हैं।
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इसके अलावा कोरोना वायरस सूंघने से जुड़ी उस नस को भी नुकसान पहुंचाता है, जो नाक के जरिये दिमाग को संदेश पहुंचाती है। इसी नस के कारण दिमाग हमें अलग-अलग प्रकार की सुगंध या दुर्गंध में भेद बता पाता है। मेडिकल विशेषज्ञों के मुताबिक, कोरोना वायरस के चलते होने वाले इन नुकसानों से मरीज सूंघने की क्षमता खो सकता है। दूसरे प्रकार के वायरल इन्फेक्शन में यह नुकसान सामान्यतः अस्थायी होता है और ज्यादातर लोग अपनी सूंघने की क्षमता चार हफ्तों में पुनः प्राप्त कर लेते हैं।
लेकिन कोविड-19 के मामले में ऐसे लोगों की संख्या को लेकर कोई विशेष आंकड़ा मौजूद नहीं है। ऐसी रिपोर्टें आई हैं कि कोरोना वायरस से संक्रमित हुए कुछ लोगों ने अपने सूंघने की क्षमता खोई है। ऐसे में उनका आंकड़ा मौजूद न होने से यह स्पष्ट नहीं होता कि उनकी यह क्षमता वापस आई या नहीं। यह इस मायने में महत्वपूर्ण है कि अन्य प्रकार के कोरोना वायरसों पर किए अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि उनके प्रभाव के चलते वायरल इन्फेक्शन का शिकार हुए मरीजों में से एक प्रतिशत ने अपनी सूंघने की शक्ति हमेशा के लिए खो दी। बहरहाल, अध्ययनों में मिले तथ्यों के आधार पर मेडिकल विशेषज्ञ लोगों को सलाह दे रहे हैं कि अगर उन्हें स्वाद महसूस करने या सूंघने की शक्ति में बदलाव का आभास हो रहा है, तुरंत खुद को 14 दिनों के लिए आइसोलेट कर लें।