नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 के ट्रांसमिशन को लेकर एक नई जानकारी सामने आई है। जानी-मानी मेडिकल पत्रिका जामा इंटर्नल मेडिसिन में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि कैसे नया कोरोना वायरस जनवरी के अंत में चीन के वुहान शहर से सैकड़ों किलोमीटर दूर फैलना शुरू हो गया था। अध्ययन में चीन के निंगबो नाम के एक शहर पहुंचे बौद्ध भिक्षुओं का जिक्र है, जो बीते जनवरी महीने के अंत में वहां एक बौद्ध मंदिर के अनुष्ठान में हिस्सा लेने पहुंचे थे। इसके लिए इन भिक्षुओं ने बस में सफर किया था। इस बस में एक यात्री ऐसी भी थी, जो उस समय कोरोना वायरस के केंद्र रहे हुबेई प्रांत से लौटी थी। उसे नहीं पता था कि हुबेई में फैल रहा वायरस उसके शरीर में भी पहुंच गया है और भारी मात्रा में फैल चुका है। कुछ दिनों बाद बस के अन्य 24 यात्री सार्स-सीओवी-2 की चपेट में पाए गए थे।
अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स (एनवाईटी) ने पत्रिका की रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि इस घटना से जुड़े अध्ययन के परिणाम संकेत देते हैं कि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा कि बस में कौन किससे कितनी दूर बैठा था। रिपोर्ट की मानें तो बस में सबसे पिछली सीट, जोकि संक्रमित महिला यात्री से सात सीटें (रॉ) पीछे थी, पर बैठा यात्री भी कोरोना वायरस से संक्रमित हुआ था। यह महिला जब तक बस में रही, तब तक यात्रियों के संक्रमण से बचने की एक मात्र संभावना खुली खिड़की या दरवाजे के पास बैठने से जुड़ी थी। पत्रिका ने बताया है कि बस के अंदर खुली खिड़कियों और दरवाजों के पास बैठे यात्री कोरोना वायरस की चपेट में आने से बच गए। यह तथ्य कई विशेषज्ञों की इस राय को मजबूती देता है कि एयर कंडीशन वाले बंद कमरों में वायरस न सिर्फ ज्यादा देर तक रहता है, बल्कि हवा में भी काफी समय तक बना रहता है। इससे ऐसी जगहों पर मौजूद लोगों के संक्रमित होने की संभावना काफी ज्यादा बढ़ जाती है।
वहीं, जामा ने भी अध्ययन के हवाले से अपनी रिपोर्ट में बताया है कि कोरोना वायरस बेहद हल्के सूक्ष्म कणों की मदद से भी काफी देर तक हवा में बना रह सकता है, न कि केवल बड़े कणों के जरिये थोड़ी दूर जाकर नीचे सतह पर आ जाता है। सार्स-सीओवी-2 के एयरबोर्न ट्रांसमिशन के संबंध में आई इस जानकारी पर हवा में फैलने वाले वायरसों के विशेषज्ञ और वर्जीनिया टेक में सिविल एंड एनवायरनमेंट इंजीनियरिंग की प्रोफेसर लिंसे मैर ने कहा है, 'नया शोध नए मजबूत साक्ष्य पेश करता है कि यह वायरस हवा के माध्यम से ट्रांसमिट होता है। क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो हम केवल मरीज के नजदीक बैठे लोगों में संक्रमण फैलता देख पाते, लेकिन यहां पूरी बस में वायरस फैला है।'
वहीं, स्कॉटलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ सैंट एंड्रूज स्कूल ऑफ मेडिसिन में संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. म्यूज केविक ने बताया कि बस में वायरस फैलने के पीछे कई फैक्टरों ने काम किया होगा। उनकी मानें तो बस में बैठे यात्रियों ने एक लंबी यात्रा तय की थी, बस अपनेआप में एक सीमित जगह है, जिसमें काफी लोग मौजूद थे। उनमें से एक में संभवतः वायरस काफी ज्यादा मात्रा में फैला था, क्योंकि वह संक्रमण की शुरुआती स्टेज में थी। इन तथ्यों पर बात करते हुए डॉ. केविक कहते हैं, 'एयरोसोल और ड्रॉपलेट ट्रांसमिशन में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है। (लेकिन) इस लेवल के हाई रिस्क ट्रांसमिशन के लिए कई चीजें एक साथ काम करती हैं। यह सब एक गलत जगह पर, गलत वक्त में गलत यात्री के मौजूद होने के चलते हुए।'
बहरहाल, अध्ययन से जुड़े लेखक चीन के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन में बतौर फिजिशन कार्यरत हैं। उन्होंने अध्ययन की समीक्षा में निष्कर्ष के रूप में कहा है कि कोविड-19 के एयरबोर्न ट्रांसमिशन को ध्यान में रखते हुए भावी नियंत्रण योजनाएं बनाने पर विचार करना चाहिए। उन्होंने इस पूरे मामले को उदाहरण के रूप में लिए जाने की बात कही है। अध्ययन में बताया गया है कि संबंधित बस के निंगबो शहर पहुंचने से पहले वहां कोरोना वायरस का एक भी मामला सामने नहीं आया था। लेकिन जिन स्थितियों में संक्रमण फैला, वे गौर करने वाली हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, बौद्ध मंदिर के अनुष्ठान में करीब 300 लोगों ने हिस्सा लिया था। उनमें से 128 दो बसों के जरिये 50 मिनट की यात्रा करके वहां पहुंचे थे। एक बस में 60 यात्री थे और दूसरी में 68 लोग सवार थे। इस बस में संक्रमित महिला भी बैठी थी, जिसकी उम्र 64 वर्ष बताई गई है। दोनों बसों में सवार किसी भी यात्री ने मास्क नहीं पहना था। जिस बस में संक्रमित महिला बैठी थी, उसमें कम से कम 24 लोग संक्रमित हुए। वहीं, दूसरी बस में एक भी व्यक्ति वायरस की चपेट में नहीं आया। मंदिर में अनुष्ठान का कार्यक्रम ढाई घंटे चला। इसके बाद सभी लोगों ने एक विशाल कमरे में लंच किया, जहां के एयर कंडीशन रीसर्कुलेटिंग नहीं थे। बाद में दोनों बसों के यात्री वापस जाकर उन्हीं सीटों पर बैठ गए, जिन पर वे पहले बैठे थे।
घर पहुंचने से पहले किसी में भी संक्रमण के लक्षण नहीं दिखे थे। लेकिन कुछ दिनों बाद दो दर्जन यात्रियों में वायरस मिला। वहीं, अनुष्ठान में शामिल सात अन्य लोगों के भी संक्रमित होने की पुष्टि हुई। ये लोग बस में सवार यात्रियों में शामिल नहीं थे, लेकिन अनुष्ठान के दौरान संक्रमित महिला यात्री के संपर्क में आए थे। इस जानकारी ने (खराब वेंटिलेशन वाली) सीमित या बंद जगहों में वायरस के फैलने के अंदेशे को बल दे दिया है, जिससे विशेषज्ञों की चिंता बढ़ी है। सर्दी के सीजन के लिहाज से यह डर और बढ़ना लाजमी है। ऐसे में डॉ. मैर का कहना है, 'भीड़भाड़ वाली बंद जगहों पर जानें से बचें, जहां लोगों ने मास्क न पहन रखे हों और वेंटिलेशन की व्यवस्था खराब हो।'
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