एक नए शोध में यह सामने आया है कि ब्लड थिनर्स (रक्त को पतला करने वाला पदार्थ) के इस्तेमाल से कोरोना वायरस से होने वाली बीमारी कोविड-19 से बचाव में मदद मिल सकती है। अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में 2,700 से ज्यादा कोविड-19 मरीजों पर किए गए विश्लेषण के बाद प्रारंभिक परिणामों के आधार पर शोधकर्ताओं ने यह बात कही है। दि वॉशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, इस विश्लेषण को 'जर्नल ऑफ अमेरिकन कॉलेज ऑफ कॉर्डियॉलजी' में प्रकाशित किया गया है।
अमेरिकी अखबार ने इस अध्ययन में शामिल शोधकर्ताओं में से एक वैलंटिन फस्टर के हवाले से बताया है कि शोध में सामने आए अभी तक के परिणाम केवल मेडिकल रिकॉर्ड्स की समीक्षा पर आधारित हैं। फस्टर ने कहा है कि और बेहतर तथा व्यापक निष्कर्ष निकालने के लिए और ज्यादा तथा विस्तृत अध्ययन करने होंगे। लेकिन फस्टर ने यह जरूर माना है कि शोध के प्रारंभिक परिणाम भरोसा देने वाले हैं। अखबार के मुताबिक, एक इंटरव्यू में वैलंटिन फस्टर ने कहा, 'मैं इस बारे में एहतियात के तहत ही राय दूंगा। लेकिन यह जरूर कहूंगा कि इससे हमें मदद मिलने वाली है। इससे हमें यह पता चलेगा कि (कोविड-19 के खिलाफ) कौन से ड्रग्स इस्तेमाल करने हैं और किन बातों का ध्यान रखना है।'
क्या हैं शोध के परिणाम?
न्यूयॉर्क स्थित मेडिकल सिस्टम 'माउंट सिनाई' ने अस्पतालों में भर्ती कोविड-19 के उन मरीजों का विश्लेषण किया, जिनका 14 मार्च से 11 अप्रैल के बीच इलाज किया गया था। शोधकर्ताओं ने पाया कि जो मरीज वेंटिलेटर पर नहीं थे और उन्हें ब्लड थिनर्स दिए गए थे, उनकी मृत्यु दर बिना ब्लड थिनर वाले मरीजों जितनी ही थी। लेकिन, वे दूसरे समूह के मरीजों की अपेक्षा ज्यादा दिन जिंदा रहे। अध्ययन की मानें तो ऐसे मरीज 14 के बजाय 21 दिनों तक जीवित रहे थे।
वहीं, जब बिना वेंटिलेटर वाले मरीजों से तुलना की गई तो दिलचस्प परिणाम सामने आए। शोधकर्ताओं ने पाया कि ऐसे मरीजों में से जिनको ब्लड थिनर नहीं दिए गए, उनकी मृत्यु दर (63 प्रतिशत) उन मरीजों (29 प्रतिशत) से ज्यादा थी, जिन्हें यह मेडिकेशन दिया गया था। इसके अलावा, अध्ययन से एक अन्य महत्वपूर्ण जानकारी यह मिली कि इन मरीजों को ब्लड थिनर देना तुलनात्मक रूप से सुरक्षित था और दोनों ही प्रकार के मरीजों (ब्लड थिनर मेडिकेशन और बिना ब्लड थिनर मेडिकेशन वाले मरीज) में ब्लीडिंग (ब्लड थिनर्स का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव) का खतरा लगभग एक जैसा था।
वैलंटिन फस्टर माउंस सिनाई के प्रमुख फिजिशन भी हैं। उन्होंने बताया कि अध्ययन के ये परिणाम निकलने के बाद अस्पताल में कोविड-19 के मरीजों के इलाज से जुड़े प्रोटोकोल्स में बदलाव किए गए, जिसके बाद मरीजों को ब्लड थिनर की हाई डोज देना शुरू किया गया।
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ब्लड थिनर से कोविड-19 का इलाज होने की संभावना ऐसे समय में सामने आई है, जब दुनियाभर में इस बीमारी के मरीजों में ब्लड क्लॉटिंग की समस्या देखने को मिली है। मार्च महीने में पहली बार डॉक्टरों के हवाले से ऐसी रिपोर्टें आना शुरू हुई थीं, जिनमें बताया गया कि कोरोना वायरस के संक्रमण से ग्रस्त कई मरीजों के अलग-अलग अंगों में खून के थक्के देखने को मिले हैं, जो तरल या सेमीसॉलिड (आधे ठोस) प्रकार के हो सकते हैं। चिंता की बात यह है कि ब्लड क्लॉटिंग के केस उन लोगों में भी मिल रहे हैं, जिन्हें कोविड-19 बीमारी से कम असुरक्षित बताया जाता रहा है, यानी कि युवा। पिछले महीने 'न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन' में प्रकाशित एक रिपोर्ट में ऐसे पांच मरीजों का जिक्र किया गया था, जिनकी उम्र 30 और 40 साल से कुछ ज्यादा थी और उनमें (ब्लड क्लॉटिंग की वजह से) बड़े स्ट्रोक के लक्षण मिले थे।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में इंटरवेंशनल कार्डियॉलजी के विशेषज्ञ प्रोफेसर दीपक भट्ट इस अध्ययन को कोविड-19 के मरीजों में ब्लड क्लॉटिंग की समस्या से जोड़ते हुए 'काफी महत्वपूर्ण' बताते हैं। वे कहते हैं, 'अब हमें समझ आ रहा है कि हमें करना क्या है और किस तरह का इलाज देना है।'
हालांकि, यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन में असिस्टेंट प्रोफेसर जेफरी बारनेस ने आलोचनात्मक रुख अपनाते हुए कहा है, 'क्लॉटिंग और ब्लीडिंग के बीच काफी नाजुक अंतर होता है, खासतौर पर जब आप कोविड-19 के मरीजों का इलाज कर रहे हों। एक हफ्ते पहले हम सूझबूझ के साथ अंदाजा लगा रहे थे कि ब्लड क्लॉटिंग को कैसे रोका जाए। ऐसा (अध्ययन) पहली बार देखा है कि हाई डोज देना संभावित रूप से प्रभावी और सुरक्षित है।'
नोट: myUpchar यह स्पष्ट कर देना चाहता है कि उसने इस रिपोर्ट में ब्लड थिनर मेडिकेशन को कोविड-19 का प्रमाणित इलाज नहीं बताया है। हम केवल कोविड-19 के इलाज को लेकर हो रही कोशिशों की जानकारी पाठकों तक पहुंचा रहे हैं। उनसे अनुरोध है कि वे इन जानकारी मिलने के बाद अपने विवेक का इस्तेमाल करें।