रोजाना के कामों के आधार पर देखें तो वैसे तो आपके ब्लड ग्रुप का आपकी सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ता। लेकिन अब कोविड-19 संक्रमण के लिए किसी व्यक्ति की संवेदनशीलता और उसके ब्लड ग्रुप के बीच कोई लिंक है या नहीं इसकी जानकारी हासिल करने के लिए कई तरह के अध्ययन किए जा रहे हैं।
अध्ययन में यह बात सामने आयी : ब्लड ग्रुप और कोविड-19 को लेकर किए गए अध्ययन के मुताबिक जिन लोगों का ब्लड ग्रुप 'ए' है उन्हें नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 से होने वाला इंफेक्शन कोविड-19 की गंभीर बीमारी होने का खतरा सबसे अधिक है। जबकी 'ओ' ब्लड ग्रुप वाले लोगों को बाकी किसी भी ब्लड ग्रुप वालों की तुलना में कोविड-19 से प्रभावित होने का खतरा सबसे कम है। मौजूदा समय में 3 स्टडीज हैं जो इस बात का समर्थन करती हैं।
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पहली स्टडी, दुनियाभर के आनुवांशिक विज्ञानियों के एक समूह- कोविड-19 होस्ट जेनेटिक्स इनिशिएटिव से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा की गई थी जिसे उन्होंने 17 जून 2020 को द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित किया था। यह एक तरह की नियंत्रित यानी कंट्रोल्ड स्टडी थी जिसमें इन वैज्ञानिकों ने स्पेन और इटली के अस्पतालों में भर्ती 1,980 मरीजों के आंकड़ों को देखा और पाया कि "मरीजों के इस समूह में ब्लड-ग्रुप को लेकर निश्चित जांच की गई जिसमें यह बात सामने आयी कि दूसरे ब्लड ग्रुप्स की तुलना में ए ब्लड ग्रुप वालों को खतरा सबसे अधिक था... तो वहीं बाकी के ब्लड ग्रुप्स की तुलना में ओ ब्लड ग्रुप वालों में रक्षात्मक प्रभाव नजर आया।"
वैसे तो अध्ययन के नतीजों ने स्पष्ट रूप से जिस समूह की जांच की जा रही थी उसमें ब्लड ग्रुप का टाइप और कोविड-19 की गंभीरता के बीच एक लिंक की ओर इशारा किया लेकिन इसका कारण क्या था यह बात पूरी तरह से स्पष्ट नहीं थी।
वैसे यह सुनिश्चित करना होगा कि फिलहाल ये कोविड-19 पर किए जा रहे जीन के नेतृत्व वाले अनुसंधान के शुरुआती दिन हैं और वैज्ञानिकों ने एक साधारण सवाल के साथ इसकी शुरुआत की थी: कोविड-19 अलग-अलग लोगों को अलग-अलग तरह से प्रभावित करता है, तो क्या आनुवांशिक यानी जेनेटिक संरचना से इसका कुछ लेना देना हो सकता है?
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निश्चित रूप से, ये वैज्ञानिक ब्लड टाइप और कोविड-19 के खतरे के बीच कनेक्शन पर विचार करने वाले अकेले या पहले वैज्ञानिक नहीं हैं। इससे पहले जून 2020 की शुरुआत में 23एंड मी नाम की एक निजी कंपनी जो अपने ग्राहकों के लिए जेनेटिक्स टेस्टिंग करती है उसने भी एक रिसर्च जो फिलहाल जारी है से जुड़े कुछ नतीजों को प्रकाशित किया था।
इसमें करीब 7.5 लाख लोगों को शामिल किया गया और इसके आधार पर इस अमेरिकन कंपनी ने पाया कि वैसे लोग जिनका ब्लड टाइप ओ है उनमें कोविड-19 पॉजिटिव टेस्ट होने का खतरा बाकी के ब्लड ग्रुप वालों की तुलना में 9 से 18 प्रतिशत तक कम है। इलाके की जिस आबादी में कोविड-19 कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 के संपर्क में आने का जोखिम सबसे अधिक था, वहां भी ओ ब्लड ग्रुप वालों में कोविड-19 पॉजिटिव टेस्ट होने का खतरा बाकी ब्लड ग्रुप वालों की तुलना में 13 से 26 प्रतिशत तक कम था। हालांकि 23एंड मी के लोगों ने दूसरे ब्लड ग्रुप वालों में संक्रमण की दर या बीमारी की गंभीरता में कोई अंतर नहीं पाया।
यहां इस बात को याद रखना बेहद जरूरी है कि 23एंड मी कंपनी का यह डेटा उस रिसर्च के आधार पर है जो फिलहाल जारी है और कंपनी अब भी उसमें प्रतिभागियों की भर्ती कर रही है और इस डेटा को वैज्ञानिकों और चिकित्सा समुदाय द्वारा अब तक प्रेशर टेस्ट नहीं किया गया है।
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तीसरी स्टडी भी अभी प्री-प्रिंट में है और इसकी भी अब तक विशेषज्ञों द्वारा समीक्षा (पियर रिव्यूड) नहीं की गई है। इसमें चीन के वुहान स्थित 3 अस्पतालों में 2 हजार से अधिक मरीजों से डेटा लिया गया (वुहान वही जगह है जहां 2019 में पहला वायरल संक्रमण फैला था) इस दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि नॉन-ए ब्लड ग्रुप वालों की तुलना में ए ब्लड ग्रुप वाले लोगों में कोविड-19 होने का जोखिम अधिक था, जबकि ओ ब्लड ग्रुप वालों को बाकी नॉन ओ ब्लड ग्रुप वालों की तुलना में कोविड-19 का संक्रमण होने का खतरा कम था। साथ ही रिसर्च से जुड़े शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि फिलहाल इस मामले में रिसर्च अभी शुरुआती दिनों में ही है और इसलिए इसके निष्कर्षों का इस्तेमाल नैदानिक सिफारिशें के लिए नहीं करना चाहिए।
अब तक तीनों अध्ययनों ने ब्लड ग्रुप ए के बारे में अलग-अलग बातें कही हैं लेकिन तीनों अध्ययनों ने इस बात पर सहमति जतायी कि ओ ब्लड ग्रुप वाले लोगों में कोविड-19 का प्रसार कम है। यह कहने के बाद भी इसका कारण क्या है यह फिलहाल स्पष्ट नहीं है। डॉक्टर फिलहाल ये खोजने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर ऐसा क्यों हो सकता है। एक सिद्धांत ये कहता है कि ओ ब्लड ग्रुप वाले लोगों के खून में वॉन विलेब्रांड फैक्टर कम होता है इसलिए वे बाकी ब्लड ग्रुप वाले लोगों की तुलना में खून का थक्का जमने के प्रति कम संवेदनशील हैं। रिसर्च में यह बात सामने आयी है कि गंभीर रूप से बीमार कोविड-19 मरीजों के फेफड़ों में खून का थक्का जम जाता है।
इस बारे में दूसरा सिद्धांत- ए, बी और ओ ब्लड टाइप के बीच जो मुख्य अंतर है उसे लेकर है। ए ब्लड ग्रुप वाले सभी लोगों में ए एंटीजेन (प्रोटीन) और बी एंटीबॉडीज (एंटीजेन से लड़ने के लिए प्रोटीन) पाया जाता है। बी ब्लड ग्रुप वाले लोगों में बी एंटीजेन और ए एंटीबॉडीज होती है जबकी वैसे लोग जिनका ब्लड ग्रुप ओ होता है उनमें कोई अनुकूल एंटीजेन नहीं होता लेकिन ए और बी दोनों के लिए एंटीबॉडीज होती हैं।
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इसी बात को ध्यान में रखते हुए यह बताया गया है कि जब किसी बंद या सीमित जगह पर कोविड-19 का कोई मरीज खांसी के जरिए संक्रमित बूंदों को फैलाता है तो इन बूंदों में वायरस के साथ ही रोगी के शरीर का ब्लड टाइप एंटीजेन भी मौजूद होता है। ऐसे में जब ए या बी ब्लड ग्रुप वाला कोई व्यक्ति ब्लड ग्रुप ओ वाले किसी व्यक्ति के पास खांसता या छींकता है, तो ब्लड ग्रुप ओ वाले व्यक्ति का इम्यून सिस्टम सतर्क हो जाता है और ए या बी एंटीजेन से लड़ने के लिए तैयार हो जाता है। अनुमान ये भी लगाया जा रहा है कि जब इम्यून सिस्टम को ए या बी प्रोटीन से लड़ने के लिए जागृत किया जाता है तो यह सार्स-सीओवी-2 वायरस के सामने अधिक प्रभावी चुनौती देने में सक्षम होता है।
फिलहाल तो ये सभी सिद्धांत सिर्फ अनुमान ही हैं। वास्तव में जेनेटिक कारणों (जिसमें खून का प्रकार भी शामिल है) की खोज करने के लिए बहुत अधिक रिसर्च करने की जरूरत है जो कोविड-19 के मरीजों में बेहद अलग परिणामों (कोई लक्षण न दिखने से लेकर सभी अंगों के काम करना बंद करने तक) को प्रभावित करते हैं।
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