अमेरिका की जानी-मानी जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने कोविड-19 की रोकथाम को लेकर एक नई और महत्वपूर्ण जानकारी दी है। इसके वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्होंने उन उस प्रोटीन का पता लगा लिया है, जो कोविड-19 के प्रभाव में शरीर के इम्यून सिस्टम को कोरोना वायरस के बजाय स्वस्थ कोशिकाओं पर ही हमला करने के लिए उकसाता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, अगर इस प्रोटीन को ब्लॉक करने में कामयाबी मिल जाए तो कोरोना वायरस के चलते शरीर और अन्य लोगों को इसके भयानक परिणामों से बचाया जा सकता है। यह महत्वपूर्ण जानकारी 'ब्लड' नामक मेडिकल पत्रिका में प्रकाशित हुई है।
खबर के मुताबिक, जॉन्स हॉपकिन्स के वैज्ञानिकों ने जिस प्रोटीन की खोज की है, उसका नाम फैक्टर डी है। उनकी मानें तो इस प्रोटीन को ब्लॉक करके न सिर्फ सार्स-सीओवी-2 के संक्रमण को फैलने और घातक होने से रोका जा सकता है, बल्कि इसकी वजह से शरीर में होने वाली इन्फ्लेमेटरी प्रतिक्रियाओं को भी रोकने में कामयाबी मिल सकती है। ये इन्फ्लेमेटरी रिएक्शन कोरोना मरीजों के लिए जानलेवा भी साबित होते रहे हैं।
यह बात अब मेडिकल जानकारों से लेकर आम लोग भी जानते हैं कि नया कोरोना वायरस कोशिकाओं में घुसने के लिए अपने स्पाइक प्रोटीन का इस्तेमाल करता है। इसके लिए वायरस कोशिका की सतह पर मौजूदा हेपरन सल्फेट को जकड़ लेता है। यह शुगर मॉलिक्यूलर फेफड़ों, रक्त वाहिकाओं और ज्यादातर अंगों की समतल मांसपेशी पर पाया जाता है।
हेपरन सल्फेट के अलावा जिस चर्चित सेल-सरफेस कॉम्पोनेंट के जरिये सार्स-सीओवी-2 वायरस कोशिकाओं में घुसता है, उसका नाम है एंजियोटेनसिन-कनवर्टिंग एंजाइम 2 यानी एसीई2 प्रोटीन रिसेप्टर। जॉन्स हॉपकिन्स के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में जाना है कि जब कोरोना वायरस स्पाइक प्रोटीन की मदद से खुद को हेपरन सल्फेट से बांधता है तो ऐसा करते हुए वह फैक्टर एच को कोशिकाओं शुगर मॉलिक्यूल के साथ जकड़ने नहीं देता। फैक्टर एच एक कॉम्प्लिमेंट कंट्रोल प्रोटीन है जो उन संकेतकों को नियंत्रित करने का काम करता है, जिनसे इन्फ्लेमेशन के पैदा होने और इम्यून सिस्टम के स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने का पता चलता है। इस प्रोटेक्शन के बिना फेफड़े, हृदय, किडनी और अन्य प्रकार के ऑर्गन उसी डिफेंस मकैनिज्म द्वारा बर्बाद कर दिए जाते हैं, जो असल में प्राकृतिक रूप से उनकी सुरक्षा के लिए बना था।
अध्ययन से जुड़े वरिष्ठ लेखक रॉबर्ट ब्रॉस्की कहते हैं, 'पिछले अध्ययन से हमें पता चला है कि हेपरन सल्फेट के साथ टाइअप करते हुए सार्स-सीओवी-2 बायोलॉजिकल रिएक्शन्स की एक पूरी श्रृंखला को एक्टिवेट कर देता है। हम इसे ऑल्टरनेटिव पाथवे ऑफ कॉम्प्लिमेंट या एपीसी कते हैं। इसके चलते अगर किसी स्वस्थ ऑर्गन का इम्यून सिस्टम गलत दिशा में निर्देशित या मिसडायरेक्ट हो जाए तो शरीर में इन्फ्लेमेशन हो सकती है और कोशिका नष्ट हो सकती है।' शोधकर्ताओं ने बताया कि एपीसी उन तीन चेन रिएक्शन प्रोसेस में से एक है, जिनमें 20 अलग-अलग प्रोटीनों का विखंडन और मिश्रण होता है। इन्हें कॉम्प्लिमेंट प्रोटीन कहते हैं। ये प्रोटीन तब सक्रिय होते हैं, जब शरीर में किसी बैक्टीरिया या वायरस का घुसपैठ होती है।
इन तमाम जानकारी को ध्यान में रखते हुए शोधकर्ताओं ने एक के बाद एक कई प्रयोग किए। इनमें सामान्य ह्यूमन ब्लड सिरम और सार्स-सीओवी-2 के स्पाइक प्रोटीन की सब-यूनिट्स का इस्तेमाल किया गया, यह जानने के लिए वायरस किस तरह एपीसी को एक्टिवेट करता है और इम्यून सिस्टम को हाइजैक कर सामान्य स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है। इस प्रयास के दौरान पता चला कि स्पाइक प्रोटीन की दो सब-यूनिट एस1 और एस2 हेपरन सल्फेट को बांधने का काम करती हैं। इससे फैक्टर एच का कॉम्प्लिमेंट रेग्युलेशन असमर्थ हो जाता है और इम्यून रेस्पॉन्स को मिसडायरेक्ट करने लगता है।
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वैज्ञानिकों ने बताया कि यहां फैक्टर डी की भूमिका अहम हो जाती है। उन्होंने कहा, 'हमने पाया है कि एक और कॉम्प्लिमेंट प्रोटीन फैक्टर डी को ब्लॉक करने से सार्स-सीओवी-2 द्वारा सक्रिय हुई विनाशकारी बायोलॉजिकल चेन रिएक्शन्स को रोका जा सकता है। प्रयोग में ऐसा देखने को मिला है, फैक्टर डी, फैक्टर एच के विपरीत काम करता है।'