भारत की बड़ी बायोटेक्नॉलजी कंपनी बायोकॉन ने कहा है कि वह कोविड-19 के मरीजों के उपचार के लिए आइटोलीजुमैब दवा को लॉन्च करेगी। कंपनी ने बताया कि इस दवा की एक शीशी की कीमत 8,000 रुपये होगी। गौरतलब है कि बीते हफ्ते ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने बायोकॉन को कोविड-19 के मरीजों को आइटोलीजुमैब देने की अनुमति दी थी। इसके अगले ही दिन कंपनी की चेयरमैन किरण मजूमदार शॉ ने बताया था कि कंट्रोल ट्रायल में दवा कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों को ठीक करने में कारगर साबित हुई है। इसके बाद कंपनी ने बताया कि डीसीजीआई की तरफ से उसे आइटोलीजुमैब को 25 मिलीग्राम/5 मिलीलीटर की मात्रा में बेचने की मंजूरी मिल गई है। गौरतलब है कि कोविड-19 के मध्यम और गंभीर मरीजों में साइटोकिन स्टॉर्म को रोकने के लिए इस दवा के आपातकालीन इस्तेमाल की स्वीकृति दी गई है।

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समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, आइटोलीजुमैब के इस्तेमाल के लिए ड्रग नियामक के सामने आवेदन देते हुए बायोकॉन ने बताया था कि आइटोलीजुमैब कोविड-19 के खिलाफ दुनिया की पहली नई बायोलॉजिक थेरेपी है। वहीं, सोमवार को हुई एक वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस में कंपनी की चेयरमैन किरण मजूमदार का कहना था, '(कोविड-19 की) वैक्सीन बनने तक हमें निश्चित रूप से जीवनरक्षक दवाओं की जरूरत है। हम समझते हैं कि इस समय दुनियाभर में इस बात पर ध्यान दिया जा रहा है कि इस महामारी में पहले से मौजूद दवाओं का कैसे इस्तेमाल करें या इलाज के लिए नई दवाएं विकसित करें।'

बायोकॉन प्रमुख ने आगे कहा, 'अगर हम इस साल के अंत या अगले साल की शुरुआत में वैक्सीन बना भी लेते हैं, तब भी इसकी कोई गारंटी नहीं है कि संक्रमण दोबारा नही फैलेगा। इसकी भी गारंटी नहीं है कि यह (वैक्सीन) अपेक्षित रूप से काम करेगी। इसलिए हमें पहले से तैयारी करने की जरूरत है।' किरण मजूमदार के मुताबिक, 'जब कोविड-19 शुरू हुई तो इससे हमें वास्तव में इसे (आइटोलीजुमैब) आजमाने की मजबूत वजह मिली, क्योंकि हमें विश्वास है कि विशेष प्रकार की कोशिशों से हमें इस बड़ी समस्या से निपटने में मदद मिल सकती है।' इसके साथ ही किरण मजूमदार ने कहा कि आइटोलीजुमैब दवा की एक शीशी की कीमत 7,950 रुपये है। चूंकि ज्यादा मरीजों को ठीक होने में चार शीशियों लगती हैं, इसलिए थेरेपी की कुल कीमत 32 हजार रुपये के आसपास होगी।

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सोरायसिस के इलाज के लिए बनी थी दवा
कोविड-19 के मरीजों की जान बचाने के लिए इस समय ऐसे कई ड्रग्स का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो मूल रूप से किसी और बीमारी के इलाज के लिए बनाए गए थे। आइटोलीजुमैब भी ऐसी ही एक दवा है। इसे त्वचा से जुड़ा एक विकार सोरायसिस के लिए बनाया गया था। इस बीमारी के प्रभाव में खाल पर लाल चकत्ते और परतदार चकत्ते दिखाई देते हैं। सोरायसिस कोई संक्रामक बीमारी नहीं है। यह समय के साथ और ज्यादा गंभीर रूप ले सकती है। बताया जाता है कि शरीर की रोग प्रतिरक्षा प्रणाली में किसी तरह की गड़बड़ी की वजह से सोरायसिस रोग होता है। इसके प्रभाव में शरीर की त्वचा चार से पांच दिनों में ही नई कोशिकाएं बनाने लगती है, जो कि असामान्य बात है। आमतौर पर हमारी त्वचा कोशिकाओं को बदलने और नई कोशिकाओं के निर्माण के लिए करीब 28 दिनों का समय लेती है। लेकिन सोरायसिस की वजह से यह समय चार से पांच दिन का हो जाता है। परिणामस्वरूप, शरीर में कोशिकाओं का जमना शुरू हो जाता है। इससे खाल पर लाल, सूखे और खुजली वाले पैच (दाग) नजर आने लगते हैं।

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इसी समस्या के निदान के लिए आइटोलीजुमैब का इस्तेमाल किया जाता है। यह दवा एक मोनोक्लोनल एंटीबॉडी है, जो सीडी6 नाम के ह्यूमन प्रोटीन के एक मॉड्यूल स्कैवेंजर रिसेप्टर सिस्टेन-रिच या एसआरसीए को बांधकर टी-सेल्स (इम्यून सिस्टम की सबसे महत्वपूर्ण कोशिका) की सक्रियता को नियंत्रित करने का काम करती है। इस कारण सूजन होने से पहले ही इसकी वजह बनने वाले साइटोकिन की संख्या कम हो जाती है। इसीलिए सोरायसिस के इलाज में आइटोलीजुमैब एक चर्चित ड्रग के रूप में जाना जाता है। हालांकि, अलग-अलग शोधों में इम्यून सिस्टम से जुड़े डिसऑर्डर्स में भी इस ड्रग के इस्तेमाल की संभावना नजर आई हैं। संभव है इसी कारण डीसीजीआई ने बीते हफ्ते ड्रग को कोरोना वायरस के मरीजों को दिए जाने की मंजूरी दी थी।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: बायोकॉन ने आइटोलीजुमैब दवा को बाजार में उतारने की घोषणा की, एक शीशी की कीमत लगभग 8,000 रुपये है

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