बिहार की राजधानी पटना स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टरों ने कोरोना वायरस के एयरसोल ट्रांसमिशन को रोकने के लिए एक डिवाइस तैयार करने का दावा किया है। इस डिवाइस को उस समय के लिए बनाया गया है, जब वेंटिलेटर पर लेटे कोविड-19 के मरीजों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता है। अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस डिवाइस को विशेष रूप से अस्पताल के डॉक्टरों, मेडिकल स्टाफ और एंबुलेंस चालकों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है। अखबार की मानें तो पब्लिशिंग कंपनी 'एल्सवियर' के जरिये इस डिवाइस के संबंध में एम्स-पटना के डॉक्टरों का शोध कार्य 'क्लिनिकल एनेस्थीसिया' पत्रिका में प्रकाशित भी हो चुका है।
खबर के मुताबिक, एम्स-पटना के निदेशक डॉ. पीके सिंह का कहना है कि नई डिवाइस को अब अस्पताल में इस्तेमाल किया जा रहा है। उनकी राय है कि अगर इस डिवाइस का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाए तो इसे उन बाकी अस्पतालों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जिन्हें कोविड-19 के इलाज और परीक्षण के कार्य में लगाया गया है।
वहीं, इस डिवाइस के शोध कार्य से जुड़ी टीम के सदस्य और एनेस्थीसिया विभाग के डॉक्टर अमरजीत कुमार ने अखबार से कहा है, 'सांस की समस्या वाले गंभीर मरीजों को वेंटिलेटर की जरूरत होती है। इन मरीजों को अक्सर अस्पताल में ही एक जगह से दूसरी जगह ले जाना होता है। इस दौरान मरीजों के सांस छोड़ने के चलते हवा में (वायरस के) कणों के रिलीज होने की संभावना होती है।' डॉ. अमरजीत ने आगे कहा, 'यह एक सस्ती डिवाइस है जिसे अस्पतालों में पहले से मौजूद उपकरणों की मदद से तैयार किया जा सकता है। हमने एक हफ्ते में ही कम से कम ऐसे पांच डिवाइस तैयार किए हैं और इस्तेमाल के बाद उन्हें डिस्पोज भी कर दिया।'
इस डिवाइस को तैयार करने में किन उपकरणों का इस्तेमाल हुआ, इसकी जानकारी देते हुए अमरजीत ने कहा, 'इस डिवाइस को बनाने में बेन सर्किट, गल्व्स, सक्शन ट्यूब और पानी से भरे एक सिंगल चेंबर का इस्तेमाल हुआ, जिसमें एक प्रतिशत सोडियम हाइपोक्लोराइट मिलाया गया था, जो सांस छोड़ने के दौरान निकलने वाले वायरस को खत्म करता है।'
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डॉ. अमरजीत के अलावा डिवाइस को बनाने वाली रिसर्ट टीम के एक और सदस्य डॉ. अभ्युदय कुमार ने बताया कि डॉक्टर कोविड-19 के मरीजों के इलाज के दौरान खुद के संक्रमित होने की संभावना से डरे हुए थे। इसी के चलते डिवाइस बनाने का फैसला किया गया। अखबार से बातचीत में उन्होंने कहा, 'हम अक्सर सुन रहे हैं कि अस्पतालों में स्वास्थ्यकर्मी संक्रमित हो रहे हैं। इसीलिए हमने बातचीत करने के बाद यह डिवाइस तैयार की। हमारी रिसर्च टीम में डॉ. चांदनी सिन्हा, डॉ. अजीत कुमार और डॉ. नीरज कुमार भी शामिल थे।'
डॉक्टरों की सुरक्षा दिशा में महत्वपूर्ण कदम
कोविड-19 की रोकथाम में लगे डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्यकर्मी भी कोरोना वायरस के संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, देश के सैकड़ों स्वास्थ्यकर्मी मरीजों के इलाज के दौरान कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं। बीती छह मई को प्रकाशित इस रिपोर्ट की मानें तो उस दिन तक देशभर में करीब 550 डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी कोविड-19 से ग्रस्त पाए गए थे।
ये हालात तब हैं जब डॉक्टर पर्सनल प्रोटेक्शन इक्वपमेंट यानी पीपीई पहन कर मरीजों का इलाज कर रहे हैं। ऐसे में नई तकनीक और इनोवेशन की मदद से उन्हें और ज्यादा सुरक्षा दिए जाने की जरूरत है। अगर एम्स-पटना द्वारा तैयार की गई डिवाइस ऐसा कर पाने में सफल रहती है तो इसे स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।
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