आयुष मंत्रालय ने कोविड-19 के इलाज के लिए योग गुरु बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड द्वारा निर्मित आयुर्वेदिक दवा 'कोरोनिल' के प्रचार पर रोक लगा दी है। मंत्रालय ने इस दवा को लेकर कंपनी से कुछ जानकारियां मांगी हैं और इनकी जांच पूरी होने तक कंपनी को दवा का प्रचार रोकने को कहा है। गौरतलब है कि बाबा रामदेव ने आज ही इस दवा को काफी जोरशोर के साथ लॉन्च किया था। मीडिया को संबोधित करते हुए उन्होंने अपनी कंपनी की दवा को लेकर कई बड़े दावे किए थे।
कंपनी और इसके सहयोगी शोधकर्ताओं द्वारा किए गए कथित परीक्षणों के आधार पर रामदेव ने बताया था कि कोरोना वायरस के मरीजों पर उनके दवा के इस्तेमाल के सौ प्रतिशत सकारात्मक परिणाम मिले हैं। उन्होंने कहा कि क्लिनिकल ट्रायल के दौरान कोविड-19 के जितने मरीजों को यह दवा दी गई, वे सभी ठीक हो गए। लेकिन इस संबंध में आयुष मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा है, '(इस दवा को लेकर किए गए) कथित वैज्ञानिक अध्ययन के आधार पर किए गए दावे से जुड़े तथ्यों और जानकारियों का मंत्रालय को ज्ञान नहीं है।'
बयान में आगे कहा गया है, 'संबंधित दवा को बनाने वाली कंपनी को बताया गया है कि आयुर्वेदिक दवाओं समेत ड्रग्स का इस तरह प्रचार करना ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (ऑब्जेक्शनेबल एडवर्टीजमेंट) एक्ट, 1954 और कोविड-19 को लेकर केंद्र सरकार द्वारा जारी किए दिशा-निर्देशों के तहत नियंत्रित किया जाता है।' मंत्रालय ने कहा है कि उसने कंपनी को दवा के दावों से जुड़ी जानकारी जल्दी से जल्दी उपलब्ध कराने को कहा है। इसमें पतंजलि को बताना होगा कि उसने किस कंपोजिशन के तहत दवा तैयार की, उसका ट्रायल कहां हुआ और शोध कार्य कहां किया गया।
इसके अलावा, पतंजलि को दवा के संबंध में सरकार द्वारा तय प्रोटोकॉल के पालन, सैंपल साइज और इंस्टीट्यूशनल एथिक्स कमेटी के क्लियरेंस से जुड़ी जानकारी भी देनी होगी। साथ ही, सीटीआरआई रजिस्ट्रेशन और शोध से जुड़े परिणामों के आंकड़े भी मुहैया कराने होंगे। इसके बाद बयान में मंत्रालय ने कहा कि इन सबकी जांच होने तक दवा के प्रचार पर रोक लगी रहेगी।
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आयुष मंत्रालय ने उत्तराखंड की लाइसेंसिंग अथॉरिटी से भी कहा है कि वह इस दवा को लाइसेंस और प्रॉडक्ट अप्रूवल देने से जुड़े दस्तावेजों की प्रतियां उपलब्ध कराए। बता दें कि दवा को उत्तराखंड के हरिद्वार स्थित पतंजलि रिसर्च सेंटर में तैयार किया गया है। आज दवा को लॉन्च करते हुए रामदेव ने कहा कि इस काम में जयपुर के एक निजी मेडिकल संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस ने भी योगदान दिया है।