कोविड-19 महामारी की वजह बने नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 ने अपनी कई विशेषताओं के कारण दुनियाभर के वैज्ञानिकों और मेडिकल विशेषज्ञों को हैरान किया है। इनमें से एक विशेषता यह है कि इस वायरस के बिना लक्षण वाले संक्रमित लोग भी इसे अन्य लोगों में ट्रांसमिट कर सकते हैं। इस विलक्षणता ने वायरस को नियंत्रित करने के प्रयासों के आगे कई समस्याएं पैदा की हैं। इस कारण कोविड-19 के मरीजों की पहचान करने और उनके आइसोलेशन को लेकर अलग तरह की चुनौतियां सामने आई हैं। हालांकि असिम्प्टोमैटिक ट्रांसमिशन के अधिकतर साक्ष्य इस ऑब्जर्वेशन पर आधारित हैं कि बिना लक्षण वाले मरीज भी दूसरों को बीमार कर सकते हैं। इस संबंध में अब एक नई स्टडी सामने आई है, जो कहती है कि बिना लक्षण वाले कोविड-19 संक्रमितों के शरीर में भी वायरस ज्यादा मात्रा में मौजूद रहता है।
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जानी-मानी मेडिकल पत्रिका जामा इंटरनल मेडिसिन में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिण कोरिया में हुए इस अध्ययन में इस बात के पुख्ता सबूत पाए गए हैं कि कोरोना वायरस के असिम्प्टोमैटिक मरीजों की नाक, गले और फेफड़ों में वायरस उतनी ही मात्रा में मौजूद होता है, जितना की लक्षण वाले मरीजों में। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि दोनों ही प्रकार के मरीजों में वायरस के मौजूदा रहने की अवधि भी एक समान ही है।
इस जानकारी के सामने आने के बाद शोधकर्ताओं ने कहा है कि इससे सिम्प्टोमैटिक (जिनमें बीमारी के लक्षण दिखते हैं) और असिम्प्टोमैटिक मरीजों को लेकर पैदा हुई उलझन भी दूर हो सकती है। नया अध्ययन उन पहले अनुसंधानों में से एक है, जिन्होंने इन दोनों प्रकार के मरीजों में स्पष्ट रूप से अंतर किया है। अध्ययन से जुड़े एक शोधकर्ता और मैनीटोबा यूनिवर्सिटी के विषाणु विज्ञानी जैसन किंड्रचक कहते हैं, 'जनवरी से ही यह बड़ा सवाल बना रहा है कि कौन लोग असिम्प्टोमिटक हैं और प्रीसिम्प्टोमैटिक। हमारे पास अभी तक ऐसा कोई सुराग नहीं था, जो बता सके कि बिना लक्षण वाले मरीज बीमारी फैलाने में किस तरह भूमिका निभाते हैं।'
रिपोर्ट के मुताबिक, अध्ययन के लिए कोरियाई वैज्ञानिकों ने छह मार्च से 26 मार्च के बीच 193 सिम्प्टोमैटिक और 110 असिम्प्टोमैटिक कोविड संक्रमितों के सैंपल लिए। ये सभी दक्षिण कोरिया के शियोनन प्रांत के एक कम्युनिटी ट्रीटमेंट सेंटर में आइसोलेट किए गए थे। जांच में सामने आया कि 89 असिम्प्टोमैटिक मरीजों में से बमुश्किल 30 प्रतिशत ही पूरी तरह स्वस्थ पाए गए। वहीं, ऐसे 21 संक्रमितों में बाद में जाकर लक्षण दिखाई दिए। ज्यादातर प्रतिभागी युवा थे, जिनकी औसत उम्र 25 वर्ष थी।
यहां उल्लेखनीय बात यह है कि अध्ययन में शामिल सभी प्रतिभागी आइसोलेटिड थे और उन्हें किसी और को संक्रमित करने का मौका नहीं मिला था। डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों ने उनके शरीर के तापमान और लक्षणों को लगातार ट्रैक किया था और उनके बलगम की भी जांच की गई थी। इससे यह संकेत मिला कि उनके फेफड़ों के साथ-साथ नाक और गले में भी वायरस मौजूद था। डॉ. किंड्रचक ने बताया, 'संक्रमण के बाद पूरे कोर्स के दौरान दोनों ही समूहों के प्रतिभागियों में एक ही मात्रा में वायरस मिला है।'