कोविड-19 के इलाज को लेकर हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वी (एचसीक्यू) दवा ने हाल में दुनियाभर में सुर्खियां बटोरी थीं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस एंटी-मलेरिया दवा के लिए काफी उत्सुकता दिखाते हुए इसे कोविड-19 की लड़ाई में 'गेम-चेंजर' तक बताया था। लेकिन अमेरिका से इसके इस्तेमाल से जुड़ी सकारात्मक रिपोर्टें नहीं आ रही हैं। वहां के चर्चित अखबार 'वॉशिंगट पोस्ट' ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि एचसीक्यू से कोविड-19 के इलाज की कोशिशों को कोई फायदा नहीं हुआ है, बल्कि जिन लोगों को यह दवा दी गई, उनके मरने की तादाद, इस दवा को नहीं लेने वाले मृतकों से ज्यादा है। अखबार ने अमेरिका में सेवानिवृत्त सैनिकों को स्वास्थ्य सुविधाएं देने वाली सरकारी एजेंसी वेटेरन्स अफेयर्स (वीए) और शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन के आधार पर बताया कि एचसीक्यू से लाभ तो नहीं मिला है, लेकिन बीमारी के उपचार से जुड़ी सुरक्षा और क्षमता पर कई सवाल जरूर खड़े कर दिए हैं।
(और पढ़ें - लॉकडाउन के चलते उत्तर भारत में वायु प्रदूषण 20 सालों में सबसे कम: नासा रिपोर्ट)
रिपोर्ट के मुताबिक, वीए और शोधकर्ताओं ने राष्ट्रीय स्तर पर 368 मरीजों का अध्ययन किया है। ये सभी पुरुष थे। इनमें से 97 मरीजों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दी गई थी, जबकि 113 मरीजों को यह दवा एक एंटीबायोटिक एजिथ्रोमाइसिन के साथ दी गई थी। वहीं, 158 मरीज ऐसे थे, जिन्हें एसचीक्यू नहीं दी गई। शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन मरीजों को एंटी-मलेरिया दवा दी गई, उनमें मृत्यु दर तीसरे समूह के मरीजों से काफी ज्यादा थी। यह भी देखने में आया कि वेंटिलेटर पर गए मरीजों में भी इस दवा का कोई खास फर्क नहीं दिखाई पड़ा।
शोधकर्ताओं को पता चला कि जिन मरीजों ने एचसीक्यू का सेवन किया था, उनमें से 27 प्रतिशत से अधिक की मौत हो गई, जबकि एजिथ्रोमाइसिन और एचसीक्यू का मिश्रित डोज लेने वाले मरीजों में 22 प्रतिशत मरीज नहीं बच पाए। वहीं, जिन मरीजों पर ये दोनों ही प्रकार के डोज बतौर उपचार नहीं आजमाए गए, उनमें मृत्यु दर 11.4 प्रतिशत रही। अखबार ने बताया कि ये आंकड़े अकादमिक अध्ययन करने वाले एक प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित हो चुके हैं।
हृदय के लिए हानिकारक हो सकती है एचसीक्यू
जानकार बताते हैं कि कोविड-19 के हर मरीज को एचसीक्यू देना उचित नहीं है। यह सही है कि कुछ मामलों में इस दवा को देने के बाद कोरोना वायरस के मरीजों की सेहत में सुधार देखा गया, लेकिन ऐसा इसी दवा की वजह से हुआ, इस बारे में पुख्ता सबूत उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन इसके साक्ष्य जरूर मौजूद हैं कि बिना सोचे-समझे हर मरीज को यह दवा देना घातक हो सकता है।
रिपोर्टें बताती हैं कि डोनाल्ड ट्रंप द्वारा काफी ज्यादा प्रचारित किए जाने के बाद एचसीक्यू पूरी दुनिया में कोरोना वायरस को रोकने वाले 'हथियार' के रूप में सामने आई, जबकि यह जानने की कोशिश अभी की जा रही है कि यह दवा इस वायरस को रोकने में कारगर है या नहीं। अमेरिका राष्ट्रपति के इतना जोर देने और फ्रांस में सामने आए एक शोध (जिसका सैंपल बहुत छोटा था) के आधार पर अमेरिकी ड्रग एजेंसी एफडीए ने एचसीक्यू के आपातकाल इस्तेमाल को मंजूरी दे दी थी।
लेकिन अब इसके नुकसान स्पष्ट रूप से सामने आने लगे हैं। मेडिकल विशेषज्ञों की मानें तो एचसीक्यू के प्रभाव में हृदय का रुक जाना इसके सबसे आम दुष्प्रभावों में से एक है। इसके चलते कई अमेरिकी हेल्थ एक्सपर्ट ने डॉक्टरों को राय दी है कि वे किसी क्लिनिकल ट्रायल के तहत ही इस दवा का उपयोग करें। वहीं, फ्रांस में ड्रग सुरक्षा संबंधी मामलों की राष्ट्रीय एजेंसी ने भी साफ निर्देष दिए हुए हैं कि केवल अस्पताल में भर्ती हुए मरीजों के लिए एचसीक्यू का इस्तेमाल किया जाए। हाल में इस एजेंसी ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि कैसे कोविड-19 से मारे गए 43 मरीजों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन या एजिथ्रोमाइसिन-एचसीक्यू के डोज के चलते हृदय संबंधी समस्याएं हुई थीं।
वहीं, ब्राजील में भी एक क्लिनिकल ट्रायल के दौरान क्लोरोक्वीन (एचसीक्यू के ही समान संरचना वाली दवा) के सेवन से मरीजों में हृदय संबंधी समस्याएं देखने को मिली थीं और कइयों की मौत भी हो गई थी। इसके बाद शोधकर्ताओं को ट्रायल को ही बंद करना पड़ा था। इसके अलावा न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने 84 मरीजों से जुड़े एक अध्ययन में पाया था कि एचसीक्यू की डोज देने के बाद उनमें अचानक होने वाली कार्डियक डेथ की संभावना बढ़ गई थी।
(और पढ़ें - क्या विश्व स्वास्थ्य संगठन के इस बयान के बाद नए कोरोना वायरस के अस्तित्व से जुड़ा विवाद खत्म होगा?)