वैश्विक लॉकडाउन, सोशल और फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करना, दिनभर में कई बार हाथ धोना, रेस्पिरेटरी हाइजीन का ध्यान रखना, घर में और आसपास मौजूद सतहों की सफाई और उन्हें कीटाणुमुक्त बनाना आदि। इस तरह के कई प्रयास लगातार करने के बावजूद भारत समेत दुनियाभर में कोविड-19 के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। 23 मई 2020 के आंकड़ों की मानें तो दुनियाभर में अब तक 53 लाख से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं लेकिन अच्छी बात ये है कि इसमें से 21 लाख से ज्यादा लोग ऐसे हैं जो इस बेहद संक्रामक बीमारी से रिकवर भी हो चुके हैं।
इतनी बड़ी तादाद में लोगों के बीमारी से उबरने का श्रेय जाता है डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के असाधारण प्रयासों को जो लगातार कोविड-19 पीड़ित मरीजों के इलाज में जुटे हैं। लेकिन एक सवाल जो आपके मन में भी होगा कि क्या कोविड-19 बीमारी से उबरने के बाद मरीज का जीवन पहले की तरह सामान्य हो पाता है?
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बीमारी से उबरने में लगने वाला समय
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने बताया है कि अगर किसी व्यक्ति को कोविड-19 का माइल्ड यानी हल्का इंफेक्शन होता है तो उसे इस बीमारी से उबरने में 2 सप्ताह का समय लगता है और आगे उसे किसी तरह की कोई जटिलता नहीं होती। हालांकि कोविड-19 के गंभीर और नाजुक मामलों में मरीज को ठीक होने में 3 से 6 सप्ताह का समय लग सकता है। अस्पताल में भर्ती कोविड-19 के मरीज में जब बीमारी के लक्षण दिखना बंद हो जाते हैं और लगातार 2 पीसीआर टेस्ट में मरीज का वायरल लोड नेगेटिव आता है तो उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया जाता है।
मरीज का बीमारी से उबरने का सफर
WHO ने कोविड-19 के मरीज के बीमारी से उबरने का जो अनुमानित समय बताया है कि वह अस्पताल में संक्रमित व्यक्ति को कोविड-19 के लक्षणों से उबरने में लगने वाला समय है। हालांकि हकीकत ये है कि मरीज को बीमारी से पूरी तरह से ठीक होने में इससे कहीं ज्यादा समय लगता है। जिन लोगों को बीमारी का हल्का संक्रमण (माइल्ड इंफेक्शन) होता है वे समय के साथ बेहतर होते जाते हैं और हो सकता है कि उन्हें भविष्य में सेहत से जुड़ी किसी तरह की कोई समस्या न हो। वहीं, दूसरी तरफ जिन लोगों को कोविड-19 का गंभीर संक्रमण होता है और जिन्हें गंभीर जटिलताओं का सामना करना पड़ता है जैसे- सांस लेने में दिक्कत महसूस होना या बेहोशी आदि उनके लिए रिकवरी निश्चित तौर पर मुश्किल होती है।
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कोविड-19 के मरीज जिन्हें गंभीर जटिलताएं हो जाती हैं उन्हें आईसीयू में भर्ती कराना पड़ता है और सांस लेने के लिए वेंटिलेटर के सपोर्ट की भी जरूरत होती है। इन सबका अंततः मरीज के शारीरिक और मानसिक सेहत पर भी असर साफ नजर आता है। कई मामलों में तो वेंटिलेटर सपोर्ट से हटने के बाद भी मरीज को सांस लेने में मुश्किल होती है और उन्हें इसके लिए मदद की जरूरत होती है। अस्पताल से घर आने के बाद भी घर पर मरीज को लगातार मास्क या कंटीन्यूअस पॉजिटिव एयरवे प्रेशर वेंटिलेटर (Cpap) की जरूरत होती है जिसकी मदद से मरीज को जरूरी ऑक्सीजन सपोर्ट मिलता रहता है।
वैसे लोग जिन्हें आईसीयू में भर्ती कराया गया था उन्हें अस्पताल से घर आने के बाद भी बैठने, खड़े होने और बिस्तर से अपना हाथ तक उठाने में दूसरों की मदद की जरूरत पड़ती है। जो लोग लंबे समय तक आईसीयू में वेंटिलेटर सपोर्ट पर रहते हैं उन्हें रिकवर होने के बाद दोबारा से चलने-फिरने, सांस लेने और यहां तक की बोलने और निगलने के लिए भी फिजिकल थेरेपी की जरूरत पड़ती है। बीमारी और इसके इलाज से जुड़ी मानसिक क्षति का सामना करने के लिए कई बार मरीज को साइकोथेरेपी की भी जरूरत होती है।
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बीमारी से उबरने के बाद मरीज का जीवन
वैसे मरीज जो पहले कोविड-19 से संक्रमित हुए थे लेकिन अब बीमारी के लक्षणों से उबर चुके हैं उनमें ऊर्जा की कमी, सांस फूलना, भूख न लगना जैसी दिक्कतें देखने को मिलती हैं। कोरोना वायरस की वजह से फेफड़ों और शरीर के दूसरे अंगों को जो नुकसान पहुंचता है उसके कारण शरीर को फिर से पहले की तरह रिकवर होने में काफी समय लगता है। इस समय तक बेहद जरूरी है कि व्यक्ति अपनी इम्यूनिटी लेवल यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर ध्यान दे और दूसरों से दूरी बनाकर रखे क्योंकि संक्रामक बीमारी के दोबारा वापस आने की भी आशंका रहती है।
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