अमेरिका की जानी-मानी बायोटेक्नोलॉजी कंपनी रीजेनेरॉन ने कोविड-19 के इलाज के लिए एक एंटीबॉडी तैयार किया है, जिसे लेकर कहा जा रहा है कि यह कोरोना वायरस के खिलाफ प्रभावी हो सकता है। इस मोनोक्लोनल एंटीबॉडी का नाम 'आरईजीएन-सीओवी2' है। रीजेनेरॉन का दावा है कि कोरोना वायरस के नॉन-हॉस्पिटलाइज्ड मरीजों में संक्रमण कम करने में यह एंटीबॉडी कामयाब हुआ है। मंगलवार को इस बारे में एक प्रेस रिलीज जारी करते हुए कंपनी ने कहा कि इस ट्रीटमेंट से कोविड-19 के मरीजों की हालत बेहतर करने में मदद मिल सकती है। हालांकि मेडिकल एक्सपर्ट ने कहा है कि वे एंटीबॉडी की क्षमता के बारे में कोई भी दावा करने से पहले इसके परीक्षणों से जुड़े और आंकड़ों के आने का इंतजार करेंगे। वहीं, कंपनी ने कहा है कि वह बाद में डेटा पब्लिश करेगी।

स्टेट न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, आरईजीएन-सीओवी2 को लेकर एक मेडिकल एक्सपर्ट और स्क्रिप्स रिसर्च ट्रांसलेशनल इंस्टीट्यूट के निदेशक एरिक टोपल ने कहा है कि कोविड-1 के इलाज के संबंध में नए एंटीबॉडी के परिणामों में कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन उनका तर्क है कि मौजूदा डेटा शीर्ष अमेरिकी ड्रग एजेंसी एफडीए का अप्रूवल लेने के लिए काफी नहीं है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि एंटीबॉडी को लेकर वैज्ञानिकों के प्रयास 'निश्चित रूप से' सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

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खबर के मुताबिक, आरईजीएन-सीओवी2 मोनोक्लोनल एंटीबॉडी का ट्रायल डेटा बताता है कि इस रोग प्रतिरोधक से कोरोना मरीजों पर काफी ज्यादा प्रभाव पड़ा। डेटा के हवाले से आई रिपोर्टों में बताया गया है कि रीजेनेरॉन द्वारा विकसित एंटीबॉडी के छोटे डोज से भी मरीजों की हालत तेजी से सुधरती दिखी है और बड़े डोज से उल्लेखनीय सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुए हैं। इससे पहले अमेरिका की ही एक अन्य दवा कंपनी एली लिली ने भी अपने एक मोनोक्लोनल एंटीबॉडी की मदद से कोविड-19 के मरीजों के अस्पताल में भर्ती होने के खतरे को कम करने का दावा किया था। रीजेनेरॉन का मोनोक्लोनल एंटीबॉडी भी इसी तरह का एक प्रयास है।

मेडिकल जानकारों के मुताबिक, मोनोक्लोनल एंटीबॉडी रोगाणुओं के खिलाफ इम्यून सिस्टम द्वारा पैदा किए गए रोग प्रतिरोधकों के सिंथैटिक वर्जन होते हैं। कोविड-19 महामारी की शुरुआत से कई मेडिकल विशेषज्ञ इलाज के इस तरीके पर जोर देते रहे हैं। इन जानकारों को यकीन है कि कोरोना संक्रमण के खिलाफ ये कृत्रिम एंटीबॉडी कारगर साबित हो सकते हैं। ज्यादातर शोधकर्ता इस बात से सहमत होते दिखते हैं। लेकिन समस्या यह है कि मोनोक्लोनल एंटीबॉडी का निर्माण एक जटिल और खर्चीली प्रक्रिया है। साथ ही, इस तकनीक को ऐसे किसी स्वास्थ्य संकट के खिलाफ इस्तेमाल करना कठिन है, जिसमें बीमारी के सैकड़ों या हजारों में नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों में ट्रांसमिट होने की संभावना हो। 

इसके अलावा कई तकनीकी कारण हैं, जो मोनोक्लोनल एंटीबॉडी आधारित ट्रीटमेंट के इंप्लिमेंटेशन को मुश्किल बनाते हैं। इनमें एंटीबॉडी का बड़े स्तर पर निर्माण करने के अलावा, सबसे उत्तम या सक्षम एंटीबॉडी डोनर की तलाश करना और उसका रखरखाव जैसे कारण शामिल हैं। हालांकि आरईजीएन-सीओवी2 के व्यापक उत्पादन के लिए रीजेनेरॉन ने स्विटजरलैंड स्थित बड़ी दवा कंपनी रॉश से समझौता किया है।

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उधर, कंपनी के मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी जॉर्ज यानकोपलस ने कहा है, 'हम शुरुआती डेटा में निकले परिणामों से उत्साहित हैं, साथ ही सुरक्षा संबंधी जानकारी से भी खुश हैं। हमने हमारे परिणामों के संबंध में नियामक प्राधिकरणों (एफडीए और सीडीसी) से बातचीत शुरू कर दी है और ट्रायल को जारी रखा है।' जॉर्ज यानकोपलस ने आरईजीएन-सीओवी2 मोनोक्लोनल बॉडी को लेकर जिस डेटा का जिक्र किया है, वह कोरोना वायरस के ऐसे 275 मरीजों से संबंधित है, जिन्हें कंपनी ने अपने ट्रायल में शामिल किया था। ये सभी लोग कोविड-19 टेस्ट में पॉजिटिव आए थे, लेकिन अस्पताल में भर्ती नहीं हुए थे। ट्रायल के तहत कुछ मरीजों को आठ ग्राम आरईजीएन-सीओवी2 दिया गया था तो परिणामों की तुलना के लिए कुछ प्रतिभागी संक्रमितों को प्लसीबो ड्रग दिया गया। रिपोर्टों के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने नसों के जरिए प्रतिभागियों को मोनोक्लोनल एंटीबॉडी दिए थे। 

स्टेट न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, सात दिन के बाद की गई जांच में पता चला कि जिन मरीजों को मोनोक्लोनल एंटीबॉडी दिए गए थे, उनमें वायरल लेवल प्लसीबो ड्रग वाले समूह की अपेक्षा (0.60 लॉग10) कम हुआ था। ट्रायल कर रहे वैज्ञानिकों ने इस परिणाम को उल्लेखनीय बताया है। उन्होंने कहा है कि एंटीबॉडी को लो डोज में देने पर अपेक्षित परिणाम नहीं मिले थे, लेकिन हाई डोज में उन्हें काफी अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं। परीक्षण से जुड़े अध्ययन के मुताबिक, आरईजीएन-सीओवी2 से उन मरीजों की हालत तो सुधरी ही, जिनमें कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी पैदा नहीं हुए थे, साथ ही उन मरीजों में भी सुधार देखा गया, जिनके शरीर में संक्रमण के चलते वायरस की मात्रा काफी ज्यादा थी।

शुरुआती ट्रायल से सकारात्मक परिणाम मिलने के बाद रीजेनेरॉन के वैज्ञानिक अब दूसरे प्रयास में एंटीबॉडी को 1,300 कोविड मरीजों पर आजमाने की योजना बना रहे हैं। इसके लिए कंपनी ने प्रतिभागियों का नामांकन शुरू कर दिया है। इस प्रक्रिया के तहत ट्रायल के लिए उन संक्रमितों का चयन किया जाएगा, जिनके ऊपरी श्वसन मार्ग में वायरस की मात्रा ज्यादा है। इसके अलावा, यूनाइटेड किंगडम के चर्चित 'रिकवरी' ट्रायल में भी रीजेनेरॉन द्वारा निर्मित मोनोक्लोनल एंटीबॉडी को उन कोरोना मरीजों पर आजमाया जा रहा है, जो अस्पताल में भर्ती हुए हैं।

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: अब रीजेनेरॉन ने कोरोना वायरस के खिलाफ सक्षम मोनोक्लोनल एंटीबॉडी बनाने का दावा किया है

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