विश्व सीओपीडी दिवस (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) हर साल नवंबर के तीसरे बुधवार को मनाया जाता है। ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव लंग डिजीज के सहयोग से दुनियाभर में हेल्थ केयर प्रोफेशनल और सीओपीडी रोगी समूह इस दिवस को मनाते हैं। इसका लक्ष्य सीओपीडी पीड़ित लोगों की देखभाल करना और इसके प्रति जागरुक करना है। पहला सीओपीडी दिवस साल 2002 में आयोजित किया गया था।

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क्या है सीओपीडी ?
डब्ल्यूएचओ यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज यानी सीओपीसी फेफड़ों में होने वाली एक बीमारी है, जिसके चलते फेफड़ों में हवा का संचार कम हो जाता है। सीओपीडी के लक्षण धीरे-धीरे बढ़ते जाते हैं और व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है।

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वहीं नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ यानी एनआईएच की रिपोर्ट के मुताबिक सीओपीडी का एक प्रमुख कारण सिगरेट या धूम्रपान है। जो लोग सीओपीडी से ग्रस्त हैं, उनमें से अधिकांश लोग या तो धूम्रपान करते हैं या पूर्व में करते थे। हालांकि, सीओपीडी से ग्रस्त 25 प्रतिशत लोग ऐसे भी जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया। धूम्रपान के अलावा इन कुछ कारणों से भी सीओपीडी हो सकता है-

  • वायु प्रदूषण
  • रासायनिक धुआं
  • धूल या मिट्टी के कण

इसके अलावा एक दुर्लभ आनुवांशिक स्थिति यानी अल्फा -1 एंटी ट्रायप्सिन (एएटी) की कमी भी इस बीमारी का कारण बन सकती है।

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कितना जानलेवा है सीओपीडी ?
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ की एक रिसर्च के मुताबिक सीओपीडी से दुनियाभर में लगभग 6.4 करोड़ लोग पीड़ित हैं। रिपोर्ट बताती है कि 2005 में सीओपीडी से 30 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई थी। इतना ही नहीं, यही हालात रहे तो साल 2030 तक सीओपीडी दुनियाभर में मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण बन जाएगा।

आप भी सीओपीडी की जकड़ में तो नहीं?
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट बताती है कि पहले सीओपीडी पुरुषों में अधिक आम था, लेकिन विकसित देशों में महिलाओं के बीच तंबाकू और धूम्रपान का चलन बढ़ा है, जिससे महिलाओं में भी इस बीमारी ने अपने पैर पसारना शुरू किया। इसके अलावा कुछ गरीब देशों में महिलाएं में घर के अंदर होने वाले वायु प्रदूषण (जैसे- खाना पकाने और हीटिंग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ठोस ईंधन) के संपर्क में आने से भी सीओपीडी का खतरा होता है। इसलिए अब ये बीमारी पुरुषों और महिलाओं को लगभग समान रूप से प्रभावित करती है। यही वजह है कि सीपीओडी से होने वाली 90 प्रतिशत से अधिक मौतें विकासशील और गरीब देशों में होती हैं। जहां सीपीओडी के रोकथाम और उपचार की व्यवस्था कम है। हालांकि, इसके अलावा भी इसके कई कारण हो सकते हैं। जैसे-

  • व्यवसायिक गतिविधियों के चलते लंबे समय तक धूल और रासायनिक धुएं के संपर्क में रहना। क्योंकि, रासायनिक धुएं और धूल से फेफड़ों में जलन और सूजन हो सकती है।
  • अगर परिवार में पहले से प्रोटीन अल्फा-1 एंटी-ट्रायप्सिन का स्तर कम रहा है तो यह विकार सीओपीडी के जोखिम को बढ़ाता है।
  • सीओपीडी धीरे-धीरे कई सालों तक बढ़ता है, इसलिए आमतौर पर सीओपीडी के लक्षण 35 से 40 वर्ष की उम्र में दिखाई देते हैं।

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सीओपीडी से क्या परेशानी हो सकती है ?

सीपीओडी से बचाव कैसे ?
myUpchar से जुड़ी डॉक्टर अर्चना निरूला के मुताबिक सीपीओडी- एम्फिसीमा, क्रोनिक ब्रोंकाइटिस और अस्थमा इन प्रमुख तीन बीमारियों का समूह है। यह बीमारी सांस में कमी की परेशानी को बढ़ाती है। जिसके लिए कुछ बचाव करने जरूरी हैं। जैसे

  • धूल से बचाव करें
  • प्रदूषण से बचें
  • वैक्सीन लगवाएं (फ्लू या निमोनिया से बचने के लिए)

कैसे होगा इलाज ?
चूंकि, सीपीओडी तीन तरह की बीमारियों का एक समूह है। इसलिए एम्फिसीमा, क्रोनिक ब्रोंकाइटिस और अस्थमा होने पर अलग-अलग इलाज किया जाता है। जिसमें मरीज को ऑक्सीजन की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। क्योंकि, पीड़ित को सांस लेने में ज्यादा तकलीफ होती है।

  • सीओपीडी वाले अधिकांश लोगों के लिए, शुरुआत में  ब्रोंकोडायलेटर इनहेलर (एक प्रकार की दवाई जिसे सूंघा जाता है) का पहला उपचार दिया जाता है।
  • ब्रोंकोडायलेटर की दवाएं लेने से मरीज को सांस की परेशानी में फायदा मिलता है।

रिपोर्ट के बाद समझा जा सकता है कि सीओपीडी कैसे विश्वभर में लोगों को बीमार बना रहा है। इसका प्रमुख कारण हवा का खराब होना है। यही वजह है कि प्रदूषित हवा में सांस लेने से अधिकतर लोग सीओपीडी का शिकार होते हैं। इतना ही नहीं धूम्रपान की लत भी अधिकांश लोगों को सीओपीडी की जद में धकेल रही है। इसलिए हर साल नवबंर का तीसरा बुधवार, लोगों में जागरुकता लाने के लिए विश्व सीओपीडी दिवस के रूप में मनाया है।

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