आयुर्वेद में कब्‍ज को विबंध कहा जाता है। कब्‍ज में मल निष्‍कासन की क्रिया अनियमित हो जाती है और इसमें मल सख्‍त और सूख जाता है जिसके कारण मल त्‍याग करने में दिक्‍कत होती है। वात दोष में असंतुलन के कारण ही कब्‍ज होती है एवं इस वजह से आंतों में अमा (विषाक्‍त पदार्थों) और पुरिष (मल) जमने लगता है। कुछ मामलों में कफ और पित्त दोष के कारण भी कब्‍ज की समस्‍या हो सकती है।

(और पढ़ें – वात दोष के लक्षण)

शरीर से अमा और पुरिष के जमाव को बाहर निकालने एवं कब्‍ज से राहत पाने के लिए आयुर्वेद में कई चिकित्‍साओं का वर्णन किया गया है। कब्‍ज की आयुर्वेदिक चिकित्‍साओं में स्‍नेहन (शरीर पर तेल या घी लगाकर विषाक्‍त निकालना), स्‍वेदन (पसीना निकालने की विधि), विरेचन (शुद्धिकरण) और बस्‍ती (एनिमा) आदि शामिल हैं।

कब्‍ज को नियंत्रित करने के लिए आयुर्वेद में हरीतकी (हरड़), विभीतकी, एरंड (अरंडी), दशमूल क्‍वाथ, त्रिफला चूर्ण, हरीतकी खंड, वैश्‍वानर चूर्ण, हिंगु त्रिगुणा तेल, अभयारिष्‍ट और इच्‍छा भेदी रस आदि जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता है।

(और पढ़ें - नवजात शिशु के कब्ज का इलाज)

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से कब्ज - Ayurveda ke anusar kabj
  2. कब्ज का आयुर्वेदिक इलाज या उपचार - Kabj ka ayurvedic upchar
  3. कब्ज की आयुर्वेदिक दवा, औषधि और जड़ी बूटी - Kabj ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार कब्ज होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar kabj me kya kare kya na kare
  5. कब्ज में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Constipation ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. कब्ज की आयुर्वेदिक दवा के नुकसान - Constipation ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. कब्ज की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Kabj ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
कब्ज की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

तीनों दोषों में से किसी एक दोष के असंतुलन के कारण शरीर में अमा या पुरिष जमने लगता है और इसकी वजह से कब्‍ज की समस्‍या हो जाती है। हालांकि, वात के असंतुलन के कारण कब्‍ज होना एक आम समस्‍या है। ये कफ और पित्त दोष के असंतुलन के कारण भी हो सकती है।

अनुचित आहार, अपर्याप्‍त मात्रा में तरल पदार्थों का सेवन, व्‍यायाम की कमी, मल त्‍याग करने जैसी प्राकृतिक इच्‍छाओं को दबाने, दिनचर्या में अचानक से बदलाव, अधिक यात्रा, फिशर (गुदा या गुदा द्वार में कट या दरार) और बवासीर, अत्‍यधिक रेचक (जुलाब) चीजों का सेवन, नसों के क्षतिग्रस्‍त होने और बड़ी आंत एवं मलद्वार से संबंधित कोई समस्‍या होने पर दोष में असंतुलन पैदा होने लगता है। 

(और पढ़ें – व्‍यायाम करने का सही समय)

अमा के जमने पर कब्‍ज के निम्‍न लक्षण देखे गए हैं:

पुरिष के जमने पर कब्‍ज हो तो निम्‍न लक्षण सामने आते हैं:

आयुर्वेद में कब्‍ज की चिकित्‍सा निर्धारित करने के लिए पहले इस बात की जांच की जाती है कि व्‍यक्‍ति में इस समस्‍या का कारण क्‍या है लेकिन कब्‍ज को नियंत्रित करने और रोकने में आहार और जीवनशैली में परिवर्तन महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

(और पढ़ें - डिलीवरी के बाद कब्ज का इलाज)

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  • स्‍नेहन
    • स्‍नेहन में जड़ी-बूटियों के गुणों से युक्‍त तेल से शरीर की मालिश की जाती है। व्‍यक्‍ति को किस दोष के असंतुलन के कारण कब्‍ज की समस्‍या हो रही है, इसी के आधार पर जड़ी-बूटियों का चयन किया जाता है। (और पढ़ें – मालिश कैसे करें)
    • दोष के आधार पर ही ये तय किया जाता है कि कितने दबाव के साथ व्‍यक्‍ति की मालिश करनी है। वात प्रकृति वाले व्‍यक्‍ति की हलकी और नरम मालिश करनी चाहिए। वहीं पित्त प्रकृति वाले व्‍यक्‍ति की सामान्‍य मालिश की जाती है। अगर कोई व्‍यक्‍ति कफ प्रकृति का है तो उसे गहरे ऊतकों तक मालिश दी जाती है।
    • स्‍नेहन शरीर से अमा को साफ करने में मदद करती है और इस तरह कब्‍ज को नियंत्रित करने में ये मददगार साबित होती है। (और पढ़ें - कब्ज के लिए जूस)
  • स्‍वेदन
    • स्‍वेदन में पसीना निकालने के लिए कई प्रक्रियाओं का प्रयोग किया जाता है। ये विषाक्‍त पदार्थों को उनकी जगह से हटाती है और उन्‍हें तरल में परिवर्तित कर देती है। इसके अलावा ये परिसंचरण चैनल्‍स (पूरे शरीर में बहने वाली ऊर्जा के प्रवाह के 12 मुख्य माध्यम या चैनल हैं, इस जीवन ऊर्जा को चीन के पांरपरिक ज्ञान में “की” (Qi) और “ची” (Chi or Chee) कहा जाता है) को भी चौड़ा करती है।
    • इस चिकित्‍सा द्वारा अमा को विभिन्न ऊतकों से वापस जठरांत्र (गैस्‍ट्रोइंटेस्‍टाइनल) मार्ग में प्रवाहित किया जाता है एवं यहां से अमा को शरीर से बाहर निकालना आसान होता है।
    • पसीना निकालने के लिए विभिन्न प्रक्रियाओं का इस्‍तेमाल किया जाता है जिनमें तप (सिकाई), उपनाह, ऊष्‍मा और धारा शामिल हैं। तप में गर्म कपड़े, धातु की वस्‍तु या गर्म हाथों को शरीर पर रखा जाता है, उपनाह में विभिन्‍न जड़ी-बूटियों या उनके मिश्रण से युक्‍त गर्म पुल्टिस का प्रयोग किया जाता है, ऊष्‍मा में गर्म भाप दी जाती है और धारा में पूरे शरीर पर औषधीय गर्म तरल को डाला जाता है। (और पढ़ें – भाप लेने के फायदे)
  • विरेचन
    • ये एक सरल पंचकर्म (पंच क्रिया) तकनीक है जिसमें विभिन्‍न जड़ी-बूटियों का इस्‍तेमाल कर मल त्‍याग के जरिए शरीर की सफाई की जाती है।
    • विरेचन के लिए सामान्‍य तौर पर जिन जड़ी-बूटियों का इस्‍तेमाल किया जाता है उनमें एलोवेरा, रूबर्ब और सेन्‍ना शामिल हैं। हालांकि, व्‍यक्‍ति की चिकित्‍सकीय स्थिति के आधार पर अन्‍य जड़ी-बूटियों का इस्‍तेमाल भी किया जा सकता है।
    • विरेचन पित्ताशय, यकृत और छोटी आंत से अतिरिक्‍त पित्त को निकालने में मदद करता है। इसके अलावा ये अनेक कफ रोगों में भी उपयोगी है लेकिन वात रोगों के इलाज में इसके प्रयोग की सलाह नहीं दी जाती है।
    • ये अमा को बाहर निकालने और असंतुलित हुए दोष को संतुलित कर कब्‍ज से राहत दिलाने में असरकारी है। (और पढ़ें - कफ निकालने के उपाय)
  • बस्‍ती
    • ये एक आयुर्वेदिक एनिमा चिकित्‍सा है जिसका प्रमुख तौर पर प्रयोग वात के असंतुलित होने पर किया जाता है।
    • एलोपैथी एनिमा सिर्फ मलद्वार को साफ करते हैं और बड़ी आंत में 8 से 10 ईंच तक ही पहुंच पाते हैं। हालांकि, बस्‍ती पूरी बड़ी आंत, मलद्वार और गुदा पर कार्य करती है और ना सिर्फ मल को साफ करती है बल्कि अमा को बाहर निकालती है एवं कब्‍ज का इलाज करती है।
    • बस्‍ती क्रिया कब्‍ज के अलावा साइटिका, गठिया, कमर के निचले हिस्‍से में दर्द, मानसिक विकार जैसे कि मिर्गी और अल्‍जाइमर रोग को नियंत्रित करने में भी इस्‍तेमाल की जाती है। (और पढ़ें - मानसिक रोग का इलाज)

कब्‍ज के लिए आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां

  • हरीतकी
    • हरीतकी तंत्रिका, पाचन, श्‍वसन, उत्‍सर्जन और मादा जनन तंत्र पर कार्य करती है। इसमें ऊर्जादायक, रेचक (मल निष्‍कासन की क्रिया को नियंत्रित करने वाली), वायुनाशी (कफ निकालने वाला), कृमिनाशक और संकुचक (शरीर के ऊतकों को संकुचित करने वाला) गुण पाए जाते हैं।
    • ये खांसी, दमा, पेट का आकार बढ़ना, त्‍वचा पर खुजली, एडिमा, अपच और कब्‍ज जैसे कई रोगों को नियंत्रित करने में मदद करती है। (और पढ़ें - खुजली से छुटकारा पाने के उपाय)
    • ये काढ़े, पेस्‍ट, गरारे और पाउडर के रूप में उपलब्‍ध है। (और पढ़ें - काढ़ा बनाने का तरीका)
  • विभीतकी
    • विभीतकी पाचन तंत्र, तंत्रिका, श्‍वसन और उत्‍सर्जन प्रणाली पर कार्य करती है और इसमें कृमिनाशक, रोगाणुरोधक, रेचक, ऊर्जादायक और संकुचक (शरीर के ऊतकों को संकुचित करने वाला) गुण होते हैं। (और पढ़ें - एनर्जी बढ़ाने का उपाय)
    • ये असंतुलित हुए दोष को ठीक करती है और शोधन (सफाई) टॉनिक के रूप में कार्य करती है। विभीतकी शरीर से अमा को बाहर निकालने में मदद करती है। इस तरह विभीतकी कब्‍ज को नियंत्रित करने में असरकारी होती है।
    • हल्‍दी के साथ विभीतकी का इस्‍तेमाल करने पर एलर्जी को खत्‍म करने में मदद मिलती है। इस तरह ये त्‍वचा संबंधित रोगों और दमा की बामारी को नियंत्रित करने में प्रभावी होती है। ये खासतौर पर गर्भावस्‍था के दौरान उल्‍टी को रोकती है और सूजन को भी कम करने के लिए इसका इस्‍तेमाल किया जाता है। (और पढ़ें - उल्‍टी रोकने के घरेलू उपाय)
  • एरंड या अरंडी
    • एरंड को अरंडी भी कहा जाता है। विभिन्‍न रुमेटिक रोगों को नियंत्रित करने के लिए अरंडी के बीज के तेल का प्रयोग किया जाता है। अपरिष्कृत अरंडी के तेल की तुलना में परिष्‍कृत अरंडी का तेल कम प्रभावी है। 
    • ये कई विकारों जैसे कि पेट दर्द, गठिया, श्वसनीशोथ (ब्रोंकाइटिस), पथरी, दमा और कब्‍ज आदि को नियंत्रित करने में मददगार है। (और पढ़ें - दमा में क्या खाना चाहिए)
    • कब्‍ज के लिए अरंडी का तेल सबसे लोकप्रिय और प्रभावी औषधि है। मल को निकालने के लिए एनिमा के तौर पर इसका उपयोग किया जाता है। (और पढ़ें - पथरी में क्या खाएं)

कब्‍ज के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • दशमूल क्‍वाथ
    • दशमूल क्‍वाथ को दस जड़ी-बूटियों की जड़ से तैयार किया गया है जिनमें श्‍योनाक, बिल्‍व (बेल), गंभारी, पृश्निपर्णी (पिठवन), बृहती (बड़ी कटेरी), कंटकारी (छोटी कटेरी), अग्‍निमंथ और गोक्षुर (गोखरू) शामिल हैं।
    • यह बढ़े हुए वात को खत्‍म करने के लिए इस्‍तेमाल होने वाली सबसे सामान्‍य औषधि है। इसलिए कब्‍ज की समस्‍या में भी सुधार करने के लिए इसका इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • इस औषधि से वात के कारण हुए दमा, भगंदर और खांसी का भी इलाज किया जाता है। इसके अलावा ये अस्थिसंधिशोथ (ऑस्टियोआर्थराइटिस) और संधिशोथ (रुमेटाइड आर्थराइटिस) जैसे हड्डियों के रोग के इलाज में भी प्रभावी है। (और पढ़ें - हड्डियों में दर्द का इलाज)
  • त्रिफला चूर्ण
    • त्रिफला चूर्ण एक प्रसिद्ध औषधि है। इस आयुर्वेदिक दवा में तीन फलों जैसे कि आमलकी (आंवला), विभीतकी और हरीतकी का चूर्ण मौजूद है।
    • ये प्रमुख तौर पर जठरांत्र मार्ग पर असर करती है और इसमें ऊर्जादायक, रेचक, सूजनरोधी, बढ़ती उम्र को रोकने, इम्‍यूनोमॉड्यूलेट्री (इम्‍यून सिस्‍टम के कार्य को प्रभावित करने वाला पदार्थ), जीवाणुरोधी, कीमो से रक्षा करने वाले, डायबिटीज रोधी और कैंसर रोधी गुण पाए जाते हैं। (और पढ़ें - डायबिटीज में परहेज)
      डायबिटीज से बचने के लिए myUpchar Ayurveda Madhurodh डायबिटीज टैबलेट का उपयोग करे।और अपने जीवन को स्वस्थ बनाये।
    • ये पाचन को बेहतर करता है और खाने के अवशोषण एवं रक्‍त प्रवाह में सुधार लाता है जिससे अमा निष्‍कासन में मदद मिलती है और मल साफ हो जाता है। ये कोलेस्‍ट्रोल को घटाता है और लाल रक्‍त कोशिकाओं एवं हीमोग्‍लोबिन के उत्‍पादन को बढ़ाता है। (और पढ़ें – कोलेस्‍ट्रोल कैसे कम करें)
  • हरीतकी खंड
  • वैश्‍वनार चूर्ण
    • इसमें काला नमक, अजवाइन, शुंथि और हरीतकी जैसी सामग्रियां मौजूद हैं।
    • पारंपरिक रूप से काले नमक का इस्‍तेमाल रेचक, अल्‍सररोधी, रोगाणुरोधी और कामोत्तेजक के रूप में किया जाता है। इसमें मौजूद अन्‍य सामग्रियां रेचक, वाशुनाशक और पाचक गुणों के लिए जानी जाती हैं। इसलिए वैश्‍वनार चूर्ण कब्‍ज को नियंत्रित करने की प्रभावी और शक्‍तिशाली औषधि है।
  • हिंगु त्रिगुणा तेल
    • इस औषधि में हींग, काला नमक, अरंडी का तेल और लहसुन मौजूद है।
    • इसमें रेचक, कृमिनाशक, भूख बढ़ाने वाले, पाचक और सूजन रोधी गुण पाए जाते हैं। इसलिए जोड़ों में दर्द, सूजन, जलन एवं आंतों में दर्द और गंभीर कब्‍ज की समस्‍या को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है। (और पढ़ें - सूजन कम करने के उपाय)
  • अभयारिष्‍ट
    • अभयारिष्‍ट एक आयुर्वेदिक मिश्रण है जो कि विडंग (फॉल्‍स काली मिर्च), हरीतकी, द्राक्ष (अंगूर), धनिये के बीज, इंद्रवारुणी (चित्रफल) की जड़ें, पिप्‍पली की जड़ें, जयपाल की जड़ें और अन्‍य जड़ी बूटियों के खमीरीकृत मिश्रण से बना है।
    • ये शरीर से अमा को निकालकर कब्‍ज के इलाज में मदद करती है। इसके अलावा ये बवासीर और एडिमा के इलाज में भी असरकारी है। अभयारिष्‍ट अग्निमांद्य (जठराग्नि का मंद पड़ना) को बेहतर, चयापचय को बढ़ाने और अतिरिक्‍त वसा को खत्‍म करने में मदद करता है। (और पढ़ें - बवासीर के लिए योग)
  • इच्छाभेदी रस​
    • इच्छाभेदी रस में शुद्ध गंधक (साफ किया गया गंधक), शुद्ध पारद (साफ किया गया पारा), शुद्ध टंकण (साफ किया गया सुहागा), हरीतकी, शुंथि, शुद्ध जयपाल के बीज और नींबू का रस मौजूद है।
    • ये दीपन (भूख बढ़ाने वाला), पाचन और रेचक गुणों से युक्‍त है। इसका प्रयोग प्रमुख तौर पर कब्‍ज के इलाज में किया जाता है।
    • इच्‍छाभेदी रस का इस्‍तेमाल अपच और पेट दर्द को नियंत्रित करने के लिए भी किया जाता है। वसायुक्‍त पदार्थों के कारण हुई कब्‍ज और अत्‍यधिक पेट फूलने की समस्‍या को भी इच्‍छाभेदी रस के इस्‍तेमाल से नियंत्रित किया जा सकता है। (और पढ़ें - पेट दर्द में क्या करना चाहिए)

व्‍यक्‍ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति निर्धारित की जाती है। उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें। 

क्‍या करें

क्‍या न करें

एक अध्‍ययन की रिपोर्ट में सामने आया कि हिर्सच्‍स्‍प्रुंग रोग (एक जन्‍म विकार जिसमें आंतों के कुछ हिस्‍सों में नसें नहीं होती हैं) और गंभीर कब्‍ज से पीड़ित 4 वर्ष के बच्‍चे के इलाज में स्‍नेहन, स्‍वेदन, बस्‍ती और विरेचन जैसी आयुर्वेदिक चिकित्‍साएं कब्‍ज को नियंत्रित करने में प्रभावी हैं।

हिर्सच्‍स्‍प्रुंग रोग एक जन्‍म विकार है जिसका प्रमुख लक्षण कब्‍ज है। इस प्रकार के कब्‍ज को अधिकतर एलोपैथी दवाओं से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है एवं उपचार के बाद इनके वापिस होने का खतरा भी रहता है।

अध्‍ययन में आयुर्वेदिक उपचारों के साथ वृहत् वात चिंतामणि रस और द्राक्षावलेह जैसी विभिन्‍न आयुर्वेदिक औषधियां भी दी गईं। इस उपचार के अंत में हिर्सच्‍स्‍प्रुंग रोग के कारण होने वाली कब्ज में काफी सुधार पाया गया।शोधकर्ताओं का यह दावा हैं कि इस प्रकार की आयुर्वेदिक चिकित्सा हिर्सच्‍स्‍प्रुंग रोग के कारण हुई कब्‍ज के उपचार में कारगर है। 

(और पढ़ें - कब्‍ज कैसे दूर करे

किसी भी रोग को आयुर्वे‍दिक उपचार के द्वारा पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है लेकिन इसके अनुचित एवं अनुपयुक्‍त प्रयोग के कारण कुछ हानिकारक प्रभाव झेलने पड़ सकते हैं। इसलिए किसी भी जड़ी-बूटी, औषधि या चिकित्‍सा का इस्‍तेमाल करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से सलाह जरूर लेनी चाहिए क्‍योंकि किसी व्‍यक्‍ति के लिए ये अनुचित हो सकती है।

उदाहरणार्थ: खराब पाचन, मलद्वार में अल्‍सर और दस्‍त से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को विरेचन चिकित्‍सा नहीं दी जानी चाहिए। इसके अलावा मासिक धर्म, गर्भावस्‍था, कमजोर और वृद्ध एवं बच्‍चों को भी ये उपचार नहीं देना चाहिए। (और पढ़ें - कमजोरी का इलाज

शिशु को बस्‍ती क्रिया नहीं देने की सलाह दी जाती है। दस्‍त, मलाशय से रक्‍तस्राव वाले और कोलोन कैंसर के मरीज को भी इससे बचना चाहिए।

गर्भावस्‍था के दौरान हरीतकी का इस्‍तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए। पानी की कमी और अत्‍यधिक थकान की स्थिति में भी इसका प्रयोग न करें। गंभीर कब्‍ज की समस्‍या से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को भी इच्‍छाभेदी रस का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

(और पढ़ें - थकान दूर करने के उपाय)

कब्‍ज एक आम समस्‍या है और ये अपने आप में ही एक रोग या किसी बीमारी के लक्षण के रूप में हो सकती है। कब्‍ज का इलाज और इसे नियंत्रित करने के लिए केवल एलोपैथी उपचार से उचित परिणाम नहीं पाए जा सकते हैं और इनके हानिकारक प्रभाव भी होते हैं।

प्रकाशित हुए कई चिकित्‍सकीय अध्‍ययनों की रिपोर्ट में कब्‍ज के इलाज के लिए आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों के सुरक्षित और असरकारी होने की बात कही गई है। प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति की चिकित्‍सकीय स्थिति के आधार पर आयुर्वेदिक डॉक्‍टर उचित इलाज दे सकते हैं। 

(और पढ़ें - गर्भावस्‍था में कब्‍ज का इलाज 

Dr. Harshaprabha Katole

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7 वर्षों का अनुभव

Dr. Dhruviben C.Patel

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Dr Prashant Kumar

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1 वर्षों का अनुभव

संदर्भ

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