आयुर्वेद में कब्ज को विबंध कहा जाता है। कब्ज में मल निष्कासन की क्रिया अनियमित हो जाती है और इसमें मल सख्त और सूख जाता है जिसके कारण मल त्याग करने में दिक्कत होती है। वात दोष में असंतुलन के कारण ही कब्ज होती है एवं इस वजह से आंतों में अमा (विषाक्त पदार्थों) और पुरिष (मल) जमने लगता है। कुछ मामलों में कफ और पित्त दोष के कारण भी कब्ज की समस्या हो सकती है।
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शरीर से अमा और पुरिष के जमाव को बाहर निकालने एवं कब्ज से राहत पाने के लिए आयुर्वेद में कई चिकित्साओं का वर्णन किया गया है। कब्ज की आयुर्वेदिक चिकित्साओं में स्नेहन (शरीर पर तेल या घी लगाकर विषाक्त निकालना), स्वेदन (पसीना निकालने की विधि), विरेचन (शुद्धिकरण) और बस्ती (एनिमा) आदि शामिल हैं।
कब्ज को नियंत्रित करने के लिए आयुर्वेद में हरीतकी (हरड़), विभीतकी, एरंड (अरंडी), दशमूल क्वाथ, त्रिफला चूर्ण, हरीतकी खंड, वैश्वानर चूर्ण, हिंगु त्रिगुणा तेल, अभयारिष्ट और इच्छा भेदी रस आदि जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता है।
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