हाल के कुछ सालों में पश्चिमी देशों में सबसे बड़े और प्रमुख कैंसर के तौर पर उभरा है कोलोरेक्टल कैंसर। विश्व स्वास्थ्य संगठन और अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) की मानें तो यह दुनियाभर में होने वाला दूसरा सबसे आम तरह का कैंसर है। बावजूद इसके युवाओं को इस कैंसर के बारे में बेहद कम जानकारी है। इसकी वजह ये है कि ज्यादातर लोगों को यही लगता है कि कोलोरेक्टल कैंसर का खतरा उम्र बढ़ने के साथ बढ़ता है, लेकिन हकीकत इससे अलग है। जब आंत का कैंसर (कोलोन कैंसर) और मलाशय का कैंसर (रेक्टल कैंसर) एक साथ हो जाएं तो इसे ही कोलोरेक्टल कैंसर कहते हैं।
वैसे तो अमेरिका के सीडीसी का कहना है कि कोलोरेक्टल कैंसर के 90 प्रतिशत मामले 50 साल या इससे अधिक उम्र के लोगों में देखने को मिलते हैं। इसके अलावा वैसे लोग, जिन्हें इन्फ्लेमेटरी बाउल डिजीज (आईबीडी) है, परिवार में किसी को यह बीमारी है या फिर जीन्स से जुड़ी कोई समस्या जैसे- लिंच सिंड्रोम है तो ऐसे लोगों को कोलोरेक्टल कैंसर होने का खतरा अधिक होता है। हालांकि, जर्नल ऑफ क्लिनिकल ऑन्कोलॉजी नाम की पत्रिका में प्रकाशित एक नई स्टडी कोलोरेक्टल कैंसर के मामले में उम्र के रिस्क से इत्तेफाक नहीं रखती।
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युवाओं को भी हो सकता है कोलोरेक्टल कैंसर
इस नई स्टडी को अमेरिकन सोसायटी ऑफ क्लिनिकल ऑन्कोलॉजी की सालाना मीटिंग में प्रेजेंट किया गया था और यह स्टडी एक ऑनलाइन सर्वे पर आधारित है जिसे सोशल मीडिया के अलग-अलग चैनल्स के जरिए लॉन्च किया गया था। इस सर्वे में कोलोरेक्टल कैंसर के 885 मरीजों और बीमारी से ठीक हो चुके लोगों को शामिल किया गया था।
सर्वे के परिणामों ने संकेत दिया कि इस मामले में कोलोरेक्टल कैंसर के डायग्नोसिस की औसत उम्र 42 वर्ष थी जो कि सीडीसी के 50 वर्ष और इससे अधिक उम्र के हाई रिस्क फैक्टर और अमेरिकन कैंसर सोसाइटी द्वारा जोखिम वाले रोगियों की जांच के लिए तय की गई 45 साल की औसत आयु सीमा, दोनों से ही कम है।
सर्वे में शामिल ज्यादातर मरीजों ने संकेत दिया कि उन्हें इस बात की जानकारी ही नहीं थी कि 50 साल से कम उम्र में उन्हें कोलोरेक्टल कैंसर हो सकता है। यही वजह है कि शरीर में लक्षण दिखने के बावजूद मरीजों ने काफी समय तक इंतजार करने के बाद डॉक्टर से इलाज के लिए संपर्क किया। ऐसा होने की वजह से इन मरीजों के डायग्नोसिस और इलाज दोनों में देरी हुई।
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इतना ही नहीं, बहुत से मरीजों ने तो यहां तक बताया कि उनके डॉक्टर भी उनके लक्षणों को मानने के लिए तैयार नहीं थे और कई युवा रोगियों ने यह संकेत भी दिया कि उनके डॉक्टरों ने उनके साथ प्रजनन संरक्षण के तरीकों पर भी कोई चर्चा नहीं की। प्रजनन संरक्षण के बारे में बात करना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि कैंसर के इलाज की वजह से ज्यादातर मामलों में फर्टिलिटी पर बुरा असर पड़ता है, जिसकी वजह से बीमारी से रिकवर होने के बाद मरीज के लिए फैमिली प्लान करना और बच्चे पैदा करना मुश्किल हो जाता है। खासकर तब जब मरीज की उम्र कम हो।
आप इन संकेतों को न करें नजरअंदाज
इस नई स्टडी में यह बात साफतौर पर बतायी गई है कि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपकी उम्र क्या है और आप उस 50 साल के निशान से कितने पीछे हैं। अगर आपको खुद में कोलोरेक्टल कैंसर के लक्षण दिख रहे हों तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। अगर डॉक्टर ये मानने को तैयार नहीं कि आपको कोलोरेक्टल कैंसर हो सकता है, लेकिन फिर भी आपकी बीमारी के लक्षण कम नहीं हो रहे तो आपको खुद कोलोरेक्टल कैंसर की जांच करवाने का आग्रह करना चाहिए।
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ऐसा इसलिए क्योंकि कोलोरेक्टल कैंसर के लक्षण अक्सर इंफेक्शन, बवासीर, इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (आईबीएस) और इन्फ्लेमेटरी बाउल डिजीज (आईबीडी) से मिलते जुलते होते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि इन बीमारियों का इलाज और इन्हें मैनेज करना कैंसर की तुलना में आसान होता है। अमेरिकन कैंसर सोसायटी के मुताबिक कोलोरेक्टल कैंसर बीमारी के कुछ अहम लक्षण हैं, जिन्हें आपको नजरअंदाज नहीं करना चाहिए :
- डायरिया, कब्ज, मल का कम आना या फिर मल-त्याग की गतिविधियों में अगर किसी भी तरह का बदलाव नजर आए, जो कुछ दिनों से ज्यादा समय तक जारी रहे।
- मल-त्याग के बाद भी अगर ऐसा महसूस हो कि पेट साफ नहीं हुआ है
- मलाशय से रक्तस्त्राव होना
- मल में खून आना या मल का रंग बहुत गहरा होना
- पेट में दर्द या तेज ऐंठन महसूस होना
- कमजोरी और थकान महसूस होना
- अचानक बिना किसी कारण का वजन तेजी से घटना