आधुनिक समय में हाई ब्लड प्रेशर या हाइपरटेंशन की समस्या लाइफस्टाइल से जुड़ी कॉमन बीमारी बन गई है। ऐसे में दुनियाभर के लाखों लोग रोजाना अपने ब्लड प्रेशर को कम करने और कंट्रोल में रखने के लिए बीपी की दवाई का सेवन करते हैं। अब एक नई स्टडी में यह बात सामने आयी है कि हाई ब्लड प्रेशर के इलाज में डॉक्टरों द्वारा प्रिस्क्राइब की जाने वाली कॉमन दवाओं के इस्तेमाल से दुनियाभर में होने वाला तीसरा सबसे कॉमन कैंसर कोलोरेक्टल कैंसर के खतरे को भी कम किया जा सकता है।
दुनिया का तीसरा सबसे कॉमन कैंसर है कोलोरेक्टल कैंसर
जब आंत का कैंसर (कोलोन कैंसर) और मलाशय का कैंसर (रेक्टल कैंसर) एक साथ हो जाए तो इसे ही कोलोरेक्टल कैंसर कहते हैं। लाखों लोग हर साल इस कैंसर की चपेट में आते हैं और ऐसा कोई टेस्ट या स्क्रीनिंग मौजूद नहीं है, जो यह बता पाए कि किसी व्यक्ति को इस कैंसर का पहले से खतरा है या नहीं। यह पुरुषों में होने वाला तीसरा सबसे कॉमन कैंसर है और महिलाओं में होने वाला दूसरा सबसे कॉमन कैंसर। कोलोरेक्टल कैंसर के 60 प्रतिशत मामले विकसित देशों में देखने को मिल रहे हैं और इससे होने वाली मौतों की बात करें तो हर साल दुनियाभर में करीब 6 लाख लोगों की कोलोरेक्टल कैंसर की वजह से मौत हो जाती है।
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बीपी कम करने वाली दवा से कम होगा कैंसर का खतरा
ऐसे में कोलोरेक्टल कैंसर का इलाज खोजने में जुटे यूनिवर्सिटी ऑफ हॉन्ग कॉन्ग के अनुसंधानकर्ताओं को एक बड़ी कामयाबी हासिल हुई, जब उन्होंने जाना कि ब्लड प्रेशर को कम करने में इस्तेमाल होने वाली दवा की मदद से कोलोरेक्टकल कैंसर के खतरे को भी कम किया जा सकता है। अनुसंधानकर्ताओं की इस स्टडी के नतीजों को अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के जर्नल हाइपरटेंशन में प्रकाशित किया गया है।
हृदय रोग और बीपी के मरीजों को दी जाती है एसीई और एआरबी दवाएं
स्टडी में शामिल अनुसंधानकर्ताओं की मानें तो एन्जियोटेंसिन कन्वर्टिंग एन्जाइम इन्हीबिटर्स जिसे एसीई इन्हीबिटर्स भी कहते हैं एन्जियोटेंसिन 2 रिसेप्टर ब्लॉकर (एआरबी) संकुचित हो चुकी रक्त धमनियों को रिलैक्स करता है और उन्हें फैलने में मदद करता है जिससे खून फिर से धमनियों से आसानी से पास होने लगता है और हाई ब्लड प्रेशर कम हो जाता है। एसीई और एआरबी दवाइयां आमतौर पर उन लोगों को प्रिस्क्राइब की जाती हैं, जिन्हें हार्ट फेलियर, हाई ब्लड प्रेशर या हृदय से संबंधित किसी और बीमारी का खतरा होता है।
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22 प्रतिशत तक कम हुआ कोलोरेक्टल कैंसर का खतरा
इस स्टडी के दौरान अनुसंधानकर्ताओं ने साल 2005 से 2013 के बीच करीब 2 लाख वयस्क मरीजों के हेल्थ रेकॉर्ड की जांच की। इस दौरान वैसे मरीज जो ब्लड प्रेशर की दवा का सेवन नहीं करते थे उनकी तुलना उन मरीजों से की गई जो एसीई इन्हीबिटर्स या एआरबी की दवाइयों का सेवन करते थे। इस दौरान पता चला कि एसीई और एआरबी का सेवन करने वालों में कोलोरेक्टल कैंसर होने का खतरा 22 प्रतिशत तक कम था। कोलोनोस्कोपी होने के बाद इन लोगों को कैंसर-फ्री घोषित कर दिया गया।
सुरक्षात्मक असर सिर्फ 3 साल तक ही रहता है
अनुसंधानकर्ताओं ने उन सभी मरीजों को स्टडी से बाहर कर दिया, जिनमें पहले से कोलोरेक्टल कैंसर की हिस्ट्री थी। स्टडी में शामिल प्रतिभागियों में ब्लड प्रेशर की दवा खासकर उन लोगों में ज्यादा फायदेमंद नजर आयी, जिनकी उम्र 55 साल या इससे अधिक थी और जिनमें कोलोन पॉलिप्स (संभावित कैंसरकारी ग्रोथ) का इतिहास था। स्टडी के ऑथर डॉ वई के ल्युंग की मानें तो यह पहली स्टडी है, जिसमें ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने की दवा का कोलोरेक्टल कैंसर को विकसित होने से रोकने में सुरक्षात्मक असर देखने को मिल रहा है। लेकिन यह सुरक्षात्मक असर सिर्फ शुरुआती 3 साल तक ही नजर आता है।
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डॉ ल्युंग की मानें तो इससे पहले हुए अध्ययनों के नतीजे कई कारणों की वजह से सीमित थे, जिसमें मरीजों की कम संख्या और शॉर्ट टर्म फॉलो-अप जैसी चीजें शामिल हैं। इस नई स्टडी के नतीजे कोलोरेक्टल कैंसर से बचाने में इन दवाइयों के संभावित रोल की जानकारी देती है।