चिकनगुनिया एक वायरल इन्फेक्शन है जोकि एडीज एजिप्टी और एडीज एल्बोपिक्टस मच्छर के काटने के कारण फैलता है। चिकनगुनिया के शुरुआती लक्षणों में बुखार, सिरदर्द और जोड़ों में दर्द विशेषत: एड़ी, कोहनी, कलाई और घुटने के जोड़ में दर्द शामिल है। जोड़ों का दर्द इस संक्रमण का प्रमुख लक्षण है और इसी वजह से चिकनगुनिया वायरस को गठिया के वायरस के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
सुबह के समय और हिलने-डुलने पर जोड़ों में दर्द बढ़ जाता है। चिकनगुनिया के मरीज़ों को गले में खराश, कंजक्टिवाइटिस (आंख की नेत्र श्लेष्मला [कंजक्टिवा] में सूजन), भूख में कमी, फोटोफोबिया (प्रकाश के प्रति अतिसंवेदनशीलता) और लसीका ग्रंथियों में सूजन महसूस होती है।
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आयुर्वेदिक साहित्य में चिकनगुनिया का उल्लेख नहीं है। हालांकि, वात-कफ बुखार और वात-पित्त बुखार के लक्षण चिकनगुनिया के लक्षणों की तरह ही होते हैं। चिकनगुनिया से राहत पाने और संपूर्ण सेहत में सुधार के लिए आयुर्वेद में गुडुची, अश्वगंधा, आमलकी, त्रैलोक्यचिंतामणि, त्रिभुवनकीर्ति और अमृतारिष्ट जड़ी-बूटियों का उल्लेख किया गया है।
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आयुर्वेदिक चिकित्साओं में अभ्यंग (तेल मालिश) और रसायन (ऊर्जादायक) का प्रयोग कर जोड़ों में दर्द को कम और शरीर को शक्ति प्रदान की जाती है। मुद्गा (मूंग दाल) का सूप और तंदूला पेज (उबले हुए चावल का पानी) चिकनगुनिया में देना चाहिए क्योंकि इससे शरीर को ताकत मिलती है। तुलसी, नींब (नीम), वच और अन्य जड़ी-बूटियों से मच्छरों की संख्या को नियंत्रित करने एवं चिकनगुनिया को फैलने से रोकने में मदद मिल सकती है।