छाती में दर्द को उद: शूल भी कहा जाता है। छाती के किसी भी हिस्‍से में तेज या हल्‍का दर्द उठ सकता है। सीने में दर्द के दो सबसे सामान्‍य कारणों में खांसी और छाती में बलगम जमा होना शामिल हैं। सीने में दर्द होने के अन्‍य कारणों में अपच, हाइपरएसिडिटी, छाती में अल्‍सर, फेफडों में तरल जमना, दमा और हृदय रोग शामिल हैं। इन समस्‍याओं का उपचार कर इनसे जुड़े लक्षणों जैसे कि छाती में दर्द को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।

(और पढ़ें - हृदय रोग से बचने के उपाय)

आयुर्वेद में उपरोक्‍त समस्‍याओं को नियंत्रित करने के लिए शुद्धिकरण चिकित्‍साएं जैसे कि वमन (औषधियों से उल्‍टी लाने की विधि), विरेचन (दस्‍त) और बस्‍ती (एनिमा की विधि) का उल्‍लेख किया गया है। छाती में दर्द के कारण को दूर करने के लिए तुलसी, वासा (अडूसा), हरिद्रा (हल्‍दी), पिप्‍पली, पुनर्नवा, कुटकी, सितोपलादि चूर्ण, सूतशेखर, हिंग्वाष्टक चूर्ण और रसोनादि वटी जैसी जड़ी बूटियों एवं औषधि का प्रयोग किया जाता है। 

  1. छाती में दर्द की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Chest Pain ki ayurvedic dawa ke side effects
  2. सीने में दर्द में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Sine me dard ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  3. सीने में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज या उपचार - Seene me dard ka ayurvedic ilaj
  4. छाती में दर्द की आयुर्वेदिक जड़ी बूटी और औषधि - Chest Pain ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  5. आयुर्वेद के अनुसार छाती में दर्द होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Chati me dard hone par kya kare kya na kare
  6. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से छाती में दर्द - Ayurveda ke anusar Chest Pain
  7. छाती में दर्द के आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Chati me dard ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
छाती में दर्द की आयुर्वेदिक दवा और इलाज के डॉक्टर

आयुर्वेदिक उपचार द्वारा रोग को जड़ से खत्‍म किया जाता है एवं इसमें व्‍यक्‍ति को पूरी तरह से स्‍वस्‍थ बनाने का काम किया जाता है। हालांकि, व्‍यक्‍ति की प्रकृति के आधार पर कुछ विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए, जैसे कि:

  • बच्‍चों और गर्भवती महिलाओं में वमन की सलाह नहीं दी जाती है।
  • गर्भावस्‍था के दौरान, बच्‍चों और बुजुर्गों को विरेचन नहीं लेना चाहिए। गुदा मार्ग में चोट या दस्‍त की स्थिति में विरेचन लेना उचित नहीं रहता है। (और पढ़ें - दस्त रोकने के घरेलू उपाय)
  • अगर किसी व्यक्ति की आंतों में रुकावट या छेद हो तो उस व्‍यक्‍ति को बस्‍ती कर्म नहीं देना चाहिए। एनीमिया, पेचिश, हैजा और गुदा में सूजन होने पर भी बस्‍ती कर्म का गलत असर पड़ सकता है।
  • तुलसी, पिप्‍पली और हरिद्रा में कुछ बदलाव कर के अत्‍यधिक पित्त वाले व्‍यक्‍ति को देना चाहिए।
  • वासा का इस्‍तेमाल सावधानीपूर्वक करें। अगर वासा को शुद्ध रूप में न लिया जाए तो यह जहरीला हो सकता है।

अस्‍थमा के लक्षणों जैसे कि छाती में दर्द, सांस लेने में दिक्‍कत और खांसी पर दो विभिन्‍न आयुर्वेदिक मिश्रणों के प्रभाव की जांच के लिए एक चिकित्‍सकीय अध्‍ययन में अस्‍थमा से ग्रस्‍त 40 मरीजों को शामिल किया गया था। सभी प्रतिभागियों को दो हिस्‍सों में बांटा गया। पहले समूह के लोगों को श्वासहर लेह और दूसरे समूह को वासा हरीतकी अवलेह दिया गया। ये दोनों औषधियां सभी प्रतिभागियों को दो महीने तक प्रतिदिन 5 ग्राम की मात्रा में दी गईं।

अध्‍ययन के बाद सभी प्रतिभागियों में बीमारी के लक्षणों का आंकलन किया गया। इसमें पाया गया कि दमा के सामान्‍य लक्षणों को नियंत्रित करने में दोनों ही आयुर्वेदिक मिश्रण असरकारी हैं। हालांकि, वासा हरीतकी अवलेह को श्वासहर लेह से ज्‍यादा प्रभावी बताया गया। 

(और पढ़ें - छाती में दर्द के घरेलू उपाय)

  • वमन
    • इस आयुर्वेदिक चिकित्‍सा में उल्‍टी के ज़रिए पेट में मौजूद खराब कफ और पित्त दोष को बाहर निकाला जाता है।
    • वमन अमा को भी बाहर निकालने में मदद करता है।
    • वमन कर्म में उल्‍टी लाने के लिए बीमारी के लक्षणों और व्‍यक्‍ति की प्रकृति के आधार पर विभिन्‍न जड़ी बूटियों एवं उनसे बने मिश्रण का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • अत्‍यधिक कफ के बाहर निकलने से शरीर की नाडियां साफ होती हैं और वात सही तरह से कार्य कर पाता है। ब्रोंकाइल अस्‍थमा के उपचार में वमन कर्म बहुत उपयोगी माना जाता है।
    • खांसी और ब्रोंकाइल अस्‍थमा से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति के शरीर से अत्‍यधिक कफ को हटाने के लिए पिप्‍पली का प्रयोग कर उल्‍टी लाई जा सकती है।
    • इससे अतिरिक्‍त कफ के कारण हुई अपच को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। ये अत्‍यधिक कफ को साफ करता है। 
    • हाइपरएसिडिटी से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को उल्‍टी करवाने के लिए नीम या चिचिण्डा के पानी के अर्क का इस्‍तेमाल किया जाता है।
       
  • विरेचन
    • इस चिकित्‍सा में गुदा मार्ग के ज़रिए अतिरिक्‍त दोष और अमा को शरीर से बाहर निकाला जाता है।
    • शरीर से अत्‍यधिक पित्त को बाहर निकालने में प्रमुख रूप से विरेचन कर्म उपयोगी है। विरेचन कर्म में मल निष्‍कासन के लिए विभिन्‍न जड़ी बूटियों और उनके मिश्रण का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • ये चिकित्‍सा खासतौर पर ब्रोंकाइल अस्‍थमा को नियंत्रित करने में में असरकारी है।
    • विरेचन के अंतर्गत अत्‍यधिक पित्त के कारण हुई अपच के इलाज में एरण्‍ड तेल और हरीतकी का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • विरेचन में हाइपरएसिडिटी के इलाज के लिए त्रिवृत चूर्ण, अभ्‍यारिष्‍ट या त्रिफला चूर्ण मददगार है।
       
  • बस्‍ती
    • बस्‍ती एक आयुर्वेदिक एनिमा है जिससे बड़ी आंत और मलाशय की सफाई की जाती है।
    • इस चिकित्‍सा में आंतों की सफाई के लिए जड़ी बूटियों से बने काढ़े, तेल या लेप को गुदा मार्ग में लगाया जाता है। (और पढ़ें - काढ़ा बनाने की विधि)
    • बस्‍ती खराब या असंतुलित हुए दोष को भी ठीक करती है और शरीर से अमा को बाहर निकालती है।
    • कब्‍ज और अपच से राहत पाने के लिए बस्‍ती कर्म सर्वश्रेष्‍ठ उपचार है। (और पढ़ें - कब्ज का आयुर्वेदिक इलाज)

छाती में दर्द के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • तुलसी
    • तुलसी तंत्रिका, श्‍वसन और पाचन तंत्र पर कार्य करती है। इसमें दर्द निवारक, ऐंठनरोधी, जीवाणुरोधी और रोगाणुरोधक गुण होते हैं।
    • ये सभी प्रकार की खांसी के इलाज में मदद करती है। टीबी और श्‍वसन संबंधित समस्‍याओं जैसे कि अस्‍थमा एवं ब्रोंकाइटिस के कारण हुई खांसी को भी तुलसी से ठीक किया जा सकता है। तुलसी पाचन में सुधार और अमा को बाहर निकालने में भी मदद करती है। (और पढ़ें - पाचन शक्ति बढ़ाने के उपाय)
    • अर्क, रस, घी, पाउडर या शैंपू के रूप में इसका इस्‍तेमाल कर सकते हैं।
       
  • वासा
    • वासा शरीर की संपूर्ण प्रणाली पर कार्य करता है। इसमें डायबिटीज-रोधी और मूत्रवर्द्धक गुण होते हैं एवं यह दर्द से राहत तथा बुखार को कम करने में मदद करता है।
    • वासा अन्‍य कई जड़ी बूटियों के गुणों को बढ़ाने की भी क्षमता रखता है। इसलिए बीमारी के लक्षणों से राहत पाने के लिए अन्य आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों के सहायक के रूप में इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
    • ये हृदय रोग और नाक, गले एवं पेट की श्‍लेष्‍मा झिल्लियों में सूजन‍ के इलाज में मदद करता है।
    • वासा की पत्तियों से बना रस या पाउडर उर:क्षत को नियंत्रित करने में उपयोगी है। ये ब्रोंकाइल अस्‍थमा का भी इलाज करता है। इसलिए इन समस्‍याओं के कारण हुए छाती में दर्द को नियंत्रित करने में वासा असरकारी है।
  • हरिद्रा
    • हरिद्रा पाचन, श्‍वसन, मूत्र और परिसंचरण प्रणाली पर कार्य करती है। ब्रोंकाइल अस्‍थमा, खांसी और अपच के इलाज में इसका इस्‍तेमाल कर सकते हैं। इसलिए इन दिक्‍कतों के कारण छाती में दर्द होने का इलाज हरिद्रा से किया जा सकता है।
    • इसका इस्‍तेमाल काढ़े, अर्क या दूध के काढ़े के रूप में किया जा सकता है।
       
  • पिप्‍पली
    • पिप्‍पली पाचन, श्‍वसन और प्रजनन प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें कृमिनाशक, कफ-निस्‍सारक, दर्द निवारक और वायुनाशक (पेट फूलने से राहत) गुण होते हैं।
    • खांसी के लिए इस्‍तेमाल होने वाले अनेक आयुर्वेदिक मिश्रणों में इसका उपयोग किया जाता है। ये अतिरिक्‍त कफ को घटाने में भी उपयोगी है। अतिरिक्‍त कफ के कारण सांस से संबंधित विकार उत्‍पन्‍न होते हैं जिनकी वजह से सीने में दर्द हो सकता है।
    • अपच के इलाज में नमक और नींबू के रस के साथ पिप्‍पली का इस्‍तेमाल कर सकते हैं।
    • अध्‍ययनों के अनुसार इस जड़ी बूटी में डिहाइड्रोपिपरनोनालाइन (dehydropipernonaline) नामक रासायनिक घटक मौजूद होता है जो कि कोरोनरी ध‍मनियों को आराम पहुंचाता है जिससे हृदय रोग के कारण हो रहे छाती में दर्द से राहत मिलती है।
    • तेल, पाउडर या अर्क के रूप में भी पिप्‍पली का इस्‍तेमाल कर सकते हैं।
       
  • पुनर्नवा
    • पुनर्नवा पाचन, परिसंचरण, तंत्रिका और स्‍त्री प्रजनन प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें मूत्रवर्द्धक, कफ-निस्‍सारक, ऊर्जादायक और उल्‍टी लाने वाले गुण होते हैं।
    • पुनर्नवा की जड़ से बने काढे का इस्‍तेमाल उरस्‍तोय, अस्‍थमा, हृदय रोग और अंदरूनी सूजन के इलाज में किया जा सकता है।
    • इस जड़ी बूटी को रस, काढ़े, पाउडर, तेल या लेप के रूप में ले सकते हैं।
       
  • कटुकी 
    • कटुकी पाचन, परिसंचरण, तंत्रिका, उत्‍सर्जन और स्‍त्री प्रजनन प्रणाली पर कार्य करती है।
    • ये अस्‍थमा और ब्रोंकाइटिस को नियंत्रित करने में असरकारी है। इसमें हृदय को सुरक्षा प्रदान करने वाले गुण भी होते हैं।
    • कटुकी को अभिमिश्रण (एल्‍कोहल में दवा को मिलाकर तैयार की कई औषधि), पाउडर, गोली या अर्क के रूप में ले सकते हैं।
       
  • हरीतकी
    • हरीतकी पाचन, श्‍वसन, परिसंचरण, तंत्रिका और स्‍त्री प्रजनन प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें ऊर्जादायक, कफ-निस्‍सारक और कृमिनाशक गुण होते हैं।
    • ये अस्‍थमा, खांसी, पेट फूलने और दस्‍त के इलाज में असरकारी है।
    • हरीतकी को काढ़े, लेप, पाउडर या गरारे के रूप में ले सकते हैं। (और पढ़ें - गरारे करने के फायदे)

छाती में दर्द के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • सितोपलादि चूर्ण
    • इस मिश्रण में मौजूद कुछ सामग्रियों में वंशलोचन, मिश्री, छोटी इलायची, छोटी पिप्‍पली और दालचीनी शामिल है।
    • सितोपलादि चूर्ण विभिन्‍न श्‍वसन विकारों से संबंधित बुखार और फ्लू के इलाज में उपयोगी है। उचित उपचार के साथ इस मिश्रण से 3 से 4 दिनों में ही बीमारी के लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है।
    • सितोपलादि चूर्ण खराब कफ को संतुलित करने और इससे जुड़े लक्षणों जैसे कि खांसी, ब्रोंकाइल अस्‍थमा एवं छाती में दर्द के इलाज में उपयोगी है।
       
  • सूतशेखर
    • इस मिश्रण में शुंथि (सोंठ), गंधक, दालचीनी, शंख, ताम्र (तांबे) और लौह (आयरन) की भस्‍म (ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई) मौजूद है।
    • सूतशेखर हृदय को शक्‍ति प्रदान करने वाली औषधि है जो कि वात और पित्त दोष को साफ करके काम करती है जिससे परिसंचरण प्रणाली पर दबाव कम होता है।
    • ये औषधि अत्‍यधिक पित्त दोष के कारण हुए तेज बुखार और बेहोशी के साथ-साथ बुखार के इलाज में मदद करती है। (और पढ़ें - बेहोश होने पर प्राथमिक उपचार)
    • अम्‍लनाशक (एसिड खत्‍म करने वाले) और ऐंठन-रोधी गुणों के कारण ये हाइपरएसिडिटी के लिए असरकारी दवा है।
    • आमतौर पर सूतशेखर को शहद और पानी के साथ ले सकते हैं।
       
  • हिंग्वाष्टक चूर्ण
    • हिंग्वाष्टक चूर्ण में शुंथि, पिप्‍पली, जीरा और हींग आदि मौजूद है।
    • ये वात और कफ के खराब होने के कारण हुई खांसी, दमा, बदहजमी और दर्द के इलाज में मदद करता है।
    • इस औषधि में वायुनाशक और पेट फूलने की समस्‍या से राहत दिलाने वाले गुण होते हैं। इसी वजह से यह दवा बदहजमी के कारण हुए सीने में दर्द के इलाज में असरकारी है।
    • हिंग्वाष्टक चूर्ण को छाछ, गुनगुने पानी या घी के साथ भोजन के साथ या पहले ले सकते हैं।
       
  • रसोनादि वटी
    • इसमें पाचक और पेट फूलने से राहत दिलाने वाले गुण मौजूद हैं। ये प्रमुख तौर पर अपच के कारण हुए छाती के दर्द के इलाज में मदद करती है।
    • रसोनादि वटी में सौंफ भी है जो कि पाचक एंजाइम्‍स का स्‍तर घटने के कारण हुई बदहजमी के इलाज में उपयोगी है।
    • भोजन से पहले गुनगुने पानी के साथ रसोनादि वटी ले सकते हैं। 

व्‍यक्‍ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें। 

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आयुर्वेद के अनुसार सीने में दर्द के निम्‍न कारण हो सकते हैं:

  • उर:क्षत​: इसमें छाती में अल्‍सर के घाव या चोट की वजह से सीने में घाव वाली जगह पर बहुत तेज दर्द उठता है। कभी-कभी खांसी में खून भी आने लगता है।
  • उरस्तोय: इसमें फेफडों की बाहरी झिल्‍ली में पानी जमने लगता है जिससे छाती में दर्द, सांस लेने में दिक्‍कत, हल्‍का बुखार और लेटने पर असहजता महसूस होने लगती है।
  • श्‍वास (ब्रोंकाइल अस्‍थमा): ब्रोंकाइल अस्‍थमा की स्थिति में श्‍वसन मार्ग जीर्ण (लंबे समय से) सूजन के कारण सांस लेने में दिक्‍कत और छाती में दर्द महसूस होता है। अस्‍थमा का प्रमुख कारण वात और कफ दोष होता है। कफ के बढ़ने पर अतिरिक्‍त वात की गति में रुकावट पैदा होती है जिसके कारण वात में असंतुलन आने लगता है। ये वात श्‍वसन नाडियों में रुकावटें उत्‍पन्‍न करता है जिसके कारण दमा होता है। कास (खांसी) और अमा (विषाक्‍त पदार्थ) के बढ़ने के कारण भी अस्‍थमा हो सकता है। (और पढ़ें - वात पित्त कफ क्या होता है)
  • अजीर्ण (अपच): भोजन के अवशोषण, टूटने और शरीर से बाहर निकलने की प्रक्रिया में रुकावट या असंतुलन आने के कारण अपच होने लगती है। ऐसा प्रमुख तौर पर जठरांत्र प्रणाली में दोष के असंतुलन और अमा के जमने के कारण होता है। पेट के ऊपर/छाती के निचले हिस्‍से में दर्द या असहजता महसूस होना अपच के सामान्‍य लक्षणों में से एक है। अपच के अन्‍य लक्षणों में पेट फूलना, जी मिचलाना और उल्टी शामिल है।
  • इस्‍कीमिक हृदय रोग: आयुर्वेद के अनुसार इस स्थिति में दिल पर अत्‍यधिक दबाव पड़ने के कारण सीने में दर्द होने लगता है। वात, पित्त या कफ के असंतुलित होने के कारण ऐसा हो सकता है। सभी प्रकार के हृदय रोगों के इलाज के लिए पंचकर्म थेरेपी की सलाह दी जाती है।
  • अम्‍लपित्त (हाइपरएसिडिटी): हाइपरएसिडिटी में पेट में एसिड का अत्‍यधिक स्राव होने लगता है जिसके कारण वात उत्तेजित और पित्त असंतुलित होने लगता है। इस एसिड के भोजन नली में जाने पर दिल और गले के आसपास वाले हिस्‍से में दर्द और जलन महसूस होने लगती है। पित्त को इस समस्‍या का प्रमुख कारण कहा जाता है। कफ का स्‍तर बढ़ने के कारण भी ऐसा हो सकता है जिसकी वजह से बलगम आने लगता है और शरीर में भारीपन महसूस होता है। (और पढ़ें - बलगम निकालने के उपाय)

उपरोक्‍त समस्‍याओं के अलावा कास, इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम, मानसिक विकार और क्षयज कास (खांसी) सीने में दर्द के अन्‍य लक्षणों में शामिल हैं। 

(और पढ़ें - छाती में दर्द का होम्योपैथिक इलाज)

कई कारणों की वजह से छाती में दर्द हो सकता है। ठंड और किसी खाद्य पदार्थ की वजह से हुई खांसी, हृदय रोग के कारण हुई अपच एवं हाइपरएसिडिटी के लक्षण के रूप में सीने में दर्द महसूस हो सकता है। अगर आपको छाती में दर्द हो रहा है तो इसके कारण की पहचान के लिए तुरंत चिकित्‍सक से संपर्क करें।

अनुभवी चिकित्‍सक से परामर्श करने के बाद ही सीने में दर्द के इलाज के लिए आयुर्वेदिक उपचार, जड़ी बूटियों और औषधियों का इस्‍तेमाल करना चाहिए। इससे आपको औषधि एवं उपचार के हानिकारक प्रभावों से बचने में मदद मिलेगी और आप जल्‍दी ठीक हो पाएंगें।

(और पढ़ें - छाती में दर्द होने पर क्या करें)

Dr. Harshaprabha Katole

Dr. Harshaprabha Katole

आयुर्वेद
7 वर्षों का अनुभव

Dr. Dhruviben C.Patel

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आयुर्वेद
4 वर्षों का अनुभव

Dr Prashant Kumar

Dr Prashant Kumar

आयुर्वेद
2 वर्षों का अनुभव

Dr Rudra Gosai

Dr Rudra Gosai

आयुर्वेद
1 वर्षों का अनुभव

संदर्भ

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