शोधकर्ताओं ने एक टेस्ट को विकसित किया है, जो अल्जाइमर के आठ साल पहले उसके शुरुआती लक्षण सामने आने से पूर्व ही उसका पता लगा पाएगा। मौजूदा तकनीक का इस्तेमाल करते हुए अल्जाइमर का पता तभी लगाया जा सकता है जब इसकी वजह से लगातार पागलपन होने से दिमाग में प्लाक की परत बन जाती है।
इस स्थिती में थेरेपी कारगर नहीं है। हालांकि, अल्जाइमर के चलते पहला बदलाव प्रोटीन के स्तर पर 20 के बाद तक होता है। जर्मनी में रुर यूनिवर्सिटी, बोचुम से इस शोध के सहलेखक ने कहा कि एक बार एमलॉयड प्लाक बनने पर इसका इलाज नहीं हो सकता।
8 वर्ष पहले अल्जाइमर का पता चलेगा
अल्जाइमर के मरीज में इसके पहले लक्षण सामने आने से पहले पैथोलॉजिकल बदलावों के कारण एमलॉयड बीटा प्रोटीन गलत तरीके से बनता है। जर्मनी की रुर यूनिवर्सिटी, बोचुम से इस पर शोध करने वाली टीम ने एक सामान्य रक्त जांच से इसका पता लगाया। इसके परिणामस्वरूप अल्जाइमर का पहला लक्षण सामने आने से 8 साल पहले इसका पता लगाया जा सकता है।
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लेकिन परीक्षणों में यह टेस्ट इसके इलाज के लिए कारगर साबित नहीं हुआ है, क्योंकि शोध में हिस्सा लेने वाले लोगों में इसने 9 पर्सेंट गलत नतीजे दिखाए। अल्जाइमर के सही मामलों की पहचान करने के लिए शोधकर्ताओं ने इलाज का दूसरा तरीका पेश किया। इस तरीके में उन्होंने असली रक्त जांच का इस्तेमाल किया, जिससे अल्जाइमर के सबसे ज्यादा खतरे वाले लोगों की पहचान की जा सके।
इसके बाद शोधकर्ताओं ने टु प्रोटीन नामक एक विशेष बायोमार्कर का इस्तेमाल किया, जिससे आगे के टेस्ट जल्दी किए जा सकें। इसका इस्तेमाल उन मरीजों में किया गया, जिनका पहले टेस्ट में अल्जाइमर पॉजिटिव पाया गया था।
बड़ी उपलब्धि
यदि दोनों ही बायोमार्कर पर नतीजा पॉजिटिव आता है तो ऐसे में उस व्यक्ति को अल्जाइमर होने की संभावना सबसे ज्यादा होती है। जर्नल अल्जाइमर्स एंड डिमेन्श, असेसमेंट एंड डीजेज मॉनिटरिंग में प्रकाशित इस शोध में यह बात कही गई है।
इस पर एक शोधकर्ता ने कहा, ‘दोनों जांचों का संयुक्त विश्लेषण करने से हमारे शोध में अल्जाइमर के 100 मरीजों में से 87 की सही पहचान की गई।’ इस पर एक डॉक्टर ने कहा, ‘एक बार एमलॉयड का प्लाक बनने के बाद इसका इलाज कर पाना संभव नहीं है। यदि अल्जाइमर के विकसित होने की प्रक्रिया को रोकने में हम नाकाम होते हैं, तो इससे हमारे समाज पर काफी असर पड़ेगा।’
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वहीं इसकी रक्त जांच को पूरी तरह से स्वचलित प्रक्रिया में बदल दिया गया है। अल्जाइमर का सेंसर विकसति करने वाले डिवेलपर ने कहा, ‘इस सेंसर का इस्तेमाल आसानी से किया जा सकता है, जब बायोमार्कर सांद्रता के मामले में ऊपर-नीचे जाता है और मानकीकृत होता है।
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संभव होगा पहले इलाज
अल्जाइमर के लक्षण सामने आने से पहले ही इसकी पहचान होने से डॉक्टर तुरंत ही इसका उपचार शुरू कर पाएंगे, जोकि अभी संभव नहीं है। अल्जाइमर पर होने वाले शोधों में इजाफा हो रहा है, क्योंकि बुढ़ापे में होने वाली इस बीमारी के मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है।