अल्जाइमर होने पर मस्तिष्क में पेप्टाइड प्रोटीन गुच्छों (क्लम्पस) के रूप में इकट्ठा होने लगता है, जो पीड़ितों में मेमरी लॉस की वजह बनता है। स्वीडन स्थित अपसाला यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च ग्रुप ने अल्जाइमर बीमारी के इलाज के लिए एक ऐसा नया ट्रीटमेंट मेथड तैयार करने का दावा किया है, जिससे प्रोटीन के इन गुच्छों को बनने से रोका जा सकता है। इन शोधकर्ताओं ने चूहों पर परीक्षण करने के बाद प्राप्त हुए नतीजों के आधार पर इस मेथड को अल्जाइमर के इलाज में संभावित रूप से कारगर होने की बात कही है। हालांकि उन्हें यकीन है कि इन्सानों पर भी इलाज का यह तरीका असरदार होगा, जिसका परिणाम पिछले अध्ययनों में हुए ट्रायलों से बेहतर होगा।
अल्जाइमर में पेप्टाइड (प्रोटीन का अंश) एमीलॉइड-बीटा दिमाग में गुच्छे बनाने की शुरुआत करता है। इस प्रोसेस को 'एग्रीगेशन' (एकत्र होना) कहते हैं और इसमें बनने वाले पेप्टाइड क्लम्प्स को एग्रीगेट (गुच्छे के रूप में एकत्रित हुए पेप्टाइड प्रोटीन) कहा जाता है। अल्जाइमर के इलाज के लिए इस समय जो मेथड क्लिनिकल ट्रायलों से गुजर रहे हैं, उनमें बीमारी की वजह बनने वाले इन एग्रीगेट्स को बांधने का प्रयास किया जाता है। लेकिन इन अल्जाइमर ट्रीटमेंट मेथड्स में अतिसूक्ष्म या बेहद हल्के एग्रीगेट नहीं बंध पाते, जो कई जानकारों के मुताबिक मस्तिष्क के न्यूरॉन के लिए सबसे ज्यादा घातक होते हैं।
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लेकिन अपसाला यूनिवर्सिटी में जिस ट्रीटमेंट मेथड को तैयार किया गया है, उसे लेकर निर्माता वैज्ञानिकों का कहना है कि यह (शरीर में) उन बिल्डिंग ब्लॉक्स को बनने ही नहीं देता, जिनसे ऐसे हल्के या सूक्ष्म एग्रीगेट्स को एकत्र होना का मौका मिलता है। इस तरह यह मेथड सभी प्रकार के एग्रीगेट के फॉर्मेशन को कम करने का काम करता है। इसके लिए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने सोमाटेस्टाटिन नामक पेप्टटाइट का इस्तेमाल किया। जानकार लंबे समय से जानते हैं कि यह पेप्टाइड शरीर में एमीलॉइड-बेटा के डीग्रेडेशन को एक्टिवेट कर सकता है। लेकिन अतीत में सोमाटेस्टाटिन पेप्टाइड को इस्तेमाल करना संभव नहीं रहा, क्योंकि रक्त में इसका अर्ध जीवनकाल काफी छोटा होता है, केवल कुछ ही मिनटों का। इस कारण यह ब्रेन में रक्त को पहुंचने से रोकने वाले बैरियर को क्रॉस नहीं कर पाता, जहां एग्रीगेट्स का फॉर्मेशन होता है।
ऐसे में पेप्टाइड को नए अल्जाइमर ट्रीटमेंट मेथड में इस्तेमाल करने के लिए उसे मस्तिष्क के ट्रांसपोर्ट प्रोटीन से मिला दिया गया। इस बारे में बताते हुए एक शोधकर्ता फैडी रोफो ने कहा, 'सोमाटेस्टाटिन का इस्तेमाल करने की क्षमता हासिल करने के लिए हमने इसे ब्रेन ट्रांसपोर्ट प्रोटीन से मिला दिया, जिससे पेप्टाइट को एक तरह से दिमाग में घुसने की अनुमति मिल गई। इसका काफी प्रभाव पड़ा। हमने जब ट्रांसपोर्ट प्रोटीन का इस्तेमाल किया तो पता चला कि जितने समय तक दिमाग में सोमाटेस्टाटिन रहता है, उतने समय तक दिमाग में इजाफा होता रहता है।'
अध्ययन के मुताबिक, इस प्रयोग का सबसे ज्यादा असर हिपोकैंपस पर पड़ा। यह मस्तिष्क का वह हिस्सा है, जहां मेमरी यानी याद्दाश्त बनती है। अल्जाइमर होने पर सबसे पहले मस्तिष्क का यही हिस्सा प्रभावित होता है। ऐसे में नए ट्रीटमेंट मेथड से इस हिस्से में सुधार होना अल्जाइमर जैसी मानसिक बीमारी के इलाज के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। इस पर टिप्पणी करते हुए अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर गेटा हल्टक्विस्ट ने कहा, 'हिपोकैंपस में जो (सुधारात्मक) प्रभाव हमने देखा वह काफी अच्छा है। हमें आशा है कि यह मेथड लक्षित तरीके से काम करने योग्य होगा और इसके साइड इफेक्ट भी काफी कम होंगे, जोकि अन्य अध्ययनों की एक समस्या रही है।'
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