चेचक एक संक्रामक और घातक रोग है। चेचक ने हजारों वर्षों से व्यक्तियों को प्रभावित किया हुआ था। लेकिन वैश्विक टीकाकरण अभियान की मदद से 1980 तक प्राकृतिक रूप से होने वाले चेचक रोग को दूनिया भर से दूर कर दिया गया।

चेचक को खत्म करने से पहले इसके वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक संक्रमित हो जाते थे। यह रोग मुख्य रूप से वैरिओला वायरस (variola virus) के कारण होता था। चेचक होने पर व्यक्ति को बुखार और रैशेज आदि के लक्षण दिखाई देते थे, जिसको कम करने के लिए चेचक के टीके का उपयोग किया गया। रिसर्च कार्यों के उद्देश्य से चेचक रोग के वायरस को सुरक्षित रखा गया है। लेकिन वायरस को सुरक्षित रखने से इस बात की चिंता भी बढ़ी कि कहीं इनका प्रयोग भविष्य में जैविक हथियार बनाने के लिए न किया जाये।

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इस लेख में आपको चेचक के टीके के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है। साथ ही आपको चेचक के टीके की खुराक, चेचक वैक्सीन को कब लगाएं, चेचक वैक्सीन के साइड इफेक्ट, चेचक टीका किसे नहीं लगाना चाहिए और चेचक टीके की खोज आदि के बारे में भी विस्तार से बताने का प्रयास किया गया है। 

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  1. चेचक का टीका क्या है - Chechak ke tika kya hai
  2. चेचक के टीके की खुराक - Chechak ke tike ki khurak
  3. चेचक के टीके से होने वाले साइड इफेक्ट - Smallpox vaccine side effects
  4. चेचक का टीका किसे नहीं लेना चाहिए - Chechak ka tika kise nahi lena chahiye
  5. चेचक के टीके की खोज - Chechak ke tike ki khoj
चेचक रोग को दूर करने के लिए ही चेचक का टीका लगाया जाता है। फिलहाल चेचक का कोई भी इलाज उपलब्ध नहीं है। वैश्विक स्तर पर चलाए गए नियमित टीकाकरण कार्यक्रम से वेरियोला वायरस से लोगों को पूरी तरह से सुरक्षित किया जा चुका है। लेकिन आज भी चेचक के वायरस पर शोध करने वाले शोधकर्ताओं को ये संक्रमण होने की संभावना अधिक होती है। चेचक के वायरस से संक्रमित होने पर व्यक्ति में सामान्यतः 10 से 14 दिनों बाद लक्षण दिखाई देते हैं। वेरियोला वायरस शरीर में 7 से 17 दिनों में सक्रिय होता है, इस दौरान व्यक्ति अस्वस्थ महसूस करता है। हालांकि इस स्थिति में वह अन्य लोगों को संक्रमित नहीं कर पाता है।
 
 
संक्रमित व्यक्ति के शरीर में वायरस के सक्रिय या पूरी तरह से तैयार होने पर फ्लू के साथ ही निम्न तरह के लक्षण दिखाई देते हैं। 
आमतौर पर यह लक्षण दो से तीन दिनों में ठीक हो जाते हैं। जिसके बाद व्यक्ति खुद को स्वस्थ महसूस करने लगता है। हालांकि, जब व्यक्ति खुद को ठीक महसूस करने लगता है, उसके बाद उस के शरीर पर रैशेज शुरू हो जाते हैं। सबसे पहले संक्रमित व्यक्ति के चेहरे पर रैश होते हैं, जिसके बाद यह हाथों और बांह की कलाई पर और बाद में शरीर के अन्य हिस्सों पर फैल जाते हैं। एक या दो दिनों में, रैश तरल पदार्थ से भरे छोटे फफोले में बदल जाते हैं। इसके आठ से नौ दिनों बाद में फफोलो में पपड़ी बनने लगती है और बाद में यह ठीक होते हुए शरीर पर निशान छोड़ देते हैं।
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जब तक चेचक पूरी तरह से खत्म नहीं हो गया, तब तक लोगों को नियमित रूप से चेचक का टीका दिया जाता था। 12 महिनों से कम आयु के शिशु को चेचक का टीका नहीं दिया जाता है। इसके साथ ही एक साल से 18 साल तक के बच्चों व किशोरों को चेचक की गंभीर स्थिति में ही टीका देने का सुझाव दिया जाता हैं। फिलहाल, चेचक के टीके में ड्राईवैक्स (Dryvax) को मुख्य रूप से शामिल किया जाता है। 

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चेचक का टीका व्यक्ति को तीन से पांच सालों तक सुरक्षा प्रदान करता है। इसके बाद टीके से मिलने वाली सुरक्षा कम हो जाती है। ऐसे में लंबे समय तक चेचक से बचाव के लिए आपको बूस्टर डोज की आवश्यकता होती है।

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सामान्यतः चेचक के टीके लगवाना सुरक्षित और प्रभावी माना जाता है। इस वैक्सीन से अधिकतर लोगों को बेहद हल्के साइड इफेक्ट महसूस होते थे, जो इस बात का संकेत करते थे कि वैक्सीन ने अपना काम करना शुरू कर दिया है। चेचक का टीका लेने वाले कुछ लोगों को डॉक्टरी सलाह लेने की आवश्यकता होती है।

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चेचक के टीके से निम्न तरह के दुष्प्रभावों में व्यक्ति को जल्द ही डॉक्टरी इलाज की जरूरत होती थी।

चेचक के टीके से होने वाले सामान्य दुष्प्रभाव:

टीके से होने वाले दुर्लभ मामले:

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कई बार चेचक का टीका कुछ विशेष परिस्थितियो में लेने की सलाह नहीं दी जाती है। किसी रोग या अन्य स्वास्थ्य स्थिति के कारण डॉक्टर इस वैक्सीन को बच्चों या वयस्कों को देना उचित नहीं मानते हैं। आगे जानते हैं कि किन परिस्थितियों में चेचक की वैक्सीन नहीं लेनी चाहिए या डॉक्टर की सलाह के बाद ही लेनी चाहिए।

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चेचक की टीके की खोज और निर्माण एडवर्ड जेनर ने किया था। एडवर्ड जेनर ने वैक्सीन बनाने से पहले दूध दोहने वाले उन लोगों पर जांच की जिनको काऊपॉक्स (cowpox: गोमसूरिका) के बाद चेचक नहीं हुआ था। इस जांच में एडवर्ड जेनर ने पाया कि काऊ पॉक्स के कुछ वायरस चेचक से बचाव में प्रभावी रूप से काम करते हैं। इसके बाद ही एडवर्ड जेनर ने वैक्सीन को बनाया। 

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चेचक का पहला टीका 1796 में बनाया गया था। हालांकि, यह बीमारी 200 वर्षों तक लोगों को व्यापक रूप से प्रभावित करती रही। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO: डब्ल्यूएचओ) ने इस वायरस की संक्रमण दर को धीमा करने के लिए सख्त टीकाकरण का नियमित कार्यक्रम लागू किया। जिसके बाद, वर्ष 1977 के बाद से चेचक का कोई भी मामला प्रकाश में नहीं आया है।

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वर्ष 1980 में डब्ल्यूएचओ ने चेचक को पूरी तरह खत्म कर देने की घोषणा की, हालांकि सरकार और स्वास्थ्य एजेंसियों के पास अनुसंधान प्रयोजनों के लिए अभी भी चेचक के वायरस के नमूने मौजूद हैं।

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