कंप्यूटर स्क्रीन के साथ-साथ मोबाइल पर अधिक देर तक रहने से इन गैजेट्स से निकलने वाली हानिकारक किरणें आंखों पर बुरा प्रभाव डालती है. इसके साथ ही पॉल्यूशन की वजह से भी आंखों को बहुत नुकसान पहुंचता है, जिसकी वजह से आंखों में जलन, थकान, अनिद्रा जैसी परेशानियां महसूस होती है. ऐसे में प्राचीन आयुर्वेदिक थेरेपी नेत्र तर्पण से आंखों से जुड़ी समस्याओं से निदान पाया जा सकता है.
आज इस लेख में जानेंगे कि नेत्र तर्पण थेरेपी क्या है और किस तरह से इस थेरेपी से आंखों से जुड़ी समस्याओं को दूर कर सकते हैं -
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- नेत्र तर्पण क्या है?
- कैसे की जाती है नेत्र तर्पण की विधि?
- कब करें नेत्र तर्पण की विधि?
- ये सावधानियां बरतनी हैं जरूरी
- नेत्र तर्पण के फायदे
- सारांश
नेत्र तर्पण क्या है?
नेत्र तर्पण थेरेपी में आंखों को एक तरल पदार्थ से तृप्त करने का काम करते हैं. आयुर्वेदिक उपचार के तहत नेत्र तर्पण में जिस तरल पदार्थ का इस्तेमाल होता है, वह आमतौर पर शुद्ध देसी घी होता है, जिसमें कई औषधियों को मिलाया जाता है. इस औषधीय घी में कई ऐसे एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं, जो थकी हुई व तनावग्रस्त आंखों की अवस्था से निजात दिलाने में सहायक होते हैं.
कैसे की जाती है नेत्र तर्पण की विधि?
नेत्र तर्पण की विधि में इस्तेमाल होने वाली चीजों का खास ध्यान रखा जाना चाहिए-
- नेत्र तर्पण करने की प्रक्रिया शुरू करने से पहले जौ या उड़द की दाल के आटे को गूंथ कर आंखों के चारों ओर सेट किया जाता है. ध्यान रहे कि यह आंखों के सीधे संपर्क में न आए. इस प्रक्रिया को आंखों के लिए ‘कवरिंग वॉल’ बनाना कहा जाता है, जिसकी ऊंचाई 1 से 2 इंच तक होती है. आटे को इस हिसाब से गूंथा जाता है कि यह टूटे नहीं और ज्यादा वक्त त्वचा से चिपका रहे.
- कवरिंग वॉल के बन जाने के बाद आंखों के बीच में औषधीय घी को डाला जाता है. औषधीय घी न तो ज्यादा गर्म और न ही ज्यादा ठंडा होना चाहिए. घी को ज्यादा गर्म करने से घी में मौजूद औषधीय तत्व चले जाते हैं और गर्म घी से आंखों को नुकसान हो सकता है, इसलिए घी को गर्म पानी में रखकर गर्म करना चाहिए.
- घी को डालते वक्त ध्यान रखना चाहिए कि उस दौरान आंखें बंद रहें. आंखों में औषधीय घी तब तक डाला जाता है, जब तक कि पलकें पूरी तरह से उसमें डूब न जाएं.
- घी डालने के बाद आंखों को बंद करने और खोलने के लिए कहा जाता है. इस अवस्था में कितनी देर तक रहना है और यह प्रक्रिया कितने समय तक करनी है, यह पेशेंट की बीमारी के अनुसार तय किया जाता है. आमतौर पर यह प्रक्रिया 5 दिन तक दोहराई जाती है.
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कब करें नेत्र तर्पण की विधि?
नेत्र तर्पण की विधि आमतौर पर दोपहर और शाम के बीच में की जाती है. साथ ही इस चीज का भी ध्यान रखना जरूरी है कि आसपास के वातावरण में ज्यादा धूल या धुंआ न हो. अत्यधिक गर्म या ठंडे वातावरण में इस विधि को करने की मनाही होती है. इस विधि को किसी प्रोफेशनल आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में ही किया जाना चाहिए.
ये सावधानियां बरतनी हैं जरूरी
नेत्र तर्पण उपचार के समय कुछ बातों को ध्यान में रखना जरूरी है, जिनके बारे में नीचे बताया गया है-
- नेत्र तर्पण प्रक्रिया के बाद तेज धूप में बाहर नहीं निकलना चाहिए.
- आकाश की तरफ देखने की सलाह नहीं दी जाती है.
- इसके अलावा, आप जब भी घर से बाहर निकलें, तो आप आंखों पर सन ग्लास जरूर लगा लें.
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नेत्र तर्पण के फायदे
नेत्र तर्पण की विधि से आंखों को ठंडक और उन्हें नरिशमेंट मिलती है. इस थेरेपी से आंखों के बाहरी और अंदरूनी हिस्से को पोषण मिलता है. यह आंखों की अशुद्धियों को बाहर निकालने में भी मदद करता है और इन अशुद्धियों से जनित बीमारियों को ठीक करने में भी मदद करता है. नेत्र तर्पण से कई परेशानियों से भी निजात मिलती है. जैसे -
- ड्राई आई सिंड्रोम
- कंप्यूटर-मोबाइल स्क्रीन से निकलने वाली हानिकारक किरणों से
- आंखों में खुजली की समस्या
- ग्लूकोमा
- शुरुआती मोतियाबिंद बनने से रोकना
- आंखों में दर्द
- आंखों में जलन
सारांश
आंखें रोजाना के प्रदूषण व स्क्रीन से निकलने वाली हानिकारक किरणों को झेलती हैं, जिसकी वजह से इसे काफी नुकसान पहुंचता है. यदि नेत्र तर्पण की थेरेपी का इस्तेमाल करें, तो आंखों से होने वाली परेशानियों से निजात मिल सकती है. नेत्र तर्पण की विधि से आंखों का भारीपन, साफ दिखाई न देना व आंखों में जलन जैसी परेशानियों से निजात मिल सकती है. यह ध्यान रखना बेहद जरूरी है कि इस थेरेपी को किसी प्रोफेशनल आयुर्वेदिक चिकित्सक से ही करवाएं, वरना इसके कई साइड इफेक्ट हो सकते हैं.
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