अधिकांश महिलाएं स्पॉटिंग (मासिक धर्म के इतर योनी से निकलने वाला खून) समझती हैं। शुरुआत में यह महिलाओं को चौंका सकता है कि कहीं उन्हें दोबारा पीरियड्स तो नहीं हुए हैं। और उसके बाद किसी को जब अहसास होता है कि यह कभी-कभार होने वाली घटना है तो महिलाएं अक्सर राहत की सांस लेकर उसे भूल भी जाती हैं। लेकिन क्या इस बात की हर बार अनदेखी की जानी चाहिए?

पीरियड्स के बगैर योनी से खून का हल्का स्राव इंटरमेंस्ट्रुअल ब्लीडिंग या स्पॉटिंग कहलाता है। युवतियां या महिलाएं इस दौरान अपने अंतर्वस्त्रों पर खून के एक या दो धब्बे देख सकती हैं। इसके लिए सेनेटरी नैपकिन की जरूरत महसूस नहीं होगी, सिर्फ पेंटी लाइनर से काम हो जाएगा। हालांकि, यह अनुभव परेशानी वाला हो सकता है।

स्पॉटिंग एक बहुत ही सामान्य प्रक्रिया है जो गर्भावस्था, मासिक धर्म के दौरान और कभी कभी सेक्स के बाद होती है। 30% गर्भवती महिलाओं में यह शुरुआत के तीन महीनों में होती है। तो आइये जानते हैं इस लेख में कि स्पॉटिंग किन कारणों से होती है और यह मासिक धर्म से किस प्रकार भिन्न है।

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  1. स्पॉटिंग क्या है? - What is spotting in Hindi
  2. स्पॉटिंग और पिरियड्स में अंतर - Difference between spotting and period in Hindi
  3. स्पॉटिंग के लक्षण - Spotting symptoms in Hindi
  4. स्पॉटिंग के कारण - Causes of spotting in Hindi
  5. डॉक्टर की मदद कब लें? - When to seek Doctor's help
  6. स्पॉटिंग का इलाज - Spotting Treatment in Hindi
  7. सारांश

युवतियों में स्पॉटिंग सामान्य घटना है और अधिकांश मामलों में इससे कोई नुकसान नहीं होता। यानी स्पॉटिंग बहुत ही आम समस्या है। वास्तव में यह किसी चोट, संक्रमण या तकलीफ के फलस्वरूप रक्तस्राव के रूप में होती है। वैसे इसकी पूरी तरह से अनदेखी भी नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि यह स्वास्थ्य संबधी किसी और समस्या का संकेत भी हो सकता है। यह किसी भी महिला के अस्वस्थ होने का संकेत नहीं है लेकिन अगर आपको अत्यधिक मात्रा में रक्तस्राव हो रहा है या रक्त का रंग अधिक लाल है तो यह चिंता का विषय है। परेशानी और असहज महसूस कराने के अलावा स्पॉटिंग तनाव की वजह भी बन सकती है। कभी-कभार इसके साथ दर्द भी होता है। अगर यौन संबंधों से इन्फेक्शन (एसटीआई) इसकी वजह है तो स्पॉटिंग प्रजनन संबंधी समस्या की भी वजह बन सकती है। यदि गर्भावस्था के दौरान किसी महिला को यह लक्षण महसूस होते हैं तो डॉक्टर उन्हें मेडिकल जांच कराने की सलाह देते हैं, क्योंकि इस दौरान यह समान्य भी हो सकता है और किसी गंभीर समस्या की चेतावनी भी। जब भी आपको इस तरह के रक्तस्राव से असहजता हो तो डॉक्टर से ज़रूर संपर्क करें।

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  1. स्पॉटिंग और मासिक धर्म के बीच मुख्य अंतर रक्त की मात्रा है। स्पॉटिंग में योनि के द्वारा रक्त की बहुत कम मात्रा आती है जो अंडरवियर पर थोड़े से लाल निशान के रूप में प्रकट हो सकता है। लेकिन मासिक धर्म में रक्त स्राव अधिक मात्रा में होता है जिसके लिए सेनेटरी पैड की आवश्यकता होती है। 
  2. मासिक धर्म और स्पॉटिंग के रक्त के रंग में अंतर होता है। यदि अधिक लाल रंग का रक्त मासिक धर्म का प्रतीक है और स्पॉटिंग का रक्त हल्के भूरे रंग का होता है।
  3. स्पॉटिंग सामान्य शारीरिक क्रियाविधि है लेकिन कभी कभी यह अस्वस्थ्य शरीर का संकेत भी होती है जबकि मासिक धर्म हमेशा महिला के स्वस्थ्य होने का संकेत देते हैं।
  4. स्पॉटिंग किसी भी समय हो सकती है जबकि मासिकधर्म का समय लगभग निश्चित होता है।

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मासिक धर्म के दौरान, रक्त का प्रवाह काफी अधिक होता है जिस कारण आपको पैड्स या टैम्पॉन का उपयोग करना पड़ता है लेकिन स्पॉटिंग मासिक धर्म से काफी कम मात्रा में होती है और इसके लिए आपको पैड्स का उपयोग करने की ज़रूरत नहीं होती क्योंकि इस दौरान बहुत कम मात्रा में रक्त निकलता है साथ ही स्पॉटिंग के रक्त का रंग भी पीरियड्स के रक्त के रंग से हल्का होता है।

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यह पता करने का कि आपको पीरियड्स हो रहे हैं या स्पॉटिंग एक और तरीका भी है। आपको माहवारी से पहले या माहवारी के दौरान निम्नलिखित लक्षण महसूस होंगे :

  1. सूजन
  2. स्तनों में असहजता
  3. ऐंठन
  4. थकान 
  5. मूड बदलना
  6. जी मिचलाना

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हालांकि कभी कभी स्पॉटिंग और मासिक धर्म एक साथ ही हो जाते हैं लेकिन स्पॉटिंग के लक्षण इस प्रकार के होते हैं:

  1. मासिकधर्म के दौरान सामान्य से अधिक रक्त स्राव
  2. योनि में खुजली और लालिमा 
  3. अनियमित मासिक धर्म
  4. जी मिचलाना
  5. पेशाब या सेक्स के दौरान दर्द या जलन
  6. पेट या श्रोणि में दर्द
  7. योनि से असामान्य स्रावण और गंध आना।
  8. वज़न बढ़ना

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  1. हार्मोन : यौवन के आगमन और रजोनिवृत्ति के वक्त हार्मोनल परिवर्तन इसकी एक वजह हो सकते हैं।
  2. शारिरिक रचना संबंधी : प्रजनन के बाद के वक्त में स्पॉटिंग की वजह वल्वा, वेजाइना या सर्विक्स पर पॉलिप, फाइब्रॉयड के विकसित (गैर कैंसर) होने के कारण भी हो सकती है। हालांकि, इसकी वजह ओवेरियन या सर्वाइकल कैंसर भी हो सकता है।
  3. दवा से संबंधित : कुछ स्टेरॉयड्स और खून पतला करने वाली दवाएं (ब्लड थिनर्स) भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकती हैं।
  4. मासिक चक्र के दौरान जब अण्डोत्सर्ग होने वाला होता है उस समय हल्के भूरे या गुलाबी रंग का रक्तस्राव होता है लेकिन यह एक दिन में बंद हो जाता है।
  5. आखिरी मासिक धर्म के दो सप्ताह बाद हल्के गुलाबी रंग का रक्तस्राव हो सकता है। ऐसा तब होता है जब अंडाशय से अंडा फैलोपियन ट्यूब में जाता है। इस दौरान, योनि से थोड़ी मात्रा में रक्त प्रवाह हो सकता है। अधिकतर महिलाओं में ओवुलेशन स्पॉटिंग एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ने के कारण होती है जिस दौरान गर्भाशय की दीवार की परत निकलती है। (और पढ़ें - ओवुलेशन से जुड़े मिथक और तथ्य)
  6. केवल 20-30 प्रतिशत महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान स्पॉटिंग का अनुभव होता है। शुरुआती तीन महीनों जब निषेचित अंडा गर्भाशय की दीवार पर आरोपित होता है तब इस आरोपण के रक्तस्राव को अधिकतर महिलाएं मासिक धर्म समझ लेती हैं क्योंकि यह रक्तस्राव तब होता है जब उन्हें गर्भवती होने का पता भी नहीं चलता। (और पढ़ें - गर्भ ठहरने के उपाय)
  7. गर्भवती महिलाओं को इसका खास ध्यान रखना चाहिए क्योंकि कभी कभी यह किसी गंभीर बात का संकेत हो सकता है। यह गर्भपात, गर्भनाल (placenta) की समस्याओं, अस्थानिक गर्भावस्था (ectopic pregnancy) या समय से पूर्व प्रसव का संकेत हो सकता है। इन सभी परिस्थितियों में तत्काल चिकित्सा उपचार की आवश्यकता होती है।
  8. गर्भावस्था के अंतिम समय में, रक्त स्राव होना प्रसव का संकेत भी हो सकता है। जब शरीर प्रसव के लिए तैयार होता है उस समय यह रक्त म्यूकस प्लग से आता है। यह आमतौर पर गर्भावस्था के 37 सप्ताह के बाद होता है। यदि स्पॉटिंग इससे पहले होती है तो आपको डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। (और पढ़ें - प्रेगनेंसी में पेट दर्द करना)
  9. अगर उपर्युक्त कारणों से रक्तस्राव नहीं हो रहा है तो कभी कभी यह संक्रमण के कारण भी हो सकता है। यह संक्रमण योनि, गर्भाशय, फैलोपियन ट्यूब, गर्भाशय ग्रीवा और अंडाणुओं में हो सकता है और इसे कभी अनदेखा नहीं करना चाहिए क्योंकि इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। स्पॉटिंग गंभीर बीमारियों का लक्षण भी हो सकती है जैसे, गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर, एंडोमेट्रिओसिस (endometriosis), गर्भाशय की दीवार में घाव आदि।
  10. अनियमित रक्तस्राव पॉलीसिस्टिक अंडाशय सिंड्रोम (पीसीओएस) का भी लक्षण है। जिसमें अंडाशय से अतिरिक्त पुरुष हार्मोन का उत्पादन होता है।
  11. गर्भनिरोधक गोलियां भी स्पॉटिंग का कारण बन सकती हैं, खासकर तब जब आप पहली बार उनका उपयोग करना शुरु करती हैं या आप गोलियां बदलती हैं। जिन महिलाओं में गर्भनिरोधक उपकरण (intrauterine device) होती है। (और पढ़ें - आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियों के उपयोग)
  12. गर्भाशय फाइब्रॉएड कैंसर न करने वाली गाठें होती हैं जो गर्भाशय के बाहर या अंदर बनती हैं। इनकी वजह से असामान्य योनि रक्तस्राव और दर्द होता है। 
  13. सर्वाइकल पोलिप गर्भाशय ग्रीवा पर होता है। यह कैंसर नहीं है, लेकिन इसके कारण रक्तस्राव हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान, हार्मोन में परिवर्तन के कारण इनसे रक्तस्राव हो सकता है।
  14. रजोनिवृत्ति के दौरान हार्मोनों के स्तर में उतार-चढ़ाव के कारण भी स्पॉटिंग हो सकती है लेकिन एक बार जब पूर्ण रजोनिवृत्ति हो जाती है तो खून बहना बंद हो जाना चाहिए। 
  15. असहज सेक्स या यौन उत्पीड़न के दौरान यदि योनि को कोई भी नुकसान होता है, तो स्पॉटिंग हो सकती है।

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कभी-कभार होने वाली स्पॉटिंग को नजरअंदाज किया जा सकता है, लेकिन अगर इनमें से कुछ भी हो तो तुरंत डॉक्टर से मिलें :

  • जब स्पॉटिंग नहीं रुके और ज्यादा खून बहने लगे
  • रजोनिवृत्ति के बाद हार्मोन थेरेपी ले रही महिलाओं को महीने में कुछ दिन स्पॉटिंग हो। यह आमतौर पर तीन से छह महीने में रुक जाती है, अगर सामान्य से ज्यादा रक्तस्राव हो रहा हो और छह माह के बाद भी कायम रहे तो डॉक्टर से संपर्क किया जाना चाहिए
  • 8 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों में स्पॉटिंग, जबकि उनमें यौवन के अन्य लक्षण दिखाई न दे रहे हों
  • रजोनिवृत्ति के बाद स्पॉटिंग रुकनी चाहिए। रजोनिवृत्ति के बाद गुप्तांग से किसी भी तरह का रक्तस्राव चिंता का विषय होना चाहिए
  • स्पॉटिंग या हल्का रक्तस्राव नवजात बच्चियों में कुछ दिनों तक देखा जा सकता है। एक माह बाद भी ऐसा हो तो चिंता का विषय है
  • स्पॉटिंग के साथ बुखार, सिर चकराना, गुप्तांग से बहुत ज्यादा स्राव, पेट या पेल्विक एरिया में दर्द
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अन्य लक्षणों को देखते हुए आपके डॉक्टर ब्लड, हार्मोन, प्रेग्नेंसी या थायराइड फंक्शन टेस्ट करा सकते हैं। वह पेल्विस के अल्ट्रासाउंड, सोनोहिस्टेरोग्राफी (गर्भाशय का विशेष अल्ट्रासाउंड), पेल्विक एमआरआई (फाइब्रायड्स या कैंसर की पहचान के लिए) या हिस्टेरोग्राफी (फाइब्रायड्स और पॉलिप्स के लिए) की सिफारिश कर सकते हैं। स्पॉटिंग का इलाज टेस्ट के जरिये मालूम होने वाली बातों के आधार पर किया जाता है। इलाज के तरीकों में दवा, गर्भाशय को निकालना, गर्भाशय में उपकरण लगाना, बर्थ कंट्रोल पिल्स बदलना, मयोमेक्टॉमी (सजर्री के जरिये फाइब्रायड्स को हटाना), डायलेशन के जरिये एंडोमेट्रायोसिस टिश्यूज को हटाना, क्यूरेटेज या यूटेरिन फाइब्रायड एम्बोलाइजेशन (खून के प्रवाह को रोकना, जिससे फाइब्रायड्स सिकुड़ जाते हैं)। शामिल हैं।

स्पॉटिंग एक सामान्य चिकित्सा स्थिति है जिसमें मासिक धर्म चक्र के बीच में हल्की रक्तस्राव होती है। यह आमतौर पर मासिक धर्म के पहले या बाद में होती है और इसकी मात्रा बहुत कम होती है, जो आमतौर पर पैड या टैम्पॉन की आवश्यकता नहीं होती है। स्पॉटिंग के कई संभावित कारण हो सकते हैं, जैसे हार्मोनल असंतुलन, गर्भनिरोधक गोलियों का उपयोग, गर्भावस्था, तनाव, या थायरॉयड समस्याएं। कभी-कभी यह यौन संचारित रोगों, गर्भाशय फाइब्रॉएड, या गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर का संकेत भी हो सकता है। यदि स्पॉटिंग लगातार होती है या इसके साथ अन्य लक्षण जैसे दर्द या भारी रक्तस्राव होते हैं, तो चिकित्सक से परामर्श लेना महत्वपूर्ण है। सामान्यतया, स्पॉटिंग एक गंभीर समस्या नहीं होती है, लेकिन इसका निदान और उपचार आवश्यक हो सकता है ताकि किसी भी संभावित अंडरलाईंग स्थिति को समय पर पहचाना और प्रबंधित किया जा सके।

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