महिलाओं के स्वास्थ्य पर हार्मोन के कई महत्वपूर्ण प्रभाव होते हैं। एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन महिला सेक्स हार्मोनों के रूप में जाने जाते हैं। ये हार्मोन महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य जैसे माहवारी, गर्भावस्था तथा रजोनिवृत्ति में अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन शरीर में भी कई प्रकार के हार्मोन बनते हैं जो आपके स्वस्थ्य को, आपकी ऊर्जा स्तर, वजन, मूड और अनेकों चीज़ों को प्रभावित करते हैं।
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तो आइये इस लेख के माध्यम से जानते हैं कि हार्मोन कैसे किसी महिला की कामुकता और प्रजनन पर असर डालते हैं।
इन हार्मोन्स असंतुलन के कारण पॉलीसिस्टिक अंडाशय सिंड्रोम (पीसीओएस) और रजोनिवृत्ति जैसी स्थितियां उत्पन्न होती हैं।
जितनी अच्छी तरह से आप ये समझने में सक्षम होंगे कि हार्मोन महिलाओं के शरीर, मन और भावनाओं को कैसे प्रभावित करते हैं उतने ही बेहतर ढंग से आप हार्मोनों के कारण पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को कम करने में कामयाब होंगे।
नवजात बच्चियों में महिला हार्मोन्स का महत्व - Importance of hormones for newborns in Hindi
अधिकतर लोगों का सोचना है कि हार्मोन महिलाओं के शरीर को युवावस्था की शुरुआत में प्रभावित करते हैं लेकिन वास्तव में हार्मोन महिलाओं के जीवन पर उनके जन्म से ही असर डालने लगते हैं।
कुछ नवजात शिशुओं (लड़कों और लड़कियों दोनों) में वक्षस्थल बड़ा होता है। कभी-कभी उनमें थोड़े दूध का उत्पादन भी हो सकता है।
ऐसा माना जाता है कि नवजात शिशुओं में यह स्तन वृद्धि एस्ट्रोजन (महिला हार्मोन) के कारण होती है। गर्भावस्था के दौरान यह हार्मोन प्लेसेंटा के माध्यम से माँ से बच्चे में आ जाता है और छाती में वृद्धि का कारण बनता है। (और पढ़ें - गर्भ ठहरने के उपाय)
एक और सुझाव यह भी दिया गया है कि मां से बच्चे में होने वाले रक्त परिसंचरण के कारण माँ में एस्ट्रोजन (Estrogen) हार्मोन के स्तर में कमी आती है। इस प्रक्रिया के फलस्वरूप बच्चे के मस्तिष्क में प्रोलैक्टिन (Prolactin) नामक हार्मोन का उत्पादन होता है जो कुछ हद तक स्तन वृद्धि कर सकता है। यह आमतौर पर कुछ हफ्तों के बाद गायब हो जाता है।
छोटी बच्चियों में कभी कभी दो वर्षों तक यह लक्षण फिर से प्रदर्शित हो सकते हैं। क्योंकि इस समय बच्चे के स्वयं के हार्मोन स्तन के ऊतकों को प्रभावित करते हैं। बचपन में स्तन वृद्धि में इस प्रकार के उतार चढ़ाव कुछ महीनों तक प्रदर्शित हो सकते हैं।
किशोरावस्था में हार्मोन्स के कारण लड़कियों के शरीर में आने वाले परिवर्तन - Changes in a girl's body due to hormones during puberty in Hindi
यौवनारंभ (Puberty) के समय हार्मोन एक लड़की के शरीर में अनेकों महत्वपूर्ण और स्थायी परिवर्तन करते हैं। उसकी लम्बाई और स्तनों के आकार में वृद्धि होती है साथ ही बगलों (Underarms) और गुप्तांगों में बाल विकसित होने लगते हैं।
उनमें मासिक धर्म की शुरुआत हो जाती है जिसके उपरांत शारीरिक लम्बाई धीमी गति से और बहुत कम बढ़ती है। यौवनारंभ की प्रक्रिया में आमतौर पर कम से कम चार साल लगते हैं। कुछ लड़कियों को अपने बदलते शरीर और प्रजनन की शुरूआत के इस समय में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। यौवनारंभ के बाद शरीर में परिवर्तन होना अपने आप बंद हो जाता है।
मस्तिष्क के हाइपोथेलेमस (Hypothalamus) भाग से गोनैडोट्रॉपिन रिलीजिंग हार्मोन [Gonadotrophin releasing hormone (GnRH)] नामक हार्मोन रिलीज़ होता है। यह हार्मोन मस्तिष्क में उपस्थित पीयूष ग्रंथि (Pituitary gland) को ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन [Luteinising hormone (LH)] और फॉलिकल स्टिम्युलेटिंग हॉर्मोन [Follicle stimulating hormone (FSH)] का निर्माण करने के लिए उत्तेजित करता है। जिसके परिणामस्वरूप लड़की के अंडाशय से अन्य हार्मोनों का उत्पादन होता है।
महिला सेक्स हार्मोन्स का महत्व - Importance of female sex hormones in Hindi
अंडाशय से रिलीज़ होने वाले हार्मोनों को महिला सेक्स हार्मोन के नाम से जाना जाता है जिनमें दो हार्मोन प्रमुख हैं - एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन। अंडकोष में कुछ पुरुष हार्मोन भी बनते हैं जैसे टेस्टोस्टेरोन।
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यौवनारंभ के दौरान, एस्ट्रोजन हार्मोन के कारण ही स्तनों, योनि, गर्भाशय तथा फैलोपियन ट्यूब का विकास होता है।
यह शारीरिक विकास में भी अहम भूमिका निभाता है और लड़कियों के शरीर पर, खासतौर से कूल्हों और जांघों में वसा एकत्रित करता है। टेस्टोस्टेरोन मांसपेशियों और हड्डियों के विकास में मदद करता है। (और पढ़ें - टेस्टोस्टेरोन बढ़ाने के घरेलू उपाय)
यौवनारंभ से, एलएच (LH), एफएसएच (FSH), एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन महिलाओं के मासिक धर्म चक्र को सुचारु रूप से कार्य करने में मदद करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें पीरियड्स होते हैं। (और पढ़ें - पीरियड (मासिक धर्म) से जुड़े मिथक और तथ्य)
प्रत्येक व्यक्ति में हार्मोन भिन्न प्रकार से कार्य करते हैं जिस कारण मासिक चक्र के होने में विभिन्नताएं पायी जाती हैं।
अंडाशय में मौजूद अनेकों में से एक अंडा परिपक्व होता है और फेलोपियन ट्यूब के माध्यम से गर्भ में जाने के लिए अंडाशय से रिलीज़ होता है।
अगर वह अंडा निषेचित नहीं किया जाता, तो अंडाशय द्वारा रिलीज़ एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोनों का स्तर गिरने लगता है। इन हार्मोनों का समर्थन (Support) न मिलने के कारण, गर्भ का अस्तर जो रक्त से भरा होता है, माहवारी के माध्यम से शरीर से बाहर निकल जाता है।
गर्भावस्था में महिला हार्मोन्स की भूमिका - Importance of hormones during pregnancy in Hindi
जब महिलाओं में गर्भावस्था की शुरुआत होती है तो उनमें बड़ी तेज़ी से हार्मोनों के स्तर में बदलाव आते हैं :
इस दौरान मासिक धर्म चक्र के अंत में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के स्तर में अचानक कमी होने के कारण पीरियड्स नहीं होते हैं।
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प्लेसेंटा द्वारा निर्मित ह्यूमन कोरिओनिक गोनाडोट्रोपिन (एचसीजी) [Human chorionic gonadotrophin (HCG)] हार्मोन गर्भधारण को बनाए रखने के लिए आवश्यक एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का उत्पादन करने के लिए अंडाशय (Ovaries) को प्रेरित करता है।
प्रेगनेंसी टेस्ट के लिए उपयोग की जाने वाली गर्भावस्था परीक्षण किट, महिला के मूत्र में एचसीजी हार्मोन का ही पता लगाने के लिए बनाई गई हैं।
गर्भावस्था के चौथे महीने तक एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के प्रमुख उत्पादक, अंडाशय का कार्य प्लेसेंटा करने लगता है अर्थात गर्भावस्था के इस समय में अंडाशय की जगह एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का उत्पादन प्लेसेंटा करता है। ये हार्मोन गर्भ की परत को मोटा करने, रक्त परिसंचरण की मात्रा बढ़ाने (विशेष रूप से गर्भ और स्तनों में रक्त आपूर्त) और बच्चे के विकास के लिए गर्भ का आयतन बढ़ाने में मदद करते हैं।
प्रोजेस्टेरोन और रिलैक्सिन (Relaxin) हार्मोन अस्थिरज्जु (Ligaments) और मांसपेशियों में शिथिलता पहुंचाने का काम करते हैं। श्रोणि चक्र (Pelvic girdle) में गतिशीलता बच्चे के जन्म के दौरान श्रोणि की कार्यक्षमता में वृद्धि करता है।
प्रसव के दौरान अन्य हार्मोन भी आवश्यक होते हैं जो प्रसव के दौरान और बाद में गर्भ के सिकुड़ने और दुग्ध उत्पादन में मदद करते हैं। (और पढ़ें - नॉर्मल डिलीवरी कैसे होती है)
बच्चे के जन्मोपरांत हार्मोन परिवर्तन के कारण शरीर में होने वाले बदलाव - Changes in a woman's body after delivery due to hormones in Hindi
भौतिक परिवर्तनों के कारण एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन और अन्य हार्मोनों का स्तर तेजी से घटता है, जिस कारण शरीर में कई परिवर्तन होते हैं।
गर्भ अपने पूर्व आकार में वापस आ जाता है। पेल्विक क्षेत्र की मांसपेशियों में सुधार होता है और शरीर में रक्त परिसंचरण सामान्य रूप से होने लगता है।
हार्मोनों के स्तर में अचानक परिवर्तन के कारण प्रसव के बाद डिप्रेशन होने की संभावनाएं भी होती हैं। हालांकि ऐसा बहुत कम मामलों में होता है। (और पढ़ें – डिप्रेशन का देसी इलाज)
हार्मोन स्तर में परिवर्तन के कारण ही महिलाओं को मासिक धर्म के पूर्व कुछ लक्षण अनुभव होते हैं जिन्हें पीएमएस (PMS) कहते हैं। इन लक्षणों में कई महिलाओं को स्तनों में असहजता, पेट में सूजन, चिड़चिड़ापन, मूड बदलना जैसे लक्षणों का अनुभव होता है। लेकिन ये लक्षण हार्मोन के स्तर में उतार चढ़ाव के कारण महसूस होते हैं या मस्तिष्क के रसायनों में परिवर्तन के कारण या फिर सामाजिक और भावनात्मक स्थितियों के कारण, यह आज भी चर्चा का विषय है।
रजोनिवृत्ति में महिला हार्मोन का योगदान - Hormones and Menopause in Hindi
उपर्युक्त परिवर्तनों के बाद बचे हुए महत्वपूर्ण हार्मोनल परिवर्तन आखिरी मासिक धर्म के समय होते हैं। जब महिलाओं को एक वर्ष तक माहवारी नहीं होती है तो इसका अर्थ है कि वे रजोनिवृत्ति (Menopause) के चरण से गुज़र रही हैं।
रजोनिवृत्ति की औसत आयु 52 वर्ष है। यदि रजोनिवृत्ति 40 साल की उम्र के भीतर हो जाती है तो उसे समयपूर्व रजोनिवृत्ति (Premature menopause) कहा जाता है।
कभी कभी महिलाओं में आखिरी मासिक धर्म के पांच-दस वर्ष पहले, अंडाशयों के सामान्य कार्यों में गड़बड़ी आने के कारण मासिक धर्म चक्र कम या अधिक हो सकता है और कभी-कभी यह बहुत अनियमित, अत्यधिक या कम रक्तस्राव के साथ भी हो सकते हैं। (और पढ़ें - मासिक धर्म में अधिक रक्तस्राव के लक्षण, कारण, उपाय और निदान)
अंत में, अंडाशय इतने कम एस्ट्रोजन का उत्पादन करते हैं कि गर्भ की परत मोटी नहीं हो पाती और पीरियड्स पूरी तरह से बंद हो जाते हैं। इसी वजह से रजोनिवृत्ति के बाद गर्भधारण करना संभव नहीं हो पाता।
महिलाओं में एस्ट्रोजन, हृदय और हड्डियों की रक्षा करता है साथ ही स्तन, गर्भ, योनि और मूत्राशय को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है। (और पढ़ें - हृदय को स्वस्थ रखने के लिए खाएं ये आहार)
रजोनिवृत्ति के बाद एस्ट्रोजन के स्तर में कमी आने के कारण स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है जिसके परिणामस्वरुप हॉट फ्लैशेस और रात में पसीना आने जैसे असुविधाजनक लक्षण उत्पन्न होते हैं। एस्ट्रोजन की कमी के कारण हृदय रोग और हड्डी संबंधी विकार ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) होने का जोखिम भी बढ़ जाता है।
अन्य समस्यायें जैसे योनि का सूखापन, सेक्स के दौरान असुविधा, मूत्र पथ संक्रमण और असंयम (Incontinence) आदि भी हो सकती हैं। (और पढ़ें – यूरिन इन्फेक्शन के कारण)
यह हार्मोन अवसाद, चिड़चिड़ापन और एकाग्रता में कमी आदि लक्षणों का भी कारण होते हैं।
लेकिन यदि रजोनिवृत्ति के दौरान असहनीय लक्षण अनुभव हो रहे हैं तो हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एचआरटी) इसके उपचार में बहुत प्रभावी हो सकती है।
इस प्रकार शुरुआत से अंत तक हार्मोन महिलाओं के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे शरीर को आकार देने के साथ-साथ गर्भावस्था, प्रसव और रजोनिवृत्ति आदि प्रक्रियाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं।
इन हार्मोनों के कारण आपको शारीरिक और मानसिक रूप से कठिनाइयों का सामना ज़रूर करना पड़ता है लेकिन इनके बिना आपका जीवन अधूरा और नीरस बन सकता है।