किसी व्यक्ति के खून में कितनी मात्रा में वायरस मौजूद है उसे ही वायरल लोड कहा जाता है। वायरल लोड ही यह निर्धारित करता है कि वह व्यक्ति बीमार होगा या नहीं, क्या वह व्यक्ति दूसरों को बीमारी फैलाने वाला संक्रामक बन सकता है या नहीं और इंफेक्शन के कारण वह व्यक्ति कितना ज्यादा या कम बीमार हो सकता है। सामान्य नियम के मुताबिक, व्यक्ति के खून या शरीर में वायरल लोड की मात्रा जितना ज्यादा होगी, शरीर में इंफेक्शन फैलने के आसार उतने ही ज्यादा होंगे।
शरीर के प्रति मिलिलीटर खून में वायरस की कितनी मात्रा मौजूद है इसके आधार पर ही वायरल लोड को मापा जाता है। मौजूदा समय में विशेष वायरल लोड टेस्ट मौजूद हैं जो किसी मरीज में संक्रमण की सीमा क्या है या किसी व्यक्ति के शरीर में लाइव वायरस कितना मौजूद है, इसका पता लगा सकते हैं।
इससे पहले एचआईवी/एड्स के इलाज में वायरल लोड परीक्षण बेहद महत्वपूर्ण माना जाता था और अब कोविड-19 महामारी के दौरान भी वायरल लोड टेस्ट बेहद अहम है। न केवल यह विश्लेषण करने के लिए कि किसी मरीज में संक्रमण कितना गंभीर हो सकता है, बल्कि यह समझने के लिए भी कि वह व्यक्ति खुद कितना संक्रामक है। उच्च वायरल लोड इस बात का भी संकेत देता है कि वायरस कैरी करने वाला व्यक्ति वायरल शेडिंग के माध्यम से इसे अन्य लोगों में किस तरह से फैलाने में सक्षम है।
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किसी व्यक्ति में वायरल लोड इस बात का भी संकेत देता है कि इम्यून सिस्टम कोशिकाओं पर आक्रमण करने वाले रोगाणुओं के खिलाफ कैसी प्रतिक्रिया देता है। जैसा कि एचआईवी/एड्स के मामले में, उच्च वायरल लोड संकेत देता है कि कि संक्रमण से लड़ने के लिए तैनात CD4+ कोशिकाएं नष्ट हो चुकी है जिससे शरीर में बीमारी का तेजी से विकास हो रहा है।
आमतौर पर किसी व्यक्ति के शरीर में वायरल लोड की बढ़ोतरी बीमारी की प्रगति का संकेत देता है। इसका विपरित भी सच है: शरीर में वायरल लोड में कमी होने का मतलब है कि संक्रमण को दबा दिया गया है। हालांकि, बीमारी के प्रसार के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए कोविड-19 मरीजों के हालिया शोध में कुछ दिलचस्प परिणाम सामने आए हैं।