इस टेस्ट को करने के लिए सबसे पहले लैब टेक्नीशियन आपकी बाजू की नसों से खून निकालते हैं। एंटीजेन-एंटीबॉडी प्रतिक्रिया को देखने के लिए लैब्स में निम्नलिखित टेक्नीक का इस्तेमाल किया जाता है:
अवक्षेपण या प्रीसिपिटेशन : अवक्षेपण की प्रतिक्रिया में घुलनशील एंटीजेन और एंटीबॉडी एक दूसरे के साथ प्रतिक्रिया करते हैं ताकि एक ठोस गाद जैसी चीज का निर्माण कर सकें जिसे नंगी आंखों से भी आसानी से देखा जा सकता है। इस पद्धति में तलहट में जमा गाद जैसी चीज सिर्फ तभी नजर आती है जब टेस्ट पॉजिटिव होता है।
अवक्षेपण की प्रतिक्रिया को किसी फ्लूइड सॉलूशन या जेल फेज में किया जाता है। इसमें एंटीजेन फ्लूइड सॉलूशन के लेयर को एंटीबॉडी सॉलूशन के ऊपर या फिर एंटीबॉडी सॉलूशन के लेयर को एंटीजेन सॉलून के ऊपर डाला जाता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि मरीज के खून के सीरम में किसकी मौजूदगी की जांच हो रही है एंटीजेन की या एंटीबॉडी की।
ये दोनों लेयर मिक्स हो जाती हैं और एंटीजेन और एंटीबॉडीज अगर मौजूद हैं तो वे निष्क्रिय प्रसार के जरिए एक दूसरे की तरफ यात्रा करते हैं। इसके बाद अगर किसी तरह का गाद जमा होता है तो वह दोनों सॉलूशन के बीच में कहीं नजर आने लगता है, कहीं भी जहां एंटीजेन और एंटीबॉडीज बराबर मात्रा में मौजूद होते हैं। जिस हिस्से में एंटीजेन या एंटीबॉडी की अधिकता होगी वहां पर कोई भी जमा गाद नजर नहीं आएगा।
जेल फेज अवक्षेपण भी निष्क्रिय प्रसार पद्धति है। इसमें एगारोज जेल को पेट्री प्लेट में डाला जाता है और फिर जेल में अलग-अलग कुआं या कूप बनाए जाते हैं। बीच वाले कूप में एंटीजेन या एंटीबॉडी सॉलूशन डाला जाता है और उसके विपरित सॉलूशन को आसपास के बाकी कूपों में डाला जाता है। यह सॉलूशन जेल से होता हुआ सफर करेगा और तुल्यता या समानता के क्षेत्र में अवक्षेपण की रेखाएं बनेंगी।
जेल फेज के एक दूसरे अवक्षेपण में जेल में एंटीसीरम डाला जाता है, इससे पहले कि वह ठोस बन जाए एंटीजेन सॉलूशन को खोदे गए कूप या कुएं में। समानता के क्षेत्र के आसपास मौजूद कुओं में अवक्षेपण होता है। बाद वाली इस पद्धति को इम्यूनोडीफ्यूजन कहते हैं और पहले वाली पद्धति को ऑक्टरलूनी टेक्नीक।
अवक्षेपण का एक और तरीका है जिसे इलेक्ट्रोडिफ्यूजन कहते हैं। इसमें एंटीजेन और एंटीबॉडी मॉलिक्यूल की गतिविधि किसी इलेक्टिक करेंट के असर के बाद होती है।
संलग्नता या अग्लूटनेशन : इस टेक्नीक में या तो एंटीजेन या एंटीबॉडी को किसी अणु या तत्व के साथ बांध दिया जाता है जैसे- लेटेक्स बीड, चार्कोल के टुकड़े या लाल रक्त कोशिकाएं और उसके बाद एंटीजेन-एंटीबॉडी प्रतिक्रिया को देखा जाता है कि किसी तरह के गुच्छों का निर्माण हो रहा है या नहीं।
उदाहरण के लिए- संलग्नता की प्रतिक्रिया जिसमें लेटेक्स बीड का इस्तेमाल होता है और व्यक्ति में एंटीबॉडीज की पहचान के लिए किया जा रहा है उसमें एंटीजेन को लेटेक्स बीड के साथ बांध दिया जाता है और उसके बाद उसे मरीज के सीरम से एक्सपोज किया जाता है। अगर टेस्ट एंटीजेन के खिलाफ सैंपल में एंटीबॉडीज हैं तो तत्वों द्वारा गुच्छा बनते हुए नंगी आंखों से साफ नजर आने लगेगा।
संलग्नता की प्रतिक्रिया के लिए पूरे बैक्टीरिया या रोगाणु को एंटीजेन के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसा करने पर इसे प्रत्यक्ष संलग्नता कहा जाता है। अगर मरीज के सीरम में एंटीबॉडीज मौजूद हों तो वह बैक्टीरिया पर हमला कर गुच्छे बनाने लगेगा।
संलग्नता की प्रतिक्रिया अवक्षेपण की प्रतिक्रिया से ज्यादा संवेदनशील है। टेस्ट की संवेदनशीलता का मतलब है कि जिस इंफेक्शन के लिए टेस्ट किया जा रहा है उसकी सही-सही पहचान करने की कितनी क्षमता है इस टेस्ट में यानी यह टेस्ट सही मायने में ज्यादा पॉजिटिव नतीजे देगा और बेहद कम फॉल्स नेगेटिव।
इम्यूनोएसेस : इम्यूनोएसेस में एंटीजेन-एंटीबॉडी प्रतिक्रिया का इस्तेमाल कर दिए गए सैंपल में एंटीजेन या एंटीबॉडी की मात्रा निर्धारित करता है। इम्यूनोएसेस के निम्नलिखित प्रकार हैं:
एलिसा : एन्जाइम लिंक्ड इम्यूनोसॉर्बेंट एसे (एलिसा) में एंटीजेन-एंटीबॉडी प्रतिक्रिया होने पर एक रंग उत्पन्न करने के लिए एन्जाइम का इस्तेमाल किया जाता है। यह एन्जाइम या तो एंटीजेन से लिंक्ड होता है या फिर एंटीबॉडी से। यह इस बात पर निर्भर करता है कि दिए गए सैंपल में किस चीज को चेक किया जा रहा है। एलिसा में इस्तेमाल होने वाले कुछ एन्जाइम्स में ऐल्कलाइन फॉस्फेटेस और हॉर्सरैडिश पेरॉक्सिडेज शामिल है।
एंटीबॉडी की पहचान के लिए इस तरह से होता है एलिसा टेस्ट : इस टेस्ट के लिए माइक्रोटिटर प्लेट (जिसमें बहुत सारे छोटे-छोटे कूप या कूएं होते हैं) का इस्तेमाल होता है जिसमें उस विशेष एंटीजेन (जिसके खिलाफ एंटीबॉडी की जांच की जानी है) को अटैच किया जाता है। उसके बाद मरीज के सीरम को कूएं में डाला जाता है। अगर सीरम में एंटीजेन के खिलाफ एंटीबॉडीज हैं तो एंटीजेन-एंटीबॉडी प्रतिक्रिया होगी। किसी भी तरह के फ्री एंटीबॉडी को खास तरह के सॉलूशन की मदद से प्लेट से हटा दिया जाता है। अब एन्जाइम-लिंक्ड एंटीबॉडी को प्लेट में डाला जाता है। यह एंटीबॉडी उस एंटीबॉडी से असामान्य है जिसे सैंपल में खोजना है। अगर पहली एंटीबॉडी प्लेट में है तो यह दूसरी एंटीबॉडी खुद को उससे बांध लेगी। सभी तरह की सेकंडरी एंटीबॉडीज बाहर हो जाएंगी। इसके बाद एन्जाइम के सबस्ट्रेट को सॉलूशन में डाला जाएगा। एन्जाइम सबस्ट्रेट से प्रतिक्रिया करेगा और रंग बदलेगा अगर प्लेट में कोई सेकेंडरी एंटीबॉडी बची होगी। खास तरह के औजार की मदद से रंग के गाढ़ेपन को चेक किया जाता है ताकि एंटीबॉडी के लेवल को प्राप्त किया जा सके।
वेस्टर्न ब्लोटिंग : वेस्टर्न ब्लॉट भी एक और तरह का इम्यूनोएसे है जिसका इस्तेमाल कर दिए गए सैंपल में खास तरह के प्रोटीन की पहचान की जाती है। इस टेक्नीक में सॉलूशन में से प्रोटीन या एंटीजेन को पहले बिजली के करेंट के प्रभाव में अलग किया जाता है पॉलिऐक्रिलामाइड जेल में। इसके बाद जेल में से एंटीजेन को फिल्टर पेपर पर ट्रांसफर किया जाता है जो एलिसा माइक्रोटिटर प्लेट की तरह ठोस सतह बन जाता है। इसके बाद फिल्टर पेपर को एन्जाइम लिंक्ड एंटीबॉडीज से एक्सपोज किया जाता है। और सबसे आखिर में एन्जाइम के सबस्ट्रेट को सॉलूशन में ऐड किया जाता है। अगर एंटीबॉडीज खुद को एंटीजेन से बांध लेती हैं और धुलकर बाहर नहीं होती तो एन्जाइम सबस्ट्रेट के साथ प्रतिक्रिया करेगा और रंग उत्पन्न होगा। रंग कितना गाढ़ा है उसके हिसाब से पता चलेगा कि टार्गेन प्रोटीन सॉलूशन में कितनी मात्रा में मौजूद था।
इम्यूनोफ्लोरोसेन्स : किसी दिए गए सैंपल में खास तरह का एंटीजेन है या नहीं इसकी मौजूदगी के लिए इस्तेमाल होने वाला सबसे कॉमन टेक्नीक है। इसमें एंटीबॉडीज को खास तरह के फ्लोरोसेंट डाई से लेबल किया जाता है। अगर सैंपल में एंटीजेन मौजूद है तो यह एंटीबॉडीज उनके साथ खुद को बांध लेती हैं। इसके बाद एंटीजेन-एंटीबॉडी समूह को खास वेवलेंथ की लाइट से एक्सपोज किया जाता है जिसके बाद इनमें रोशनी दिखती है जिसे रंगीन लाइट की तरह देखा जा सकता है।
उदाहरण के लिए- एक डाई फ्लोरोसीन को जब नीली रोशनी से एक्सपोज किया जाता है तो यह पीली और हरी रोशनी छोड़ता है। इस पद्धति में एंटीजेन की मात्रा का पता नहीं चलता। हालांकि इम्यूनोफ्लोरोसेन्स की आधुनिक पद्धति में फ्लोरोसीन एक्टिवेटेड सेल सॉर्टर नाम के चेंबर का इस्तेमाल होता है। जब फ्लोरोएसेंस लेबल वाले एंटीजेन-एंटीबॉडी के समूह को इस मशीन से पार किया जाता है तो यह लेजर बीम को उस पर फ्लैश करता है और फ्लोरोएसेंस से लेबल किए गए हर एक सिंगल सेल की भी गिनती करता है।