एचआरसीटी स्कैन चेस्ट यानी छाती का एचआरसीटी (हाई रिजाॅल्यूशन कंप्यूटेड टोमोग्राफी) स्कैन करना होता है। बता दें, यह सीटी स्कैन का एक प्रकार है, जिसमें एक्स-रे रेडिएशन का प्रयोग करके फेफड़ों की विस्तृत यानी स्पष्ट छवियां तैयार की जाती हैं।

छाती का सीटी स्कैन और एचआरसीटी दोनों में ही बहुत बारीकी (क्राॅस सेक्शनल) से छवियां तैयार होती हैं। हालांकि, एचआरसीटी में सीटी स्कैन की तुलना में ज्यादा स्पष्ट छवियां होती हैं। इसके अलावा इसमें छवियों का रिजाॅल्यूशन (एक तरह से गुणवत्ता) भी बहुत अधिक होता है, जिस वजह से आसानी से डाॅक्टर या रेडियोलाॅजिस्ट गड़बड़ी का पता लगा सकते हैं।

ये छवियां फेफड़ों के विकारों (इंटरस्टीशियल लंग डिजीज जिसे डिफ्यूज इंटरस्टीशियल लंग डिजीज या डिफ्यूज लंग डिजीज के नाम से भी जाना जाता है) के मूल्यांकन में मदद करती हैं, जिसमें फेफड़े को सपोर्ट करने वाले टिश्यू (interstitium) में सूजन और कठोरता आ जाती है।

एचआरसीटी स्कैन प्रोटोकॉल में आमतौर पर निम्नलिखित शामिल होते हैंः

  • एक्सपीरेटरी इमेजेस : इस स्कैन में व्यक्ति को पीठ के बल लेटने की जरूरत होती है और जब वह सांस छोड़ता है तो छवियां तैयार की जाती हैं।
  • प्रोन इमेजेस : इस स्कैन में व्यक्ति को पेट के बल लेटने की जरूरत होती है और जब वह गहरी सांस लेता है, तब छवियां तैयार की जाती हैं।

(और पढ़ें - फेफड़ों में इन्फेक्शन का इलाज क्या है)

  1. छाती का एचआरसीटी क्यों किया जाता है? - Why is a Chest HRCT done in Hindi?
  2. छाती का एचआरसीटी से पहले की तैयारी? - HRCT Chest preparation in Hindi?
  3. एचआरसीटी स्कैन कैसे किया जाता है? - Chest HRCT procedure in Hindi?
  4. एचआरसीटी स्कैन में कैसा महसूस होगा? - How will a Chest HRCT feel in Hindi?
  5. एचआरसीटी स्कैन टेस्ट का क्या मतलब है? - Chest HRCT report in Hindi?
  6. एचआरसीटी स्कैन के जोखिम और लाभ? - Risks and benefits of Chest HRCT in Hindi?
  7. छाती का एचआरसीटी कौन नहीं करा सकता है? - Who cannot have Chest HRCT in Hindi?
  8. एचआरसीटी स्कैन के साथ कौन से अन्य टेस्ट किए जा सकते हैं? - Other tests that can be done with Chest HRCT in Hindi
  9. कोविड-19 मरीजों में एचआरसीटी टेस्ट - HRCT Chest in COVID-19 patients in Hindi
छाती का एचआरसीटी टेस्ट के डॉक्टर

एचआरसीटी उन लोगों में किया जाता है, जिनमें इंटरस्टीशियल लंग डिजीज के संकेत व लक्षण होते हैं।

निम्नलिखित स्थितियों में शाॅर्ट-टर्म इंटरस्टीशियल लंग डिजीज वाले लोगों में एचआरसीटी का सुझाव दिया जा सकता है :

निम्नलिखित स्थितियों में लाॅन्ग-टर्म इंटरस्टीशियल लंग डिजीज वाले लोगों में एचआरसीटी का सुझाव दिया जा सकता है :

  • नाॅर्मल चेस्ट एक्स-रे की बजाय लक्षणों से या पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट के परिणाम से इंटरस्टीशियल लंग डिजीज का संदेह होने पर।
  • यदि लक्षण और छाती के एक्स-रे की रिपोर्ट से मदद नहीं मिलती है, तो निदान की पुष्टि के लिए बायोप्सी हेतु उचित हिस्से का चयन करने के लिए
  • रोग की गतिविधि का आकलन करने के लिए भी एचआरसीटी किया जा सकता है।

वर्ष 2020 से, डॉक्टर कोविड-19 के रोगियों में संक्रमण की गंभीरता का पता लगाने के लिए एचआरसीटी टेस्ट कराने का सुझाव दे रहे हैं।

(और पढ़ें - कोरोना के लिए टेस्ट)

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छाती का एचआरसीटी से पहले विशेष तैयारी की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन स्कैन से पहले आपको अस्पताल से दिए जाने वाले गाउन को पहनने के लिए कहा जा सकता है। इसके अलावा आपको आभूषण व धातु के अन्य सामान को निकाल देने की जरूरत होती है, क्योंकि यह टेस्ट के उपकरणों को प्रभावित कर सकते हैं। यदि आप स्तनपान करा रही हैं या आपको लगता है कि आप गर्भवती हो सकती हैं, तो ऐसे में टेस्ट से पहले इस बारे में डॉक्टर से परामर्श कर लें।

एचआरसीटी स्कैन के लिए निम्नलिखित चरण पूरे किए जाते हैं :

  • व्यक्ति को सीटी स्कैन मशीन की टेबल पर लेटने के लिए कहा जाएगा।
  • आपको सबसे पहले पीठ के बल लेटने के लिए कहा जा सकता है, इस दौरान दोनों हाथ सिर के ऊपर सीधे होने चाहिए और इसके बाद आपको पेट के बल लेटने के लिए कहा जाएगा।
  • स्कैनिंग प्रोसेस की शुरुआत करने से पहले, टेक्नोलॉजिस्ट पास में मौजूद दूसरे कमरे से मशीन को संचालित करेंगे, वे आपसे इंटरकॉम के जरिए बात कर सकते हैं, इस दौरान यदि आप असहज महसूस कर रहे हैं तो उन्हें बताएं।
  • चूंकि इस टेस्ट में फेफड़ों की जांच की जानी है, इसलिए टेक्नोलॉजिस्ट आपको सांस अंदर लेने, छोड़ने और सांस रोके रहने के लिए दिशा-निर्देश देंगे।
  • अब टेबल मशीन के अंदर जाएगी और कई सारी छवियां तैयार करेगी।
  • इस टेस्ट में लगभग 15 मिनट से लेकर आधा घंटा तक लग सकता है।

(और पढ़ें - फेफड़ों की बीमारी के लक्षण क्या है)

इस स्कैन के दौरान बिल्कुल भी दर्द नहीं होता है, हां लेकिन जब उपकरण छवियां तैयार कर रहे होते हैं तो आपको क्लिक और बजिंग जैसी आवाजें आ सकती हैं। इसके अलावा स्कैनिंग टेबल पर कुछ लोगों को असुविधा महसूस हो सकती है, लेकिन आपको धैर्य के साथ लेटने की जरूरत है। इस दौरान बिल्कुल भी घबराएं नहीं, क्योंकि यह एक साधारण प्रक्रिया है। टेस्ट के बाद आप नियमित रूप से आहार लेने के साथ-साथ गतिविधियों में भी शामिल हो सकते हैं।

(और पढ़ें - दर्द का आयुर्वेदिक इलाज क्या है)

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जब एचआरसीटी स्कैन की रिपोर्ट असामान्य आती है तो इसका मतलब आपको फेफड़ों से संबंधित दिक्कत है, जिसमें इंटरस्टीशियल रोग शामिल हैं :

  • इंटरस्टीशियल लंग्स डिजीज, बता दें यहां इंटरस्टीशियल का मतलब बीमारी के समूह से है
  • अर्ली इंटरस्टीशियल लंग्स डिजीज
  • वायुमार्ग छोटा होना (ब्रांकिओल्स नामक छोटे वायुमार्ग को प्रभावित करने वाली स्थिति)
  • ब्रोन्किइक्टेसिस (एक लंबे समय तक प्रभावित करने वाली स्थिति जिसमें ब्रोंकी नामक मुख्य वायुमार्ग की दीवारें संक्रमित व सूजन की वजह से मोटी हो जाती हैं)
  • सिस्टिक लंग्स डिजीज (बीमारियों का समूह जिसमें फेफड़ों में सिस्ट बन जाते हैं)
  • पल्मोनरी माइक्रोनोड्यूल्स (फेफड़े में छोटे व गोलाकार वृद्धि)
  • ब्रोन्कियल अस्थमा (एक ऐसी स्थितिए जिसमें फेफड़ों में ब्रोंकी उत्तेजना की वजह से संकुचित हो जाती है)
  • वातस्फीति (एक स्थिति, जो फेफड़ों में मौजूद हवा की थैली को नुकसान पहुंचाती है)

(और पढ़ें - अस्थमा के लिए एक्सरसाइज)

एचआरसीटी स्कैन के लाभ निम्नलिखित हैं :

  • इस टेस्ट के दौरान दर्द नहीं होता, इसमें ज्यादा समय नहीं लगता और इससे प्राप्त होने वाले परिणाम सटीक होते हैं
  • इसमें बिना सर्जरी के शरीर के अंदरूनी हिस्सों की विस्तृत व स्पष्ट तस्वीरें प्राप्त होती हैं।
  • स्कैन पूरा हो जाने के बाद शरीर में कोई रेडिएशन नहीं बचता है।

इस प्रक्रिया में कोई जोखिम नहीं है, लेकिन गर्भवती महिलाओं को इस स्कैन से नहीं गुजरना चाहिए क्योंकि एक्स-रे रेडिएशन के संपर्क में आने से बच्चे में जन्मजात दोष हो सकते हैं।

सीटी स्कैन आमतौर पर गर्भवती महिलाओं को कराने का सुझाव नहीं दिया जाता है, क्योंकि इसमें एक्स-रे रेडिएशन गर्भ में पल रहे बच्चे को नुकसान पहुंचा सकता है।

(और पढ़ें - गर्भावस्था में देखभाल)

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छाती के एचआरसीटी के साथ निम्नलिखित टेस्ट किए जा सकते हैं :

  • पल्स ओक्सिमेट्री : यह एक गैर-अक्रामक व दर्द रहित टेस्ट है, जो ऑक्सीजन स्तर को मापता है।
  • स्पायरोमेट्री : यह एक पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट है जो यह मापने में मदद करता है कि व्यक्ति एक बार में कितनी मात्रा में सांस लेता व छोड़ता है।
  • छाती का एक्स-रे
  • ब्रोंकोस्कोपी : यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसकी मदद से डॉक्टर आपके फेफड़ों और वायु मार्ग की जांच कर पाते हैं।
  • सर्जिकल बायोप्सी : यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक निश्चित जगह से ऊतकों को निकाला जाता है और फिर उसका माइक्रोस्कोप के तहत परीक्षण किया जाता है।

(और पढ़ें - नार्मल ऑक्सीजन लेवल कितना होना चाहिए)

कोविड-19 महामारी से ग्रस्त ज्यादातर लोगों को सांस लेने में दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है, ऐसे में डाॅक्टर मरीज को एचआरसीटी टेस्ट कराने की सलाह देते हैं ताकि इस बात का पता चल सके कि सीने में संक्रमण किस हद तक फैला हुआ है। इसके अलावा यह टेस्ट संक्रमण के कारण होने वाली जटिलताओं के जोखिम और रोग का पता लगाने में भी मददगार है। यह टेस्ट कोरोना से ग्रस्त या कोरोना से ग्रस्त होने की आशंका वाले ऐसे लोगों को कराने का सुझाव दिया जाता है, जिनमें कोरोना के हल्के से लेकर गंभीर लक्षण मौजूद होते हैं।

यह एक इमेजिंग टेस्ट है जिसकी मदद से डाॅक्टरों को सटीक उपचार की तलाश करने में मदद मिल पाती है। इसके अलावा डाॅक्टरों को यह समझने में भी आसानी होती है कि मरीज को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत है या नहीं, या फिर उसका घर पर ख्याल रखने की जरूरत है। डायबिटीज, हाई बीपी या इस्केमिक हार्ट डिजीज जैसी बीमारियों से ग्रस्त लोगों में कोविड-19 का जोखिम ज्यादा होता है, यह भी एक वजह है कि इन लोगों को एचआरसीटी टेस्ट कराने का सुझाव दिया जाता है।

अध्ययनों के अनुसार, कोविड-19 में फेफड़ों को नुकसान होने की वजह से निमोनिया की दिक्कत हो जाती है, जो कि एचआरसीटी के परिणामों में स्पष्ट हो जाता है।

रिपोर्ट में रोगी को एचआरसीटी स्कोर भी दिया जा सकता है। यह स्कोर बताता है कि बीमारी कितनी गंभीर है। एक बार जब आप छाती का एचआरसीटी स्कैन करवा लेते हैं, तो डॉक्टर से परामर्श करें ताकि वे आपकी स्थिति का सटीक निदान कर सकें।

ध्यान रहे, ध्यान रखना चाहिए कि इन भी टेस्ट के परिणाम रोगी के नैदानिक स्थितियों से सहसंबद्ध यानी जुड़े होने चाहिए। ऊपर मौजूद जानकारी शैक्षिक दृष्टिकोण से दी गई है और यह किसी भी डॉक्टर द्वारा सुझाए गए मेडिकल सलाह का विकल्प नहीं है।

(और पढ़ें - सीआरपी टेस्ट और कोरोना संक्रमण)

Dr Viresh Mariholannanavar

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संदर्भ

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