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साइनोवेक्टोमी एक सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसमें शरीर के जोड़ों से साइनोवियम को निकाला जाता है। साइनोवियम एक कोमल परत होती है, जो साइनोवियल जॉइंट के अंदरूनी हिस्से में मौजूद होती हैं। साइनोवियल जॉइंट आमतौर पर कंधे, कोहनी, कुल्हे और घुटने आदि में पाए जाते हैं। कई बार जोड़ का असाधारण रूप से इस्तेमाल करना, कोई चोट लगना या फिर किसी रोग के कारण इस परत (साइनोवियम) में सूजन आने लगती है और इस कारण से साइनोवियल द्रव अधिक मात्रा में बनने लगता है। जोड़ों में अधिक मात्रा में साइनोवियल द्रव बनने की स्थिति को साइनोवाइटिस कहा जाता है।

साइनोवाइटिस से ग्रस्त जोड़ों में दर्द व अकड़न हो जाती है और वे ठीक से अपना काम नहीं कर पाते हैं, जैसे संबंधित अंग को हिलाना-ढुलाना आदि। साइनोवेक्टोमी अधिकतर मामलों में उन लोगों में देखी जाती है, जिनको रूमेटाइड आर्थराइटिस या जोड़ों में सूजन संबंधी कोई अन्य रोग है। साइनोवेक्टोमी की मदद से इन समस्याओं से होने वाली परेशानियों को ठीक किया जा सकता है। इस सर्जरी को ओपन और आरथ्रोस्कोपिक प्रक्रियाओं से किया जाता है। हालांकि, जिन वयस्कों या बच्चों को हेमोफीलिया है, उनके लिए रेडिएशन साइनोवेक्टोमी प्रक्रिया पर विचार किया जाता है।

(और पढ़ें - जोड़ों में दर्द के घरेलू उपाय)

  1. साइनोवेक्टोमी क्या है - What is Synovectomy in Hindi
  2. साइनोवेक्टोमी किसलिए की जाती है - Why is Synovectomy done in Hindi
  3. साइनोवेक्टोमी से पहले - Before Synovectomy in Hindi
  4. साइनोवेक्टोमी के दौरान - During Synovectomy in Hindi
  5. साइनेवेक्टोमी के बाद - After Synovectomy in Hindi
  6. साइनोवेक्टोमी के साइड इफेक्ट - Complicatios of Synovectomy in Hindi

साइनोवेक्टोमी एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें शरीर के प्रभावित जोड़ से साइनोवियल मेम्बरेन को निकाल दिया जाता है। इस सर्जिकल प्रक्रिया का इस्तेमाल आमतौर पर साइनोवाइटिस नामक रोग का इलाज करने के लिए किया जाता है, जो कि शरीर के जोड़ों को प्रभावित करता है।

साइनोवियल जॉइंट आमतौर पर शरीर के जोड़ों में पाए जाते हैं, जो आमतौर पर जोड़ों में मौजूद हड्डियों को हिलने-ढुलने में मदद करते हैं। शरीर के जोड़ों में अलग-अलग प्रकार के साइनोवियल जॉइंट पाए जाते हैं, जैसे कोहनी में हिन्ज (Hinge), कंधे और कूल्हों में बॉल व सॉकेट, बांह के अगले हिस्सों में पाइवॉट (Pivot) और अंगूठे व उंगलियों में सैड्डल आदि।

जोड़ों में एक थैली जैसी संरचना होती है, जिसे जॉइंट कैप्सूल कहा जाता है, यह साइनोवियल जोड़ के आसपास मौजूद होती है। यह बाहर से फाइब्रस स्ट्रैटम नामक मजबूत परत से बनी होती है और अंदर से साइनोवियम नामक एक कोमल परत से बनी होती है। इन दोनों परतों के बीच में साइनोवियल द्रव होता है, जो जोड़ों को चिकना रखने का काम करता है। साइनोवाइटिस में जॉइंट कैप्सूल की अंदरूनी परत यानि साइनोवियम में सूजन व लालिमा हो जाती है, जिसके कारण साइनोवियल द्रव अधिक मात्रा में बनने लगता है।

इस बढ़े हुए द्रव में एक विशेष प्रकार का एंजाइम होता है, जो धीरे-धीरे हड्डियों के कार्टिलेज को क्षतिग्रस्त करने लगता है। इस स्थिति में जोड़ की ऊपरी सतह क्षतिग्रस्त होने लगती है और दर्द व अकड़न जैसी स्थितियां पैदा हो जाती हैं, इस रोग को आर्थराइटिस कहा जाता है। साइनोवाइटिस आमतौर पर किसी जोड़ का अत्यधिक इस्तेमाल करने, चोट लगने या किसी आनुवंशिक स्थिति के कारण हो सकता है।

साइनोवेक्टोमी का इस्तेमाल सिर्फ तब ही किया जाता है, जब दवाओं या किसी अन्य इलाज प्रक्रिया की मदद से साइनोवाइटिस का इलाज नहीं हो पा रहा हो। स्थिति की गंभीरता के अनुसार कई बार साइनोवियम का कुछ हिस्सा साइनोवेक्टोमी की मदद से निकाल दिया जाता है, जिसे पार्शियल साइनोवेक्टोमी कहा जाता है। जबकि अन्य मामलों में साइनोवियम के पूरे हिस्से को ही निकाल दिया जाता है, जिस प्रक्रिया को कम्पलीट साइनोवेक्टोमी कहा जाता है। साइनोवेक्टोमी को आमतौर पर हड्डियां व कार्टिलेज के अधिक क्षतिग्रस्त होने से पहले ही किया जाता है। ऐसा करने से दर्द को जल्दी नियंत्रित कर लिया जाता है और कई जटिलताएं होने से भी रोकी जा सकती हैं।

(और पढ़ें - जोड़ों में सूजन का कारण)

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साइनोवेक्टोमी ऐसी सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसे सिर्फ शरीर के जोड़ों पर ही किया जाता है, जैसे कंधे, टखने, कूल्हे, कोहनी, कलाई, घुटने और उंगलियां आदि। जोड़ों में सूजन, दर्द व अकड़न होना आदि कुछ लक्षण हैं और दवाओं व अन्य इलाज प्रक्रियाओं से ठीक नहीं हो रहे हैं, तो ये संकेत देते हैं कि साइनोवेक्टोमी की जरूरत है।

यदि किसी व्यक्ति को निम्न में से कोई भी समस्या है, तो उसे साइनोवेक्टोमी करवाने की आवश्यकता पड़ सकती है -

  • रूमेटाइड आर्थराइटिस में एक्सुडेटिव साइनोवाइटिस होना (जिसमें द्रव अधिक मात्रा में बनने लगता है)
  • एक या अधिक जोड़ प्रभावित हो जाना
  • दवाओं व अन्य इलाज प्रक्रियाओं से ठीक न हो पाना
  • आर्टिक्युलर कार्टिलेज (दो हड्डियों को जोड़ने वाले कार्टिलेज) क्षतिग्रस्त होना, जिसका इमेजिंग टेस्ट में पता न चल पाए

निम्न स्थितियों में भी डॉक्टर साइनोवेक्टोमी करवाने का सुझाव दे सकते हैं -

  • अत्यधिक दर्द होना
  • कई महीनों तक इलाज होने के बाद भी जोड़ों का सिकुड़ व अकड़ जाना (कॉन्ट्रैक्चर)
  • जोड़ों के हिलने-ढुलने की क्षमता कम हो जाना

कुछ रोग भी हैं, जिनके कारण जोड़ प्रभावित हो जाते हैं और साइनोवेक्टोमी करनी पड़ जाती है -

  • पिगमेन्टेड विल्लो-नोड्यूलर साइनोवाइटिस
  • साइनोवियल ओस्टियोकोन्ड्रोमाटोसिस
  • टेनोसाइनोवाइटिस (टेन्डन और साइनोवियम में सूजन व लालिमा होना, जो आमतौर पर रूमेटाइट आर्थराइटिस से जुड़ी होती है।)

(और पढ़ें - हड्डियों में कमजोरी)

साइनोवेक्टोमी सर्जरी से पहले निम्न तैयारियां की जा सकती हैं -

डॉक्टर कुछ टेस्ट कर सकते हैं, जिनमें ब्लड टेस्ट, यूरिन टेस्ट, एक्स रे, नेजल स्वैब, ईसीजी और स्ट्रेस टेस्ट आदि शामिल हैं।

परीक्षण व पुष्टि करने के लिए किए गए टेस्टों के रूप में डॉक्टर प्रभावित जोड़ों का अल्ट्रासाउंडएमआरआई परीक्षण कर सकते हैं।

यदि आपको हृदय या फेफड़ों से संबंधित कोई रोग है, तो सर्जरी से पहले ही इस बारे में डॉक्टर को बता दें।

यदि आप कोई भी स्टेरॉयड दवा ले रहे हैं, जैसे प्रेडनीसोन या कोर्टिसोन तो डॉक्टर को इस बारे में बता दें। डॉक्टर इन दवाओं को कुछ समय के लिए बंद कर सकते हैं या इनकी खुराक में कुछ बदलाव कर सकते हैं।

डॉक्टर सर्जरी से लगभग तीन दिन पहले ही एस्पिरिन जैसी रक्त पतला करने वाली दवाएं लेना बंद करवा सकते हैं। ये दवाएं रक्त के थक्के बनने की सामान्य प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती हैं।

सर्जरी शुरू होने से पहले फाइबर व अन्य पोषक तत्वों जैसे विटामिन सी, आयरन और कैल्शियम आदि से भरपूर भोजन खाएं।

साइनोवेक्टोंमी से एक दिन पहले हल्का भोजन लें, क्योंकि एनेस्थीसिया के समय आंतों के कार्य करने की क्षमता धीमी हो जाएगी और उन्हें हल्का खाना पचाने में थोड़ी राहत मिलेगी। भारी खाना खाने पर सर्जरी के बाद कब्ज होने का खतरा रहता है।

सर्जरी से पहले धूम्रपान बंद कर दें और न ही शराब पिएं। क्योंकि ये सर्जरी के घावों के ठीक होने की प्रक्रिया को प्रभावित कर देते हैं।

अंत में आपको एक सहमति पत्र दिया जाएगा, जिसपर हस्ताक्षर करके आप डॉक्टर को सर्जरी शुरू करने की अनुमति दे देते हैं।

(और पढ़ें - फेफड़ों के रोगों का इलाज)

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साइनोवेक्टोमी प्रक्रिया को शुरू करने से पहले आपको एनेस्थीसिया दी जाती है, जिससे आपको गहरी नींद आ जाती है। उसके बाद आपकी नस में सुई लगाकर आवश्यक द्रव व दवाएं दी जाती हैं। सर्जरी से पहले नसों के माध्यम से आवश्यक एंटीबायोटिक दवाएं भी दी जाती हैं, ताकि संक्रमण होने के खतरे को कम किया जा सके।

साइनोवेक्टोंमी को तीन अलग-अलग सर्जिकल प्रक्रियाओं से किया जा सकता है, जिन्हें ओपन, आरथ्रोस्कोपिक और रेडिएशन साइनोवेक्टोमी के नाम से जाना जाता है।

ओपन साइनोवेक्टोमी

ओपन साइनोवेक्टोमी को शरीर के किसी भी जोड़ पर किया जा सकता है। इस सर्जिकल प्रक्रिया को निम्न के अनुसार किया जाता है -

  • डॉक्टर आपको पेट के बल लेटने की सलाह देंगे और जांघ पर एक पट्टी को बांध दिया जाएगा। पट्टी बांधने से उससे निचले हिस्से में रक्त का बहाव कम हो जाता है और सर्जरी के दौरान रक्तस्राव कम होता है।
  • उसके बाद सर्जन घुटने के पिछले हिस्से में S के आकार का कट लगाते हैं, जिसकी मदद से वे उस भाग के ऊतकों और लिगामेंट्स तक पहुंच पाते हैं।
  • उसके बाद कट के दोनों हिस्सों को एक दूसरे से दूर करके बीच में जगह बनाते हैं और साइनोवियल के प्रभावित ऊतकों को निकाल देते हैं।
  • उसके बाद सर्जन यह सुनिश्चित करते हैं कि अंदर कहीं भी रक्त नहीं बह रहा है और फिर घुटने की पिछली सतह को वापस उसकी जगह पर लाकर टांके लगा दिए जाते हैं।
  • उसके बाद आपको पीठ के बल लिटा दिया जाता है और जांघ पर बांधी गई पट्टी को ऐसे ही बांध कर रखा जाता है।
  • अब सर्जन आपके घुटने के ऊपरी हिस्से (नीकैप) पर कट लगाते हैं। ठीक उसी प्रक्रिया के अनुसार कट की मदद से क्षतिग्रस्त साइनोवियल ऊतकों को हटा दिया जाता है।
  • अब ऊपरी सतह को भी वापस अपनी जगह पर लाकर टांके लगा दिए जाते हैं और घुटने पर हल्के दबाव के साथ पट्टी बांध दी जाती है। इस पट्टी को लगभग 2 हफ्तों तक रखा जाता है और इसमें किसी ड्रेनेज ट्यूब की आवश्यकता नहीं होती है।
  • इस प्रक्रिया को कम्पलीट साइनेवेक्टोमी कहा जाता है, जिसमें घुटने के पीछे और आगे दोनों हिस्सों से साइनोवियम ऊतकों को बाहर निकाल दिया जाता है।

आरथ्रोस्कोपिक साइनोवेक्टोमी

आरथ्रोस्कोपिक साइनोवेक्टोमी को आमतौर पर तीन से पांच पोर्टल की मदद सी की जाती है, जिनमें एंटेरोमेडियल (जोड़ के ऊपरी भाग से बीच तक), एंटेरोलैटरल (जोड़ के ऊपरी भाग से एक तरफ तक) आदि शामिल हैं।

लैटरल या मेडियल सुपरापैटेल्लर (पैटेला के ऊपर) और अन्य भी कई प्रकार के शामिल हैं। पोर्टल त्वचा पर किया जाने वाला एक छिद्र है, जिसमें सर्जरी के उपकरण डाले जाते हैं।

आरथ्रोस्कोपिक सर्जरी को निम्न तरीके से किया जाता है -

  • इस सर्जिकल प्रक्रिया में छिद्रों में आरथ्रोस्कोप और शेवर नामक उपकरण डाले जाते हैं। आरथ्रोस्कोप एक लचीला उपकरण है, जिसके सिरे पर कैमरा लगा होता है।
  • डॉक्टर सर्जरी के दौरान गाइड के रूप में आरथ्रोस्कोप द्वारा दी गई तस्वीरों का इस्तेमाल करते हैं, जिसकी मदद से प्रभावित साइनोवियल ऊतकों को निकाला जाता है। इन उपकरणों की मदद से यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि सिर्फ प्रभावित हिस्से को ही काटकर बाहर निकाला जा रहा है।
  • जब सर्जरी प्रक्रिया खत्म हो जाती है तो एक ड्रेन ट्यूब को घुटने में लगाया जाता है और सक्शन (चूषण) प्रक्रिया भी शुरू की जाती है। इस प्रक्रिया की मदद से अतिरिक्त द्रव को बाहर निकाला जाता है।
  • अंत में डॉक्टर आपके घुटने पर एक मोटी पट्टी लपेट देते हैं, जिससे उसे कुछ दिनों के लिए हिलने-ढुलने से रोक दिया जाता है।

रेडिएशन थेरेपी

आमतौर पर रेडिएशन थेरेपी को हेमोफीलिया से ग्रस्त बच्चों की साइनोवेक्टोमी करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रक्रिया में एक विशेष रेडियोएक्टिव पदार्थ का इंजेक्शन लगाया जाता है। उसके बाद निम्न प्रक्रियाएं की जाती हैं -

  • सर्जरी शुरू करने से पहले लोकल एनेस्थीसिया लगाया जाता है, जिससे वह हिस्सा पूरी तरह से सुन्न हो जाता है। उसके बाद जिस हिस्से की सर्जरी की जानी है उसमें इंजेक्शन की मदद से आइसोटोप पी32 नामक एक रेडियोएक्टिव पदार्थ डाला जाता है।
  • यह आइसोटोप साइनोवियल ऊतकों की असामान्य रूप से बनने की प्रक्रिया को रोक या कम कर देता है। इसके अलावा यह रक्तस्राव को भी कम करता है, जो हेमोफीलिया से ग्रस्त लोगों के लिए एक हानिकारक स्थिति होती है और आर्थराइटिस होने के खतरे को बढ़ा देती है।
  • यह प्रक्रिया में 5 से 10 मिनट का ही समय लगता है और इसमें मरीज को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं पड़ती है।

(और पढ़ें - जोड़ों में इन्फेक्शन का इलाज)

सर्जरी के बाद आपको घर पर भेज दिया जाता है, जिसके बाद आपको घर पर निम्न देखभाल करनी जरूरी होती हैं -

  • डॉक्टर की सलाह के अनुसार दर्द की दवाएं देते रहें। दवाएं लेने के बाद कब्ज व जी मिचलाना महसूस होना एक सामान्य स्थिति होती है। दर्द की दवाएं लेने के बाद ड्राइव न करें।
  • डॉक्टर की सलाह के अनुसार सर्जरी के बाद 6 हफ्तों तक काम पर या स्कूल न जाएं।
  • समय के अनुसार डॉक्टर आपको धीरे-धीरे व्यायाम शुरू करने की सलाह दे सकते हैं, ताकि प्रभावित जोड़ धीरे-धीरे काम करना शुरू कर सकें।
  • जब तक डॉक्टर आपको अनुमति न दें, अधिक भारी वस्तुएं न उठाएं और न ही कोई अन्य तीव्र गतिविधि करें।

डॉक्टर को कब दिखाएं?

  • सर्जरी की जगह पर सूजन व छूने पर दर्द होना
  • सर्जरी वाली जगह पर दर्द होना
  • तेज बुखार होना
  • सर्जरी वाले घावों से द्रव निकलने लगना
  • जोड़ की हिलने-ढुलने की क्षमता ठीक होने की बजाए उल्टा बदतर होना

(और पढ़ें - उल्टी रोकने के घरेलू उपाय)

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साइनोवेक्टोमी से कुछ जटिलताएं जुड़ी हो सकती हैं। इससे होने वाली जटिलताएं आमतौर पर सर्जरी के प्रकार और जिस जोड़ की सर्जरी की गई है उसके अनुसार अलग-अलग हो सकती हैं। साइनोवेक्टोमी से निम्न जटिलताएं हो सकती हैं -

  • ऊतक के घाव ठीक न हो पाना
  • हड्डियां कमजोर हो जाना
  • सर्जरी वाले स्थान पर गंभीर संक्रमण हो जाना
  • न्यूरोमस्क्युलर चोट, जिसमें तंत्रिकाएं और रक्त वाहिकाएं प्रभावित हो जाती हैं

सर्जरी करने पर जोड़ों में कुछ संरचनात्मक बदलाव हो जाते हैं, जिनसे लंबे समय तक प्रभावित जोड़ के हिलने-ढुलने की क्षमता कम हो जाती है। सर्जरी के बाद जोड़ जब एक बार मुड़ जाता है, तो उसे वापस सीधा करने में तकलीफ होने लगती है।

संदर्भ

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