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आइलेट सेल ट्रांसप्लांट एक सर्जरी प्रोसीर है, जिसकी मदद से लिवर में अग्न्याशय की आइलेट सेल को लिवर में सप्लाई किया जाता है, जिससे इन्सुलिन बनता है। इन्सुलिन एक विशेष हार्मोन है, जो एक सामान्य ब्लड शुगर स्तर बनाए रखने में मदद करता है। आइलेट सेल अग्न्याशय में मौजूद विशेष प्रकार की कोशिकाएं होती हैं, जो इन्सुलिन बनाती हैं।

इस सर्जरी प्रोसीजर में आइलेट कोशिकाओं को मरीज के अग्न्याशय से या फिर किसी मृत मानव शरीर के अग्न्याशय से निकाला जा सकता है। यदि आइलेट कोशिकाओं को स्वयं मरीज के अग्न्याशय से निकाला गया है, तो उस प्रोसीजर को ऑटोट्रांसप्लांटेशन कहा जाता है और यदि मृत व्यक्ति के अग्न्याशय से निकाला है, तो उसे एलोट्रांसप्लांटेशन कहा जाता है। एलोट्रांसप्लांटेशन आमतौर पर तब किया जाता है, जब व्यक्ति की खुद की आइलेट कोशिकाएं इन्सुलिन बनाना बंद कर देती हैं और ऐसे में टाइप 1 डायबिटीज हो जाता है। वहीं ऑटोट्रांसप्लांटेशन प्रोसीजर का इस्तेमाल तब किया जाता है, जब डोनर के शरीर से अग्न्याशय को ही निकाल लिया जाता है।

आपको सर्जरी से कई घंटे पहले कुछ भी खाने या पीने से मना किया जाता है। यदि आप इन्सुलिन ले रहे हैं, तो डॉक्टर ऑपरेशन से कुछ घंटे पहले ही इन्सुलिन इंजेक्शन बंद करने की सलाह दे सकते हैं। आइलेट सेल ट्रांसप्लांट प्रोसीजर को आमतौर पर लोकल एनेस्थीसिया का इंजेक्शन देकर किया जाता है, जिससे सिर्फ वही हिस्सा सुन्न किया जाता है, जिसकी सर्जरी की जानी है। हालांकि, आवश्यकता पड़ने पर जनरल एनेस्थीसिया का इंजेक्शन भी दिया जा सकता है, जिससे आप ऑपरेशन के दौरान गहरी नींद में सो जाते हैं और आपको कोई दर्द महसूस नहीं होता है।

 लिवर में डाली गई नई आइलेट कोशिकाएं इन्सुलिन बनाना शुरू करने में लगभग 12 हफ्तों का समय लेती हैं और तब तक आपको इन्सुलिन इंजेक्शन पर ही रखा जाता है।

ऑपरेशन के बाद कुछ समय तक आपको एक दिन में कम से कम 7 बार अपना ब्लड शुगर टेस्ट करने को कहा जाता है और हर बार के रिजल्ट को किसी डायरी में हर तारीख के अनुसार लिखने की सलाह दी जाती है। साथ ही कुछ दिनों के लिए डॉक्टर आपको एक विशेष डाइट प्लान देते हैं, ताकि आप जल्द से जल्द स्वस्थ हो पाएं।

(और पढ़ें - डायबिटीज डाइट चार्ट क्या है)

  1. आइलेट सेल ट्रांसप्लांट क्या है - What is Islet cell transplant in Hindi
  2. आइलेट सेल ट्रांसप्लांट क्यों किया जाता है - Why is Islet cell transplant done in Hindi
  3. आइलेट सेल ट्रांसप्लांट से पहले - Before Islet cell transplant in Hindi
  4. आइलेट सेल ट्रांसप्लांट कैसे किया जाता है - During Islet cell transplant in Hindi
  5. आइलेट सेल ट्रांसप्लांट के बाद - After Islet cell transplant in Hindi
  6. आइलेट सेल ट्रांसप्लांट की जटिलताएं - Complications of Islet cell transplant in Hindi
आइलेट सेल ट्रांसप्लांट के डॉक्टर

आइलेट सेल ट्रांसप्लांट सर्जरी प्रोसीजर में अग्न्याशय में मौजूद कोशिकाओं (आइलेट सेल्स) को लिवर में डाला जाता है। आइलेट कोशिकाएं लिवर में जाकर इन्सुलिन बनाती है। पैनक्रिएटिक आइलेट सेल्स दो अलग अलग कोशिकाओं से मिलकर बनी होती हैं जिन्हें अल्फा और बीटा सेल्स कहा जाता है। इनमें बीटा सेल इन्सुलिन हार्मोन बनाती हैं, जिसे ब्लड शुगर नियंत्रण में रहता है।

कई बार प्रतिरक्षा प्रणाली पैनक्रिएटिक बीटा सेल्स को नष्ट कर देता है और परिणामस्वरूप टाइप 1 डायबिटीज हो जाता है। इस रोग में अग्न्याशय बहुत ही कम मात्रा में इन्सुलिन बनाता है या फिर बनाना पूरी तरह से बंद कर देता है। ऐसे में ब्लड शुगर लेवल बढ़ने लगता है और परिणामस्वरूप इसे नियंत्रित करने के लिए रोजाना इन्सुलिन इंजेक्शन लगाना पड़ता है।

आइलेट सेल ट्रांसप्लांट को आमतौर पर दो अलग-अलग सर्जरी प्रोसीजरों की मदद से किया जा सकता है, जिन्हें एलोट्रांसप्लांटेशन और ऑटोट्रांसप्लांटेशन के नाम से जाना जाता है और इनकी प्रोसीजर कुछ इस प्रकार है -

  • एलोट्रांसप्लांटेशन -
    इस प्रोसीजर में आइलेट कोशिकाओं को एक मृत व्यक्ति के शरीर से निकाल कर मरीज के लिवर में डाला जाता है। इस प्रोसीजर की मदद से इन्सुलिन इंजेक्शन के इस्तेमाल को कम किया जाता है। हालांकि, इसके बाद इम्यूनोसप्रासांट्स या एंटी-रिजेक्शन दवाएं लेनी पड़ती हैं, क्योंकि बाहरी आइलेट कोशिकाओं को प्रतिरक्षा प्रणाली नष्ट कर सकती है। प्रतिरक्षा प्रणाली बाहरी आइलेट को स्वीकार नहीं करती है और इस कारण से एलोट्रांसप्लांट प्रोसीजर को काफी कम मामलों में इस्तेमाल किया जाता है।
  • ऑटोट्रांसप्लांटेशन -
    इस प्रोसीजर में मरीज के शरीर से ही आइलेट सेल्स को निकाला जाता है और उसके लिवर में डाला जाता है। यह सर्जरी प्रोसीजर आमतौर पर अग्न्याशय को निकालने की सर्जरी (टोटल पैनक्रिएटेक्टॉमी) के बाद की जाती है। ऑटोट्रांसप्लांटेशन प्रोसीजर के बाद आपको कोई इम्यूनोसप्रासांट या एंटी-रिजेक्शन मेडिसिन खाने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर की आइलेट कोशिकाओं को पहचान लेती है और उन्हें नष्ट नहीं करती है।

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यदि किसी कारण से अग्न्याशय को पूरी तरह से निकाल दिया गया है, तो उसके बाद डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है और उस खतरे को कम करने के लिए ही ऑटोट्रांसप्लांटेशन सर्जरी की जा सकती है।

यदि आपको टाइप 1 डायबिटीज है, तो उसका इलाज करने के लिए एलोट्रांसप्लांटेशन सर्जरी की जा सकती है। हालांकि, टाइप 1 डायबिटीज से ग्रस्त सभी लोगों की यह सर्जरी नहीं की जा सकती है। यह टाइप 1 डायबिटीज से ग्रस्त निम्न लोगों में की जाती है -

आइलेट सेल ट्रांसप्लांट सर्जरी किसे नही करवानी चाहिए?

निम्न स्थितियों में एलोट्रांसप्लांटेशन सर्जरी करने से मना किया जा सकता है -

  • किडनी ठीक से काम न कर पाना
  • महिलाएं जो गर्भधारण करने की योजना बना रही हैं
  • जिन लोगों को अधिक इन्सुलिन इंजेक्शन की आवश्यकता पड़ती है (उदाहरण के रूप में 70 किलो के व्यक्ति को रोजाना 50 यूनिट इन्सुलिन की आवश्यकता पड़ना)
  • मोटापे से ग्रस्त लोग (विशेष रूप से जिनका वजन 85 किलोग्राम से अधिक है)

इसके अलावा ऑटोट्रांसप्लांट सिर्फ उन लोगों के लिए ही किया जाता है, जो टाइप 1 डायबिटीज से ग्रस्त हैं। यदि आपको टाइप 2 डायबिटीज है या फिर कोई अन्य रोग है, तो डॉक्टर ऑटोट्रांसप्लांटेशन से मना कर सकते हैं।

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ऑपरेशन से कुछ दिन पहले आपको अस्पताल बुलाया जाता है और इस दौरान आपको शारीरिक परीक्षण किया जाता है व साथ ही आपके स्वास्थ्य संबंधी पिछली जानकारी ली जाती हैं। इसके अलावा निम्न टेस्ट भी किए जाते हैं, जिस दौरान डॉक्टर यह पता लगाते हैं कि आप सर्जरी के लिए कितने फिट हैं -

इसके अलावा सर्जरी से पहले आपको निम्न बातों का ध्यान रखने की सलाह दी जाती है -

  • यदि आप किसी भी प्रकार की दवा, हर्बल उत्पाद या कोई अन्य सप्लीमेंट ले रहे हैं, तो इस बारे में डॉक्टर को बता दें। डॉक्टर आपको कुछ दवाएं व प्रोडक्ट न लेने की सलाह देते हैं, जिनमें रक्त पतला करने वाली दवाएं भी शामिल हैं।
  • यदि आपको किसी भी प्रकार की एलर्जी या अन्य कोई रोग है, तो इस बारे में सर्जरी से पहले ही डॉक्टर को सारी जानकारी दें।
  • यह ऑपरेशन खाली पेट किया जाता है, इसलिए सर्जरी से कम से कम आठ घंटे पहले तक आपको कुछ भी खाने-पीने से मना किया जाता है।
  • यदि आप सिगरेट या शराब पीते हैं, तो सर्जरी से कुछ दिन पहले ही इन्हें छोड़ने की सलाह दी जाती है। ऐसा करने से सर्जरी के बाद आपको जटिलताएं होने का खतरा कम हो जाएगा और साथ ही घाव को जल्दी ठीक होने में मदद मिलेगी।
  • ऑपरेशन वाले दिन अस्पताल में जाने से पहले घर पर ही सभी आभूषण व गैजेट उतार दें और नहाकर ढीले-ढाले व आरामदायक कपड़े पहनें।
  • अस्पताल जाते समय अपने साथ किसी करीबी रिश्तेदार या मित्र को ले जाएं, ताकि सर्जरी से पहले और बाद के कार्यों में आपको मदद मिल सके।
  • आपको एक विशेष सहमति पत्र दिया जाता है, जिस पर हस्ताक्षर करके आप सर्जन को सर्जरी करने की अनुमति दे देते हैं। हालांकि, इस पत्र पर हस्ताक्षर करने से पहले इसे अच्छे से पढ़ व समझ लेना चाहिए।

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जब आप ऑपरेशन के लिए अस्पताल पहुंच जाते हैं, तो सर्जन व अन्य मेडिकल टीम आपको सर्जरी के लिए तैयार करने लग जाते हैं जिनमें निम्न शामिल हैं -

  • सबसे पहले आपको हॉस्पिटल गाउन पहनने के लिए दिया जाता है और फिर ऑपरेशन थिएटर ले जाया जाता है।
  • आपकी बांह की नस में सुई लगाकर उसे इंट्रावेनस लाइन से जोड़ दिया जाता है, जिसकी मदद से आपको इन्सुलिन, ग्लूकोज व अन्य आवश्यक दवाएं दी जाती हैं।
  • आपके ग्लूकोज लेवल पर लगातार नजर रखी जाती है और उसके आधार पर ही आपको दी जा रही इन्सुलिन की मात्रा को बढ़ाया या कम किया जाता है।

एनेस्थीसिया का इंजेक्शन दिया जाता है और उसका असर शुरू होने पर सर्जरी प्रोसीजर को शुरू कर दिया जाता है, जो इस प्रकार है -

  • ऑटोट्रांसप्लांटेशन में पहले टोटल पैन्क्रिएक्टॉमी सर्जरी की जाती है, जिसकी मदद से अग्न्याशय को निकाल कर लैबोरेटरी में भेज दिया जाता है। लैब में अग्न्याशय से आइलेट कोशिकाएं निकाली जाती है। जब तक ये कोशिकाएं ट्रांसप्लांटेशन के लिए तैयार नहीं होती हैं, तब तक आपको आईसीयू में रखा जाता है।
  • यदि एलोट्रांसप्लांटेशन सर्जरी की गई है, तो डोनर के शरीर से आइलेट कोशिकाएं निकाली जाती हैं और तैयार करके उन्हें आपके लिवर में डाला जाता है।

ट्रांप्लांटेशन प्रोसीजर

जब आइलेट कोशिकाएं ट्रांसप्लांट के लिए तैयार हो जाती हैं, तो आपको इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी डिपार्टमेंट में ले जाया जाता है। यहां पर ट्रांसप्लांटेशन प्रोसेस शुरू की जाती है, जो कुछ इस प्रकार है -

  • सर्जन सबसे पहले पेट पर चीरा लगाते हैं और उस छिद्र के अंदर से कैथीटर (विशेष ट्यूब) डाला जाता है।
  • इस ट्यूब को एक्स-रे और अल्ट्रासाउंड इमेजिंग तकनीक की मदद से लिवर की पोर्टल नस में डाला जाता है।
  • इसके बाद इस ट्यूब के माध्यम से धीरे-धीरे आइलेट कोशिकाओं को नस में छोड़ा जाता है। 
  • सभी कोशिकाएं इंजेक्ट होने के बाद ट्यूब निकाल ली जाती है और चीरे को टांके लगाकर बंद कर दिया जाता है। 

लिवर में आइलेट को ट्रांसप्लांट करने की प्रक्रिया में आमतौर पर 15 से 30 मिनट का समय लगता है। एलोट्रांसप्लांटेशन के बाद आपको इम्यूनोसप्रासांट दवाएं इंजेक्शन के रूप में दी जाती हैं। सर्जरी के बाद आपको चार से दस दिनों के लिए अस्पताल में भर्ती रखा जाता है और इस दौरान निम्न कार्य किए जाते हैं -

  • जब तक आप अस्पताल में भर्ती रहते हैं, आपके सभी शारीरिक संकेतों पर नजर रखी जाती है जैसे ब्लड शुगर लेवल, ब्लड प्रेशर और हार्ट रेट आदि।
  • जब तक आइलेट कोशिकाएं काम करना शुरू नहीं करती हैं, तब तक आपको इन्सुलिन इंजेक्शन दिए जाते हैं।
  • सर्जरी वाले हिस्से का एक दो बार अल्ट्रासाउंड स्कैन भी किया जा सकता है, जिससे यह पता चलता है कि कहीं आपके शरीर में ब्लीडिंग तो नहीं हो रही है।
  • आपका ब्लड टेस्ट किया जाता है, जिससे आपकी किडनी हेल्थ और शरीर में एंटी-रिजेक्शन दवाओं की मात्रा का बता लगाया जाता है।
  • सर्जरी के चार घंटों के बाद ही आपको हल्के भोजन व पेय पदार्थ थोड़ी मात्रा में देने शुरू कर दिए जाते हैं।

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जब आप ऑपरेशन के बाद छुट्टी लेकर घर पहुंच जाते हैं, तो इस दौरान आपको निम्न तरीके से देखभाल करने की सलाह दी जाती हैं -

  • ग्लूकोज मॉनिटरिंग -
    डॉक्टर आपको कुछ दिनों तक एक दिन में कम से कम सात बार अपना ब्लड शुगर लेवल चेक करने की सलाह देते हैं। आपको हर बार के आंकड़ों को डायरी में लिखने को बोला जाता है और जब आपको दोबारा अस्पताल बुलाया जाता है तो वह डायरी आप डॉक्टर को दिखा सकते हैं।
     
  • दवाएं
    सर्जरी के बाद डॉक्टर आपको कुछ दवाएं देते हैं, जिन्हें उनकी सलाह के अनुसार ही लेना चाहिए। इनमें आमतौर पर निम्न दवाएं शामिल हैं -
    • पेनकिलर
    • एंटी-रिजेक्शन मेडिसिन
    • इन्सुलिन (जब तक ट्रांसप्लांट की गई कोशिकाएं काम करना शुरू नहीं करती हैं)
    • प्रिवेंटिव मेडिसिन (इम्यूनोसप्रासांट दवाओं के प्रभाव को कम करने के लिए)
    • कोलेस्ट्रॉल और ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने वाली दवाएं
       
  • आहार -
    ऑपरेशन के बाद कुछ दिन तक हल्का खाना खाने की सलाह दी जाती है। आपके आहार में कुछ विशेष पोषक तत्व भी शामिल किए जा सकते हैं, जिससे आपको जल्दी स्वस्थ होने में मदद मिलती है।
     
  • घाव की देखभाल -
    घाव को सूखा व स्वच्छ रखने की सलाह दी जाती है। कोई भी ऐसा कपड़ा न पहनें जिससे घाव पर रगड़ लगने का खतरा हो। जब तक डॉक्टर आपको सलाह न दें, तब तक नहाना शुरू न करें। ऐसा इसलिए घाव में गीलापन होने से जटिलताएं हो सकती हैं।
     
  • शारीरिक गतिविधियां -
    सर्जरी के लगभग एक महीने बाद आपको अपने सामान्य कार्य शुरू करने की सलाह दी जाती है। सर्जरी के बाद आपको कम से कम छह से आठ हफ्तों तक कोई भी भारी वजन उठाने से मना किया जाता है। डॉक्टर से अनुमति लिए बिना ड्राइविंग शुरू न करें।
     

डॉक्टर को कब दिखाएं?

आइलेट सेल ट्रांसप्लांट सर्जरी के बाद यदि आपको निम्न में से कोई भी समस्या महसूस होती है, तो डॉक्टर को इस बारे में बता देना चाहिए -

(और पढ़ें - छाती में दर्द होने पर क्या करें)

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आइलेट सेल ट्रांसप्लांट सर्जरी के बाद आपको निम्न जटिलताएं होने का खतरा बढ़ जाता है -

  • संक्रमण
  • ब्लीडिंग
  • दर्द
  • लिवर ब्लड टेस्ट के रिजल्ट सामान्य न आना
  • रक्त के थक्के बनना
  • अंदरूनी अंगों में क्षति होना
  • फिर से डायबिटीज होने के कारण इन्सुलिन की आवश्यकता पड़ना

इसके अलावा एंटी-रिजेक्शन मेडिसिन लेने से निम्न जोखिम हो सकते हैं -

  • कैंसर
  • प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा सेल्स नष्ट करना
  • हाई ब्लड प्रेशर होना
  • कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ना
  • किडनी ठीक से काम न कर पाना

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संदर्भ

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