जब किसी कपल को पता चलता है कि वे प्रेगनेंट हैं और पैरंट्स बनने वाले हैं तो उनके लिए इससे बढ़कर खुशी का पल और कोई नहीं होता। कई महीनों तक शिशु को अपने गर्भ में पालना, उसकी हलचल, दिल की धड़कन सभी चीजों को महसूस करना और फिर एक दिन अचानक शिशु का दुनिया में आने से पहले ही चले जाना- शिशु में जीवन के कोई संकेत न दिखना ही स्टिल बर्थ कहलाता है और यह सिर्फ होने वाली मां के लिए ही नहीं बल्कि पूरे परिवार के लिए किसी दुख और तकलीफ से भरा सदमे से भरा पल होता है।
ज्यादातर मामलों में स्टिल बर्थ होने के पीछे क्या कारण है या इसे होने से रोका जा सकता था या नहीं इसका पता नहीं चल पाता है। गर्भावस्था के 20 हफ्ते से लेकर प्रसव तक के बीच में अगर कभी भी प्रेगनेंसी अचानक खत्म हो जाए या शिशु का मृत जन्म हो तो इसे ही स्टिल बर्थ कहा जाता है। इस शब्द का इस्तेमाल उन शिशुओं के लिए भी किया जाता है जिनकी मृत्यु डिलिवरी के दौरान हो जाती है। 20 हफ्ते से पहले अगर प्रेगनेंसी किसी वजह से खत्म हो जाए तो इसे मिसकैरेज कहा जाता है।
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हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO ने स्टिल बर्थ की जो परिभाषा दी है उसके मुताबिक गर्भावस्था के 28 हफ्ते के बाद अगर किसी ऐसे शिशु का जन्म होता है जिसमें जीवन के कोई भी संकेत न हों तो उसे स्टिल बर्थ कहा जाता है। WHO के आंकड़ों की मानें तो साल 2015 में दुनियाभर में करीब 26 लाख स्टिल बर्थ के मामले सामने आए थे जिसमें से हर दिन करीब 7,178 स्टिल बर्थ के केस हुए। इनमें से 98 प्रतिशत स्टिल बर्थ के मामले कम और मध्यम आय वाले विकासशील देशों में सामने आए। एक और आंकड़े की मानें तो हर 100 में से 1 प्रेगनेंसी में स्टिल बर्थ की घटना होती है।
तो आखिर क्यों होती है स्टिल बर्थ की घटना, इससे जुड़े जोखिम कारक क्या हैं, क्या स्टिल बर्थ को होने से रोकने के लिए कुछ किया जा सकता है, स्टिल बर्थ से जुड़े वॉर्निंग साइन्स क्या हैं, इस तरह के सभी सवालों के जवाब आपको मिलेंगे इस आर्टिकल में।