कोलोस्ट्रम वह पहला दूध है जो महिलाओं में प्रेग्नेंसी के बाद बनता है। गर्भावस्था की पहली तिमाही खत्म होने और प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही के शुरु होने के दौरान महिलाओं के स्तनों में दूध बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इस प्रक्रिया में जो तरल बनता है उसको कोलोस्ट्रम कहा जाता है। महिलाएं अपनी प्रेग्नेंसी की तीसरी तीमाही के अंत में इस तरल के रिसाव का अनुभव करती हैं। तीसरी तीमाही के साथ ही यह कोलोस्ट्रम डिलीवरी के समय भी स्त्रावित होता है।
कोलोस्ट्रम की मात्रा बेहद कम होती है, लेकिन कम मात्रा होने के बाद भी यह शिशु के लिए बेहद ही फायदेमंद होता है। कुछ लोग इसके महत्व को देखते हुए कोलोस्ट्रम को तरल सोना भी कहते हैं। कोलोस्ट्रम में उच्च मात्रा में एंटीबाडीज होते हैं, लेकिन इनमें कार्बोहाइड्रेट और फैट की मात्रा कम होती है। यह नवजात शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और लैक्सेटिव प्रभाव के चलते नवजात शिशु के पहले मल को बाहर निकालने में मदद करता है।
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कोलेस्ट्रम की मात्रा कितनी होती है
शिशु के जन्म के शुरुआती दिनों में बनने वाले कोलोस्ट्रम की मात्रा नवजात बच्चे की आवश्यकता के अनुसार पर्याप्त होती है। शिशु के जन्म के बाद महिला के शरीर में दो से तीन दिनों के अंदर करीब 50 मिली कोलोस्ट्रम बनता है। लेकिन यह मात्रा आपके नवजात शिशु की जरूरत को पूरा कर देती है, क्योंकि जन्म के समय में शिशु के पेट का आकार बेहद ही छोटा होता है।
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कोलोस्ट्रम कैसा दिखता है
आपकी प्रेग्नेंसी के शुरूआत में बनने वाला कोलोस्ट्रम, तरल रूप में गाढ़ा, क्रीमी और पीले रंग का दिखता है। जैसे जैसे आप प्रसव के करीब आते हैं यह तरल सफेद रंग में बदलने लगता है। अधिकतर महिलाएं दूसरी तीमाही के पहले सप्ताह में कोलोस्ट्रम के रिसाव का अनुभव करती हैं और प्रेग्नेंसी के अंतिम चरण तक (महिलाओं का शरीर प्रसव के लिए तैयार होन तक) कोलोस्ट्रम का रिसाव बढ़ता जाता है।
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