गर्भावस्था का दूसरी तिमाही समाप्त होते ही तीसरी तिमाही शुरू हो जाती है। अन्य तिमाही की तरह इस चरण में भी तीन महीनों का समय होता है। महिला की प्रेग्नेंसी का यह अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण समय होता है। ये चरण महिला के लिए अन्य तिमाही की तुलना में अधिक शारीरिक और मानसिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है। गर्भावस्था की तीसरी तिमाही तक महिला थकान महसूस करने लगती हैं और प्रेग्नेंसी के अगले चरण के लिए उत्सुक रहती है। इस दौरान शरीर में होने वाले बदलाव से अधिकतर महिलाएं परेशान हो जाती हैं, ऐसे में महिला को धैर्य से काम लेते हुए अपनी देखभाल पर पूरा ध्यान देना चाहिए।

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प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में महिलाओं को कोई समस्या न हो, इसलिए इस लेख में गर्भावस्था की तीसरी तिमाही को विस्तार से बताया जा रहा है। साथ ही इसमें प्रेग्नेंसी में तीसरी तिमाही का मतलब क्या है, गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में होने वाले शारीरिक बदलाव, प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में भ्रूण का विकास, प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में क्या खाना चाहिए और गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में देखभाल आदि के बारे में भी विस्तार से बताया गया है।

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  1. गर्भावस्था की तीसरी तिमाही का मतलब क्या है? - Garbhavastha ki teesri timahi ka matlab kya hai
  2. प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में बच्चे का विकास - Pregnancy ki teesri timahi me brun ka vikas
  3. गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में होने वाले शारीरिक बदलाव - Garbhavastha ki teesri timahi me hone vale sharirik badlav
  4. प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में क्या खाना चाहिए? - Pregnancy ki teesri timahi me kya khana chahiye
  5. प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में देखभाल कैसे करें? - Garbhavastha ki teesri timahi me dekhbhal
  6. सारांश

गर्भावस्था को तीन-तीन महीनों के तीन चरणों में विभाजित किया जाता हैं। इसके तीसरे चरणों को तीसरी तिमाही कहा जाता है और यह गर्भावस्था का अंतिम दौर होता है। इस चरण में गर्भावस्था के 28वें सप्ताह से प्रेग्नेंसी के 40वें सप्ताह तक को शामिल किया जाता है। इस समय महिला को मानसिक और शारीरिक दोनों ही तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। गर्भावस्था के 37वें सप्ताह तक भ्रूण का आकार पूरी तरह से विकसित हो जाता है, इसके बाद बच्चा किसी भी समय पैदा हो सकता है। महिलाओं को प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में आने वाली समस्याओं और देखभाल के बारे में भी पूरी जानकारी होनी चाहिए। तीसरी तिमाही के बारे में जानकारी प्राप्त करने से महिला की बच्चे के जन्म से जुड़ी चिंता कम हो जाती है। 

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गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में भी भ्रूण का बढ़ना निरंतर जारी रहता है। अंतिम सात सप्ताह में भ्रूण का आकार लगभग दोगुना हो जाता है। प्रेग्नेंसी के 32वें सप्ताह तक भ्रूण का वजन 4 पांउड (करीब 1.814 किलो) तक हो जाता है। साथ ही इस समय तक भ्रूण की हड्डियां पूरी तरह से बनकर तैयार हो जाती हैं और भ्रूण आंखों को खोलने और बंद करने व बाहर की रोशनी को महसूस करते हुए प्रतिक्रिया देने लगता है। 32 वें सप्ताह तक भ्रूण के शरीर में आयरन और कैल्शियम जैसे मिनरल्स इकट्ठा होने लगते हैं।

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गर्भावस्था के 36वें सप्ताह तक भ्रूण का सिर बाहर आने की सही स्थिति में आ जाता है। यदि ऐसा नहीं होता है तो डॉक्टर महिला को सिजेरियन डिलीवरी की सलाह देते हैं। जबकि 37वें सप्ताह तक भ्रूण पूरी तरह से विकसित हो जाता है, इस समय तक भ्रूण के सभी अंग सही तरह से कार्य करने के लिए तैयार हो जाते हैं। कुछ अध्ययन के मुताबिक तीसरी तिमाही के अंतिम दौर में भ्रूण की लंबाई करीब 19 से 21 इंच हो जाती है।  

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प्रेग्नेंसी की पहली या दूसरी तिमाही की तरह ही तीसरी तिमाही भी हर महिला के लिए महत्वपूर्ण होती है। तीसरी तिमाही के दौरान प्रेग्नेंसी की पिछली तिमाहियों में दिखाई देने वाले लक्षणों में सुधार होता है। सामान्यतः इस समय अधिकतर महिलाओं को जी मिचलाने और थकान की समस्या से आराम मिलाता है। लेकिन इस दौरान भी महिला के शरीर में कई तरह के बदलाव होना शुरू होते हैं। प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में महिला के शरीर में होने वाले बदलावों को नीचे विस्तार से बताया जा रहा है।

  • पीठ या कमर में दर्द :
    गर्भावस्था में अंतिम चरण में भ्रूण का वजन बढ़ने से पीठ या कमर पर दबाव पड़ता है, जिसकी वजह सें महिला की कमर में दर्द शुरू हो जाता है। इस समय महिला प्रसव के लिए तैयार हो रही होती है, इसलिए उनको पेल्विक क्षेत्र और कूल्हों के हिस्से में असहजता महसूस होती है। कमर पर पड़ने वाले दबाव को कम करने के लिए महिलाओं को कमर सीधी करके ही बैठने का प्रयास करना चाहिए। साथ ही बैठने के लिए कमर को सर्पोट करने वाली कुर्सी का ही इस्तेमाल करें। (और पढ़ें - गर्भावस्था में पेल्विक दर्द का इलाज)
    इसके अलावा महिला को करवट लेकर ही सोना चाहिए, सोते समय पेल्विक क्षेत्र और पेट पर दबाव ज्यादा ना पड़ें इसलिए महिला अपने दोनों पैरों की जांघों के बीच में तकिया रख सकती हैं। इस दौरान सावधानी और कमर दर्द से बचाव के लिए ऊंची हील की सैंडल की जगह पर आरामदायक जूते या चप्पल पहननी चाहिए। अगर कमर या पीठ दर्द ज्यादा हो, तो ऐसे में डॉक्टर से पूछने के बाद गर्म बोतल से सिकाई भी की जा सकती है। (और पढ़ें - गर्भावस्था में कमर दर्द का इलाज)
     
  • स्तनों के आकार में वृद्धि होना :
    प्रेग्नेंसी की पहली, दूसरी और तीसरी तिमाही में महिला स्तनों का आकार में लगातार बढ़ोतरी होती है। तीसरी तिमाही के अंत तक महिला के स्तनों का वजन करीब दो पाउंड (करीब 907 ग्राम) तक हो जाता है। स्तनों के आकार में बढ़ोतरी होने पर महिलाओं को ऐसी ब्रा पहननी चाहिए, जिससे उनके स्तनों को सपोर्ट मिलें। बच्चे के जन्म की तारीख नजदीक आते ही महिला को निप्पलों से पीले रंग का द्रव निकलने लगेगा। इस पीले द्रव को कोलोस्ट्रम (colostrums) कहा जाता है, इससे जन्म के बाद शिशु को पहले कुछ दिनों तक सभी पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। 
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  • ब्रेक्सटन हिक्स संकुचन (Braxton Hicks contraction) :
    प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में महिला को पेट के निचले हिस्से में ब्रेक्सटन हिक्स संकुचन महसूस होता है। इस दौरान महिला के पेट के निचले हिस्से में हल्की ऐंठन होती है। समान्यतः यह संकुचन एक तरह से प्रसव के दौरान होने वाले संकुचन की तरह ही होता है। दरअसल इस संकुचन के माध्यम से महिला का गर्भाशय प्रसव के लिए तैयार हो रहा होता है। महिला को यह संकुचन किसी शारीरिक क्रिया या सेक्स के बाद दिन और शाम के समय महसूस होता है। अगर यह संकुचन लगातार हो रहा हो तो समझ जाए की डिलीवरी की तारीख नजदीक आने वाली है। ब्रेक्सटन हिक्स संकुचन के समय यदि महिला को ज्यादा दर्द हो तो ऐसे में आपको तुरंत अपने डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
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  • योनि से स्त्राव होना (डिस्चार्ज) :
     गर्भवती महिला को तीसरी तिमाही में पहली और दूसरी तिमाही की अपेक्षा योनि से अधिक स्त्राव हो सकता है। यदि यह स्त्राव बेहद ज्यादा हो रहा है तो ऐसे में आपको अपने डॉक्टर से मिलकर इस बारे में बात करनी चाहिए। अगर यह स्त्राव गाढ़ा, साफ और हल्के से लाल रंग का हो तो इसका मतलब होता है कि आपकी डिलीवरी की तारीख पास आ गई है। दरअसल इस स्त्राव से पता चलता है कि गर्भवती महिला की गर्भाशय ग्रीवा ने प्रसव के लिए चौड़ा होना शुरू कर दिया है। अगर महिला को सामान्य से अधिक तरल आता महसूस हो, तो यह प्रसव के दौरान आने वाला तरल भी हो सकता है, जो कुछ स्थितियों में पहले आने लगता है। 
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  • बवासीर होना :
    गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में बवासीर वैरिकोज वेन्स की समस्या संबंधित होता है, इसमें गुदा के पास की नसों में सूजन आ जाती है। इस क्षेत्र में रक्त प्रवाह अधिक होने की वजह से गुदा के पास की नसे चौड़ी हो जाती है। इसके अलावा गर्भ में भ्रूण के वजन के कारण भी इस हिस्से पर दबाव पड़ता है। इस समस्या से बचाव के लिए महिला को कुछ समय के लिए गुनगुने पानी के टब में बैठना चाहिए। 
    (और पढ़ें - गर्भावस्था में बवासीर का इलाज)

गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में होने वाले अन्य शारीरिक बदलाव 

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प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में संतुलित और पौष्टिक आहार युक्त डाइट महिला और भ्रूण के लिए आवश्यक होती है। इतना ही नहीं उचित डाइट लेने से महिला गर्भावस्था के दौरान होने वाली कई तरह समस्याओं से बचाव कर सकती है। इस समय महिला को विटामिन, मिनरल्स, प्रोटीन, वसा और कार्बोहाइड्रेट सही मात्रा में लेनी चाहिए। निम्न प्रकार से जानें प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही के लिए जरूरी पोषक तत्व और खाद्य पादर्थ।

  • आयरन :
    शरीर में हीमोग्लोबिन का एक बड़ा हिस्सा आयरन बनाता है। हीमोग्लोबिन शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने का कार्य करता है। गर्भावस्था के दौरान महिला के शरीर में रक्त की मात्रा करीब 50 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। ऐसे में अतिरिक्त हीमोग्लोबिन की आवश्यकता होती है। अगर प्रेग्नेंसी में महिला के शरीर में रक्त की कमी हो जाए तो ऐसे में प्रसव के दौरान ज्यादा खून बहने की संभावनाएं बढ़ जाती है। इसलिए महिला को अपनी डाइट में आयरन युक्त खाद्य पदार्थों जैसे बीन्स, खुबानी, अंडे की जर्दी, कम वसा वाला मीट, मछलीबादाम आदि को शामिल करना चाहिए। 
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  • फोलिक एसिड :
    फोलिक एसिड गर्भावस्था में बेहद ही महत्वपूर्ण होता है, यह मुख्य रूप से शिशु में जन्म से होने वाले तंत्रिका नली दोष (Neural tube defects) जैसे स्पाइना बिफिडा (Spina bifida) से बचाव करता है। इसको आप हरी पत्तेदार सब्जियों जैसे पालक, पत्तागोभी और चने आदि से प्राप्त कर सकती हैं।  
    (और पढ़ें - गर्भावस्था में फोलिक एसिड का महत्व)
     
  • फाइबर :
    प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को कब्ज होने की संभावनाएं बेहद अधिक होती है। इससे बचाव के लिए महिला को फाइबर युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए। कुछ अध्ययन से पता चला है कि गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में फाइबर युक्त खाद्य पदार्थों को खाने से महिला को गंभीर रूप से बवासीर होने का खतरा कम हो जाता है। इसलिए महिलाओं को फाइबर युक्त आहार जैसे साबुत अनाजदालों, बीन्स, फल और सब्जियों का सेवन करना चाहिए।
    (और पढ़ें - फाइबर के फायदे)
     
  • कैल्शियम :
    महिला को गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में रोजाना कैल्शियम लेना चाहिए। डेयरी उत्पाद जैसे दूध, पनीर और दही आदि में कैल्शियम अधिक मात्रा में पाया जाता है।

तीसरी तिमाही में लिए जाने वाले अन्य खाद्य पदार्थ

(और पढ़ें - संतुलित आहार के फायदे)

गर्भावस्था की पहली और दूसरी तिमाही की तरह ही महिला को तीसरी तिमाही में भी अपनी पर्याप्त देखभाल करनी चाहिए। इसके साथ ही महिला को इस समय बरती जानें वाली सभी सावधानियों के बारे में पूरी जानकारी होनी बेहद जरूरी है। इस दौरान महिला को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए इन सभी बातों को नीचे विस्तार से बताया जा रहा है।

प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में क्या करें:

गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में क्या ना करें: 

(और पढ़ें - प्रेगनेंसी में होने वाली समस्याओं का समाधान)

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प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही गर्भावस्था के सातवें से नौवें महीने तक की अवधि होती है, जो आमतौर पर सप्ताह 27 से सप्ताह 40 तक होती है। इस तिमाही में शिशु का विकास तेजी से होता है और वह जन्म के लिए तैयार होने लगता है। शिशु का वजन बढ़ता है, उसकी हड्डियाँ मजबूत होती हैं, और फेफड़े पूरी तरह से विकसित हो जाते हैं।

माँ के शरीर में भी कई बदलाव होते हैं। पेट का आकार काफी बड़ा हो जाता है और इस वजह से पीठ दर्द, थकान, और सोने में परेशानी जैसी समस्याएँ आम हो जाती हैं। गर्भवती महिलाओं को इस समय अधिक आराम की आवश्यकता होती है और उन्हें अपने डॉक्टर से नियमित जांच करवानी चाहिए।

तीसरी तिमाही में शिशु की हलचल महसूस करना आम बात है और यह उसकी सेहत का एक संकेत है। इस समय प्रसव की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए, जिसमें अस्पताल की यात्रा, नवजात शिशु की आवश्यकताएँ, और प्रसव के लिए मानसिक और शारीरिक तैयारी शामिल है। कुल मिलाकर, तीसरी तिमाही गर्भवती महिलाओं के लिए उत्साह और चुनौतियों का समय होता है, जिसमें वे अपने शिशु के आगमन की तैयारी करती हैं।

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