अक्सर कुछ कपल्स संतान सुख पाने में सक्षम नहीं होते हैं. वहीं, आज के इस आधुनिक दौर में ऐसे कई तरीके आ चुके हैं, जिसके जरिए बच्चे की ख्वाहिश को पूरा किया जा सकता है. आईवीएफ इन्हीं तरीकों में से एक है, लेकिन कुछ मामलों में आईवीएफ प्रक्रिया भी फेल हो जाती हैं. इस स्थिति में ऐसे कपल सरोगेसी का सहारा ले सकते हैं. बेशक, ये प्रक्रिया महंगी जरूरी है, लेकिन संतान सुख की प्राप्ति के लिए ये बेहतर विकल्प है.

आज इस खास लेख में हम सरोगेसी से संबंधित सभी जानकारियां देने का प्रयास कर रहे हैं -

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  1. सरोगेसी क्या है?
  2. सरोगेसी के प्रकार
  3. सरोगेसी के लाभ
  4. कौन चुना सकता है सरोगेसी
  5. सरोगेट बनने के मानदंड
  6. सरोगेसी की प्रक्रिया
  7. सरोगेसी की कीमत
  8. सारांश
सरोगेसी क्या होता है? के डॉक्टर

सरोगेसी एक कॉन्ट्रैक्ट होता है, जिसमें एक महिला दूसरे कपल के लिए "गर्भधारण" करती है. एक बार जब महिला की डिलीवरी हो जाती है, तो वो अपने शिशु को उस दंपती को दे देती है, जिनके लिए उसने गर्भधारण किया था. सरोगेसी को लंबी प्रक्रिया माना गया है. इसके अलावा, भारत में यह कानूनी तौर पर वैध भी है.

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इंफेक्शन और सूजन को कम करने के लिए , हार्मोंस को संतुलित करने के लिए , पेशाब में जलन व दर्द को ठीक करने के लिए , पीसीओडी/पीसीओएस , यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन , असामान्य डिस्चार्ज आदि को रोकने के लिए महिला और पुरुष दोनों चंद्र प्रभा वटी का उपयोग कर सकते हैं। 

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यहां हम सरोगेसी के प्रकार के बारे में जानकारी दे रहे हैं. मुख्य रूप से सरोगेसी के दो प्रकार माने गए हैं -

ट्रेडिशनल सरोगेसी

इस प्रकार की सरोगेसी में डोनर या पिता के स्पर्म को सरोगेट मदर के एग्स से मैच किया जाता है. फिर डॉक्टर महिला के यूट्रस में स्पर्म को प्रवेश कराते हैं. इसमें गर्भवती होने वाली महिला बच्चे की बायोलोजिकल मां होती है. इस तरह की सरोगेसी के दौरान कुछ मामलों में पिता की जगह डोनर के स्पर्म का उपयोग किया जा सकता है और ऐसे में पिता का भी होने वाले बच्चे से बायोलोजिकल रिश्ता नहीं होता है.

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जेस्टेशनल सरोगेसी

ट्रेडिशनल सरोगेसी में सरोगेट महिला के एग्स का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. इसलिए, वो होने वाले शिशु की बायोलोजिकल मां नहीं होती है. दरअसल, इसमें संतान सुख से वंचित कपल या डोनर के एग्स व स्पर्म का मेल कराकर, उसे सरोगेट मदर के यूट्रस में प्रवेश कराया जाता है. ऐसे में सरोगेट मदर का होने वाले बच्चे से किसी प्रकार का जेनेटिक संबंध नहीं होता है.

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आइए, अब यह जानते हैं कि सरोगेसी के जरिए किस प्रकार के लाभ होते हैं -

  • सरोगेसी का सबसे बड़ा फायदा है कि जिस दंपती को बच्चे का सुख नहीं मिल पाता है, उन्हें अपने बच्चे की खुशी मिल सकती है.
  • इससे दंपती को अपने बच्चे का बायोलोजिकल पेरेंट्स बनने का मौका मिल सकता है.

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भारत में सरोगेसी को लेकर सख्त कानून है. सरोगेसी का विकल्प चुनने के लिए कपल को निम्न मापदंडों को पूरा करना जरूरी है -

  • केवल जरूरतमंद यानी संतान उत्पन्न करने में असमर्थ भारतीय दंपती को ही सरोगेसी का विकल्प चुनने का अधिकार है.
  • कपल की शादी को कम से कम पांच साल हो गए हैं और उनके पास डॉक्टर से प्राप्त इनफर्टिलिटी का प्रमाण पत्र हो.
  • पत्नी की आयु 23 से 50 वर्ष के बीच और पति की आयु 26 से 55 वर्ष के बीच होनी चाहिए.

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सरोगेसी की सबसे पहली प्रक्रिया है सरोगेट मदर यानी उस महिला को ढूंढना, जो सरोगेसी के लिए तैयार हो. मुख्य रूप से नए नियम के अनुसार, सरोगेट महिला विवाहित और कपल की रिश्तेदार होनी चाहिए. सरोगेट मदर बनने के लिए भी कुछ और मानदंडों की जानकारी होनी आवश्यक है. ये मानदंड कुछ इस प्रकार हैं -

  • उम्र - उम्मीदवार महिला की आयु 25 से 35 वर्ष के बीच होनी चाहिए. महिला अपने जीवनकाल में बस एक बार ही सरोगेट का विकल्प चुन सकती है, जबकि पहले यह तीन बार था.
  • रीप्रोडक्टिव बैकग्राउंड - महिला की कम से कम एक बार बिना किसी कॉम्प्लिकेशन के गर्भावस्था रही हो और उसकी खुद की संतान हो.
  • जीवनशैली - सरोगेट की जीवनशैली अच्छी होनी चाहिए. वो जहां रह रही है वहां का वातावरण और उनके रहन-सहन का तरीका सही होना चाहिए. शराब, नशीली दवाइयों का सेवन न करती हो.
  • टेस्ट - सरोगेट की मानसिक स्वास्थ्य की जांच होनी चाहिए. इसके साथ ही पूर्ण शारीरिक जांच भी होनी चाहिए, जिसमें यौन संचारित संक्रमणों (एसटीआई) की जांच शामिल है.

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एक बार जब कपल को सरोगेट मदर मिल जाए तो सरोगेसी की प्रक्रिया इस बात पर निर्भर करती है कि वे किस प्रकार की सरोगेसी की प्रक्रिया के साथ जाना चाहते हैं -

जेस्टेशनल सरोगेसी के लिए

इसके तहत निम्न प्रकार की प्रक्रिया को फॉलो किया जाता है -

  • सबसे पहले सरोगेट मदर का चुनाव किया जाता है.
  • फिर एक कानूनी कॉन्ट्रैक्ट बनवाकर उसका रिव्यू किया जाता है.
  • अब आते हैं प्रक्रिया पर, इच्छित मां या डोनर के एग और इच्छित पिता या डोनर के शुक्राणु का उपयोग करके भ्रूण का निर्माण किया जाता है.
  • फिर भ्रूण को सरोगेट महिला में ट्रांसफर किया जाएगा. अगर यह प्रक्रिया सफल होती है, तो सरोगेट महिला गर्भधारण कर सकती हैं. वहीं, अगर यह प्रक्रिया असफल होती है, तो  इच्छित माता-पिता और सरोगेट एक और आईवीएफ प्रक्रिया से गुजर सकते हैं.
  • शिशु के पैदा होते ही कांट्रैक्ट में लिखी गई शर्तों के अनुसार माता-पिता उसी वक्त बच्चे की कस्टडी ले सकते हैं.

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ट्रेडिशनल सरोगेसी के लिए

ट्रेडिशनल सरोगेसी काे कुछ इस तरह से किया जाता है -

  • इस प्रक्रिया के लिए भी सबसे पहले सरोगेट मदर का चुनाव करना होगा.
  • सरोगेट मदर के चयन के बाद इसमें भी कानूनी कॉन्ट्रैक्ट बनवाने की आवश्यकता होती है.
  • इच्छित पिता के या डोनर के शुक्राणु का उपयोग करके आईयूआई प्रक्रिया की जाती है.
  • अगर यह प्रक्रिया सफल होती है, तो कोई परेशानी नहीं होगी. 
  • वहीं, अगर पहला प्रयास असफल रहता है, तो फिर से कोशिश की जाती है.
  • शिशु का जन्म होते ही कपल को अडॉप्शन की प्रक्रिया को पूरा करना होता है.

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हाल ही में नए नियमों के तहत भारत में व्यवसायिक सरोगेसी को प्रतिबंधित कर दिया गया है. भारत में अब सिर्फ परोपकारी उद्देश्य से ही सरोगेसी प्रक्रिया को अपनाया जा सकता है. इसके तहत इच्छुक पति-पत्नी सरोगेट महिला को सिर्फ बीमा कवरेज और मेडिकल खर्च के लिए ही पैसे दे सकते हैं.

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सरोगेसी किसी भी कपल के लिए एक बड़ा और कीमती फैसला है. इसमें न सिर्फ अधिक से अधिक पैसे खर्च होते हैं, बल्कि यह एक भावनात्मक फैसला भी है. इसलिए, यह जरूरी है कि यह निर्णय सोच-समझकर और पूरी जानकारी के साथ लिया जाए. हमें उम्मीद है कि यहां दी गई जानकारियां आपके लिए लाभकारी होगी. इस विषय में और अधिक जानने के लिए दंपती को विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए.

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