प्रेग्नेंसी की पहली तिमाही पूरी होने के बाद गर्भवती महिला दूसरी तिमाही के चरण में प्रवेश करती हैं। इस समय कामकाजी महिलाएं अपनी छुट्टी के लिए योजना तैयार करने लगती हैं। गर्भावस्था का हर चरण महिला के लिए बेहद ही महत्वपूर्ण होता है। इस समय तक अधिकतर गर्भवती महिलाओं की पहली तिमाही में होने वाली मॉर्निंग सिकनेस और थकान के लक्षण समाप्त हो जाते हैं। मॉर्निंग सिकनेस और थकान समाप्त होने से दूसरी तिमाही में महिला खुद को पहले की अपेक्षा ऊर्जावान महसूस करने लगती हैं। लेकिन इस दौरान भी किसी प्रकार की समस्या न हो, इसलिए महिलाओं को अपने स्वास्थ्य की पूरी तरह से देखभाल करनी चाहिए। 

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प्रेग्नेंसी के इस चरण में महिलाओं को कोई समस्या न हो, इसलिए इस लेख में गर्भावस्था की दूसरी तिमाही के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है। साथ ही इसमें प्रेग्नेंसी में दूसरी तिमाही का मतलब क्या है, गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में होने वाले शारीरिक बदलाव, प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही में भ्रूण का विकास, प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही में क्या खाना चाहिए और गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में देखभाल आदि के बारे में भी विस्तार से बताया गया है।

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  1. गर्भावस्था की दूसरी तिमाही का मतलब क्या है? - Garbhavastha ki dusri timahi ka matlab kya hai
  2. गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में होने वाले शारीरिक बदलाव - Garbhavastha ki dusri timahi me hone vale sharirik badlav
  3. गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में बच्चे का विकास - Garbhavastha ki dusri timahi me brun ka vikas
  4. प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही में क्या खाना चाहिए? - Pregnancy ki dusri timahi me kya khana chahiye
  5. प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही में देखभाल कैसे करें? - Garbhavastha ki dusri timahi me dekhbhal
  6. सारांश

गर्भावस्था को तीन-तीन महीनों के तीन चरणों में विभाजित किया जाता हैं। इसके दूसरे चरण को ही दूसरी तिमाही कहा जाता है। गर्भावस्था के 13 वें सप्ताह से प्रेग्नेंसी के 27वें सप्ताह तक दूसरी तिमाही मानी जाती है। इसको गर्भावस्था का हनीमून पीरियड (honeymoon period in pregnancy) भी कहा जाता है। अधिकतर महिलाओं के लिए प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही, पहली तिमाही की अपेक्षा ज्यादा आरामदायक होती है। दूसरी तिमाही में भ्रूण का आकार थोड़ा बड़ा हो जाता है और ऐसे में महिला का पेट बाहर की ओर आता दिखाई देता है। महिलाओं को प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही में आने वाली समस्याओं और देखभाल के बारे में भी पूरी जानकारी होनी चाहिए। इस दौरान प्रेग्नेंट महिला को शरीर में होने वाले बदलाव, भ्रूण के विकास और डाइट के बारे में भी मालूम होना चाहिए। 

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प्रेग्नेंसी की पहली तिमाही की तरह ही दूसरी तिमाही भी हर महिला के लिए महत्वपूर्ण होती है। दूसरी तिमाही के दौरान प्रेग्नेंसी की पहली तिमाही में दिखाई देने वाले लक्षणों में सुधार होता है। सामान्यतः इस समय अधिकतर महिलाओं को जी मिचलाना और थकान की समस्या से आराम मिल जाता है। लेकिन इस दौरान भी महिला के शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं। प्रेग्नेंसी के दूसरी तिमाही में महिला के शरीर में होने वाले बदलावों को नीचे विस्तार से बताया जा रहा है।

  • पीठ में दर्द :
    गर्भावस्था के पिछले कुछ महीनों में महिला का वजन बढ़ने से उनको इस दौरान कमर में दर्द की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। इस समय पीठ या कमर पर पड़ने वाले दबाव को कम करने के लिए महिलाओं को कमर सीधी करके ही बैठने का प्रयास करना चाहिए। साथ ही बैठने के लिए कमर को सर्पोट करने वाली कुर्सी का इस्तेमाल करें। इसके अलावा करवट लेकर सोएं और सोते समय अपने पैरों के बीच में तकिए को रखें। इस समय प्रेग्नेंट महिला को ज्यादा वजन का सामान उठाने से बचना चाहिए। इसके अलावा ऊंची हील की सैंडल की जगह पर आरामदायक जूते या चप्पल पहनने चाहिए। अगर कमर या पीठ में दर्द ज्यादा हो, तो ऐसे में महिलाएं घर के किसी सदस्य या पति से दर्द वाले हिस्से पर हल्की मसाज करवा सकती हैं।
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  • गर्भाशय और स्तनों के आकार में वृद्धि होना :
     प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही में महिला का गर्भाशय भ्रूण के विकास के लिए पर्याप्त रूप से बढ़ने की स्थिति में होता है। साथ ही इस समय पहली तिमाही के दौरान स्तनों में होने वाला दर्द कम हो जाता है, लेकिन दूसरी तिमाही में भी महिलाओं के स्तनों का बढ़ना निरंतर जारी रहता हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि दूसरी तिमाही में भी महिलाओं के स्तन बच्चे को स्तनपान कराने के लिए तैयार हो रहे होते हैं। स्तनों के आकार में बढ़ोतरी होने पर महिलाओं को ऐसी ब्रा पहननी चाहिए, जिससे उनके स्तनों को पर्याप्त सपोर्ट मिल सकें। 
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  • मसूड़ो से खून आना :
     गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में अधिकतर महिलाओं के मसूड़ों में सूजन और दर्द की समस्या होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इस समय महिला के शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलाव मसूड़ों की ओर रक्त प्रवाह को बढ़ा देते हैं, जिसकी वजह से महिला के मसूड़ों में संवेदनशीलता और खून आना आम बात हो जाती है। बच्चे के जन्म के बाद महिला के मसूड़ों की स्थिति दोबारा से सामान्य हो जाती है। इस दौरान महिला को सॉफ्ट टूथब्रश का इस्तेमाल करना चाहिए, और दांतों को साफ करते समय ज्यादा जोर नहीं लगाना चाहिए। कुछ अध्ययनों से इस बात का पता चला है कि जिन गर्भवती महिलाओं को मसूड़ों की समस्या होती है, उनके बच्चे का जन्म समय से पूर्व होने और जन्म के समय बच्चे का वजन कम होने की संभावनाएं अधिक होती है। 
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  • नाक का बंद होना और खून आना :
    गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में हार्मोन के स्तर में बढ़ोतरी के कारण महिला के शरीर में अधिक रक्त बनता है। इसकी वजह से महिला की श्लेषमा झिल्ली (Mucus membrane) में सूजन आ जाती है। इस सूजन के कारण महिला की नाक बंद हो जाती है और नाक से खून आने लगता है। नाक बंद होने पर महिलाओं को सेलाइन ड्रोप (Saline drop) के इस्तेमाल से राहत मिलती है। साथ ही इस समय पर्याप्त तरल लें, कमरे में ह्यूमिडिटी फायर (कमरे में नमीं बनाए रखने वाला यंत्र) लगाएं और नथुने के किनारों पर पैट्रोलियम जैली लगाकर नाक की त्वचा में नमी बनाएं रखें। 
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  • सफेद स्त्राव होना (डिस्चार्ज) :
     प्रेग्नेंसी के दूसरे चरण में महिला की योनि से सफेद रंग का स्त्राव (leucorrhea: ल्यूकोरिया) होना सामान्य बात है। इस दौरान महिलाओं को टेम्पोन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। टेम्पोन से महिला की योनि में रोगाणु होने का खतरा रहता है। इस दौरान पीला, दुर्गंध और अधिक स्त्राव हो तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
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गर्भवस्था की दूसरी तिमाही में होने वाले अन्य शारीरिक बदलाव

प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही के दौरान भ्रूण के सभी अंग पूरी तरह से विकसित हो जाते हैं। इस समय भ्रूण का आकार पहली तिमाही की अपेक्षा बढ़ जाता है। ऐसे में गर्भवती महिला का पेट भी बाहर की ओर दिखने लगता है। दूसरी तिमाही में ही बच्चा सुनना और निगलना शुरू कर देता है।

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 इस चरण के अंतिम दौर तक महिला भ्रूण के हिलने को महसूस करने लगती है, इतना ही नहीं गर्भवती महिला भ्रूण के सोने और जागने की स्थिति का भी आसानी से अनुभव कर पाती है। गर्भावस्था से संबंधित संगठनों के मुताबिक दूसरी तिमाही के अंत तक भ्रूण की लंबाई करीब 14 इंच व वजन करीब दो पाउंड से थोड़ा अधिक हो जाता है। 

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प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही में संतुलित और पौष्टिक खाद्य पदार्थ युक्त डाइट महिला और भ्रूण के लिए आवश्यक होती है। संपूर्ण आहार लेने से भ्रूण को पर्याप्त पोषक तत्व मिलते हैं, जो उसके विकास के लिए बेहद जरूरी माने जाते हैं। इतना ही नहीं उचित डाइट लेने से महिला का भी गर्भावस्था के दौरान होने वाली कई तरह समस्याओं से बचाव होता है। इस समय महिला को विटामिन, मिनरल्स, प्रोटीन, वसा और कार्बोहाइड्रेट आदि सही मात्रा में लेने होते हैं। हालांकि महिला को दूसरी तिमाही में सामान्य दिनों की अपेक्षा अधिक कैलोरी की आवश्यकता होती है।  

निम्न प्रकार से जानें प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही के लिए जरूरी पोषक तत्व और खाद्य पदार्थ के बारे में।

  • आयरन युक्त खाद्य पदार्थ :
    आयरन ऑक्सीजन को पूरे शरीर में पहुंचाने में मदद करता है। गर्भावस्था के समय आयरन युक्त खाद्य पदार्थ भ्रूण को ऑक्सीजन पहुंचाने का कार्य करते हैं। इस समय आयरन न लेने से महिलाओं को एनीमिया व अन्य समस्याएं (जैसे बच्चे का समय से पहले पैदा होने व डिलीवरी के बाद डिप्रेशन) हो सकती हैं। इसलिए महिलाओं को इस समय अपनी डाइट में हरे पत्तेदार सब्जियां, ड्राई फ्रूट्स (नट्स), बीन्स, बिना वसा वाला मीट को शामिल करना चाहिए। 
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  • प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ :
    गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में महिलाओं को एक दिन में 75 से 100 ग्राम प्रोटीन अपनी डाइट में लेना चाहिए। रोजाना प्रोटीन लेने से भ्रूण के मस्तिष्क और अन्य ऊतकों को बढ़ने में मदद मिलती है। साथ ही प्रोटीन मां के गर्भाशय और स्तनों के विकास के लिए भी जरूरी होता हैं। महिला को प्रोटीन लेने के लिए अपने आहार में टोफू, अंडे, मछली, मटर और नट्स आदि खाद्य पदार्थों को शामिल करना चाहिए। 
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  • फोलेट :
    विटामिन बी को फोलेट के नाम से भी जाना जाता है। फोलेट गर्भावस्था में बेहद ही महत्वपूर्ण होता है, यह मुख्य रूप से शिशु में जन्म से होने वाले तंत्रिका नली दोष (Neural tube defects) जैसे स्पाइना बिफिडा (Spina bifida) से बचाव करता है। इसको आप हरी पत्तेदार सब्जियों जैसे पालक और पत्ता गोभी आदि से प्राप्त कर सकती हैं। इसके आलावा संतरे और साबुत अनाज में भी विटामिन बी मौजूद होता है।
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अन्य आवश्यक पोषक तत्व

दूसरी तिमाही में लिए जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ

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गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में महिला को अपनी पर्याप्त देखभाल करनी चाहिए। इसके साथ ही महिला को इस समय बरती जानें वाली सभी सावधानियों के बारे में पूरी जानकारी होना बेहद जरूरी है। इस दौरान महिला को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए इन सभी बातों को निम्नतः विस्तार से बताया जा रहा है।

प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही में क्या करें

गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में क्या ना करें

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प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही गर्भावस्था के चौथे से छठे महीने तक की अवधि को शामिल करती है, जो आमतौर पर सप्ताह 13 से सप्ताह 26 तक होती है। इस समय को अक्सर गर्भावस्था का "सुनहरा समय" कहा जाता है क्योंकि पहली तिमाही के दौरान होने वाली मतली और थकान जैसी समस्याएं अक्सर कम हो जाती हैं। दूसरी तिमाही में गर्भवती महिलाओं को अधिक ऊर्जा मिलती है और उनका पेट तेजी से बढ़ने लगता है।

इस अवधि के दौरान शिशु की महत्वपूर्ण विकास प्रक्रियाएं जारी रहती हैं। बच्चे के अंग और तंत्रिका तंत्र अधिक विकसित होते हैं, और शिशु की गतिविधियाँ जैसे कि लात मारना महसूस की जा सकती हैं। इसके अलावा, बच्चे का चेहरा और अन्य विशेषताएँ अधिक स्पष्ट हो जाती हैं।

महिलाओं के लिए यह समय नियमित स्वास्थ्य जांच, सही पोषण और हल्के व्यायाम पर ध्यान देने का होता है। इसके साथ ही, गर्भावस्था से जुड़ी समस्याओं जैसे कि पीठ दर्द, पैरों में सूजन और मसूड़ों से खून आने पर भी ध्यान देना आवश्यक है। कुल मिलाकर, दूसरी तिमाही गर्भवती महिलाओं के लिए एक रोमांचक और महत्वपूर्ण समय होता है, जिसमें वे अपने शिशु के विकास को महसूस कर सकती हैं।

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