यह बात तो कई अध्ययनों में साबित हो चुकी है और डॉक्टर्स भी यही बताते हैं कि हाई ब्लड प्रेशर, हृदय रोग का सबसे बड़ा जोखिम कारक है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन की मानें तो हाइपरटेंशन या हाई ब्लड प्रेशर अगर अनियंत्रित हो जाए तो इससे हृदय तक रक्त पहुंचाने वाली धमनियों को नुकसान पहुंचता है जिससे कई तरह के हृदय रोग होने का खतरा रहता है।
अब एक नई रिसर्च में यह बात सामने आयी है कि जो महिलाएं गर्भावस्था के दौरान हाई ब्लड प्रेशर की समस्या से पीड़ित होती हैं उन्हें जीवन में आगे चलकर हृदय रोग और हार्ट फेलियर जैसी समस्याएं होने का खतरा अधिक होता है। आंकड़ों की मानें तो पश्चिमी देशों में सभी प्रेगनेंसीज में करीब 6 प्रतिशत प्रेगनेंसी ऐसी होती है जिसमें गर्भवती महिला हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित होती हैं लेकिन यह समस्या डिलिवरी के बाद सामान्य हो जाती है। इस तरह की स्थिति को जेस्टेशनल हाइपरटेंशन या गर्भावस्था प्रेरित (प्रेगनेंसी इन्ड्यूस्ड) हाइपरटेंशन कहते हैं।
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जेस्टेशनल हाइपरटेंशन, प्री-एक्लेम्प्सिया से अलग
जेस्टेशनल हाइपरटेंशन की समस्या प्री-एक्लेम्प्सिया से अलग होती है क्योंकि प्री-एक्लेम्प्सिया में हाई ब्लड प्रेशर के साथ ही गर्भवती महिला के यूरिन में प्रोटीन के अंश भी पाए जाते हैं। डॉक्टरों की मानें तो जिन महिलाओं को जेस्टेशनल हाइपरटेंशन यानी गर्भावस्था के दौरान हाई बीपी की समस्या होती है उन्हें जीवन में आगे चलकर कई तरह के हृदय रोग होने का खतरा अधिक होता है।
21 अध्ययनों की व्यवस्थित समीक्षा की गई
हालांकि, हृदय रोग और हार्ट फेलियर जैसे विभिन्न प्रकार के हृदयवाहिनी संबंधित बीमारियों (कार्डियोवस्कुलर डिजीज) के अलग-अलग अध्ययनों के मिश्रित परिणाम मिले हैं। अध्ययन से जुड़ी इन कड़ियों की आगे की जांच करने के लिए, अनुसंधानकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने 21 अध्ययनों की व्यवस्थित समीक्षा के साथ ही मेटा-विश्लेषण भी किया जिसमें करीब 36 लाख महिलाएं शामिल थीं। इनमें से करीब 1 लाख 28 हजार महिलाओं को पहले से जेस्टेशनल हाइपरटेंशन की समस्या थी।
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इस तरह का अध्ययन इसलिए भी फायदेमंद होता है क्योंकि इसमें सभी मौजूदा प्रासंगिक अध्ययनों से डेटा के संयोजन के जरिए शोधकर्ताओं को अक्सर परस्पर विरोधी अध्ययनों से परिणामों की तुलना और उन्हें संगठित करने का मौका मिलता है जिसके जरिए वे किसी सुदृढ़ नतीजे पर पहुंच सकते हैं। इस स्टडी के नतीजों को जर्नल ऑफ द अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन में प्रकाशित किया गया है।
हृदय रोग का खतरा 45%, कोरोनरी हार्ट डिजीज का खतरा 46%
अनुसंधानकर्ताओं ने अपनी स्टडी के दौरान पाया कि जिन महिलाओं को अपनी पहली प्रेगनेंसी के दौरान हाई ब्लड प्रेशर की समस्या हुई उन महिलाओं में कार्डियोवस्कुलर डिजीज होने का खतरा 45 प्रतिशत अधिक और हृदय धमनी से जुड़ा रोग (कोरोनरी हार्ट डिजीज) होने का खतरा 46 प्रतिशत अधिक था, उन महिलाओं की तुलना में जिन्हें प्रेगनेंसी के दौरान हाई ब्लड प्रेशर की समस्या नहीं हुई। इतना ही नहीं, वे महिलाएं जिन्हें एक से ज्यादा प्रेगनेंसी में हाई ब्लड प्रेशर की समस्या हुई उनमें कार्डियोवस्कुलर डिजीज होने का खतरा 81 प्रतिशत, कोरोनरी हार्ट डिजीज होने का खतरा 83 प्रतिशत और हार्ट फेलियर होने का खतरा 77 प्रतिशत था।
प्री-एक्लेम्प्सिया हो या नहीं, हाई बीपी से हृदय रोग का खतरा
यूके की यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज स्थित डिपार्टमेंट ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड प्राइमरी केयर में कार्डियोवस्कुलर एपिलेमोलॉजी यूनिट के डॉक्टर और स्टडी के सीनियर ऑथर डॉ क्लेयर ओलिवर विलियम्स ने कहा, 'इस बारे में जितनी भी रिसर्च मौजूद है उन सभी की हमने जांच की तो जवाब साफ था- जिन महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान हाई ब्लड प्रेशर की समस्या हुई- फिर चाहे वह प्री-एक्लेम्प्सिया में विकसित हो या नहीं- उन सभी को अलग-अलग तरह के हृदय रोग होने का खतरा अधिक था।'
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अनुसंधानकर्ताओं की यह स्टडी गर्भावस्था और बाद में होने वाली हृदय संबंधी घटनाओं के जोखिम के बीच क्या संबंध है इसके बढ़ते सबूत को जोड़ता है। रिकरेंट या बार-बार मिसकैरेज होना, प्रीटर्म बर्थ यानी समय से पहले प्रसव, भ्रूण के विकास में बाधा आना और प्री-एक्लेम्प्सिया- इन सभी समस्याओं को पहले भी हृदय रोग के अधिक जोखिम से जोड़ा जा चुका है।
हाई बीपी से होने वाली क्षति हृदय रोग में योगदान देती है
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह बात पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है कि जेस्टेशनल हाइपरटेंशन यानी गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप की समस्या बाद के जीवन में हृदय रोग से क्यों और कैसे जुड़ा हुआ है। हालांकि उनकी मानें तो प्रेगनेंसी के दौरान हाई ब्लड प्रेशर स्थायी क्षति का कारण बनता है जो हृदय रोग में योगदान देता है। इसके अलावा वैकल्पिक रूप से ये भी हो सकता है कि जिन महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान हाई बीपी की समस्या होती है उनमें हृदय रोग के लिए पहले से संवेदनशीलता हो सकती है, जो कि महिलाओं के शरीर में प्रेगनेंसी के समय बढ़ी मांगों के कारण प्रकट होती है।
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