मानव शरीर (लड़के और लड़कियों दोनों का) आमतौर पर 45 डेल (del; दर्द मापने की इकाई) का दर्द ही बर्दाश्त कर सकता है। लेकिन प्रसव के दौरान महिलाएं 57 डेल का दर्द महसूस करती हैं। जो एक बार में 20 हड्डियों के टूटने पर होने वाले दर्द के बराबर होता है। इसे वास्तव में प्रसव पीड़ा कहते हैं।
प्रसव पीड़ा और उसके बाद डिलीवरी को बच्चे का जन्म होना या प्रेगनेंसी का अंत भी कहा जाता है। डिलीवरी दो प्रकार से होती है, नार्मल डिलीवरी या सिजेरियन डिलीवरी (सी-सेक्शन)। 2015 में विश्वभर में 13.5 करोड़ बच्चों ने जन्म लिया था जिनमें से लगभग 1.5 करोड़ बच्चे गर्भावस्था के 37वें हफ्ते से पहले, जबकि 3 से 12% बच्चे 42 हफ्तों बाद पैदा हुए थे। आजकल ज्यादातर डिलीवरी अस्पताल में होती हैं, लेकिन आज भी कई जगहों पर अधिकांश जन्म घर पर एक दायी की मदद से होते हैं।
प्रसव का सबसे सामान्य तरीका योनि मार्ग से डिलीवरी है। इस प्रकार के प्रसव के तीन चरण होते हैं: गर्भाशय ग्रीवा का छोटा और बड़ा होना, बच्चे का जन्म लेने के लिए आगे खिसकना और बच्चे का जन्म और प्लेसेंटा बाहर आना आदि।
अधिकांश बच्चों का जन्म लेते समय पहले सिर बाहर आता है। हालांकि लगभग 4% बच्चों के पैर या कूल्हे पहले बाहर आते हैं। 2012 में, लगभग 23 मिलियन प्रसव सर्जरी द्वारा हुए थे। आमतौर पर सीज़ेरियन डिलीवरी, जुड़वा बच्चों या बच्चों में संकट में होने या उलटी स्थिति में पैदा होने का संकेत होने पर किया जाता है। सर्जरी में ठीक होने में अधिक समय लग सकता है।
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