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गर्भावस्था के 9 महीने के साथ-साथ डिलीवरी का समय भी संवदेनशील होता है. डिलीवरी में कुछ घंटे से लेकर कभी-कभी पूरा दिन भी लग सकता है. यही वजह है कि नॉर्मल डिलीवरी को लेकर सटीक तरीके से कुछ भी कह पाना मुश्किल है. अगर नॉर्मल डिलीवरी के सभी चरणों की बात करें, तो शिशु के जन्म से लेकर प्लेसेंटा की डिलीवरी तक में 12 से 24 घंटे लग सकते हैं. गर्भवती महिला का बॉडी मास इंडेक्स, उसकी उम्र और पेल्विस का आकार भी नॉर्मल डिलीवरी के अवधि को प्रभावित करता है.

आज इस लेख में आप जानेंगे कि नॉर्मल डिलीवरी कितने दिन में होती है -

(और पढ़ें - नॉर्मल डिलीवरी के बाद देखभाल)

  1. नॉर्मल डिलीवरी में लगने वाला समय
  2. नॉर्मल डिलीवरी के समय को प्रभावित करने वाले फैक्टर
  3. सारांश
नॉर्मल डिलीवरी कितने दिन में होती है? के डॉक्टर

जिस प्रकार हर महिला की गर्भावस्था व उसकी जटिलताएं अलग-अलग होती हैं, उसी प्रकार नॉर्मल डिलीवरी की अवधि भी अलग-अलग हो सकती है. नॉर्मल डिलीवरी के 3 स्टेज होते हैं, जिसका पहला स्टेज सबसे लंबा है और इसे दो भागों में बांटा गया है. आइए, विस्तार से जानते हैं कि नॉर्मल डिलीवरी कितने दिन में होती है -

स्टेज 1

किसी भी महिला की नॉर्मल डिलीवरी का पहला स्टेज वह होता है, जब उसे लगातार कॉन्ट्रैक्शन महसूस होने लगते हैं. ये कॉन्ट्रैक्शन समय के साथ ज्यादा और बार-बार होने लगते हैं. इसकी वजह से सर्विक्स न सिर्फ खुल जाता है, बल्कि सॉफ्ट व पतला भी हो जाता है, ताकि शिशु आसानी से बाहर निकल सके. स्टेज 1 को 2 भागों में बांटा गया है-  अर्ली लेबर और एक्टिव लेबर, जिनके बारे में नीचे बताया गया है -

अर्ली लेबर - लेबर के समय महिला का सर्विक्स 4 सेंटीमीटर से 6 सेंटीमीटर तक खुलने लगता है और पतला हो जाता है. इस समय हल्के और अनियमित कॉन्ट्रैक्शन होने लगते हैं. सर्विक्स के खुलने के साथ ही गर्भवती महिला के वजाइना से ट्रांसपेरेंट पिंक या खून जैसा डिस्चार्ज होने लगता है. यह म्यूकस प्लग की तरह होता है, जो गर्भावस्था के दौरान सर्विक्स को ब्लॉक करके रखता है. पहली बार मां बन रही महिलाओं के लिए अर्ली लेबर कुछ घंटे से लेकर कुछ दिन तक चल सकता है. वहीं, जो महिला दूसरी या तीसरी बार मां बन रही है, उनके लिए यह समय सीमा कम हो जाती है.

(और पढ़ें - नॉर्मल डिलीवरी व सी-सेक्टशन के फायदे)

एक्टिव लेबर - एक्टिव लेबर के दौरान गर्भवती महिला का सर्विक्स 6 सेंटीमीटर से बढ़कर 10 सेंटीमीटर का हो जाता है. इस समय कॉन्ट्रैक्शन तेज और नियमित हो जाते हैं. पैरों में दर्द महसूस हो सकता है और उल्टी जैसी फीलिंग आ सकती है. भले ही वॉटर ब्रेक न हुआ हो, लेकिन ऐसा महसूस हो सकता है. एक्टिव लेबर 4 से 8 घंटे या इससे ज्यादा समय तक भी रह सकता है. 15 मिनट से लेकर 1 घंटे तक पीठ के निचले हिस्से में दर्द महसूस होता है और बेबी को पुश करने का मन करता है, लेकिन डॉक्टर तब तक इंतजार करने की सलाह देते हैं, जब तक कि सर्विक्स पूरी तरह से खुल नहीं जाता.

(और पढ़ें - डिलीवरी डेट निकल जाने पर क्या करें?)

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स्टेज 2

अब बच्चे की डिलीवरी होने का समय आ जाता है. यह कुछ मिनट से लेकर कुछ घंटे तक चल सकता है. पहली बार मां बन रही महिलाओं को ज्यादा समय लग सकता है. इस समय नॉर्मल डिलीवरी के लिए डॉक्टर महिला को पुश करने की सलाह देते हैं, जिससे वजाइनल टिश्यू स्ट्रेच होते हैं और बच्चे का सिर बाहर निकलने लगता है. बच्चे का सिर बाहर निकलते ही बच्चे की बॉडी भी जल्दी बाहर निकल जाती है. डिलीवरी होने के बाद डॉक्टर अंबिलिकल कॉर्ड को काटने से पहले कुछ सेकंड या कुछ मिनट का इंतजार करते हैं, ताकि कॉर्ड और प्लेसेंटा से बच्चे तक न्यूट्रिएंट वाला खून पहुंच सके. इससे बच्चे को एनीमिया होने का खतरा नहीं होता है. 

(और पढ़ें - डिलीवरी में जटिलता का इलाज)

स्टेज 3

इसमें प्लेसेंटा की डिलीवरी होती है. अमूमन प्लेसेंटा 30 मिनट में डिलीवर हो जाता है, लेकिन कुछ मामलों में इसे 1 घंटा भी लग सकता है. इस समय महिला को कम दर्द वाले कॉन्ट्रैक्शन हो सकते हैं, जिससे प्लेसेंटा को बाहर निकलने में मदद मिलती है. प्लेसेंटा को डिलीवर करने के लिए भी डॉक्टर पुश करने के लिए कह सकते हैं.

(और पढ़ें - डिलीवरी के बाद रक्तस्राव)

जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है कि हर महिला की प्रेगनेंसी का समय और अनुभव अलग-अलग होता है. इस दौरान नॉर्मल डिलीवरी कितने दिन में होगी, इसे कई फैक्टर्स प्रभावित करते हैं. आइए, इन फैक्टर के बारे में विस्तार से जानते हैं -

पहली नॉर्मल डिलीवरी

पहली बार बच्चे को नॉर्मल डिलीवरी के जरिए जन्म देने में ज्यादा समय लगता है. महिला दूसरी या तीसरी बार बच्चे को जन्म दे रही है, तो उस नॉर्मल डिलीवरी में कम समय लगता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि पहले की डिलीवरी के बाद महिला की बॉडी लूज हो जाती है.

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पेल्विस का शेप व साइज

अगर किसी महिला का पेल्विस छोटा और संकरा है, तो नॉर्मल डिलीवरी में ज्यादा समय लग सकता है.

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महिला की उम्र

शोध कहते हैं कि अधिक उम्र में बच्चे को जन्म देने वाली मां को नॉर्मल डिलीवरी में ज्यादा समय लग सकता है.

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अधिक बॉडी मास इंडेक्स

शोध यह भी कहते हैं कि जो गर्भवती महिलाएं ओवरवेट होती हैं, उन्हें नॉर्मल डिलीवरी में अन्य के मुकाबले ज्यादा समय लग सकता है.

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बेबी की पोजीशन

बेबी का सिर नीचे और आपकी पीठ की ओर किए हुए हो, तो लेबर में कम समय लगता है.

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कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रेंथ व समय

जब कॉन्ट्रैक्शन ज्यादा इंटेन्स, रेगुलर और नजदीक होने लगते हैं, तो लेबर भी जल्दी होने लगता है.

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नॉर्मल डिलीवरी का समय गर्भवती महिला के लिए अलग-अलग होता है, क्योंकि सबका शरीर और उसकी बनावट अलग होती है. हां, यह जरूर कहा जा सकता है कि यदि गर्भवती महिला पहली बार मां बनने जा रही है, तो बच्चे के जन्म से लेकर प्लेसेंटा की डिलीवरी तक में 12 से 24 घंटे लग सकते हैं. यदि वह दूसरी या तीसरी बार मां बनने जा रही है, तो नॉर्मल डिलीवरी में 8 से 10 घंटे तक लग सकते हैं. इसके अलावा, गर्भवती महिला की उम्र, उसका बॉडी मास इंडेक्स जैसे अन्य कारक भी नॉर्मल डिलीवरी के समय को प्रभावित कर सकते हैं.

(और पढ़ें - डिलीवरी डेट कैसे पता करें?)

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