अगर कोई कपल लंबे समय से बच्चे के लिए कोशिश कर रहा हो या फिर अगर कोई महिला पहली कोशिश में ही मां बनने वाली हो तो प्रेगनेंसी टेस्ट रिजल्ट पॉजिटिव आना बहुत बड़ी खुशी की बात होती है। अगर प्रेगनेंसी के शुरुआती 20 हफ्तों में ही गर्भ समाप्त हो जाए तो उसे ही मिसकैरेज या गर्भपात कहा जाता है और यह घटना मां बनने वाली महिला के साथ-साथ कपल और पूरे परिवार के लिए बेहद निराशाजनक अनुभव हो सकता है। आंकड़ों की मानें तो प्रेगनेंसी के 100 फीसदी मामलों में से करीब 15 फीसदी मामलों में मिसकैरेज हो जाता है। तो वहीं, 10 में से 8 मिसकैरेज प्रेगनेंसी की पहली तिमाही यानी 0 से 12 हफ्ते के अंदर ही होता है।

100 में से 1-2 महिला में बार-बार मिसकैरेज होने की समस्या
एक तरफ जहां मिसकैरेज परेशान करने वाला और बेहद दुखद अनुभव है, वहीं 100 में से 1 या 2 महिलाएं ऐसी भी होती है, जिन्हें बार-बार मिसकैरेज होता है। प्रेगनेंसी के शुरुआती 20 हफ्तों के दौरान अगर 2 से ज्यादा बार मिसकैरेज हो जाए तो इसे ही रिकरेंट मिसकैरेज या बार-बार मिसकैरेज होने की समस्या के तौर पर देखा जाता है। इसे साधारण शब्दों में इस तरह से समझ सकते हैं कि कोई महिला गर्भधारण करती है, प्रेगनेंट होती है, लेकिन प्रेगनेंसी 20 हफ्ते से आगे नहीं बढ़ पाती है और उससे पहले ही किसी न किसी वजह से उसका मिसकैरेज हो जाता है।

भारतीय महिलाओं में बार-बार मिसकैरेज का खतरा अधिक
जर्नल ऑफ ऑब्स्ट्रेटिक्स एड गाइनेक्लॉजी ऑफ इंडिया में साल 2015 में प्रकाशित एक स्टडी की मानें तो पश्चिमी देशों की महिलाओं की तुलना में भारतीय महिलाओं में बार-बार मिसकैरेज होने का मामला ज्यादा देखने को मिलता है। स्टडी के मुताबिक, महिला की उम्र, खून का थक्का जमने से जुड़ी बीमारी, रोग प्रतिरोधक क्षमता से जुड़े कारण, इंफेक्शन और आनुवंशिक कारण भी बार-बार मिसकैरेज होने के सबसे बड़े रिस्क फैक्टर्स हैं। स्टडी में यह बात भी कही गई है कि अगर किसी महिला का एक बार मिसकैरेज हो जाता है तो उसे दूसरी बार मिसकैरेज होने का खतरा 20 प्रतिशत अधिक होता है, दूसरी बार मिसकैरेज के बाद फिर से मिसकैरेज होने का खतरा 28 प्रतिशत और तीसरी बार मिसकैरेज के बाद फिर से मिसकैरेज होने का खतरा 43 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।

डॉक्टर देते हैं टेस्ट करवाने की सलाह
आमतौर पर अगर किसी महिला के साथ बार-बार गर्भ गिरने की घटना हो रही हो तो उसे डॉक्टर यही सलाह देते हैं कि वह कई तरह के टेस्ट करवाए, ताकि इस बात का पता लगाया जा सके कि आखिर उसके गर्भ न ठहरने के पीछे की वजह क्या है। इन टेस्ट्स में पेल्विक यानी पेड़ू की जांच की जाती है, आनुवंशिक जांच की जाती है, साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता और गर्भाशय से जुड़ी कोई बीमारी तो नहीं है, इस बात की भी जांच की जाती है। बार-बार मिसकैरेज होने के पीछे की वजह जब पता चल जाती है तब उसी के हिसाब से उसका इलाज किया जाता है। चूंकि बार-बार इस तरह से गर्भ का गिरना सामान्य बात नहीं है, लिहाजा इसके पीछे के कारण और इसका इलाज भी अलग-अलग लोगों के हिसाब से अलग-अलग ही होता है।

  1. बार-बार मिसकैरेज होने के कारण - Repeated miscarriage causes in Hindi
  2. दूसरी या तीसरी बार मिसकैरेज होने के कारण - Risk Factors for second or third time miscarriage
  3. बार-बार मिसकैरेज होने पर जांच - Diagnosis of Recurrent Miscarriage
  4. बार-बार मिसकैरेज होने पर इलाज - Treatment for Recurrent Miscarriage
  5. बार-बार मिसकैरेज होने से कैसे बचें? - How to avoid Recurrent Miscarriage in Hindi
बार-बार मिसकैरेज हो जाता है? जानें, इसका कारण और बचने के उपाय के डॉक्टर

अगर आप भी उन महिलाओं में शामिल हैं जो प्रेगनेंट तो होती हैं लेकिन गर्भ ठहरने की बजाए कुछ ही दिनों बाद बार-बार अपने आपका मिसकैरेज हो जाता है तो आपकी डॉक्टर इसकी वजह का पता लगाने के लिए आपको कई तरह के टेस्ट करवाने की सलाह देंगी। साथ ही डॉक्टर आपकी और आपके पार्टनर की मेडिकल हिस्ट्री के बारे में भी जानकारी मांगेंगी, आपको ब्लड टेस्ट करवाने की सलाह देंगी और आपके पेड़ू की भी जांच करेंगी। इन टेस्ट्स के नतीजों के बाद ही यह पता चल पाएगा कि आखिर आपका बार-बार मिसकैरेज क्यों हो जाता है और उसके आधार पर ही आपका इलाज भी होगा। रिव्यू इन ऑब्स्ट्रेटिक्स एड गाइनेक्लॉजी नाम के जर्नल में साल 2009 में प्रकाशित एक स्टडी की मानें तो बार-बार मिसकैरेज होने के ये निम्न कारण हो सकते हैं-

आनुवंशिक कारण

बार-बार मिसकैरेज होने की एक वजह एक या दोनों पार्टनर में किसी तरह की आनुवंशिक दिक्कत भी हो सकती है और 2 से 4 प्रतिशत मामलों में ऐसा होता भी है। अगर क्रोमोसोम यानी गुणसूत्र की संरचना में किसी तरह की कोई दिक्कत होती है तो इस वजह से भी बार-बार मिसकैरेज की घटनाएं हो सकती हैं। अगर गुणसूत्र उलट-पलट हो जाएं या गुणसूत्र की सरंचना में किसी तरह का डैमेज हो जाए तो इससे भी बार-बार मिसकैरेज होने की दिक्कत हो सकती है। हालांकि, सिस्टिक फाइब्रोसिस या सिकल सेल एनीमिया की वजह से बार-बार मिसकैरेज की घटना नहीं होती।

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गर्भाशय में असमानता, फाइब्रॉयड्स, पॉलिप्स या प्लैसेंटा से जुड़ी दिक्कत

बार-बार मिसकैरेज होने की घटनाओं में से 10 से 15 प्रतिशत मामले ऐसे हैं जो गर्भाशय में किसी तरह की अनियमितता होने की वजह से होते हैं जैसे- 

  • गर्भाशय में जन्म से ही किसी तरह की विसंगति हो
  • अंतर्गर्भाशय से जुड़ी दिक्कतें
  • गर्भाशय में अगर फाइब्रॉयड्स यानी रेशे हों
  • पॉलिप्स की दिक्कत हो

अगर इस तरह की समस्याएं हों तो गर्भाशय के सबसे अंदर वाली लाइनिंग में खून की सप्लाई बाधित हो जाती है। इस वजह से प्लेसेंटा बनने में कई तरह की दिक्कतें आती हैं। प्लेसेंटा एक ऐसा अंग है तो प्रेगनेंसी के दौरान गर्भाशय के अंदर विकसित होता है और यही अंग धीरे-धीरे बड़े हो रहे भ्रूण तक पोषक तत्व और ऑक्सीजन को पहुंचाने का काम करता है। साथ ही साथ यही प्लेसेंटा, भ्रूण के शरीर से अपशिष्ट पदार्थ को भी बाहर निकालता है। ऐसे में अगर प्लेसेंटा सही तरह से और सामान्य रूप से काम नहीं करेगा तो प्रेगनेंसी को बनाए रखना नामुमकिन होगा और मिसकैरेज होना तय समझिए।

हार्मोन से जुड़ी दिक्कतें

बार-बार मिसकैरेज होने की घटनाओं में से करीब 17 से 20 प्रतिशत घटनाएं शरीर के एन्डोक्राइन सिस्टम में हुई गड़बड़ी की वजह से होती हैं। यह शरीर में मौजूद ग्लैंड्स का एक ऐसा नेटवर्क है जो हार्मोन्स का उत्पादन करता है ताकि शरीर की सभी क्रियाएं सामान्य तरीके से हो पाएं। पीतपिंड प्रावस्था (luteal phase) से जुड़ी दिक्कतें, पीसीओएस, डायबिटीज, थायराइड की बीमारी और हाइपरप्रोलैक्टिनेमिया सेहत से जुड़ी कुछ ऐसी बीमारियां हैं, जिनका सीधा संबंध शरीर के एन्डोक्राइन सिस्टम से होता है और इनमें से किसी भी बीमारी की वजह से बार-बार मिसकैरेज होने की दिक्कत हो सकती है।

इन्फेक्शन

आमतौर पर करीब 5 प्रतिशत मामलों में किसी तरह के इंफेक्शन की वजह से भी बार-बार गर्भ गिरने की घटनाएं होती हैं। लिस्टेरिऑसिस, टोक्सोप्लासमोसिस, रुबेला, मीजल्स, साइटोमेगालोवायरस, कॉक्ससैकीवायरस और सेक्शुअली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन जैसे- हर्पिस और क्लैमाइडिया कुछ ऐसे इंफेक्शन हैं जिसकी वजह से मिसकैरेज का खतरा रहता है। इन इंफेक्शन्स के अलावा कई और कारण हैं जिस वजह से मिसकैरेज का खतरा हो सकता है जैसे-

  •  गर्भाशय, भ्रूण या प्लेसेंटा को किसी तरह का सीधा इंफेक्शन हो जाए
  •  बार-बार इंफेक्शन की वजह से प्लेसेंटा में किसी तरह की कमी हो जाए
  •  इन्डोमेट्रिऑसिस या इन्डोसर्विसाइटिस
  •  अमनियोनाइटिस
  •  आईयूडी में अगर किसी तरह का इंफेक्शन हो

इम्यूनिटी

वैसे तो मां के शरीर के अंदर गर्भाशय में पल रहा भ्रूण जीवित रहने के लिए मां की ही इम्यूनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर निर्भर रहता है, बावजूद इसके बच्चे का इम्यून सिस्टम मां के जैसा हो ऐसा जरूरी नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि आनुवंशिक रूप से मां और बच्चा दोनों बिल्कुल एक जैसे नहीं होते। मां के इम्यून सिस्टम को कई तरह का जोखिम उठाना पड़ता है, ताकि मां का शरीर भ्रूण को अस्वीकार न कर दे।हालांकि, अगर किसी भी वजह से मां के शरीर में मौजूद इम्यून सिस्टम जोखिम नहीं उठाता तो वह होने वाले बच्चे यानी भ्रूण को अस्वीकार कर देता है, जिससे बार-बार मिसकैरेज होने का खतरा रहता है।

ब्लड क्लॉटिंग से जुड़ी समस्याएं

हाइपरकोऐगुलैबिलिटी- यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें शरीर में खून का थक्का जमने की घटना में बढ़ोतरी होने लगती है और कई बार यह प्रेगनेंसी के दौरान भी होने लगता है। साथ ही बहुत सी महिलाओं के शरीर में इस तरह की कंडिशन का रिस्क पहले से भी ज्यादा होता है। बहुत सी महिलाओं में थ्रॉम्बोफाइलिया या थ्रोम्बोसिस का खतरा भी अधिक होता है। यह एक ऐसी समस्या है, जिसमें होने वाली मां के शरीर में खून गाढ़ा होने लगता है या फिर खून का थक्का जमने लगता है। इस वजह से मां का शरीर भ्रूण को बार-बार रिजेक्ट करने लगता है और इस वजह से ही बार-बार मिसकैरेज होने की घटनाएं होती हैं।

वातावरण से जुड़े कारण

आपके कामकाज, रोजगार और वातावरण में मौजूद हानिकारक टॉक्सिन्स जब खाना, पानी और हवा के जरिए महिला के शरीर के अंदर पहुंचते हैं तो इस वजह से भी बार-बार मिसकैरेज होने की घटना हो सकती है। धूम्रपान, शराब पीना और कैफीन का बहुत ज्यादा सेवन करने की वजह से भी बार-बार गर्भ गिरने की घटनाएं हो सकती हैं। अगर होने वाली मां, प्रेगनेंसी के शुरुआती 3 महीनों में या फिर पूरी प्रेगनेंसी के दौरान हर दिन 3 से 5 एल्कोहल वाले ड्रिंक्स का सेवन करे तो बार-बार मिसकैरेज का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। इसके अलावा सिगरेट में मौजूद निकोटिन रक्त धमनियों को संकुचित करता है, जिस वजह से प्रेगनेंसी के दौरान गर्भाशय और प्लेसेंटा तक खून का बहाव कम होने लगता है और इस वजह से भी मिसकैरेज का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा हर दिन 5 कप कॉफी पीने से भी बार-बार मिसकैरेज का खतरा रहता है।

अस्पष्ट कारण

ऊपर आपको जितने भी कारण बताए गए हैं वे सभी बार-बार मिसकैरेज होने की घटना के लिए करीब 50 प्रतिशत तक जिम्मेदार हैं। लेकिन बाकी के 50 प्रतिशत मामलों में कारणों का पता नहीं चलता या फिर इनके कारण रहस्यमय हो सकते हैं। इस वजह से ऐसी महिलाओं का इलाज बेहद मुश्किल हो जाता है। हालांकि प्रोजेस्टेरॉन ट्रीटमेंट के जरिए इन महिलाओं का इलाज संभव हो सकता है। साथ ही साथ बार-बार मिसकैरेज होने के पीछे वजह क्या है इस बारे में और ज्यादा रिसर्च करने की जरूरत है।

ऐसी कई वजहें हैं, जिस वजह से किसी महिला को बार-बार मिसकैरेज होने का खतरा हो सकता है, जैसे-

  •  अगर आप 35 साल या इससे अधिक उम्र में गर्भवती होती हैं
  •  अगर आपको डायबीटीज या फिर हाई ब्लड प्रेशर की बीमारी है
  •  अगर आपको हाइपोथाइरायड या पीसीओएस जैसी इन्डोक्राइन से जुड़ी बीमारी हो
  •  अगर आपके गर्भाशय में किसी तरह की ग्रोथ या असमानता हो जैसे- फाइब्रॉयड्स
  •  अगर आपको सर्वाइकल से जुड़ी कोई दिक्कत हो या फिर आपका सर्विक्स कमजोर हो
  •  अगर आप प्रेगनेंसी से पहले या प्रेगनेंसी के दौरान धूम्रपान, एल्कोहल या ड्रग्स का सेवन करती हैं
  • मोटापा या वजन बेहद कम होना- ये दोनों ही वजहें बार-बार मिसकैरेज का कारण हो सकती हैं

सही इलाज हो पाए इसके लिए बेहद जरूरी है कि रोग की पहचान सही तरीके से होनी चाहिए। हम आपको अभी जिन टेस्ट्स के बारे में बता रहे हैं उनके जरिए कुछ महिलाओं में तो बार-बार मिसकैरेज होने की वजह का पता चल जाता है, लेकिन कुछ मरीज या महिलाएं ऐसी भी होती हैं, जिनका हर तरह का टेस्ट करवाने के बाद भी सही तरीके से रोग की पहचान नहीं हो पाती। बार-बार मिसकैरेज होने के करीब 50 प्रतिशत मामले ऐसे हैं, जिनमें कारणों की पूरी तरह से पुष्टि नहीं हो पाती। बावजूद इसके कुछ टेस्ट्स हैं, जिसके जरिए बार-बार गर्भ गिरने की घटना की डायग्नोसिस की जा सकती है-

मेडिकल हिस्ट्री- सबसे पहले डॉक्टर आपकी और आपके पार्टनर की पूरी मेडिकल हिस्ट्री मांगते हैं। इसमें उन सभी तरह के इंफेक्शन्स और बीमारियों का जिक्र होता है जो आप दोनों को कभी भी हुई हो, अगर आप दोनों की कभी कोई सर्जरी हुई हो तो उसकी भी जानकारी होती है, साथ ही परिवार में अगर किसी तरह की बीमारी आनुवांसिक रूप से चली आ रही हो जैसे- दिल की बीमारी, थाइराइड या डायबीटीज आदि तो उसकी भी जानकारी दी जाती है।

जेनेटिक टेस्टिंग- इस तरह के टेस्ट में दोनों पार्टनर के जीन्स या यूं कहें कि गुणसूत्र की जांच की जाती है। इस टेस्ट का मकसद ये जानना होता है कि कहीं दोनों में से किसी पैरंट को जीन्स से जुड़ी कोई बीमारी तो नहीं है, जो होने वाले बच्चे या यूं कहें कि भ्रूण को भी आगे मिलने का खतरा हो जिस वजह से प्रेगनेंसी में किसी तरह की दिक्कत आ रही हो।

पेड़ू की जांच- पेल्विक एरिया जिसे पेड़ू या श्रोणि भी कहते हैं गर्भाशय और गर्भाशय संबंधी छेद के बीच का हिस्सा होते है और डॉक्टर इसकी भी जांच करते हैं। ताकि ये पता चल सके कि शरीर की बनावट में तो किसी तरह की दिक्कत नहीं है, जिसकी वजह से महिला का शरीर भ्रूण को बार-बार रिजेक्ट कर दे रहा है, जिस वजह से बार-बार मिसकैरेज हो रहा है। डॉक्टर के द्वारा फिजिकल एग्जामिन करने के साथ-साथ अल्ट्रासाउंड, एक्स-रे, एमआरआई और हिस्टेरोस्कोपी भी की जाती है।

ऐंटिफॉस्फोलिपिड टेस्ट- इस टेस्ट के जरिए यह जानने की कोशिश की जाती है कि महिला के शरीर में किसी तरह की एंटिबॉडीज तो नहीं है जिस वजह से असाधारण रूप से खून का थक्का जमने संबंधी दिक्कतें हो रही हों। 

हार्मोन फंक्शन टेस्ट- थाइराइड फंक्शन और थाइराइड ऐंटिबॉडीज का भी टेस्ट किया जाता है, ताकि यह देखा जा सके कि शरीर में हार्मोन का स्त्राव सही तरीके से हो रहा है या नहीं। साथ ही साथ शरीर में बनने वाले हार्मोन्स प्रोजेस्टेरॉन, प्रोलैक्टिन आदि की भी जांच की जाती है।

ओवरी रिजर्व टेस्ट- इस टेस्ट के जरिए यह जानने की कोशिश की जाती है कि महिला के शरीर में मौजूद ओवरीज यानी अंडाशय सही तरीके से काम कर रही है या नहीं। अगर अंडाशय की क्वॉलिटी सही नहीं है तो जाहिर सी बात है कि वहां से उत्पन्न होने वाले अंडों की भी क्वॉलिटी खराब होगी और उनमें कुछ दिक्कतें होंगी, जिससे बार-बार मिसकैरेज का खतरा हो सकता है।

इस समस्या का इलाज इसी बात पर निर्भर करता है कि आखिर इसके होने की पीछे की वजह क्या है। डायग्नोसिस यानी रोग की पहचान क्या है और कैसे हुई इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि बार-बार मिसकैरेज होने की समस्या के इलाज में सफलता का प्रतिशत काफी अधिक है। अमेरिकन कॉलेज ऑफ ऑब्स्टेट्रिशन्स ऐंड गाइनैकॉलजिस्ट्स की मानें तो करीब 65 प्रतिशत महिलाएं ऐसी होती हैं जिनके टेस्ट में बार-बार मिसकैरेज क्यों हो रहा है, इसकी वजह का पता नहीं चल पाता, बावजूद इसके वह बिना किसी इलाज के स्वस्थ बच्चे को जन्म दे पाती हैं। हालांकि, जिन महिलाओं में बार-बार मिसकैरेज होने की वजह का पता चल जाता है उन्हें डॉक्टर इस तरह से इलाज करवाने की सलाह दे सकते हैं-

  •  गुणसूत्र प्रारूप से जुड़ी कोई दिक्कत हो तो उसके लिए जेनेटिक काउंसलिंग
  •  आईवीएफ जिसमें इम्प्लांटेशन से पहले जांच की जाती है- इसमें निषेचित अंडे की जांच की जाती है कि उसमें कोई आनुवंशिक बीमारी तो नहीं है और उसके बाद ही उसे महिला के गर्भाशय में इम्प्लांट किया जाता है
  • अगर गर्भाशय से जुड़ी कोई दिक्कत है जैसे- गर्भाशय अलग है तो उसे सही करने के लिए सर्जरी करना।
  • हेपेरिन या एस्प्रिन की लो डोज भी दी जाती है, ताकि थ्रॉम्बोफीलिया और ऐंटिफॉस्फोलिपिड सिंड्रोम से जुड़े खतरे को कम किया जा सके।
  • अगर किसी महिला का ब्लड शुगर लेवल बहुत अधिक है और वह डायबीटीज की मरीज है तो उसे कंट्रोल करने के लिए दी जाने वाली दवा।
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अगर आप प्रेगनेंसी के दौरान और गर्भधारण करने से पहले भी लाइफस्टाइल में कुछ बदलाव कर लें या फिर इन टिप्स को अपनाएं तब भी बार-बार मिसकैरेज को होने से रोका जा सकता है।

  • अगर संभव हो तो गर्भधारण से 1-2 महीने पहले से ही हर दिन फॉलिक एसिड का सेवन करना शुरू कर दें।
  • नियमित रूप से एक्सर्साइज करें और हेल्दी और बैलेंस्ड डायट का सेवन करें।
  • अपने वजन पर नजर रखें। ध्यान रहे कि आपका वजन न तो बहुत ज्यादा होना चाहिए और ना ही बहुत कम।
  • अपने स्ट्रेस लेवल को कंट्रोल में रखें। इसके लिए योग और मेडिटेशन का सहारा ले सकते हैं।
  • ना तो खुद धूम्रपान करें और जहां तक संभव हो दूसरे अगर धूम्रपान कर रहे हों तो उस धुएं से भी बचें।
  • शराब के सेवन से भी बचें और अगर कॉफी पीने के शौकीन हैं तो हर दिन 1-2 कप कॉफी से ज्यादा न पिएं।
  • अपने टीकाकरण पर भी एक नजर डाल लें, कि कहीं कोई टीका छूट तो नहीं गया।
  • वातावरण में मौजूद हानिकारक तत्व जैसे- आर्सेनिक, लेड, बेन्जाइन और किसी भी तरह के रेडिएशन से भी बचें।
  • प्रेगनेंसी के दौरान अपने पेट का खास ख्याल रखें और किसी भी तरह के ऐसे खेल से बचें, जिसमें रिस्क ज्यादा हो और कार में भी सीट बेल्ट हमेशा लगाकर रखें।
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संदर्भ

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