आयोडीन, मानव शरीर की वृद्धि और विकास के लिए सबसे आवश्यक पोषक तत्वों में से एक है और लगभग 60 प्रतिशत आयोडीन मानव शरीर में मौजूद थायराइड ग्रंथि में जमा रहता है। वैसे तो यह एक ऐसा खनिज है जिसकी कम मात्रा में शरीर को आवश्यकता होती है लेकिन अगर गर्भावस्था के दौरान महिला के शरीर में आयोडीन की कमी हो जाए तो यह विशेष रूप से हानिकारक हो सकता है, क्योंकि आयोडीन की कमी गर्भ में पल रहे बच्चे के मस्तिष्क के विकास को प्रभावित कर सकता है और होने वाली मां के लिए थायराइड की समस्या भी पैदा कर सकता है।
भारत में आयोडीन की कमी का खतरा अधिक देखने को मिलता है क्योंकि हमारे देश की मिट्टी में आयोडीन की कमी है, खासकर देश के उत्तर और उत्तरपूर्वी हिस्सों में। लेकिन हमारे घरों में इस्तेमाल होने वाले सामान्य सफेद नमक में आयोडीन डालने के लिए एक राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम चलाया गया था जिसने काफी हद तक आयोडीन की कमी से जुड़ी समस्याओं जैसे- गोइटर या घेंघा रोग को दूर करने में मदद की।
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हालांकि, आयोडीन से जुड़ी समस्या तब पैदा होती है जब बात गर्भवती महिलाओं और बच्चे को स्तनपान कराने वाली महिलाओं की आती है क्योंकि इन महिलाओं को अपने दैनिक आहार में आयोडीन की बहुत अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है। एक तरफ जहां 9 से 13 साल के बच्चों के लिए आयोडीन की रोजाना की जरूरत 120 माइकोग्राम, 18 साल से ऊपर के वयस्कों में आयोडीन की रोजाना की जरूरत 150 माइक्रोग्राम है। वहीं, प्रेगनेंसी के दौरान प्रतिदिन 250 माइक्रोग्राम और बच्चे को अपना दूध पिलाने वाली महिलाओं के लिए रोजाना 290 माइक्रोग्राम आयोडीन की आवश्यकता होती है।
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साल 2014 में इंडियन जर्नल ऑफ इंडोक्रिनोलॉजी एंड मेटाबॉलिज्म में प्रकाशित एक छोटी स्टडी ने यह निष्कर्ष निकाला कि भारत में आयोडीन युक्त नमक सामान्य आबादी की आयोडीन की रोजाना की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए तो पर्याप्त है लेकिन गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं की आयोडीन की बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। ऐसे में इस आर्टिकल में हम आपको बता रहे हैं कि आयोडीन की कमी की वजह से गर्भावस्था के दौरान किस तरह की जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है और इससे बचने के लिए क्या करना चाहिए।