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गर्भपात या एबॉर्शन एक मेडिकल प्रक्रिया है. जहां, कुछ कपल गर्भधारण में देरी करने के लिए अनचाही प्रेगनेंसी के लिए एबॉर्शन का विकल्प चुनते हैं. वहीं, कुछ को चिकित्सीय या शारीरिक समस्याओं के चलते गर्भपात करवाना पड़ता है. कुछ डॉक्टर एबॉर्शन के बाद पहला मासिक धर्म चक्र के समाप्त होने तक गर्भधारण के लिए प्रतीक्षा करने की सलाह देते हैं.

आज इस लेख के माध्यम से आप जानेंगे कि गर्भपात के कितने दिन बाद एक महिला प्रेग्नेंट हो सकती है -

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  1. गर्भपात के बाद करें डॉक्टर से बात
  2. गर्भपात के बाद गर्भधारण के लिए सही समय
  3. सारांश
एबॉर्शन के बाद कब हो सकती हैं गर्भवती? के डॉक्टर

गर्भपात के बाद डॉक्टर आमतौर पर संक्रमण के जोखिम को कम करने के लिए कम से कम एक से दो सप्ताह तक सेक्स न करने की सलाह देते हैं. पहले डॉक्टरों का मानना था कि महिलाओं को दोबारा गर्भवती होने की कोशिश करने से पहले कम से कम तीन महीने तक इंतजार करना चाहिए, जबकि अब ऐसा नहीं है. अगर महिला फिर से गर्भवती होने के लिए मानसिक, भावनात्मक व शारीरिक रूप से तैयार है, तो प्रतीक्षा करने की कोई आवश्यकता नहीं है.

वहीं, अगर महिला मानसिक या भावनात्मक रूप से तैयार नहीं हैं, तो बेहतर महसूस होने तक प्रतीक्षा करना सबसे अच्छा है. साथ ही कुछ डॉक्टर एबॉर्शन के बाद पहला मासिक धर्म चक्र समाप्त होने तक प्रतीक्षा करने की सलाह देते हैं. इससे अगली गर्भावस्था की डिलीवरी की तारीख का अनुमान लगाना आसान हो जाता है.

(और पढ़ें - गर्भाशय की सफाई)

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एबॉर्शन के बाद भविष्य में गर्भावस्था की योजना बनाने के लिए डॉक्टर से परामर्श करना आवश्यक होता है. साथ ही फिर से गर्भवती होना इस बात पर भी निर्भर करता है कि एबॉर्शन किन कारणों से हुआ है, जैसे -

आनुवंशिक या गुणसूत्र समस्याएं

पहली तिमाही में कई गर्भपात क्रोमोसोमल विकारों के कारण होते हैं. अंडा और शुक्राणु दोनों ही भ्रूण में 23-23 गुणसूत्र लाते हैं और अगर कोई क्रोमोजोम दोष पूर्ण हो जाता है, तो ये आनुवंशिक असामान्यता का कारण बनता है. इससे भ्रूण का विकास प्रभावित हो सकता है. वहीं, अगर गर्भवती महिला की उम्र 35 या उससे अधिक होती है, तो भी गुणसूत्र संबंधी समस्याओं और गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है.

ऐसी स्थिति में डॉक्टर पहले क्रोमोसोमल विकारों का इलाज करते हैं, जिससे दोबारा गर्भपात की नौबत न आए. इसके लिए डॉक्टर इंजेक्शन और दवाओं का ट्रीटमेंट देते हैं. ये उपचार 3 महीने से लेकर 1 साल तक चल सकता है. कुछ मामलों में डॉक्टर एबॉर्शन के 3 महीने बाद ही प्रेगनेंसी प्लानिंग की सलाह देते हैं और इस दौरान क्रोमोसोमल विकारों का उपचार करते हैं. साथ ही फॉलिकल टेस्ट और अल्ट्रासाउंड भी किए जाते हैं, ताकि ओवुलेशन पीरियड का सही-सही पता लगाया जा सके.

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हार्मोनल असमान्यताएं

प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का कम होता स्तर निषेचित अंडे को गर्भाशय में प्रत्यारोपित होने से रोकता है. इसके अलावा, पीसीओएस जैसी हार्मोनल समस्याएं भी गर्भपात के जोखिम को बढ़ा सकती हैं. ऐसी स्थिति में डॉक्टर इन कारणों का इलाज करते हैं. डॉक्टर महिला को वजन कम करने व जीवनशैली में बदलाव करने के लिए कह सकते हैं. पीसीओडी जीवनशैली से जुड़ा रोग है, जिसका उपचार आसानी से किया जा सकता है. पीसीओडी कंट्रोल में आते ही डॉक्टर प्रेगनेंसी प्लानिंग की सलाह दे सकते हैं.

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पुरानी बीमारियां

कुछ मामलों में मधुमेह, थायराइड से जुड़ी समस्याएं, किडनी या लिवर रोग, हृदय रोग और ल्यूपस जैसे ऑटोइम्यून रोग भ्रूण के विकास को प्रभावित करते हैं. इसके चलते गर्भपात हो सकता है. ऐसी स्थिति में डॉक्टर इन बीमारियों को कंट्रोल करने के साथ-साथ ओवुलेशन टेस्ट और फर्टिलिटी टेस्ट करते हैं और उस हिसाब से प्रेगनेंसी प्लानिंग की सलाह देते हैं.

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कमजोर गर्भाशय ग्रीवा

इंकपेटेन्ट सर्विक्स की वजह से प्रेगनेंसी के दौरान सर्विक्स बहुत जल्दी खुल जाती है, जो गर्भपात का कारण बन सकती है. ऐसे स्थिति में डॉक्टर पहले इसका उपचार करते हैं और फिर प्रेगनेंट होने की सलाह देते हैं. कमजोर गर्भाशय ग्रीवा के लिए सबसे आम उपचार सरक्लाज है. इसके अंतर्गत डॉक्टर कमजोर गर्भाशय ग्रीवा को मजबूत बनाने के लिए उसके चारों ओर एक टांका लगाते हैं. टांके पूरी तरह से ठीक हो जाने के बाद ही डॉक्टर फिर से कंसीव करने की सलाह देते हैं.

गर्भपात होने के बाद अगले ओवुलेशन साइकिल के दौरान फिर से गर्भवती होना शारीरिक रूप से संभव है. अगर एक महिला दोबारा गर्भवती होने से बचने की कोशिश कर रही हैं, तो गर्भपात के तुरंत बाद जन्म नियंत्रण विधि का उपयोग करना शुरू कर देना चाहिए. हालांकि, एबॉर्शन के बाद तुरंत प्रेगनेंसी की प्लानिंग करने से पहले डॉक्टर की राय जरूर लें. डॉक्टर एबॉर्शन के कारण के आधार पर फिर से प्रेगनेंट होने की समय के बारे में सटीक जानकारी देने में मदद करते हैं.

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