प्रेग्नेंसी के दौरान और बच्चे के जन्म के तुरंत बाद महिलाओं के कब्ज (कॉन्स्टिपेशन) की समस्या से ग्रस्त होने का अंदेशा दो-तीन गुना बढ़ जाता है। यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्टर्न फिनलैंड (यूएईएफ) में हुए एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है। इसके मुताबिक, प्रेग्नेंसी और उसके पूरा होने के तुरंत बाद महिलाओं में कॉन्स्टिपेशन होने का खतरा जीवन के किसी भी अन्य समय की अपेक्षा ज्यादा बढ़ जाता है। खबर के मुताबिक, यूएईएफ का एक रिसर्च ग्रुप 1,000 से ज्यादा गर्भवती महिलाओं में कब्ज और पाचनतंत्र से जुड़ी अन्य समस्याओं के बारे में अध्ययन कर रहा है। अब तक सामने आए परिणामों की रिपोर्ट जानी-मानी मेडिकल पत्रिका इंटरनेशनल जर्नल ऑफ ऑब्स्टेट्रिक्स गाइनायकोलॉजी में प्रकाशित हुई है। यह अध्ययन गर्भावस्था के दूसरे और तीसरे त्रैमासिक (ट्राइमेस्टर) समय में और डिलिवरी (वजानइन या सिजेरियन) के तुरंत बाद होने वाले कॉन्स्टिपेशन पर केंद्रित है। अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने 200 नॉन-प्रेग्नेंट महिलाओं को भी बतौर कंट्रोल ग्रुप अध्ययन में शामिल किया था ताकि उनमें और गर्भवती महिलाओं की स्वास्थ्य स्थिति के बीच तुलना की जा सके।
जांच के दौरान पता चला कि 44 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को दूसरे ट्राइमेस्टर में कब्ज की समस्या होती है। वहीं, 36 प्रतिशत महिलाओं को गर्भावस्था के तीसरे त्रैमासिक में कॉन्स्टिपेशन होता है। वजाइनल डिलिवरी के बाद यह समस्या 47 प्रतिशत तक बढ़ जाती है, जबकि सिजेरियन डिलिवरी के बाद 57 प्रतिशत महिलाएं कॉन्स्टिपेशन और पाचनतंत्र से जुड़ी अन्य समस्याओं से परेशान रहती हैं। पत्रिका की मानें तो शोधकर्ता इन आंकड़ों से हैरान हुए हैं। इन्हें जानने के बाद उन्होंने कहा है कि चूंकि पाचनतंत्र से जुड़ी समस्याएं शारीरिक और मानसिक दोनों ही प्रकार से प्रभावित करती हैं, लिहाजा बच्चे के जन्म लेने से काफी पहले प्रेग्नेंसी की शुरुआत में ही इसकी रोकथाम करने को लेकर चर्चा की जानी चाहिए। वैज्ञानिकों ने बताया कि गर्भावस्था के दौरान कब्ज की समस्या होने से बवासीर, पेशाब और मल को नियंत्रित करने में असमर्थता और पेलविक ऑर्गन प्रोलैप्स (कूल्हे के भाग का बढ़ना) जैसी दिक्कतें पैदा हो सकती हैं।
अध्ययन के परिणामों पर मूना कुरोनन का कहना है, 'जिन महिलाओं में प्रेग्नेंसी से पहले ही कॉन्स्टिपेशन की समस्या रही है, उनमें गर्भावस्था के दौरान यह प्रॉब्लम होना आम है।' मूना और अन्य अध्ययकर्ताओं ने कहा है कि रोजाना एक्सरसाइज करना, फाइबर युक्त संतुलित आहार लेना और पर्याप्त मात्रा में पानी पीना कॉन्स्टिपेशन की रोकथाम के सबसे जरूरी तरीके हैं। वे बताते हैं कि गर्भावस्था में गर्भनाल से जुड़े हार्मोन आंत की गतिविधियों को धीमा कर देते हैं। वहीं, गर्भाशय का बढ़ता आकार भी मल को सामान्य रूप से शरीर से बाहर निकलने में परेशानी पैदा कर सकता है। इसके अलावा, आंतों के तरल पदार्थों को एब्जॉर्ब (सोखने) करने के तरीकों में भी बदलाव होता है, जिस कारण कब्ज की प्रॉब्लम गर्भवती महिलाओं में विशेष रूप से दिखाई देती है।
खबर के मुताबिक, इन बातों को लेकर कुरोनन ने कहा है, 'वास्तव में प्रेग्नेंसी का पता चलने के बाद महिलाओं को प्यास, दबाव और पेट फूलने जैसी अनुभूतियां होने लगती हैं।' वहीं, शोध से जुड़े वैज्ञानिकों ने कहा है कि अगर गर्भावस्था में कॉन्स्टिपेशन जीवनशैली में बदलाव करने के बाद भी कम न हो या ये बदलाव ही पर्याप्त न हों तो महिला को दवाओं की जरूरत पड़ सकती है।
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अध्ययन से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- बच्चे के जन्म के बाद कब्ज की समस्या होने से सेडेन्टरी टाइम (देर तक बैठे रहना) और अनुचित तरल पदार्थ लेने की समस्या हो सकती है
- वजाइनल डिलिवरी के दौरान कूल्हों की मांसपेशी के क्षतिग्रस्त होने से आंतों का संचालन प्रभावित होने का अंदेशा
- सर्जिकल डिलिवरी के चलते घाव में होने वाले दर्द की वजह से भी ऐसे परिणाम देखने को मिल सकते हैं
- डिलिवरी के बाद शुरुआती दिनों में दर्द को कम करने का प्रयास करना चाहिए ताकि नई-नई मां बनी महिला जल्दी से जल्दी मूवमेंट करने लायक स्वस्थ हो सके