कहते हैं कि संतान का सुख, इस दुनिया की सबसे बड़ी खुशी होती है। कुछ लोगों को ये सुख आसानी से मिल जाता है तो वहीं कुछ कपल्‍स को इसके लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। प्रेग्‍नेंसी किस तरह होती है और गर्भ में बच्‍चा कैसे बनता है, यह जानने के लिए पहले आपको फर्टिलाइजेशन को समझना होगा। इंसानों में फर्टिलाइजेशन को समझने का सबसे आसान तरीका है कि इसमें पुरुष का स्‍पर्म महिला के एग के साथ मिलकर भ्रूण का निर्माण करता है।

पुरुष के स्‍पर्म के महिला की ओवरी में मौजूद अंडे से मिलने पर फर्टिलाइजेशन होता है जिससे जाइगोट बनता है। महिला की योनि या गर्भाशय ग्रीवा में वीर्य के आने के बाद, स्‍पर्म महिला के प्रजनन मार्ग में प्रवेश करता है यहां तीन दिनों तक रह सकता है। स्‍पर्म गर्भाशय ग्रीवा के माध्‍यम से गर्भाशय में जाता है और फिर फैलोपियन ट्यूब में आजा है जहां रिलीज हुआ एग मौजूद होता है।

एग को‍शिका के मिलने पर स्‍पर्म कुछ के‍मिकल रिलीज करता है जो इसे एग द्वारा पहचानने में मदद करता है। एक स्‍पर्म से एक ही एग फर्टिलाइज हो सकता है। पहचान करने के बाद स्‍पर्म केमिकल रिलीज करता है जो एग की कोशिका की झिल्‍ली को तोड़कर उसके अंदर घुसने में मदद करता है। इससे दोनों कोशिकाओं के नाभिक (न्‍यूक्‍लाई) एक हो जाते हैं जिससे एग फर्टिलाइज हो जाता है।

फर्टिलाइज एग को जाइगोट कहते हैं। लगभग 72 घंटों तक जाइगोट फैलोपियन ट्यूबों में ही रहता है और इस दौरान यह तेजी से विकसित होता है। यदि फर्टिलाइज जाइगोट टूट या अलग हो जाए, तो इससे दो आइडेंटिकल ट्विंस बनते हैं।

आमतौर पर एक मासिक चक्र में ओवरी द्वारा एक ही एग रिलीज होता है, कभी-कभी दोनों ओवरी एक-एक रिलीज कर सकती हैं। यदि एक चक्र के दौरान दो एग रिलीज होते हैं, तो दोनों ही दो अलग-अलग स्‍पर्म कोशिकाओं से फर्टिलाइज हो सकते हैं जिससे अनआइडेंटिकल ट्विंस बनते हैं।

  1. फर्टिलाइजेशन में ओवुलेशन का महत्‍व
  2. फर्टिलाइजेशन में स्‍पर्म के विकास की भूमिका
  3. फर्टिलाइजेशन के बाद क्‍या होता है
  4. फर्टिलाइजेशन से जुड़ी बातें
फर्टिलाइजेशन के डॉक्टर

महिला के मासिक चक्र में ओवुलेशन बहुत अहम होता है। महिला के प्रजनन मार्ग में पूरी तरह से मैच्‍योर एग के रिलीज के लिए ओवुलेशन आवश्‍यक होता है। हाइपोथैलेमस, पिट्यूटरी ग्‍लैंड और ओवरी द्वारा रिलीज किए गए हार्मोंस से पूरा मासिक चक्र चलता है जिससे गर्भाशय में प्रेगनेंट होने के लिए बदलाव आते हैं।

मासिक धर्म को दो अलग-अलग चरणों में बताया जा सकता है फॉलिक्‍यूलर फेज और ल्‍यूटियल फेज। गर्भाशय की सबसे अंदर की परत में आए बदलावों को एंडोमेट्रियम कहते हैं और इसी समय दोनों ओवरी में भी बदलाव आता है।

  • फॉलिक्‍यूलर फेज : मासिक धर्म की ब्‍लीडिंग खत्‍म होने के तुरंत बाद दूसरा चक्र शुरू हो जाता है। मासिक धर्म के पहले चरण को फॉलिक्‍यूलर फेज कहते हैं। हाइपोथैलेमस पिट्यूटरी हार्मोनों के रिलीज को नियंत्रित करता है। पिट्यूटरी ग्‍लैंड शरीर की आवश्‍यक और महत्‍वपूर्ण ग्रंथि होती है जो सही समय पर शरीर में सभी अन्‍य हार्मोनों के रिलीज को नियंत्रित करती है।
  • पहले फॉलिक्‍यूलर फेज के दौरान हाइपोथैलेमस पिट्यूटरी को दो हार्मोन फॉलिक्‍यूलर स्टिमुलेटिंग हार्मोन (एफएसएच) और ल्‍यूटेनाइजिंग हार्मोन (एलएच) रिलीज करने का संकेत देता है। ये दोनों हार्मोन ओवरी के फॉलिकलों को उत्तेजित करती हैं जिनमें विकासशील एग कोशिकाएं होती हैं। इस तरह यह चरण फॉलिक्‍यूलर फेज कहलाता है। एफएसएच और एलएच का लेवल हाई और स्थिर बना रहता है और पूरे चरण के दौरान ऐसे ही रहते हैं।
    विकास कर रहे ओवरी के फॉलिकल अधिक मात्रा में एस्‍ट्रोजन बनाते हैं लेकिन इस समय ओवरी में प्रोजेस्‍टेरोन नहीं बन रहा होता है।
  • ओवुलेशन : ओवरी के फॉलिकलों के पूरी तरह से विकसित होने पर इनके द्वारा रिलीज किए गए एस्‍ट्रोजन का लेवल बढ़ जाता है। हाई लेवल एस्‍ट्रोजन पिट्यूटरी को ज्‍यादा एफएसएच और एलएच स्रावित करने का संकेत भेजता है। एलएच का बढ़ना पूरी तरह से विकसित हो चुके ओवेरियन फॉलिकल के रप्‍चर के लिए जिम्‍मेदार है। इससे महिला के प्रजनन मार्ग के अंदर पूरी तरह से विकसित हो चुका अंडा रिलीज होता है।
    ओवुलेशन के बाद, एग रिलीज करने वाली ओवरी की साइड में ही फैलोपियन ट्यूब की फिंब्रिए एग को उठा लेती है। मासिक चक्र कितने दिनों तक चलता है, इसके आधार पर ओवुलेशन अलग-अलग हो सकता है। अगला मासिक चक्र शुरू होने से 14 दिन पहले ओवुलेशन होता है। मासिक चक्र 21 से 35 दिनों का होता है। एग के रिलीज होने के बाद यह प्रजनन मार्ग में लगभग 24 घंटे तक रह सकता है। इसे फर्टिलिटी विंडो कहते हैं। इस दौरान असुरक्षित यौन संबंध बनाने से प्रेगनेंट होने की संभावना बढ़ जाती है।
  • ल्‍यूटियल फेज : ओवेरियन फॉलिकल के रप्‍चर यानि फूटने और एग के रिलीज होने के बाद, एस्‍ट्रोजन लेवल तेजी से गिरता है क्‍योंकि इसे बनाने वाले फॉलिकल नहीं होते हैं। यह पिट्यूटरी ग्रंथि को और एफएसएच या एलएच न रिलीज करने के संकेत देते हैं क्‍योंकि अब इनकी जरूरत नहीं होती है। रप्‍चर हुए फॉलिकर की कोशिका खुद को कोरपस ल्‍यूटियम नाम की विशेष संरचना में तब्‍दील कर लेती है जिससे मासिक चक्र का दूसरा फेज बनता है, जिसे ल्‍यूटियल फेज कहते हैं।
  • कोरपस ल्‍यूटियम हार्मोंन, प्रोजेस्‍टेरोन और कम मात्रा में एस्‍ट्रोजन बनाता है। गर्भावस्था बनी रहे, इसके लिए गर्भाशय एंडोमेट्रियल इंटेग्रिटी को बनाए रखना होता है। इसमें दो घटनाएं हो सकती हैं :
  • अगर कंसीव नहीं किया है तो, ओवरी में कोरपस ल्‍यूटियम वापिस चला जाता है जिससे प्रोजेस्‍टेरोन और एस्‍ट्रोजन का लेवल गिरने लगता है। ये दोनों हार्मोन गर्भाशय की एंडोमेट्रियम लाइनिंग को बनाए रखने के लिए जरूरी होते हैं। एंडोमेट्रियम के टूटते ही पीरियड्स की ब्‍लीडिंग होने लगती है।
  • यदि कंसीव कर लेती हैं, तो कोरपस ल्‍यूटियम आगे एक संरचना में बदल जाता है। यह गर्भाशय और प्रेग्‍नेंसी को बनाए रखने के लिए अधिक मात्रा में प्रोजेस्‍टेरोन और एस्‍ट्रोजन बनाता है।
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महिला के प्रजनन मार्ग में एग तैयार होता है, इसी तरह पुरुष के प्रजनन मार्ग में स्‍पर्म बनता है। प्‍यूबर्टी पर पहुंचने के बाद पुरुषों के वृषणों में स्‍पर्म बनने शुरू हो जाते हैं। अंडकोष की थैली के दोनों तरफ दो वृषण होते हैं। ये पेनिस के नीचे होते हैं। प्रत्‍येक वृषण ट्यूब जैसी संरचना का नेटवर्क है जिसे सेमिनिफेरस ट्यूबुलस (वीर्य नलिका) कहते हैं।

इन वीर्य नलिकाओं में ही शुक्राणु अपरिपक्व कोशिकाओं से उत्पन्न होते हैं जिन्हें स्‍पर्माटोगोनिया (शुक्राणुजन) कहा जाता है। महिलाओं की तरह ही पुरुषों में स्‍पर्म बनाने की प्रक्रिया हाइपोथैलेमस, पिट्यूटरी और वृषणों द्वारा नियंत्रित होती है। हाइपोथैलेमस पिट्यूटरी ग्रंथि को सही समय पर एफएसएच और एलएच रिलीज करने का संकेत देता है। एफएसएच वृषणों के सेरटोली कोशिकाओं और एलएच टेस्‍टोस्‍टेरोन बनाने के लिए लेडिग कोशिकाओं पर काम करता है।

अपरिपक्‍व यानि इमैच्‍योर स्‍पर्म कोशिकाएं स्‍पर्म बन जाती हैं और इनकी एक पूंछ जैसी होती है जो इन्‍हें मूव करने में मदद करती है। टेस्‍टोस्‍टेरोन और इनहिबिन दो हार्मोंस हैं जो एफएसच और एलएच के प्रभाव में वृषणों के अंदर बनते हैं। जब स्‍पर्म तैयार हो जाता है तो यही हार्मोन हाइपोथैलेमस और पिट्यूटरी को और हार्मोन रिलीज न करने का संकेत देते हैं।

स्‍पर्म वृषणों से एपिडिडाइमिस तक पहुंचता है। जब पुरुष सेक्‍स के लिए उत्तेजित होते हैं, तब अन्‍य ग्रंथियों से स्राव होने के साथ स्‍पर्म भी रिलीज होता है। इस दौरान पेनिस से सफेद फ्लूइड निकलता है जिसे वीर्य कहते हैं। असुरक्षित यौन संबंध बनाने पर योनि या गर्भाशय ग्रीवा के जरिए महिला के यौन अंग में वीर्य चला जाता है। महिला के प्रजनन मार्ग में स्‍पर्म 3 दिनों तक रह सकता है। यदि इस दौरान यह एग की कोशिका में घुस जाए, तो फर्टिलाइजेशन की संभावना बढ़ जाती है।

स्‍पर्म के एग को फर्टिलाइज करने के बाद अन्‍य बदलाव शुरू होते हैं, जैसे कि :

  • भ्रूण : प्रेग्‍नेंसी के आठवें हफ्ते तक, गर्भ में विकसित हो रहे मानव को भ्रूण कहा जाता है। फर्टिलाइजेशन के बाद जाइगोट बनता है और तेजी से अलग होता है। पहने यह दो कोशिकाओं में बंटता है, फिर हर एक दोबारा चार कोशिकाएं बनाने के लिए बंटता है। कोशिका के बंटने की प्रक्रिया कई बार होती है जब तक कि कोशिका की सख्‍त बॉल यानि मोरुला नहीं बन जाती है। यह लगभग तीन दिन के बाद बनती है।
    मोरुला की कोशिकाएं भी विभाजित होती रहती हैं और मोरुला स्‍टेज में बॉल बनने वाले बाहर कोनों की ओर मूव करना शुरू करती हैं। इससे बॉल कोशिकाओं की एक खोखली बॉल बन जाती है जिसे ब्‍लास्‍टोसिस्‍ट कहते हैं। यह फर्टिलाइजेशन के लगभग पांच दिनों बाद बनती है।
  • इंप्‍लांटेशन : फर्टिलाइजेशन के पांच से सात दिनों के बीच में फर्टिलाइज लाइगोट से ब्‍लास्‍टोसिस्‍ट बनता है जो फैलोपियन ट्यूब से गर्भाशय तक पहुंचता है और गर्भाशय की एंडोमेट्रियल लाइनिंग से खुद को जोड़ देता है। इस प्रक्रिया को इंप्‍लांटेशन कहते हैं और अगर भ्रूण जीवित रहता है तो यह प्रेग्‍नेंसी की शुरुआत होती है।
    यदि ब्‍लास्‍टोसिस्‍ट गर्भाशय के अंदर सफलतापूर्वक इंप्‍लांट हो जाता है और आगे विकसित होने लगता है। अंदरूनी कोशिका के मास में तीन या चार ब्‍लास्‍टोसिस्‍ट कोशिका विकसित होती है जिससे आगे चलकर भ्रूण बनता है और बाकी के बचे 100 ब्‍लास्‍टोसिस्‍ट कोशिका थ्रोफोब्‍लास्‍ट नाम की संरचना बनाता है। इससे प्‍लेसेंटा बनने में मदद मिलती है।
    कभी-कभी, ब्‍लास्‍टोसिस्‍ट गर्भाशय के बाहर के ऊतक में इंप्‍लांट हो जाता है जिससे एक्‍टोपिक प्रेग्‍नेंसी होती है। एक्‍टोपिक प्रेग्‍नेंसी पूरी नहीं हो पाती और इसे सर्जरी से हटाना पड़ता है। कभी-कभी बढ़ती हुई एक्‍टोपिक प्रेग्‍नेंसी फट सकती है और इससे अंदरूनी ब्‍लीडिंग और हाइपोवोलेमिक शॉक होता है।

फर्टिलाइजेशन कैसे होता है ये समझने के बाद, हम मेडिसिन और रोजमर्रा की जिंदगी में इसके प्रभावों पर चर्चा कर सकते हैं।

  • गर्भ निरोधक या फर्टिलाइजेशन से बचना : अनचाही प्रेग्‍नेंसी से बचने के लिए, फर्टिलाइजेशन की प्रक्रिया के किसी भी पहलू को रोका जा सकता है। उदाहरण के तौर पर, गर्भ निरोधक के लिए निम्‍न तरीके हैं :
    • ओवुलेशन रोकना : गर्भ निरोधक गोलियां एग बनने से रोकता है।
    • वैसेक्‍टोमी : अधिक उम्र के जो पुरुष बच्‍चा नहीं चाहते हैं, वो स्‍पर्म के वीर्य में बदलने की प्रक्रिया वैसेक्‍टोमी करवा सकते हैं।
    • बैरियर तरीका : कंडोम को गर्भ निरोधक का सबसे आम तरीका माना जाता है। यह स्‍पर्म और वीर्य को महिला प्रजनन मार्ग में जाने से रोकता है जिससे फर्टिलाइजेशन नहीं होता है।
       
  • इनफर्टिलिटी : एक साल (यदि महिला की उम्र 35 साल से कम होती है) तक नियमित असुरक्षित सेक्‍स करने के बावजूद भी कंसीव न कर पाने की स्थिति को इनफर्टिलिटी (यदि महिला की उम्र 35 साल से ज्‍यादा होती है) कहते हैं।
    ​फर्टिलाइजेशन की विफलता इनफर्टिलिटी का आधार है। फर्टिलाइजेशन की प्रक्रिया में किसी भी कारक की वजह से इनफर्टिलिटी हो सकते है। जैसे कि :
    • ओवुलेशन संबंधी समस्‍या
    • स्‍पर्म की समस्‍या
    • सेक्‍स संबंधी परेशानी
       
  • आईवीएफ : कुछ महिलाएं नैचुरली कंसीव नहीं कर पाती हैं और उन्‍हें आईवीएफ की मदद लेनी पड़ती है। यदि कुछ समय तक असुरक्षित सेक्‍स करने के बाद भी फर्टिलाइजेशन नहीं हो पा रहा है या डोनर के स्‍पर्म के आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन के बावजूद कंसीव नहीं हो रहा तो यहां आईवीएफ काम आता है।
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